ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह तो बच्चे जरूर समझते हैं हम ब्राह्मण
ही हैं, जो देवता बनेंगे। यह पक्का निश्चय है ना। टीचर जिसको पढ़ाते हैं जरूर
आपसमान बना देते हैं। यह तो निश्चय की बात है। कल्प-कल्प बाप आकर समझाते हैं, हम
नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाते हैं। सारी दुनिया को बनाने वाला कोई तो होगा ना।
बाप स्वर्गवासी बनाते हैं, रावण नर्कवासी बनाते हैं। इस समय है रावण राज्य, सतयुग
में है रामराज्य। रामराज्य की स्थापना करने वाला है तो जरूर रावण राज्य की स्थापना
करने वाला भी होगा। राम भगवान् को कहा जाता है, भगवान् नई दुनिया स्थापन करते हैं।
ज्ञान तो बहुत सहज है, कोई बड़ी बात नहीं है। परन्तु पत्थरबुद्धि ऐसे हैं जो
पारसबुद्धि होना ही असम्भव समझते हैं। नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने में बड़ी मेहनत
लगती है क्योंकि माया का प्रभाव है। कितने बड़े-बड़े मकान 50 मंजिल, 100 मंजिल के
बनाते हैं। स्वर्ग में कोई इतनी मंजिल नहीं होती। आजकल यहाँ ही बनाते रहते हैं। तुम
समझते हो सतयुग में ऐसे मकान नहीं होते, जैसे यहाँ बनाते हैं। बाप खुद समझाते हैं
इतना छोटा झाड़ सारे विश्व पर होता है, तो वहाँ मंजिलें आदि बनाने की दरकार ही नहीं।
ढेर की ढेर जमीन पड़ी रहती है। यहाँ तो जमीन है नहीं, इसलिए जमीन का दाम कितना बढ़
गया है। वहाँ तो जमीन का भाव लगता ही नहीं, न म्युनिसिपल टैक्स आदि लगता है। जिसको
जितनी जमीन चाहिए ले सकता है। वहाँ तुमको सब सुख मिल जाते हैं, सिर्फ एक बाप की इस
नॉलेज से। मनुष्य 100 मंजिल आदि जो बनाते हैं, उसमें भी पैसे आदि तो लगते हैं ना।
वहाँ पैसे आदि लगते ही नहीं। अथाह धन रहता है। पैसे का कदर नहीं। ढेर पैसे होंगे तो
क्या करेंगे। सोने, हीरे, मोतियों के महल आदि बना देते हैं। अभी तुम बच्चों को कितनी
समझ मिली है। समझ और बेसमझ की ही बात है। सतो बुद्धि और तमो बुद्धि। सतोप्रधान
स्वर्ग के मालिक, तमोगुणी बुद्धि नर्क के मालिक। यह तो स्वर्ग नहीं है। यह है रौरव
नर्क। बहुत दु:खी हैं इसलिए पुकारते हैं भगवान् को, फिर भूल जाते हैं। कितना माथा
मारते, कान्फ्रेन्स आदि करते रहते हैं कि एकता हो जाए। परन्तु तुम बच्चे समझते हो -
यह आपस में मिल नहीं सकते। यह सारा झाड़ जड़जड़ीभूत है, फिर नया बनता है। तुम जानते
हो कलियुग से सतयुग कैसे बनता है। यह नॉलेज तुमको बाप अभी ही समझाते हैं। सतयुगवासी
सो फिर कलियुगवासी बनते हो फिर तुम संगमवासी बन सतयुगवासी बनते हो। कहेंगे इतने सब
सतयुग में जायेंगे? नहीं, जो सच्ची सत्य नारायण की कथा सुनेंगे वही स्वर्ग में
जायेंगे। बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। दु:खधाम तो होगा ही नहीं। तो इस
दु:खधाम को जीते जी तलाक दे देना चाहिए। बाप युक्ति तो बताते हैं, कैसे तुम तलाक दे
सकते हो। इस सारी सृष्टि पर देवी-देवताओं का राज्य था। अभी फिर बाप आते हैं स्थापना
