ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, यह तो बच्चे जानते हैं कि रूहानी बाप रूहानी बच्चों
को बैठ समझाते हैं। रूहानी बाप हुआ बेहद का बाप। रूहानी बच्चे भी हुए बेहद के बच्चे।
बाप को तो सब बच्चों की सद्गति करनी है। किस द्वारा? इन बच्चों द्वारा विश्व की
सद्गति करनी है। सारे विश्व के बच्चे तो यहाँ आकर नहीं पढ़ते हैं। नाम ही है
ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। मुक्ति तो सबकी होती ही है। मुक्ति कहो, जीवनमुक्ति कहो।
मुक्ति में जाकर फिर भी सबको जीवन-मुक्ति में आना ही है। तो ऐसे कहेंगे सभी
जीवनमुक्ति में आते हैं वाया मुक्तिधाम। एक-दो के पीछे आना ही है पार्ट बजाने। तब
तक मुक्तिधाम में ठहरना पड़ता है। बच्चों को अब रचयिता और रचना का मालूम पड़ गया
है। यह सारी रचना अनादि है। रचयिता तो एक ही बाप है। यह जो भी सभी आत्मायें हैं, सब
बेहद के बाप के बच्चे हैं। जब बच्चों को मालूम पड़ता है तो वही आकर योग सीखते हैं।
यह भारत के लिए ही योग है। बाप आते भी भारत में हैं। भारतवासियों को ही याद की
यात्रा सिखलाकर पावन बनाते हैं और नॉलेज भी देते हैं कि यह सृष्टि का चक्र कैसे
फिरता है, यह भी बच्चे जानते हैं। रुद्र माला भी है जो गाई और पूजी जाती है, सिमरण
की जाती है। भक्त माला भी है। ऊंचे ते ऊंचे भक्तों की माला है। भक्त माला के बाद
होनी चाहिए ज्ञान माला। भक्ति और ज्ञान है ना। भक्त माला भी है तो रुद्र माला भी
है। पीछे फिर रुण्ड माला कहा जाता है क्योंकि ऊंच ते ऊंच मनुष्य सृष्टि में है
विष्णु, जिसको सूक्ष्मवतन में दिखाते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा तो यह है, इनकी माला
भी है। आखरीन यह माला बन जायेगी तब ही वह रुद्र माला और विष्णु की वैजयन्ती माला
बनेगी। ऊंचे ते ऊंचा है शिवबाबा फिर ऊंचे ते ऊंच है विष्णु का राज्य। शोभा के लिए
भक्ति में कितने चित्र बनाये हैं। परन्तु ज्ञान कुछ भी नहीं है। तुम जो चित्र बनाते
हो उनकी पहचान देनी है तो मनुष्य समझ जाएं। नहीं तो शिव और शंकर को मिला देते हैं।
बाबा ने समझाया है सूक्ष्मवतन में भी सारी साक्षात्कार की बात है। हड्डी मांस वहाँ
होता नहीं। साक्षात्कार करते हैं। सम्पूर्ण ब्रह्मा भी है परन्तु वह है सम्पूर्ण,
अव्यक्त। अभी व्यक्त ब्रह्मा जो है उनको अव्यक्त बनना है। व्यक्त ही अव्यक्त होता
है जिसको फ़रिश्ता भी कहते हैं। उनका सूक्ष्मवतन में चित्र रख दिया है। सूक्ष्मवतन
में जाते हैं, कहते हैं बाबा ने शूबीरस पिलाया। अब वहाँ झाड़ आदि तो होता नहीं।
बैकुण्ठ में हैं, लेकिन ऐसे नहीं कि बैकुण्ठ से ले आकर पिलाते होंगे। यह सब
सूक्ष्मवतन में साक्षात्कार की बातें हैं। अब तुम बच्चे जानते हो कि वापिस घर जाना
है और आत्म-अभिमानी बनना है। मैं आत्मा अविनाशी हूँ, यह शरीर विनाशी है। आत्मा का
ज्ञान भी तुम बच्चों में है। वे तो आत्मा क्या है, यह भी नहीं जानते। उन लोगों को
यह भी मालूम नहीं कि कैसे उनमें 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। यह नॉलेज सिर्फ बाप
ही देते हैं। अपनी भी नॉलेज देते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान भी बनाते हैं। बस, यही
पुरुषार्थ करते रहो - हम आत्मा हैं, अब परमात्मा के साथ योग लगाना है। सर्वशक्तिमान्
पतित-पावन एक बाप को ही कहते हैं। संन्यासी कहते हैं पतित-पावन आओ। कोई तो ब्रह्म
को भी पतित-पावन कह देते हैं। अब तुम बच्चों को भक्ति का भी ज्ञान मिलता है कि भक्ति
