ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। रूहानी बाप को दाता कहा जाता है।
वह आपेही सब कुछ बच्चों को देते हैं। आते ही हैं विश्व का मालिक बनाने। कैसे बनना
है, यह सब कुछ बच्चों को समझाते हैं, डायरेक्शन देते रहते हैं। दाता है ना। तो सब
आपेही देते रहते हैं। मांगने से मरना भला। कोई भी चीज़ मांगनी नहीं होती है। शक्ति,
आशीर्वाद, कृपा कई बच्चे मांगते रहते हैं। भक्ति मार्ग में मांग-मांग कर माथा पटक
सारी सीढ़ी नीचे उतरते आये हो। अभी मांगने की कोई दरकार नहीं। बाप कहते हैं
डायरेक्शन पर चलो। एक तो कहते हैं बीती को कभी चितवो नहीं। ड्रामा में जो कुछ हुआ
पास्ट हो गया। उनका विचार नहीं करो। रिपीट न करो। बाप तो सिर्फ दो अक्षर ही कहते
हैं मामेकम् याद करो। बाप डायरेक्शन अथवा श्रीमत देते हैं। उस पर चलना बच्चों का
काम है। यह है सबसे श्रेष्ठ डायरेक्शन। कोई कितने भी प्रश्न-उत्तर आदि करेंगे, बाबा
तो दो अक्षर ही समझायेंगे। मैं हूँ पतित-पावन। तुम मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे
पाप भस्म हो जायेंगे। बस, याद के लिए कोई डायरेक्शन दिया जाता है क्या! बाप को याद
करना है, कोई रड़ी मारना वा चिल्लाना नहीं है। अन्दर में सिर्फ बेहद के बाप को याद
करना है। दूसरा डायरेक्शन क्या देते हैं? 84 के चक्र को याद करो क्योंकि तुमको देवता
बनना है, देवताओं की महिमा तो तुमने आधाकल्प की है।
(बच्चे के रोने का आवाज़ हुआ) अभी यह डायरेक्शन सभी सेन्टर्स वालों को दिये जाते
हैं कि बच्चों को कोई भी लेकर न आये। उन्हों का कोई प्रबन्ध करना है। बाप से जिन्हों
को वर्सा लेना होगा वह आपेही प्रबन्ध करेंगे। यह रूहानी बाप की युनिवर्सिटी है, इसमें
छोटे बच्चों की दरकार नहीं। ब्राह्मणी (टीचर) का काम है सर्विसएबुल लायक जब बनें तब
उन्हों को रिफ्रेश करने के लिए ले आना है। कोई भी बड़े आदमी हो वा छोटा हो, यह
युनिवर्सिटी है। यहाँ बच्चों को जो ले आते हैं वह यह नहीं समझते कि यह युनिवर्सिटी
है। मुख्य बात है - यह युर्निवर्सिटी है। इसमें पढ़ने वाले बड़े अच्छे समझदार चाहिए।
कच्चे भी डिस्ट्रबेन्स करेंगे क्योंकि बाप की याद में नहीं होंगे तो बुद्धि इधर-उधर
भटकती रहेगी। नुकसान कर देंगे। याद में रह नहीं सकेंगे। बाल-बच्चे लायेंगे तो इसमें
बच्चों का ही नुकसान है। कोई तो जानते ही नहीं कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है, यहाँ
मनुष्य से देवता बनना होता है। बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में बाल बच्चों के
साथ रहो, यहाँ सिर्फ एक सप्ताह तो क्या 3-4 दिन भी क़ाफी है। नॉलेज तो बहुत सहज है।
बाप को पहचानना है। बेहद के बाप को पहचानने से बेहद का वर्सा मिलेगा। कौन-सा वर्सा?