करने। हम उस बाप से विश्व का राज्य ले रहे हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार चेंज जरूर होनी
है। यह है पुरानी दुनिया। इसको सतयुग कैसे कहेंगे? परन्तु मनुष्य बिल्कुल समझते नहीं
हैं कि सतयुग क्या होता है। बाबा ने समझाया है इस नॉलेज के लिए लायक वह हैं
जिन्होंने बहुत भक्ति की है। उन्हें ही समझाना चाहिए। बाकी जो इस कुल के होंगे नहीं,
वह समझेंगे नहीं। तो फिर ऐसे ही टाइम वेस्ट क्यों करना चाहिए। हमारे घराने के ही नहीं
हैं तो कुछ भी मानेंगे नहीं। कह देते हैं आत्मा क्या, परमात्मा क्या - यह मैं समझना
ही नहीं चाहता हूँ। तो ऐसे के साथ मेहनत क्यों करनी चाहिए। बाबा ने समझाया है - ऊपर
में लिखा हुआ है भगवानुवाच, मैं आता ही हूँ कल्प-कल्प पुरूषोत्तम संगमयुग पर और
साधारण मनुष्य तन में। जो अपने जन्मों को नहीं जानता है, मैं बतलाता हूँ। पूरे 5
हजार वर्ष का पार्ट किसका होता है, हम बता देते हैं। जो पहले नम्बर में आया है उनका
ही पार्ट होगा ना। श्रीकृष्ण की महिमा भी गाते हैं फर्स्ट प्रिन्स ऑफ सतयुग। वही
फिर 84 जन्मों के बाद क्या होगा? फर्स्ट बेगर। बेगर टू प्रिन्स। फिर प्रिन्स टू
बेगर। तुम समझते हो प्रिन्स टू बेगर कैसे बनते हैं। फिर बाप आकर कौड़ी से हीरे जैसा
बनाते हैं। जो हीरे जैसा है वही फिर कौड़ी जैसा बनते हैं। पुनर्जन्म तो लेते हैं
ना। सबसे ज्यादा जन्म कौन लेते हैं, यह तुम समझते हो। पहले-पहले तो श्रीकृष्ण को ही
मानेंगे। उनकी राजधानी है। बहुत जन्म भी उनके होंगे। यह तो बहुत सहज बात है। परन्तु
मनुष्य इन बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। बाप समझाते हैं तो वन्डर खाते हैं। बाप
एक्यूरेट बताते हैं फर्स्ट सो लास्ट। फर्स्ट हीरे जैसा, लास्ट कौड़ी जैसा। फिर हीरे
जैसा बनना है, पावन बनना है, इसमें तकलीफ क्या है। पारलौकिक बाप ऑर्डीनेन्स निकालते
हैं - काम महाशत्रु है। तुम पतित किससे बने हो? विकार में जाने से इसलिए बुलाते भी
हैं पतित-पावन आओ क्योंकि बाप तो एवर पारसबुद्धि है, वह कभी पत्थरबुद्धि नहीं बनते
हैं, कनेक्शन ही उनका और पहले नम्बर जन्म लेने वाले का हुआ। देवतायें तो बहुत होते
हैं परन्तु मनुष्य कुछ भी समझते नहीं।
क्रिश्चियन लोग कहते हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले पैराडाइज़ था। वह फिर भी
पिछाड़ी को आये हैं ना तो उनकी ताकत है। उनसे ही सब सीखने जाते हैं क्योंकि उन्हों
की फ्रेश बुद्धि है। वृद्धि भी उन्हों की है। सतो, रजो, तमो में आते हैं ना। तुम
जानते हो सब कुछ विलायत से ही सीखते हैं। यह भी तुम जानते हो - सतयुग में महल आदि
बनने मे कोई टाइम नहीं लगेगा। एक की बुद्धि में आया फिर वृद्धि होती जाती है। एक
बनाकर फिर ढेर बनाते जाते हैं। बुद्धि में आ जाता है ना। साइंस वालों की बुद्धि
तुम्हारे पास ऊंच हो जाती है। झट महल बनाते रहेंगे। यहाँ मकान वा मन्दिर बनाने में