कितना समय चलती है, ज्ञान कितना समय चलता है? यह बाप बैठ समझाते हैं। पहले कुछ नहीं
जानते थे। मनुष्य होकर तुच्छ बुद्धि बन पड़े हैं। सतयुग में बिल्कुल स्वच्छ बुद्धि
थे। कितने उन्हों में दैवीगुण थे। तुम बच्चों को दैवी गुण भी जरूर धारण करने हैं।
कहते हैं ना यह तो जैसे देवता है। भल साधू, सन्त, महात्मा को लोग मानते हैं परन्तु
वह दैवी बुद्धि तो नहीं हैं। रजोगुणी बुद्धि हो जाते हैं। राजा, रानी, प्रजा है ना।
राजधानी कब और कैसे स्थापन होती है - यह दुनिया नहीं जानती। यहाँ तुम सब नई बातें
सुनते हो। तो माला का भी राज़ समझाया है। ऊंचे ते ऊंच है बाप। उनकी माला ऊपर में
है, रुद्र वह है निराकार फिर साकार लक्ष्मी-नारायण उनकी भी माला है। ब्राह्मणों की
माला अभी नहीं बनती। अन्त में तुम ब्राह्मणों की माला भी बन जाती है। इन बातों में
जास्ती प्रश्न-उत्तर करने की जरूरत नहीं। मूल बात है अपने को आत्मा समझ परमपिता
परमात्मा को याद करो। यह निश्चय पक्का चाहिए। मूल बात है पतितों को पावन बनाना। सारी
दुनिया पतित है फिर पावन बनना है। मूलवतन में भी सभी पावन हैं तो सुखधाम में भी सब
पावन हैं। तुम पावन बनकर पावन दुनिया में जाते हो। गोया अब पावन दुनिया स्थापन हो
रही है। यह सब ड्रामा में नूँध है।
बाप कहते हैं, सारे दिन का पोतामेल देखो - कोई भूल तो नहीं हुई? व्यापारी लोग
मुरादी सम्भालते हैं, यह भी कमाई है। तुम हर एक व्यापारी हो। बाबा से व्यापार करते
हो। अपनी जांच करनी है - हमारे में कितने दैवीगुण हैं? कितना बाप को याद करते हैं?
कितना हम अशरीरी बनते जाते हैं? हम अशरीरी आये थे फिर अशरीरी बनकर जाना है। अभी तक
सब आते ही रहते हैं। बीच में जाना तो एक को भी नहीं है। जाना तो सबको इकट्ठा है। भल
सृष्टि खाली नहीं रहती, गायन है राम गयो, रावण गयो.. परन्तु रहते दोनों हैं। रावण
सम्प्रदाय जाता है तो फिर लौटकर नहीं आता। बाकी यह बच जाते हैं। यह भी आगे चलकर सब
साक्षात्कार होना है। यह जानना है कि नई दुनिया की कैसे स्थापना हो रही है, पिछाड़ी
में क्या होगा? फिर सिर्फ हमारा ही धर्म रह जायेगा। सतयुग में तुम राज्य करेंगे।
कलियुग खत्म हो जायेगा, फिर सतयुग को आना है। अभी रावण सम्प्रदाय और राम सम्प्रदाय
दोनों हैं। संगमयुग पर ही यह सब होता है। अभी तुम यह सब कुछ जानते हो। बाप कहते हैं
बाकी जो कुछ राज़ है, वह आगे चलकर धीरे-धीरे समझाते रहेंगे। जो रिकॉर्ड में नूँध
है, वह खुलते जायेंगे। तुम समझते जायेंगे। इनएडवान्स कुछ भी नहीं बतायेंगे। यह भी
ड्रामा का प्लैन है, रिकॉर्ड खुलता जाता है। बाबा बोलता जाता है। तुम्हारी बुद्धि
में यह सब बातों की समझ बढ़ती जाती है। जैसे-जैसे रिकॉर्ड बजता जायेगा वैसे-वैसे
बाबा की मुरली चलती जायेगी। ड्रामा का राज़ सारा भरा पड़ा है। ऐसे नहीं, रिकार्ड से
सुई उठाकर बीच में रख सकते हैं तो वह रिपीट हो। नहीं, वह भी फिर वही रिपीट होगा। नई
बात नहीं। बाप के पास जो नई बात होगी वह रिपीट होगी। तुम सुनते और सुनाते जायेंगे।
बाकी सब गुप्त है। यह राजधानी स्थापन हो रही है। सारी माला बन रही है। अलग-अलग जाकर
राजाई में तुम जन्म लेंगे। राजा, रानी, प्रजा सब चाहिए। यह सब बुद्धि से काम लेना
पड़ता है। प्रैक्टिकल में जो होगा सो देखा जायेगा। जो यहाँ से जाते हैं वह अच्छे
साहूकार के घर में जाकर जन्म लेते हैं। अभी भी तुम्हारी वहाँ बहुत खातिरी होती है।
