ओम् शान्ति।
पंखे भी फिरते हैं सबको रिफ्रेश करते हैं। तुम भी स्वदर्शन चक्रधारी बन बैठते हो तो
बहुत रिफ्रेश होते हो। स्वदर्शन चक्रधारी का अर्थ भी कोई नहीं जानते हैं, तो उनको
समझाना चाहिए। नहीं समझेंगे तो चक्रवर्ती राजा नहीं बनेंगे। स्वदर्शन चक्रधारी को
निश्चय होगा कि हम चक्रवर्ती राजा बनने लिए स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं। श्रीकृष्ण
को भी चक्र दिखाते हैं। लक्ष्मी-नारायण कम्बाइन्ड को भी देते हैं, अकेले को भी देते
हैं। स्वदर्शन चक्र को भी समझना है तब ही चक्रवर्ती राजा बनेंगे। बात तो बहुत सहज
है। बच्चे पूछते हैं - बाबा, स्वदर्शन चक्रधारी बनने में कितना समय लगेगा? बच्चे,
एक सेकण्ड। फिर तुम बनते हो विष्णुवंशी। देवताओं को विष्णुवंशी ही कहेंगे।
विष्णुवंशी बनने के लिए पहले तो शिववंशी बनना पड़े फिर बाबा बैठ सूर्यवंशी बनाते
हैं। अक्षर तो बहुत सहज हैं। हम नये विश्व में सूर्यवंशी बनते हैं। हम नई दुनिया के
मालिक चक्रवर्ती बनते हैं। स्वदर्शन चक्रधारी सो विष्णुवंशी बनने में एक सेकण्ड लगता
है। बनाने वाला है शिवबाबा। शिवबाबा विष्णुवंशी बनाते हैं, और कोई बना न सके। यह तो
बच्चे जानते हैं विष्णुवंशी होते हैं सतयुग में, यहाँ नहीं। यह है विष्णुवंशी बनने
का युग। तुम यहाँ आते ही हो विष्णुवंशी में आने लिए, जिसको सूर्यवंशी कहते हो।
ज्ञान सूर्यवंशी अक्षर बहुत अच्छा है। विष्णु था सतयुग का मालिक। उसमें
लक्ष्मी-नारायण दोनों हैं। यहाँ बच्चे आये हैं, लक्ष्मी-नारायण अथवा विष्णुवंशी बनने
के लिए। इसमें खुशी भी बहुत होती है। नई दुनिया, नई विश्व में, गोल्डन एज विश्व में
विष्णुवंशी बनना है। इससे ऊंच पद और है नहीं, इसमें तो बहुत खुशी होनी चाहिए।
प्रदर्शनी में तुम समझाते हो। तुम्हारी एम ऑबजेक्ट ही यह है। बोलो, यह बहुत बड़ी
युनिवर्सिटी है। इसको कहा जाता है रूहानी स्प्रीचुअल युनिवर्सिटी। एम ऑबजेक्ट इस
चित्र में है। बच्चों को यह बुद्धि में रखना चाहिए। कैसे लिखें जो बच्चों को समझाने
में एक सेकण्ड लगे। तुम ही समझा सकते हो। उनमें भी लिखा हुआ है हम विष्णुवंशी
देवी-देवता थे जरूर अर्थात् देवी-देवता कुल के थे। स्वर्ग के मालिक थे। बाप समझाते
हैं - मीठे-मीठे बच्चे, भारत में तुम आज से 5 हज़ार वर्ष पहले सूर्यवंशी देवी-देवता
थे। बच्चों को अब बुद्धि में आया है। शिवबाबा बच्चों को कहते हैं - हे बच्चों, तुम
सतयुग में सूर्यवंशी थे। शिवबाबा आया था सूर्य-वंशी घराना स्थापन करने। बरोबर भारत
स्वर्ग था। यही पूज्य थे, पुजारी कोई भी नहीं थे। पूजा की कोई सामग्री नहीं थी। इन
शास्त्रों में ही पूजा की रस्म-रिवाज आदि लिखी हुई है। यह है सामग्री। तो बेहद का
बाप शिवबाबा बैठ समझाते हैं। वह है ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। उनको
वृक्षपति अथवा ब्रहस्पति भी कहते हैं। ब्रहस्पति की दशा ऊंच ते ऊंच होती है।
वृक्ष-पति तुमको समझा रहे हैं - तुम पूज्य देवी-देवता थे फिर पुजारी बने हो। जो
देवतायें निर्विकारी थे फिर वह कहाँ गये? जरूर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरेंगे।
तो एक-एक अक्षर नोट करना चाहिए। दिल पर या कागज पर? यह कौन समझाते हैं? शिव-बाबा।
वही स्वर्ग रचते हैं। शिवबाबा ही बच्चों को स्वर्ग का वर्सा देते हैं। बाप बिगर और
