15-04-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - यह संगमयुग उत्तम से उत्तम बनने का युग है, इसमें ही तुम्हें पतित से पावन बन पावन दुनिया बनानी है''

प्रश्नः-
अन्तिम दर्दनाक सीन को देखने के लिए मज़बूती किस आधार पर आयेगी?

उत्तर:-
शरीर का भान निकालते जाओ। अन्तिम सीन बहुत कड़ी है। बाप बच्चों को मजबूत बनाने के लिए अशरीरी बनने का इशारा देते हैं। जैसे बाप इस शरीर से अलग हो तुम्हें सिखलाते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी अपने को शरीर से अलग समझो, अशरीरी बनने का अभ्यास करो। बुद्धि में रहे कि अब घर जाना है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने आपसे बातें करो - ओहो! बाबा आया है हमारी सर्विस में। वह हमें घर बैठे पढ़ा रहे हैं! बेहद का बाबा बेहद का सुख देने वाला है, उनसे हम अभी मिले हैं। ऐसे प्यार से बाबा कहो और खुशी में प्रेम के आंसू आ जाएं। रोमांच खड़े हो जाएं।

2) अब वापस घर जाना है इसलिए सबसे ममत्व निकाल जीते जी मरना है। इस देह को भी भूलना है। इससे अलग होने का अभ्यास करना है।

वरदान:-
बीती हुई बातों वा वृत्तियों को समाप्त कर सम्पूर्ण सफलता प्राप्त करने वाली स्वच्छ आत्मा भव

सेवा में स्वच्छ बुद्धि, स्वच्छ वृत्ति और स्वच्छ कर्म सफलता का सहज आधार है। कोई भी सेवा का कार्य जब आरम्भ करते हो तो पहले चेक करो कि बुद्धि में किसी आत्मा की बीती हुई बातों की स्मृति तो नहीं है। उसी वृत्ति, दृष्टि से उनको देखना, उनसे बोलना ...इससे सम्पूर्ण सफलता नहीं हो सकती इसलिए बीती हुई बातों को वा वृत्तियों को समाप्त कर स्वच्छ आत्मा बनो तब ही सम्पूर्ण सफलता प्राप्त होगी।

स्लोगन:-
जो स्व परिवर्तन करता है - विजय माला उसी के गले में पड़ती है।