ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति शिवबाबा बोल रहे हैं। गीता में है श्रीकृष्ण
बोले, लेकिन है शिव-बाबा बोले, श्रीकृष्ण को बाबा नहीं कह सकते। भारतवासियों को
मालूम है कि पिता दो होते हैं लौकिक और पारलौकिक। पारलौकिक को परमपिता कहा जाता है।
लौकिक को परमपिता कह नहीं सकते। तुमको कोई लौकिक पिता नहीं समझाते हैं। पारलौकिक
बाप पारलौकिक बच्चों को समझाते हैं। पहले-पहले तुम जाते हो शान्तिधाम, जिसको तुम
मुक्तिधाम, निर्वाणधाम वा वानप्रस्थ भी कहते हो। अब बाप कहते हैं - बच्चे, अब जाना
है शान्तिधाम। सिर्फ उनको ही कहा जाता है टॉवर ऑफ साइलेन्स। यहाँ बैठे हुए पहले-पहले
शान्ति में बैठना है। कोई भी सतसंग में पहले-पहले शान्ति में बैठते हैं। परन्तु
उन्हों को शान्तिधाम का ज्ञान नहीं है। बच्चे जानते हैं हम आत्माओं को इस पुराने
शरीर को छोड़ घर जाना है। कोई भी समय शरीर छूट जाए इसलिए अब बाप जो पढ़ाते हैं, वह
अच्छी रीति पढ़ना है। वह सुप्रीम टीचर भी है। सद्गति दाता गुरू भी है, उनसे योग
लगाना है। यह एक ही तीनों सर्विस करते हैं। ऐसे और कोई एक तीनों ही सर्विस नहीं कर
सकते। यह एक बाप साइलेन्स भी सिखलाते हैं। जीते जी मरने को साइलेन्स कहा जाता है।
तुम जानते हो हमको अब शान्तिधाम घर में जाना है। जब तक पवित्र आत्मायें नहीं बनी
हैं, तब तक वापिस घर कोई जा न सके। जाना तो सबको है इसलिए पाप कर्मों की पिछाड़ी
में सजायें मिलती हैं, फिर पद भी भ्रष्ट हो जाता है। मानी और मोचरा भी खाना पड़ता
है क्योंकि माया से हारते हैं। बाप आते ही हैं माया पर जीत पहनाने। परन्तु ग़फलत से
बाप को याद नहीं करते। यहाँ तो एक बाप को ही याद करना है। भक्ति मार्ग में भी बहुत
भटकते हैं, जिसको माथा टेकते उनको जानते नहीं। बाप आकर भटकने से छुड़ा देते हैं।
समझाया जाता है ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। रात को ही धक्का खाया जाता है। ज्ञान
से दिन अर्थात् सतयुग-त्रेता। भक्ति माना रात, द्वापर-कलियुग। यह है सारी ड्रामा की
ड्युरेशन। आधा समय दिन, आधा समय रात। प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियों का दिन और
रात। यह बेहद की बात है। बेहद का बाप बेहद के संगम पर आते हैं, इसलिए कहा जाता है
शिवरात्रि। मनुष्य यह नहीं समझते कि शिवरात्रि किसको कहा जाता है? तुम्हारे सिवाए
एक भी शिवरात्रि के महत्व को नहीं जानता क्योंकि यह है बीच। जब रात पूरी हो, दिन
शुरू होता है, इसको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग। पुरानी दुनिया और नई दुनिया का
बीच। बाप आते ही हैं पुरूषोत्तम संगमयुगे-युगे। ऐसे नहीं युगे-युगे। सतयुग-त्रेता
का संगम उसे भी संगमयुग कह देते हैं। बाप कहते हैं यह भूल है।
शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो तो पाप विनाश होंगे, इसको योग अग्नि कहा जाता है।
तुम सब ब्राह्मण हो। योग सिखाते हो पवित्र होने लिए। वे ब्राह्मण लोग काम चिता पर
चढ़ाते हैं। उन ब्राह्मणों और तुम ब्राह्मणों में रात-दिन का फ़र्क है। वह हैं कुख
वंशावली, तुम हो मुख वंशावली। हर एक बात अच्छी रीति समझने की है। यूँ तो कोई भी आते
हैं उसको समझाया जाता है, बेहद के बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और बेहद के
बाप का वर्सा मिलेगा। फिर जितना-जितना दैवीगुण धारण करेंगे और करायेंगे उतना ऊंच पद
पायेंगे। बाप आते ही हैं पतितों को पावन बनाने। तो तुमको भी यह सर्विस करनी है।
पतित तो सभी हैं। गुरू लोग किसको भी पावन कर न सकें। पतित-पावन नाम शिवबाबा का है।