इस समय भी रत्न जड़ित चीज़ें सबके पास होती हैं। परन्तु उन्हों में इतनी पॉवर नहीं
है। पॉवर तुम्हारे में है। तुम जहाँ जायेंगे वहाँ अपना शो करेंगे। तुम तो ऊंच बनते
हो तो तुम जाकर वहाँ दैवी चरित्र दिखायेंगे। आसुरी बच्चे जन्मते ही रोते रहेंगे।
गन्दे भी होते हैं। तुम तो बड़े कायदेसिर पलेंगे। गंद आदि की बात नहीं। आजकल के
बच्चे तो गन्दे हो पड़ते हैं। सतयुग में ऐसी बात हो न सके। फिर भी हेविन है ना। वहाँ
बांस आती नहीं जो कहना पड़े अगरबत्ती जलाओ। बगीचों में बहुत खुशबूदार फूल होंगे। यहाँ
के फूलों में इतनी खुशबू नहीं। वहाँ तो हर एक चीज में 100 परसेन्ट खुशबू रहती है।
यहाँ तो 1 परसेन्ट भी नहीं है। वहाँ तो फूल भी फर्स्टक्लास होंगे। यहाँ भल कोई कितना
भी साहूकार हो तो भी इतना नहीं। वहाँ तो किस्म-किस्म की चीज़ें होंगी। बर्तन आदि सब
सोने के होंगे। जैसे यहाँ के पत्थर, वहाँ फिर सोना ही सोना। रेती में भी सोना होता
है। विचार करो - कितना सोना होगा! जिससे मकान आदि बनेंगे। वहाँ ऐसी मौसम होगी - न
सर्दी, न गर्मी। वहाँ गर्मी का दु:ख नहीं जो पंखे चलाने पड़े। उसका नाम ही है
स्वर्ग। वहाँ अपार सुख होता है। तुम्हारे जैसा पद्मापद्म भाग्यशाली कोई बनते ही नहीं।
लक्ष्मी-नारायण की कितनी महिमा गाते हैं। उनको जो ऐसा बनाते हैं, उनकी कितनी महिमा
चाहिए। पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति, फिर देवताओं की भक्ति शुरू होती है। वह भी
भूत पूजा कहेंगे। शरीर तो वह है नहीं। 5 तत्वों की पूजा होती है। शिवबाबा के लिए तो
ऐसे नहीं कहेंगे। पूजा करने के लिए कोई चीज़ का वा सोने आदि का बनाते हैं। आत्मा को
थोड़ेही सोना कहेंगे। आत्मा किस चीज़ की बनी हुई है? शिव का चित्र किस चीज़ का बनाया
हुआ है, वह झट बतायेंगे। परन्तु आत्मा-परमात्मा किस चीज़ का बना हुआ है, यह कोई बता
न सके। सतयुग में 5 तत्व भी शुद्ध होते हैं। यहाँ हैं अशुद्ध। तो पुरुषार्थी बच्चे
ऐसी-ऐसी ख्यालात करते रहेंगे। बाप कहते हैं इन सब बातों को भी छोड़ दो। जो होना है
वह होगा। पहले बाप को याद करो। चारों तरफ से बुद्धि हटाकर मामेकम् याद करो तो
विकर्म विनाश होंगे। जो कुछ सुनते हो उन सबको छोड़ एक बात पक्की करो कि हमको
सतोप्रधान बनना है। फिर सतयुग में जो कल्प-कल्प हुआ होगा, वही होगा। उसमें फ़र्क नहीं
पड़ सकता। मूल बात है, बाप को याद करो। यह है मेहनत। वह पूरी करो। त़ूफान तो बहुत
आते हैं। जन्म-जन्मान्तर जो कुछ किया है वह सब सामने आता है। तो सब तरफ से बुद्धि
को हटाकर मेरे को याद करने का पुरुषार्थ करो, अन्तर्मुखी होकर। तुम बच्चों को स्मृति
तो आई, सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। सर्विस से भी मालूम पड़ जाता है। सर्विस
करने वालों को सर्विस की खुशी रहती है। जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनकी सर्विस का
सबूत भी मिलता है। पण्डे बनकर आते हैं। कौन महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे हैं, वह झट
पता पड़ जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दूसरी सब बातों को छोड़, बुद्धि को चारों तरफ से हटाकर सतोप्रधान बनने
के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। दैवीगुण धारण करने हैं।
2) बुद्धि में अच्छे-अच्छे ख्यालात लाने हैं, हमारे राज्य (स्वर्ग) में क्या-क्या
होगा, उस पर विचार कर अपने को उस जैसे लायक चरित्रवान बनाना है। यहाँ से बुद्धि
निकाल देनी है।