21-04-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 30.03.99 "बापदादा" मधुबन
तीव्र पुरुषार्थ की
लगन को ज्वाला रूप बनाकर बेहद के वैराग्य की लहर फैलाओ
आज बापदादा हर एक
बच्चे के मस्तक पर तीन लकीरें देख रहे हैं। जिसमें एक लकीर है - परमात्म पालना के
भाग्य की लकीर। यह परमात्म पालना का भाग्य सारे कल्प में अब एक बार ही मिलता है,
सिवाए इस संगमयुग के यह परमात्म पालना कभी भी नहीं प्राप्त हो सकती। यह परमात्म
पालना बहुत थोड़े बच्चों को प्राप्त होती है। दूसरी लकीर है - परमात्म पढ़ाई के
भाग्य की लकीर। परमात्म पढ़ाई यह कितना भाग्य है जो स्वयं परम आत्मा शिक्षक बन पढ़ा
रहे हैं। तीसरी लकीर है - परमात्म प्राप्तियों की लकीर। सोचो कितनी प्राप्तियां
हैं। सभी को याद है ना - प्राप्तियों की लिस्ट कितनी लम्बी है! तो हर एक के मस्तक
में यह तीन लकीर चमक रही हैं। ऐसे भाग्यवान आत्मायें अपने को समझते हो? पालना,
पढ़ाई और प्राप्तियां। साथ-साथ बापदादा बच्चों के निश्चय के आधार पर रूहानी नशे को
भी देख रहे हैं। हर एक परमात्म बच्चा कितना रूहानी नशे वाली आत्मायें हैं! सारे
विश्व में और सारे कल्प में सबसे हाइएस्ट भी हैं, महान भी हैं और होलीएस्ट भी हैं।
आप जैसी पवित्र आत्मायें तन से भी, मन से भी देव रूप में सर्व गुण सम्पन्न,
सम्पूर्ण निर्विकारी और कोई बनता नहीं है। और फिर हाइएस्ट भी हो, होलीएस्ट भी हो
साथ-साथ रिचेस्ट भी हो। बापदादा स्थापना में भी बच्चों को स्मृति दिलाते थे और फ़लक
से अखबारों में भी डलवाया कि “ओम मण्डली रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड''। यह स्थापना के समय
की आप सबकी महिमा है। एक दिन में कितना भी बड़े ते बड़ा मल्टी-मल्टी मिल्युनर हो
लेकिन आप जैसा रिचेस्ट हो नहीं सकता। इतना रिचेस्ट बनने का साधन क्या है? बहुत छोटा
सा साधन है। लोग रिचेस्ट बनने के लिए कितनी मेहनत करते हैं और आप कितना सहज मालामाल
बनते जाते हो। जानते हो ना साधन! सिर्फ छोटी सी बिन्दी लगानी है बस। बिन्दी लगाई,
कमाई हुई। आत्मा भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा फुलस्टॉप लगाना, वह भी बिन्दी
है। तो बिन्दी आत्मा को याद किया, कमाई बढ़ गई। वैसे लौकिक में भी देखो, बिन्दी से
ही संख्या बढ़ती है। एक के आगे बिन्दी लगाओ तो क्या हो जाता? 10, दो बिन्दी लगाओ,
तीन बिन्दी लगाओ, चार बिन्दी लगाओ, बढ़ता जाता है। तो आपका साधन कितना सहज है! “मैं
आत्मा हूँ'' - यह स्मृति की बिन्दी लगाना अर्थात् खजाना जमा होना। फिर “बाप'' बिन्दी
लगाओ और खजाना जमा। कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में ड्रामा का फुलस्टॉप लगाओ, बीती
को फुलस्टॉप लगाया और खजाना बढ़ जाता। तो बताओ सारे दिन में कितने बार बिन्दी लगाते
हो? और बिन्दी लगाना कितना सहज है! मुश्किल है क्या? बिन्दी खिसक जाती है क्या?
बापदादा ने कमाई का
साधन सिर्फ यही सिखाया है कि बिन्दी लगाते जाओ, तो सभी को बिन्दी लगाने आती है? अगर
आती है तो एक हाथ की ताली बजाओ। पक्की है ना! या कभी खिसक जाती है, कभी लग जाती है?