वह आते भी यहाँ हैं। जब सभी पूरे पतित बन जाते हैं ड्रामा के प्लैन अनुसार, तब बाप
आते हैं। पहले-पहले तो बच्चों को अल्फ समझाते हैं। मुझे याद करो। तुम कहते हो ना वह
पतित-पावन है। रूहानी बाप को कहा जाता है पतित-पावन। कहते हैं - हे भगवान् अथवा हे
बाबा। परन्तु परिचय किसको भी नहीं। अभी तुम संगमवासियों को परिचय मिला है। वह हैं
नर्कवासी। तुम नर्कवासी नहीं हो। हाँ, अगर कोई हार खाता है तो एकदम गिर पड़ते हैं।
की कमाई चट हो जाती है। मूल बात है पतित से पावन होने की। यह है ही विशश दुनिया। वह
है वाइसलेस दुनिया, नई दुनिया, जहाँ देवतायें राज्य करते हैं। अभी तुम बच्चों को
मालूम पड़ा है। पहले-पहले देवता ही सबसे जास्ती जन्म लेते हैं। उसमें भी जो
पहले-पहले सूर्य-वंशी हैं वह पहले आते हैं, 21 पीढ़ी वर्सा पाते हैं। कितना बेहद का
वर्सा है - पवित्रता-सुख-शान्ति का। सतयुग को पूरा सुखधाम कहा जाता है। त्रेता है
सेमी क्योंकि दो कला कम हो जाती हैं। कला कम होने से रोशनी कम होती जाती है।
चन्द्रमा की भी कला कम होने से रोशनी कम हो जाती है। आखरीन बाकी लकीर जाकर बचती है।
निल नहीं होता है। तुम्हारा भी ऐसे है - निल नहीं होते। इसको कहा जाता है आटे में
नमक।
बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं। यह है आत्माओं और परमात्मा का मेला। यह बुद्धि
से काम लिया जाता है। परमात्मा कब आते हैं? जब बहुत आत्मायें अथवा बहुत मनुष्य हो
जाते हैं तब परमात्मा मेले में आते हैं। आत्माओं और परमात्मा का मेला किसलिए लगता
है? वह मेले तो मैले होने के लिए हैं। इस समय तुम बागवान द्वारा कांटे से फूल बन रहे
हो। कैसे बनते हो? याद के बल से। बाप को कहा जाता है सर्व शक्तिमान्। जैसे बाप
सर्वशक्तिमान् है वैसे रावण भी कम शक्तिमान् नहीं है। बाप खुद ही कहते हैं माया बड़ी
बलवान है, दुस्तर है। कहते हैं बाबा हम आपको याद करते हैं, माया हमारी याद को भुला
देती है। एक-दो के दुश्मन हुए ना। बाप आकर माया पर जीत पहनाते हैं, माया फिर हरा
देती है। देवताओं और असुरों की युद्ध दिखाई है। परन्तु ऐसे कोई है नहीं। युद्ध तो
यह है। तुम बाप को याद करने से देवता बनते हो। माया याद में विघ्न डालती है, पढ़ाई
में विघ्न नहीं डालती। याद में ही विघ्न पड़ते हैं। घड़ी-घड़ी माया भुला देती है।
देह-अभिमानी बनने से माया का थप्पड़ लग जाता है। कामी जो होते हैं उनके लिए बहुत कड़े
अक्षर कहे जाते हैं। यह है ही रावण राज्य। यहाँ भी समझाया जाता है पावन बनो फिर भी
बनते नहीं। बाप कहते हैं - बच्चे, विकार में मत जाओ, काला मुँह मत करो। फिर भी लिखते
हैं बाबा माया ने हार खिला दी अर्थात् काला मुँह कर बैठे। गोरा और सांवरा है ना।
विकारी काले और निर्विकारी गोरे होते हैं। श्याम-सुन्दर का भी अर्थ सिवाए तुम्हारे
दुनिया में कोई नहीं जानते। श्रीकृष्ण को भी श्याम-सुन्दर कहते हैं। बाप उनके ही
नाम का अर्थ समझाते हैं। स्वर्ग का फर्स्ट नम्बर प्रिन्स था। सुन्दरता में नम्बर-वन
यह पास होता है। फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते-उतरते काले बन जाते हैं। तो
नाम रखा है श्याम-सुन्दर। यह अर्थ भी बाप समझाते हैं। शिवबाबा तो है ही एवर सुन्दर।
वह आकर तुम बच्चों को सुन्दर बनाते हैं। पतित काले, पावन सुन्दर होते हैं। नैचुरल
ब्युटी रहती है। तुम बच्चे आये हो कि हम स्वर्ग का मालिक बनें। गायन भी है शिव
भगवानुवाच, मातायें स्वर्ग का द्वार खोलती हैं इसलिए वन्दे मातरम् गाया जाता है।
वन्दे मातरम् तो अन्डरस्टुड पिता भी है। बाप माताओं की महिमा को बढ़ाते हैं। पहले