कोई दे न सके। लौकिक बाप तो है देहधारी। तुम अपने को आत्मा समझ पारलौकिक बाप को याद
करते हो - बाबा, तो बाबा रेसपॉन्स करते हैं - हे बच्चों। तो बेहद का बाप हो गया ना।
बच्चों, तुम सूर्यवंशी देवी-देवता पूज्य थे फिर तुम पुजारी बने। यह है रावण का
राज्य। हर वर्ष रावण को जलाते हैं, फिर भी मरता ही नहीं है। 12 मास के बाद फिर रावण
को जलायेंगे। गोया सिद्ध कर दिखलाते हैं हम रावण सम्प्रदाय के हैं। रावण अर्थात् 5
विकारों का राज्य कायम है। सतयुग में सभी श्रेष्ठाचारी थे, अभी कलियुग पुरानी
भ्रष्टाचारी दुनिया है, यह चक्र फिरता रहता है। अभी तुम प्रजापिता ब्रह्मावंशी
संगमयुग पर बैठे हो। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम ब्राह्मण हैं। अभी शूद्र कुल के
नहीं हैं। इस समय है ही आसुरी राज्य। बाप को कहते हैं - हे दु:ख हर्ता, सुख कर्ता।
अब सुख कहाँ है? सतयुग में। दु:ख कहाँ है? दु:ख तो कलियुग में है। दु:ख हर्ता, सुख
कर्ता है ही शिवबाबा। वह वर्सा देते ही हैं सुख का। सतयुग को सुख-धाम कहा जाता है,
वहाँ दु:ख का नाम नहीं। तुम्हारी आयु भी बड़ी होती है, रोने की दरकार नहीं। समय पर
पुरानी खाल छोड़ दूसरी ले लेते हैं। समझते हैं अब शरीर बूढ़ा हुआ है। पहले बच्चा
सतोगुणी होता है इसलिए बच्चों को ब्रह्मज्ञानी से ऊंच समझते हैं क्योंकि वह तो फिर
भी विकारी गृहस्थी से संन्यासी बनते हैं, तो उनको सब विकारों का पता है। छोटे बच्चों
को यह पता नहीं रहता है। इस समय सारी दुनिया में रावण राज्य, भ्रष्टाचारी राज्य है।
श्रेष्ठाचारी देवी-देवताओं का राज्य सतयुग में था, अभी नहीं है। फिर हिस्ट्री रिपीट
होगी। श्रेष्ठाचारी कौन बनावे? यहाँ तो एक भी श्रेष्ठाचारी नहीं। इसमें बड़ी बुद्धि
चाहिए। यह है ही पारस बुद्धि बनने का युग। बाप आकर पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाते
हैं।
कहा जाता है संग तारे कुसंग बोरे। सत बाप के सिवाए बाकी दुनिया में है ही कुसंग।
बाप कहते हैं मैं सम्पूर्ण निर्विकारी बनाकर जाता हूँ। फिर सम्पूर्ण विकारी कौन
बनाते हैं? कहते हैं हम क्या जानें! अरे, निर्विकारी कौन बनाते हैं? जरूर बाप ही
बनायेंगे। विकारी कौन बनाते हैं? यह किसको पता नहीं है। बाप बैठ समझाते हैं, मनुष्य
तो कुछ भी नहीं जानते हैं। रावण राज्य है ना। कोई का बाप मर जाता है, पूछो कहाँ गया?
कहेंगे स्वर्गवासी हुआ। अच्छा, तो इसका मतलब नर्क में था ना। तो तुम भी नर्क-वासी
ठहरे ना। कितना सहज है समझाने की बात। अपने को कोई भी नर्कवासी समझते नहीं हैं।
नर्क को वेश्यालय, स्वर्ग को शिवालय कहा जाता है। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले इन
देवी-देवताओं का राज्य था। तुम विश्व के मालिक महाराजा-महारानी थे फिर पुनर्जन्म
लेना पड़े। पुनर्जन्म सबसे जास्ती तुमने लिया है। इनके लिए ही गायन है - आत्मायें
परमात्मा अलग रहे बहुकाल। तुमको याद है तुम पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म
वाले ही आये फिर 84 जन्म ले पतित बने हो, अब फिर पावन बनना है। पुकारते भी हैं ना -
पतित-पावन आओ, तो सर्टीफिकेट देते हैं कि एक ही सतगुरू सुप्रीम आकर पावन बनाते हैं।
खुद कहते हैं इसमें बैठकर मैं तुमको पावन बनाता हूँ। बाकी 84 लाख योनियां आदि हैं
नहीं। 84 जन्म हैं। इन लक्ष्मी-नारायण की प्रजा सतयुग में थी, अब नहीं है, कहाँ गई?