12 मास लग जाते हैं, वहाँ तो इन्जीनियर आदि सब होशियार होते हैं। वह है ही गोल्डन
एज। पत्थर आदि तो होंगे ही नहीं। अभी तुम बैठे हो ख्याल करते होंगे, हम यह पुराना
शरीर छोड़ेंगे, फिर घर में जायेंगे, वहाँ से फिर सतयुग में योगबल से जन्म लेंगे।
बच्चों को खुशी क्यों नहीं होती! चिंतन क्यों नहीं चलता! जो मोस्ट सर्विसएबुल बच्चे
हैं उन्हों का चिंतन जरूर चलता होगा। जैसे बैरिस्टरी पास करते हैं तो बुद्धि में
चलता है ना - हम यह करेंगे, यह करेंगे। तुम भी समझते हो हम यह शरीर छोड़ जाकर यह
बनेंगे। याद से ही तुम्हारी आयु वृद्धि को पायेगी। अभी तो बेहद बाप के बच्चे हैं,
यह ग्रेड बहुत ऊंची है। तुम ईश्वरीय परिवार के हो। उनका कोई और सम्बन्ध नहीं है।
भाई-बहन से भी ऊंच चढ़ा दिया है। भाई-भाई समझो, यह बहुत प्रैक्टिस करनी है। भाई का
निवास कहाँ है? इस तख्त पर अकाल आत्मा रहती है। यह तख्त सभी आत्माओं के सड़ गये
हैं। सबसे जास्ती तुम्हारा तख्त सड़ गया है। आत्मा इस तख्त पर विराजमान होती है।
भ्रकुटी के बीच में क्या है? यह बुद्धि से समझने की बातें हैं। आत्मा बिल्कुल
सूक्ष्म है, स्टॉर मिसल है। बाप भी कहते हैं मैं भी बिन्दू हूँ। मैं फिर तुमसे बड़ा
थोड़ेही हूँ। तुम जानते हो हम शिवबाबा की सन्तान हैं। अब बाप से वर्सा लेना है
इसलिए अपने को भाई-भाई आत्मा समझो। बाप तुमको सम्मुख पढ़ा रहे हैं। आगे चल और ही
कशिश होती जायेगी। यह विघ्न भी ड्रामा अनुसार पड़ते रहते हैं।
अभी बाप कहते हैं - तुमको पतित नहीं होना है, यह ऑर्डीनेन्स है। अब तो और ही
तमोप्रधान बन पड़े हैं। विकार बिगर रह नहीं सकते। जैसे गवर्मेन्ट कहती है शराब नहीं
पियो, तो शराब बिगर रह नहीं सकते। फिर उनको ही शराब पिलाए डायरेक्शन देते हैं फलानी
जगह बाम्ब्स सहित गिर जाओ। कितना नुकसान होता है। तुम यहाँ बैठे-बैठे विश्व का
मालिक बनते हो। वह फिर वहाँ बैठे-बैठे बाम्ब्स छोड़ते हैं - सारे विश्व के विनाश के
लिए। कैसे चटाभेटी है। तुम यहाँ बैठे-बैठे बाप को याद करते हो और विश्व के मालिक बन
जाते हो। कैसे भी करके बाप को याद जरूर करना है। इसमें हठयोग करने वा आसन आदि लगाने
की भी बात नहीं है। बाबा कोई भी तकलीफ नहीं देते हैं। कैसे भी बैठो सिर्फ तुम याद
करो कि हम मोस्ट बील्वेड (प्यारे) बच्चे हैं। तुमको बादशाही ऐसे मिलती है जैसे माखन
से बाल। गाते भी हैं सेकण्ड में जीवनमुक्ति। कहाँ भी बैठो, घूमो फिरो, बाप को याद
करो। पवित्र होने बिगर जायेंगे कैसे? नहीं तो सजायें खानी पड़ेंगी। जब धर्मराज के
पास जायेंगे तब सबका हिसाब-किताब चुक्तू होगा। जितना पवित्र बनेंगे उतना ऊंच पद
पायेंगे। इमप्योर रहेंगे तो सूखा रोटला खायेंगे। जितना बाप को याद करेंगे, पाप
कटेंगे। इसमें खर्चे आदि की कोई बात नहीं। भल घर में बैठे रहो, बाप से भी मंत्र ले
लो। यह है माया को वश करने का मंत्र - मनमनाभव। यह मंत्र मिला फिर भल घर जाओ। मुख