बेहद की बादशाही। ऐसे मत समझो, प्रदर्शनी वा म्यूजियम में सर्विस नहीं होती है। ढेर
अनगिनत प्रजा बनती है। ब्राह्मण कुल, सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी - तीनों यहाँ स्थापन
हो रहे हैं। तो यह बहुत बड़ी युनिवर्सिटी है। बेहद का बाप पढ़ाते हैं। एकदम दिमाग
ही पुर (भरपूर) हो जाना चाहिए। परन्तु बाप है साधारण तन में। पढ़ाते भी साधारण रीति
हैं, इसलिए मनुष्यों को जंचता नहीं है। गॉड फादरली युनिवर्सिटी फिर ऐसी होगी! बाप
कहते हैं मैं हूँ गरीब निवाज़। गरीबों को ही पढ़ाता हूँ। साहूकार को त़ाकत नहीं
पढ़ने की। उन्हों की बुद्धि में तो महल माड़ी ही होती है। गरीब ही साहूकार बनते
हैं, साहूकार गरीब बनेंगे - यह कायदा है। दान कभी साहूकारों को दिया जाता है क्या?
यह भी अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान है। साहूकार दान ले नहीं सकेंगे। बुद्धि में
बैठेगा नहीं। वह अपनी हद की रचना धन-दौलत में ही फँसे रहते हैं। उन्हों के लिए तो
यहाँ ही जैसे स्वर्ग है। कहते हैं हमको दूसरे स्वर्ग की दरकार नहीं। कोई बड़ा आदमी
मरा तो भी कहेंगे स्वर्ग पधारा। आपेही कह देते हैं कि यह स्वर्ग गया। तो जरूर अभी
नर्क ठहरा ना। परन्तु इतने पत्थरबुद्धि हैं जो समझते नहीं हैं - नर्क क्या है? यह
तो तुम्हारी कितनी बड़ी युनिवर्सिटी है। बाप कहते हैं जिनकी बुद्धि को ताला लगा हुआ
है, उन्हों को ही आकर पढ़ाता हूँ। बाप जब आये तब आकर ताला खोले। बाप खुद डायरेक्शन
देते हैं - तुम्हारी बुद्धि का ताला कैसे खुलेगा? बाप से कुछ भी मांगना नहीं है,
इसमें निश्चय चाहिए। कितना मोस्ट बील्वेड बाबा है, जिसको भक्ति में याद करते थे।
जिसे याद किया जाता है वह जरूर कभी आयेगा भी ना। याद करते ही हैं फिर से रिपीट होने
के लिए। बाप आकर बच्चों को ही समझाते हैं। बच्चों को फिर बाहर वालों को समझाना है
कि कैसे बाबा आया हुआ है। क्या कहते हैं? बच्चे, तुम सब पतित हो, मैं ही आकर पावन
बनाता हूँ। तुम आत्मा जो पतित बनी हो, अब सिर्फ मुझ पतित-पावन बाप को याद करो, मुझ
सुप्रीम आत्मा को याद करो। इसमें कुछ भी मांगने की दरकार नहीं है। तुमने भक्ति
मार्ग में आधाकल्प मांगा ही मांगा है, मिला कुछ भी नहीं। अभी मांगना बन्द करो। हम
आपेही तुमको देता रहता हूँ। बाप का बनने से वर्सा तो मिलता ही है। जो बालिग (बड़े)
बच्चे होते हैं, वह झट बाप को समझ जाते हैं। बाप का वर्सा है ही स्वर्ग की बादशाही
- 21 पीढ़ी। यह तो तुम जानते हो - जब नर्कवासी हैं तो ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करने से
अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। मनुष्य धर्माऊ भी निकालते हैं। अक्सर करके व्यापारी
लोग निकालते हैं। तो जो व्यापारी होंगे वह कहेंगे हम बाप से व्यापार करने आये हैं।
बच्चे बाप से व्यापार करते हैं ना। बाप की प्रापर्टी लेकर फिर उससे श्राध आदि खिलाते