सबसे सहज बिन्दी लगाना है। कोई इस आंखों से ब्लाइन्ड भी हो, वह भी अगर कागज पर
पेन्सिल रखेगा तो बिन्दी लग जाती है और आप तो त्रिनेत्री हो, इसलिए इन तीन बिन्दियों
को सदा यूज़ करो। क्वेश्चन मार्क कितना टेढ़ा है, लिखकर देखो, टेढ़ा है ना? और
बिन्दी कितनी सहज है इसलिए बापदादा भिन्न-भिन्न रूप से बच्चों को समान बनाने की विधि
सुनाते रहते हैं। विधि है ही बिन्दी। और कोई विधि नहीं है। अगर विदेही बनते हो तो
भी विधि है - बिन्दी बनना। अशरीरी बनते हो, कर्मातीत बनते हो, सबकी विधि बिन्दी है
इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा है - अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाते, रूहरिहान करते
जब कार्य में आते हो तो पहले तीन बिन्दियों का तिलक मस्तक पर लगाओ, वह लाल बिन्दियों
का तिलक लगाने नहीं शुरू करना लेकिन स्मृति का तिलक लगाओ। और चेक करो - किसी भी
कारण से यह स्मृति का तिलक मिटे नहीं। अविनाशी, अमिट तिलक है?
बापदादा बच्चों का
प्यार भी देखते हैं, कितने प्यार से भाग-भाग कर मिलन मनाने पहुँचते हैं और फिर आज
हॉल में भी मिलन मनाने के लिए कितनी मेहनत से, कितने प्यार से नींद, प्यास को भूलकर
पहले नम्बर में नजदीक बैठने का पुरुषार्थ करते हैं। बापदादा सब देखते हैं, क्या-क्या
करते हैं वह सारा ड्रामा देखते हैं। बापदादा बच्चों के प्यार पर न्योछावर भी होते
हैं और यह भी बच्चों को कहते हैं जैसे साकार में मिलने के लिए दौड़-दौड़ कर आते हो
ऐसे ही बाप समान बनने के लिए भी तीव्र पुरुषार्थ करो, इसमें सोचते हो ना कि सबसे आगे
ते आगे नम्बर मिले। सबको तो मिलता नहीं है, यहाँ साकारी दुनिया है ना! तो साकारी
दुनिया के नियम रखने ही पड़ते हैं। बापदादा उस समय सोचते हैं कि सब आगे-आगे बैठ जाएं
लेकिन यह हो सकता है? हो भी रहा है, कैसे? पीछे वालों को बापदादा सदा नयनों में
समाया हुआ देखते हैं। तो सबसे समीप हैं नयन। तो पीछे नहीं बैठे हो लेकिन बापदादा के
नयनों में बैठे हो। नूरे रत्न हो। पीछे वालों ने सुना? दूर नहीं हो, समीप हो। शरीर
से पीछे बैठे हैं लेकिन आत्मा सबसे समीप है। और बापदादा तो सबसे ज्यादा पीछे वालों
को ही देखते हैं। देखो नजदीक वालों को इन स्थूल नयनों से देखने का चांस है और पीछे
वालों को इन नयनों से नजदीक देखने का चांस नहीं है इसलिए बापदादा नयनों में समा लेता
है।
बापदादा मुस्कराते
रहते हैं, दो बजता है और लाइन शुरू हो जाती है। बापदादा समझते हैं कि बच्चे खड़े-खड़े
थक भी जाते हैं लेकिन बापदादा सभी बच्चों को प्यार का मसाज़ कर लेते हैं। टांगों
में मसाज़ हो जाता है। बापदादा का मसाज़ देखा है ना - बहुत न्यारा और प्यारा है। तो
आज सभी इस सीज़न का लास्ट चांस लेने के लिए चारों ओर से भाग-भाग-कर पहुँच गये हैं।
अच्छा है। बाप से मिलन का उमंग-उत्साह सदा आगे बढ़ाता है। लेकिन बापदादा तो बच्चों
को एक सेकेण्ड भी नहीं भूलता है। बाप एक है और बच्चे अनेक परन्तु अनेक बच्चों को भी
एक सेकेण्ड भी नहीं भूलते क्योंकि सिकीलधे हो। देखो कहाँ-कहाँ देश-विदेश के
कोने-कोने से बाप ने ही आपको ढूँढा। आप बाप को ढूंढ सके? भटकते रहे लेकिन मिल नहीं
सके और बाप ने भिन्न-भिन्न देश, गांव, कस्बे जहाँ-जहाँ भी बाप के बच्चे हैं, वहाँ
से ढूंढ लिया। अपना बना लिया। गीत गाते हो ना - मैं बाबा का और बाबा मेरा। न जाति
देखी, न देश देखा, न रंग देखा, सबके मस्तक पर एक ही रूहानी रंग देखा - ज्योति बिन्दु।