लक्ष्मी, पीछे नारायण। यहाँ फिर पहले मिस्टर, पीछे मिसेज। ड्रामा का राज़ ऐसा बना
हुआ है। बाप रचयिता पहले अपना परिचय देते हैं। एक है हद का लौकिक बाप, दूसरा है
बेहद का पारलौकिक बाप। बेहद के बाप को याद करते हैं क्योंकि उनसे बेहद का वर्सा
मिलता है। हद का वर्सा मिलते हुए भी बेहद के बाप को याद करते हैं। बाबा आप आयेंगे
तो हम और संग तोड़ एक आपसे ही जोड़ेंगे। यह किसने कहा? आत्मा ने। आत्मा ही इन
आरगन्स द्वारा पार्ट बजाती है। हर एक आत्मा जैसे-जैसे कर्म करती है ऐसे-ऐसे जन्म
लेती है। साहूकार गरीब बनते हैं। कर्म हैं ना। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक
हैं। इन्होंने क्या किया, यह तो तुम जानते हो और तुम ही समझा सकते हो।
बाप कहते हैं इन आंखों से तुम जो कुछ भी देखते हो, उससे वैराग्य। यह तो सब खत्म
हो जाना है। नया मकान बनाते हैं तो फिर पुराने से वैराग्य हो जाता है। बच्चे कहेंगे
बाबा ने नया मकान बनाया है, हम उसमें जायेंगे। यह पुराना मकान तो टूट-फूट जायेगा।
यह है बेहद की बात। बच्चे जानते हैं बाप आया हुआ है स्वर्ग की स्थापना करने। यह
पुरानी छी-छी दुनिया है।
तुम बच्चे अभी त्रिमूर्ति शिव के आगे बैठे हो। तुम विजय पहनते हो। वास्तव में
तुम्हारा यह त्रिमूर्ति कोट ऑफ आर्मस है। तुम ब्राह्मणों का यह कुल सबसे ऊंचा है।
चोटी है। यह राजाई स्थापन हो रही है। इस कोट ऑफ आर्मस को तुम ब्राह्मण ही जानते हो।
शिवबाबा हमको ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं, देवी-देवता बनाने के लिए। विनाश तो होना
ही है। दुनिया तमोप्रधान बनती है तो नैचुरल कैलेमिटीज भी मदद करती है। बुद्धि से
कितनी साइन्स निकालते रहते हैं। पेट से कोई मूसल नहीं निकले हैं। यह साइन्स निकली
है, जिससे सारे कुल को खत्म कर देते हैं। बच्चों को समझाया है ऊंच ते ऊंच है
शिव-बाबा। पूजा भी करनी चाहिए एक शिवबाबा की और देवताओं की। ब्राह्मणों की पूजा हो
नहीं सकती क्योंकि तुम्हारी आत्मा भल पवित्र है लेकिन शरीर तो पवित्र नहीं है,
इसलिए पूजन लायक नहीं हो सकते। महिमा लायक हो। जब फिर तुम देवता बनते हो तो आत्मा
भी पवित्र, शरीर भी नया पवित्र मिलता है। इस समय तुम महिमा लायक हो। वन्दे मातरम्
गाया जाता है। माताओं की सेना ने क्या किया? माताओं ने ही श्रीमत पर ज्ञान दिया है।
मातायें सबको श्रीमत पर ज्ञान देती हैं। मातायें सबको ज्ञान अमृत पिलाती हैं।
यथार्थ रीति तुम ही समझते हो। शास्त्रों में तो बहुत कहानियाँ लिखी हुई हैं, वह
बैठकर सुनाते हैं। तुम सत-सत करते रहते हो। तुम यह बैठकर सुनाओ तो सत-सत कहेंगे। अभी
तो तुम सत-सत नहीं कहेंगे। मनुष्य तो ऐसे पत्थरबुद्धि हैं जो सत-सत कहते रहते हैं।
गायन भी है पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि। पारस बुद्धि माना पारसनाथ। नेपाल में कहते
हैं पारसनाथ का चित्र है। पारसपुरी का नाथ यह लक्ष्मी-नारायण हैं। उन्हों की
डिनायस्टी है। अब मूल बात है रचयिता और रचना के राज़ को जानना, जिनके लिए ऋषि-मुनि
भी नेती-नेती करते गये हैं। अभी तुम बाप द्वारा सब कुछ जानते हो अर्थात् आस्तिक बनते
हो। माया रावण नास्तिक बनाती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा स्मृति रहे कि हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं, हमारा सबसे
ऊंच कुल है। हमें पवित्र बनना और बनाना है। पतित-पावन बाप का मददगार बनना है।
2) याद में कभी ग़फलत नहीं करना है। देह-अभिमान के कारण ही माया याद में विघ्न
डालती है इसलिए पहले देह-अभिमान को छोड़ना है। योग अग्नि द्वारा पाप नाश करने हैं।