हैं, दान-पुण्य करते हैं। धर्मशाला, मन्दिर आदि बनायेंगे तो उस पर बाप का नाम रखेंगे
क्योंकि जिससे प्रापर्टी मिली उनके लिए तो जरूर करना चाहिए। वह भी सौदा हो गया। वह
सब हैं जिस्मानी बातें। अभी बाप कहते हैं बीती को चितवो नहीं। उल्टी-सुल्टी कोई बात
सुनो नहीं। उल्टे-सुल्टे कोई प्रश्न पूछे तो बोलो - इन बातों में जाने की दरकार नहीं।
तुम पहले बाप को याद करो। भारत का प्राचीन राजयोग नामीग्रामी है। जितना याद करेंगे,
दैवीगुण धारण करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। यह है युनिवर्सिटी। एम-ऑब्जेक्ट क्लीयर
है। पुरूषार्थ कर ऐसा बनना है। दैवीगुण धारण करने हैं। किसको दु:ख नहीं देना है,
कोई भी प्रकार का। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता बाप के बच्चे हो ना। सो तो सर्विस से
मालूम पड़ेगा। बहुत नये-नये भी आते हैं। 25-30 वर्ष वालों से 10-12 दिन के तीखे हो
जाते हैं। तुम बच्चों को फिर आप समान बनाना है। जब तक ब्राह्मण न बनें तो देवता कैसे
बनेंगे। ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर तो ब्रह्मा है ना। जो होकर जाते हैं उनका गायन
करते रहते हैं, फिर जरूर वह आयेंगे। जो भी त्योहार आदि गाये जाते हैं, सब होकर गये
हैं, फिर होंगे। इस समय सब त्योहार हो रहे हैं - रक्षा बन्धन आदि.... सबका राज़ बाप
समझाते रहते हैं। तुम बाप के बच्चे हो तो पावन भी जरूर बनना है। पतित-पावन बाप को
बुलाते हैं तो बाप रास्ता बताते हैं। कल्प-कल्प जिसने वर्सा लिया है, वही एक्यूरेट
चलते रहते हैं। तुम भी साक्षी हो देखते हो। बापदादा भी साक्षी हो देखते हैं - यह कहाँ
तक ऊंच पद पा सकते हैं? इनके कैरेक्टर्स कैसे हैं? टीचर को तो सब मालूम रहता है ना
- कितने को आप-समान बनाते हैं, कितना समय याद में रहते हैं? पहले तो बुद्धि में यह
याद रखना चाहिए कि यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। युनिवर्सिटी है ही नॉलेज के लिए।
वह है हद की युनिवर्सिटी। यह है बेहद की। दुर्गति से सद्गति, हेल से हेविन बनाने
वाला एक ही बाप है। बाप की दृष्टि तो सब आत्माओं के तरफ जाती है। सबका कल्याण करना
है। वापिस ले जाना है। न सिर्फ तुमको परन्तु सारे वर्ल्ड की आत्माओं को याद करते
होंगे। उसमें पढ़ाते बच्चों को हैं। यह भी समझते हो जैसे नम्बरवार जो आये हैं वह
फिर जायेंगे भी ऐसे। सब आत्मायें नम्बरवार आती हैं। तुम भी नम्बरवार कैसे जायेंगे -
वह सब समझाया जाता है। कल्प पहले जो हुआ है वही होगा। यह भी तुमको समझाया जाता है -
तुम फिर कैसे नई दुनिया में आयेंगे। नम्बरवार जो नई दुनिया में आते हैं, उनको ही
समझाया जाता है।
तुम बच्चे बाप को जानने से, अपने धर्म को और सब धर्म के सारे झाड़ को जान जाते
हो। इसमें कुछ भी मांगने की दरकार नहीं, आशीर्वाद भी नहीं। लिखते हैं बाबा दया करो,
कृपा करो। बाप तो कुछ भी नहीं करेंगे। बाप तो आये ही हैं रास्ता बताने। ड्रामा में