डबल फारेनर्स क्या समझते हैं? बाप ने जाति देखी? काला है, गोरा है, श्याम है,
सुन्दर है? कुछ नहीं देखा। मेरा है - यह देखा। तो बताओ बाप का प्यार है या आपका
प्यार है? किसका है? (दोनों का है) बच्चे भी उत्तर देने में होशियार हैं, कहते हैं
बाबा आप ही कहते हो कि प्यार से प्यार खींचता है, तो आपका प्यार है तो हमारा है तब
तो खींचता है। बच्चे भी होशियार हैं और बाप को खुशी है कि इतना हिम्मत, उमंग-उत्साह
रखने वाले बच्चे हैं।
बापदादा के पास 15
दिन के चार्ट का बहुत बच्चों का रिजल्ट आया है। एक बात तो बापदादा ने चारों ओर की
रिजल्ट में देखी कि मैजॉरिटी बच्चों का अटेन्शन रहा है। परसेन्टेज़ जितनी स्वयं भी
चाहते हैं उतनी नहीं है, परन्तु अटेन्शन है और दिल ही दिल में जो तीव्र पुरुषार्थी
बच्चे हैं वह अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लक्ष्य से आगे बढ़ भी रहे हैं। और आगे
बढ़ते-बढ़ते मंजिल पर पहुँच ही जायेंगे। मैनारिटी अभी भी कभी अलबेलेपन में और कभी
आलस्य के वश अटेन्शन भी कम दे रहे हैं। उन्हों का एक विशेष स्लोगन है - हो ही
जायेंगे, जायेंगे... जाना है नहीं, जायेंगे। हो ही जायेगा यह है अलबेलापन। जाना ही
है, यह है तीव्र पुरुषार्थ। बापदादा वायदे बहुत सुनते हैं, बार-बार वायदे बहुत अच्छे
करते हैं। बच्चे वायदे इतनी अच्छी हिम्मत से करते हैं जो उस समय बापदादा को भी बच्चे
दिलखुश मिठाई खिला देते हैं। बाप भी खा लेते हैं। लेकिन वायदा अर्थात् पुरुषार्थ
में ज्यादा से ज्यादा फायदा। अगर फायदा नहीं तो वायदा समर्थ नहीं है। तो वायदा भले
करो फिर भी दिलखुश मिठाई तो खिलाते हो ना! साथ-साथ तीव्र पुरुषार्थ की लगन को अग्नि
रूप में लाओ। ज्वालामुखी बनो। समय प्रमाण रहे हुए जो भी मन के, सम्बन्ध-सम्पर्क के
हिसाब-किताब हैं उसको ज्वाला स्वरूप से भस्म करो। लगन है, इसमें बापदादा भी पास करते
हैं लेकिन अभी लगन को अग्नि रूप में लाओ।
विश्व में एक तरफ
भ्रष्टाचार, अत्याचार की अग्नि होगी, दूसरे तरफ आप बच्चों का पॉवरफुल योग अर्थात्
लगन की अग्नि ज्वाला रूप में आवश्यक है। यह ज्वाला रूप इस भ्रष्टाचार, अत्याचार की
अग्नि को समाप्त करेगा और सर्व आत्माओं को सहयोग देगा। आपकी लगन ज्वाला रूप की हो
अर्थात् पावरफुल योग हो, तो यह याद की अग्नि, उस अग्नि को समाप्त करेगी और दूसरे
तरफ आत्माओं को परमात्म सन्देश की, शीतल स्वरूप की अनुभूति करायेगी। बेहद की
वैराग्य वृत्ति प्रज्जवलित करायेगी। एक तरफ भस्म करेगी दूसरे तरफ शीतल भी करेगी।
बेहद के वैराग्य की लहर फैलायेगी। बच्चे कहते हैं - मेरा योग तो है, सिवाए बाबा के
और कोई नहीं, यह बहुत अच्छा है। परन्तु समय अनुसार अभी ज्वाला रूप बनो। जो यादगार
में शक्तियों का शक्ति रूप, महाशक्ति रूप, सर्व शस्त्रधारी दिखाया है, अभी वह महा
शक्ति रूप प्रत्यक्ष करो। चाहे पाण्डव हैं, चाहे शक्तियां हैं, सभी सागर से निकली
हुई ज्ञान नदियां हो, सागर नहीं हो, नदी हो। ज्ञान गंगाये हो। तो ज्ञान गंगायें अब
आत्माओं को अपने ज्ञान की शीतलता द्वारा पापों की आग से मुक्त करो। यह है वर्तमान
समय का ब्राह्मणों का कार्य।
सभी बच्चे पूछते हैं
कि इस साल क्या सेवा करें? तो बापदादा पहली सेवा यही बताते हैं कि अभी समय अनुसार
सभी बच्चे वानप्रस्थ अवस्था में हैं, तो वानप्रस्थी अपने समय, साधन सभी बच्चों को
देकर स्वयं वानप्रस्थ होते हैं। तो आप सभी भी अपने समय का खजाना, श्रेष्ठ संकल्प का