से कुछ बोलो नहीं। अल्फ और बे, बादशाही को याद करो। तुम समझते हो बाप को याद करने
से हम सतोप्रधान बन जायेंगे, पाप कट जायेंगे। बाबा अपना अनुभव भी सुनाते हैं - भोजन
पर बैठता हूँ, अच्छा, हम बाबा को याद कर खाते हैं, फिर झट भूल जाता हूँ क्योंकि गाया
जाता है जिनके मत्थे मामला... कितना ख्याल करना पड़ता है - फलाने की आत्मा बहुत
सर्विस करती है, उनको याद करना है। सर्विसएबुल बच्चों को बहुत प्यार करते हैं। तुमको
भी कहते हैं इस शरीर में जो आत्मा विराजमान है, उनको याद करो। यहाँ तुम आते ही हो
शिवबाबा के पास। बाप वहाँ से नीचे आये हैं। तुम सबको कहते भी हो - भगवान् आया है।
परन्तु समझते नहीं। युक्ति से बताना पड़े। हद और बेहद के दो बाप हैं। अब बेहद का
बाप राजाई दे रहे हैं। पुरानी दुनिया का विनाश भी सामने खड़ा है। एक धर्म की स्थापना,
अनेक धर्मों का विनाश होता है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म
हो जायेंगे। यह योग अग्नि है, जिससे तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। यह
तरीका बाप ने ही बताया है। तुम बच्चे जानते हो - बाप सबको गुल-गुल बनाकर, नयनों पर
बिठाए ले जाते हैं। कौन-से नयन? ज्ञान के। आत्माओं को ले जाते हैं। समझते हो जाना
तो जरूर है, उनसे पहले क्यों न बाप से वर्सा तो ले लें। कमाई भी बहुत भारी है। बाप
को भूलने से फिर घाटा भी बहुत है। पक्के व्यापारी बनो। बाप को याद करने से ही आत्मा
पवित्र बनेंगी। फिर एक शरीर छोड़ दूसरा जाकर लेंगे। तो बाप कहते हैं - मीठे-मीठे
बच्चों, देही-अभिमानी बनो। यह आदत पक्की डालनी पड़े। अपने को आत्मा समझ बाप से पढ़ते
रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा, शिवालय में चले जायेंगे। चन्द्रकांत वेदान्त में भी यह
कथा है। बोट (नांव) कैसे चलती है, बीच में उतरते हैं, कोई चीज़ में दिल लग जाती है।
स्टीमर चला जाता है। यह भक्ति मार्ग के शास्त्र फिर भी बनेंगे, तुम पढ़ेंगे। फिर जब
बाबा आयेंगे तो यह सब छोड़ देंगे। बाप आते हैं सबको ले जाने। भारत का उत्थान और पतन
कैसे होता है, कितना क्लीयर है। यह सांवरा और गोरा बनता है। ब्रह्मा सो विष्णु,
विष्णु सो ब्रह्मा। एक तो सिर्फ नहीं बनता है ना। यह सारी समझानी है। श्रीकृष्ण की
भी समझानी है गोरा और सांवरा। स्वर्ग में जाते हैं तो नर्क को लात मारते हैं। यह
चित्र में क्लीयर है ना। राजाई के चित्र भी तुम्हारे बनाये थे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के ऑर्डीनेन्स को पालन करने के लिए हम आत्मा भाई-भाई हैं, भ्रकुटी
के बीच में हमारा निवास है, हम बेहद बाप के बच्चे हैं, हमारा यह ईश्वरीय परिवार है
- इस स्मृति में रहना है। देही-अभिमानी बनने की आदत डालनी है।
2) धर्मराज की सजाओं से छूटने के लिए अपने सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं। माया
को वश करने का जो मंत्र मिला है, उसको याद रखते सतोप्रधान बनना है।