01-04-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हारा यह जीवन देवताओं से भी उत्तम है, क्योंकि तुम अभी रचयिता और रचना को यथार्थ जानकर आस्तिक बने हो''

प्रश्नः-
संगमयुगी ईश्वरीय परिवार की विशेषता क्या है, जो सारे कल्प में नहीं होगी?

उत्तर:-
इसी समय स्वयं ईश्वर बाप बनकर तुम बच्चों को सम्भालते हैं, टीचर बनकर पढ़ाते हैं और सतगुरू बनकर तुम्हें गुल-गुल (फूल) बनाकर साथ ले जाते हैं। सतयुग में दैवी परिवार होगा लेकिन ऐसा ईश्वरीय परिवार नहीं हो सकता। तुम बच्चे अभी बेहद के संन्यासी भी हो, राजयोगी भी हो। राजाई के लिए पढ़ रहे हो।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सारी दुनिया अब कब्रदाखिल होनी है, विनाश सामने है, इसलिए कोई से भी सम्बन्ध नहीं रखना है। अन्त-काल में एक बाप ही याद रहे।

2) श्याम से सुन्दर, पतित से पावन बनने का यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, यही समय है उत्तम पुरूष बनने का, सदा इसी स्मृति में रह स्वयं को कौड़ी से हीरे जैसा बनाना है।

वरदान:-
ज्ञान धन द्वारा प्रकृति के सब साधन प्राप्त करने वाले पदमा-पदमपति भव

ज्ञान धन स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: कराता है। जहाँ ज्ञान धन है वहाँ प्रकृति स्वत: दासी बन जाती है। ज्ञान धन से प्रकृति के सब साधन स्वत: प्राप्त हो जाते हैं इसलिए ज्ञान धन सब धन का राजा है। जहाँ राजा है वहाँ सर्व पदार्थ स्वत: प्राप्त होते हैं। यह ज्ञान धन ही पदमा-पदमपति बनाने वाला है, परमार्थ और व्यवहार को स्वत: सिद्ध करता है। ज्ञान धन में इतनी शक्ति है जो अनेक जन्मों के लिए राजाओं का राजा बना देती है।

स्लोगन:-
“कल्प-कल्प का विजयी हूँ'' - यह रूहानी नशा इमर्ज हो तो मायाजीत बन जायेंगे।