उनको भी 84 जन्म लेना पड़े। जो पहले नम्बर में आते हैं वही पूरे 84 जन्म लेते हैं।
तो फिर पहले वह जाने चाहिए। देवी-देवताओं की वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट होती है।
सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राज्य मस्ट रिपीट। बाप तुमको लायक बना रहे हैं। तुम कहते हो
हम आये हैं इस पाठशाला वा युनिवर्सिटी में, जहाँ हम नर से नारायण बनते हैं। हमारी
एम ऑबजेक्ट यह है। जो अच्छी रीति पुरुषार्थ करेंगे वही पास होंगे। जो पुरुषार्थ नहीं
करेंगे तो प्रजा में कोई बहुत साहूकार बनते हैं, कोई कम। यह राजधानी बन रही है। तुम
जानते हो हम श्रीमत पर श्रेष्ठ बन रहे हैं। श्री श्री शिवबाबा की मत पर श्री
लक्ष्मी-नारायण वा देवी-देवता बनते हैं। श्री माना श्रेष्ठ। अब किसको श्री नहीं कह
सकते। परन्तु यहाँ तो जो आयेगा सबको श्री कह देंगे। श्री फलाना...... अब श्रेष्ठ तो
सिवाए देवी-देवताओं के कोई बन नहीं सकता। भारत श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ था। रावण राज्य
में भारत की महिमा ही खलास कर दी है। भारत की महिमा भी बहुत है तो निंदा भी बहुत
है। भारत बिल्कुल धनवान था, अब बिल्कुल कंगाल बना है। देवताओं के आगे जाकर उन्हों
की महिमा गाते हैं - हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। देवताओं को कहते हैं परन्तु
वह रहमदिल थोड़ेही थे। रहमदिल तो एक को ही कहा जाता है जो मनुष्य से देवता बनाते
हैं। अभी वह तुम्हारा बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। गैरन्टी करते हैं - मेरे
को याद करने से तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म होंगे और साथ ले जाऊंगा। फिर
तुमको नई दुनिया में जाना है। यह 5 हज़ार वर्ष का चक्र है। नई दुनिया थी सो फिर
जरूर बनेगी। दुनिया पतित होगी फिर बाप आकर पावन बनायेंगे। बाप कहते हैं पतित रावण
बनाते हैं, पावन मैं बनाता हूँ। बाकी यह तो जैसे गुड़ियों की पूजा करते रहते हैं।
उनको यह पता नहीं रावण को 10 शीश क्यों देते हैं? विष्णु को भी 4 भुजा देते हैं।
परन्तु कोई ऐसा मनुष्य थोड़ेही कभी होता है। अगर 4 भुजा वाला मनुष्य होता तो उससे
जो बच्चा पैदा होता वह भी ऐसा होना चाहिए। यहाँ तो सबको 2 भुजा हैं। कुछ भी जानते
नहीं। भक्ति मार्ग के शास्त्र कण्ठ कर लेते हैं, उन्हों के भी कितने फालोअर्स बन
जाते हैं। कमाल है! यह तो बाप ज्ञान की अथॉरिटी है। कोई मनुष्य ज्ञान की अथॉरिटी हो
न सके। ज्ञान का सागर तुम मुझे कहते हो - ऑलमाइटी अथॉरिटी... यह बाप की महिमा है।
तुम बाप को याद करते हो तो बाप से ताकत लेते हो, जिससे विश्व के मालिक बन जाते हो।
तुम समझते हो हमारे में बहुत ताकत थी, हम निर्विकारी थे। सारे विश्व पर अकेले राज्य
करते थे तो ऑलमाइटी कहेंगे ना। यह लक्ष्मी-नारायण सारे विश्व के मालिक थे। यह माइट
उन्हों को कहाँ से मिली? बाप से। ऊंच ते ऊंच भगवान् है ना। कितना सहज समझाते हैं।
यह 84 के चक्र को समझना तो सहज है ना। जिससे ही तुमको बादशाही मिलती है। पतित को
विश्व की बादशाही मिल न सके। पतित तो उन्हों के आगे झुकते हैं। समझते हैं हम भक्त
हैं। पावन के आगे माथा टेकते हैं। भक्ति मार्ग भी आधाकल्प चलता है। अभी तुमको भगवान्
मिला है। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, भक्ति का फल देने आया हूँ। गाते
भी हैं भगवान् किसी न किसी रूप में आ जायेंगे। बाप कहते हैं मै कोई बैलगाड़ी आदि
में थोड़ेही आऊंगा। जो ऊंच ते ऊंच था फिर 84 जन्म पूरे किये हैं, उनमें ही आता हूँ।
उत्तम पुरुष होते हैं सतयुग में। कलियुग में हैं कनिष्ट, तमोप्रधान। अभी तुम
तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हो। बाप आकर तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं। यह खेल
है। इसको अगर समझेंगे नहीं तो स्वर्ग में कभी आयेंगे नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप के संग से स्वयं को पारसबुद्धि बनाना है। सम्पूर्ण निर्विकारी
बनना है। कुसंग से दूर रहना है।
2) सदा इसी खुशी में रहना है कि हम स्वदर्शन चक्रधारी सो नई दुनिया के मालिक
चक्रवर्ती बनते हैं। शिवबाबा आये हैं हमें ज्ञान सूर्यवंशी बनाने। हमारा लक्ष्य ही
यह है।