खजाना अभी औरों के प्रति लगाओ। अपने प्रति समय, संकल्प कम लगाओ। औरों के प्रति लगाने
से स्वयं भी उस सेवा का प्रत्यक्षफल खाने के निमित्त बन जायेंगे। मन्सा सेवा, वाचा
सेवा और सबसे ज्यादा - चाहे ब्राह्मण, चाहे और जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं
उन्हों को कुछ न कुछ मास्टर दाता बनके देते जाओ। नि:स्वार्थ बन खुशी दो, शान्ति दो,
आनंद की अनुभूति कराओ, प्रेम की अनुभूति कराओ। देना है और देना माना स्वत: ही लेना।
जो भी जिस समय, जिस रूप में सम्बन्ध-सम्पर्क में आये कुछ लेकर जाये। आप मास्टर दाता
के पास आकर खाली नहीं जाये। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा - चलते-फिरते भी अगर कोई भी
बच्चा सामने आया तो कुछ न कुछ अनुभूति के बिना खाली नहीं जाता। यह चेक करो जो भी आया,
मिला, कुछ दिया वा खाली गया? खजाने से जो भरपूर होते हैं वह देने के बिना रह नहीं
सकते। अखुट, अखण्ड दाता बनो। कोई मांगे, नहीं। दाता कभी यह नहीं देखता कि यह मांगे
तो दें। अखुट महादानी, महादाता स्वयं ही देता है। तो पहली सेवा इस वर्ष - महान दाता
की करो। आप दाता द्वारा मिला हुआ देते हो। ब्राह्मण कोई भिखारी नहीं हैं लेकिन
सहयोगी हैं। तो आपस में ब्राह्मणों को एक दो में दान नहीं देना है, सहयोग देना है।
यह है पहला नम्बर सेवा। और साथ-साथ बापदादा ने विदेश के बच्चों की खुशखबरी सुनी तो
बापदादा ने देखा कि जो इस सृष्टि के आवाज फैलाने के निमित्त बापदादा ने जो माइक नाम
दिया है तो विदेश के बच्चों ने आपस में इस कार्य को किया है और जब प्लैन बना है तो
प्रैक्टिकल होना ही है। लेकिन भारत में भी जो 13 ज़ोन हैं, हर एक ज़ोन से कम से कम
एक ऐसा विशेष निमित्त सेवाधारी बनें, जिसको माइक कहो या कुछ भी कहो, आवाज फैलाने
वाले कोई निमित्त बनाओ, यह बापदादा ने कम से कम कहा है लेकिन अगर बड़े-बड़े देश में
ऐसे निमित्त बनने वाले हैं तो सिर्फ ज़ोन वाले नहीं लेकिन बड़े देशों से भी ऐसे
तैयार कर प्रोग्राम बनाना है। बापदादा ने विदेश के बच्चों को दिल ही दिल में मुबारक
दी, अभी मुख से भी दे रहे हैं कि प्रैक्टिकल में लाने का प्लैन पहले बापदादा के
सामने लाया। वैसे बापदादा जानते हैं कि भारत में और ही सहज है लेकिन अभी कुछ
क्वालिटी की सेवा कर सहयोगी समीप लाओ। बहुत सहयोगी हैं लेकिन संगठन में उन्हों को
और समीप लाओ।
साथ-साथ ब्राह्मण
आत्माओं में और भी समीप लाने के लिए, हर एक तरफ वा मधुबन में चारों ओर ज्वाला
स्वरूप का वायुमण्डल बनाने के लिए, चाहे जिसको भट्ठी कहते हो वह करो, चाहे आपस में
संगठन में रूहरिहान करके ज्वाला स्वरूप का अनुभव कराओ और आगे बढ़ाओ। जब इस सेवा में
लग जायेंगे तो जो छोटी-छोटी बातें हैं ना - जिसमें समय लगता है, मेहनत लगती है,
दिलशिकस्त बनते हैं वह सब ऐसे लगेगा जैसे ज्वालामुखी हाइएस्ट स्टेज और उसके आगे यह
समय देना, मेहनत करना, एक गुड़ियों का खेल अनुभव होगा। स्वत: ही सहज ही सेफ हो
जायेंगे। बापदादा ने कहा ना कि सबसे ज्यादा बापदादा को रहम तब पड़ता है जब देखते
हैं कि मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चे और छोटी-छोटी बातों के लिए मेहनत करते हैं।
मोहब्बत ज्वालामुखी रूप की कम है तब मेहनत लगती है। तो अभी मेहनत से मुक्त बनो,
अलबेले नहीं बनना लेकिन मेहनत से मुक्त होना। ऐसे नहीं सोचना मेहनत तो करनी नहीं है
तो आराम से सो जाओ। लेकिन मोहब्बत से मेहनत खत्म करो। अलबेलेपन से नहीं। समझा! क्या
करना है?