मेरा पार्ट ही है सबको पावन बनाने का। ऐसे ही पार्ट बजाता हूँ, जैसे कल्प-कल्प बजाया
है। जो पास्ट हुआ, अच्छा वा बुरा, ड्रामा में था। चिंतन कोई बात का नहीं करना है।
हम आगे बढ़ते रहते हैं। यह बेहद का ड्रामा है ना। सारा चक्र पूरा होकर फिर रिपीट
होगा। जो जैसा पुरूषार्थ करते हैं, ऐसा ही पद पाते हैं। मांगने की दरकार नहीं। भक्ति
मार्ग में तुमने अथाह मांगा है। सभी पैसे ख़लास कर दिये हैं। यह सब ड्रामा में बना
हुआ है। वह सिर्फ समझाते हैं। आधाकल्प भक्ति करते, शास्त्र पढ़ते कितना खर्चा होता
है। अभी तो तुमको कुछ भी खर्च करने की दरकार नहीं है। बाप तो दाता है ना। दाता को
दरकार नहीं है। वह तो आये ही हैं देने के लिए। ऐसे मत समझो कि हमने शिवबाबा को दिया।
अरे, शिवबाबा से तो बहुत-बहुत मिलता है। तुम यहाँ लेने आये हो ना। टीचर के पास
स्टूडेन्ट लेने के लिए आते हैं। उस लौकिक बाप, टीचर, गुरू से तो तुमने घाटा ही पाया।
अब बच्चों को श्रीमत पर चलना है तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। शिवबाबा है डबल श्री श्री,
तुम बनते हो सिंगल श्री। श्री लक्ष्मी, श्री नारायण कहा जाता है। श्री लक्ष्मी, श्री
नारायण दो हो गये। विष्णु को श्री श्री कहेंगे क्योंकि दो ज्वाइंट हैं। फिर भी दोनों
को बनाते कौन हैं? जो एक ही श्री श्री है। बाकी श्री श्री तो कोई होते नहीं। आजकल
तो श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री सीता-राम भी नाम रखाते हैं। तो बच्चों को यह सब धारण
करके खुशी में रहना है।
आजकल स्प्रीचुअल कॉन्फ्रेन्स भी होती रहती हैं। परन्तु स्प्रीचुअल का अर्थ नहीं
समझते। रूहानी नॉलेज तो सिवाए एक के कोई दे न सके। बाप सभी रूहों का बाप है। उनको
स्प्रीचुअल कहते हैं। फिलॉसाफी को भी स्प्रीचुअल कह देते हैं। यह तो समझते हो - यह
जंगल है, सब एक-दो को दु:ख देते रहते हैं। तुम जानते हो अहिंसा परमो देवी-देवता
धर्म गाया हुआ है। वहाँ कोई मारपीट होती नहीं। गुस्सा करना भी हिंसा है फिर सेमी
हिंसा कहो, कुछ भी कहो। यहाँ तो बिल्कुल अहिंसक बनना है। कोई भी मन्सा, वाचा, कर्मणा
खराब बात नहीं होनी चाहिए। कोई पुलिस आदि में काम करते हैं तो उसमें भी युक्ति से
काम निकालना है। जहाँ तक हो सके प्यार से काम निकालना चाहिए। बाबा का अपना अनुभव
है, प्यार से अपना काम निकाल लेते हैं, इसमें बड़ी युक्ति चाहिए। बड़ा प्यार से
किसको समझाना है - कैसे एक का सौ गुणा दण्ड पड़ता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हम दु:ख हर्ता, सुख कर्ता बाप के बच्चे हैं, इसलिए किसी को भी दु:ख
नहीं देना है। एम ऑब्जेक्ट को सामने रख दैवीगुण धारण करने हैं। आप समान बनाने की
सेवा करनी है।
2) ड्रामा के हर पार्ट को जानते हुए कोई भी बीती बात का चिंतन नहीं करना है।
मन्सा, वाचा, कर्मणा कोई ख़राब कर्म न हो - यह ध्यान देकर डबल अहिंसक बनना है।