अभी बापदादा को आना
तो है ही। पूछते हैं आगे क्या होगा? बापदादा आयेंगे या नहीं आयेंगे? बापदादा ना तो
करते नहीं हैं, हाँ जी, हाँ जी करते हैं। बच्चे कहते हैं हजूर, बाप कहते हैं जी
हाजिर। तो समझा क्या करना है, क्या नहीं करना है। मेहनत मोहब्बत से कट करो। अभी
मेहनत मुक्त वर्ष मनाओ - मोहब्बत से, आलस्य से नहीं। यह पक्का याद रखना - आलस्य नहीं।
ठीक है, सब संकल्प
पूरे हुए? कोई रह गया? जनक से (दादी जानकी से) पूछते हैं कुछ रहा? दादी तो मुस्करा
रही है। खेल पूरा हो गया? यह ऑपरेशन भी क्या है? खेल में खेल है। खेल अच्छा रहा ना!
(ड्रिल) सेकेण्ड में
बिन्दी स्वरूप बन मन-बुद्धि को एकाग्र करने का अभ्यास बार-बार करो। स्टॉप कहा और
सेकेण्ड में व्यर्थ देह-भान से मन-बुद्धि एकाग्र हो जाए। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर सारे
दिन में यूज़ करके देखो। ऐसे नहीं आर्डर करो - कन्ट्रोल और दो मिनट के बाद कन्ट्रोल
हो, 5 मिनट के बाद कन्ट्रोल हो, इसलिए बीच-बीच में कन्ट्रोलिंग पावर को यूज़ करके
देखते जाओ। सेकेण्ड में होता है, मिनट में होता है, ज्यादा मिनट में होता है, यह सब
चेक करते जाओ। अभी सभी को तीन मास का चार्ट और पक्का करना है। सर्टीफिकेट लेना है।
पहले स्वयं, स्वयं को सर्टीफिकेट देना फिर बाप-दादा देंगे। अच्छा!
चारों ओर के परमात्म
पालना के अधिकारी आत्माओं को, परमात्म पढ़ाई के अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को,
परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्माओं को, सदा बिन्दी की विधि से तीव्र पुरुषार्थी
आत्माओं को, सदा मेहनत से मुक्त रहने वाले मोहब्बत में समाये हुए बच्चों को, ज्वाला
स्वरूप विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
शुद्ध और
समर्थ संकल्पों की शक्ति से व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी
भव
कहा जाता है संकल्प
भी सृष्टि बना देता है। जब कमजोर और व्यर्थ संकल्प करते हो तो व्यर्थ वायुमण्डल की
सृष्टि बन जाती है। सच्चे सेवाधारी वह हैं जो अपने शुद्ध शक्तिशाली संकल्पों से
पुराने वायब्रेशन को भी समाप्त कर दें। जैसे साइंस वाले शस्त्र से शस्त्र को खत्म
कर देते हैं, एक विमान से दूसरे विमान को गिरा देते हैं ऐसे आपके शुद्ध, समर्थ
संकल्प का वायब्रेशन, व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त कर दे, अब ऐसी सेवा करो।
स्लोगन:-
विघ्न रूपी सोने के महीन धागों से मुक्त बनो, मुक्ति वर्ष मनाओ।
सूचनाः- आज मास का
तीसरा रविवार अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है, सभी ब्रह्मा वत्स संगठित रूप में सायं
6.30 से 7.30 बजे तक विशेष अपने पूज्य स्वरूप में स्थित हो, स्वयं को इष्ट देव,
ईष्ट देवी समझ अपने भक्तों की मनोकामनायें पूरी करें, नज़र से निहाल करने की,
दर्शनीय मूर्त बन सर्व को दर्शन कराते हुए प्रसन्न करने की सेवा करें।