20-04-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हें योगबल से इस खारी चैनल को पार कर घर जाना है इसलिए जहाँ जाना है उसे याद करो, इसी खुशी में रहो कि हम अभी फ़कीर से अमीर बनते हैं''

प्रश्नः-
दैवीगुणों की सब्जेक्ट पर जिन बच्चों का ध्यान है, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
उनकी बुद्धि में रहता - जैसा कर्म हम करेंगे हमको देख दूसरे करेंगे। कभी किसी को तंग नहीं करेंगे। उनके मुख से कभी उल्टा-सुल्टा शब्द नहीं निकलेगा। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को दु:ख नहीं देंगे। बाप समान सुख देने का लक्ष्य है तब कहेंगे दैवीगुणों की सब्जेक्ट पर ध्यान है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बहुतों की आशीर्वाद लेने के लिए कल्याणकारी बनना है। शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी अपने को बन्धन से मुक्त कर सुबह-शाम ईश्वरीय सर्विस जरूर करनी है।

2) दूसरी बातों में अपना समय वेस्ट न कर बाप को याद कर माइट लेनी है। सत के संग में ही रहना है। मन्सा-वाचा-कर्मणा सबको सुख देने का ही पुरूषार्थ करना है।

वरदान:-
पवित्रता के वरदान को निजी संस्कार बनाकर पवित्र जीवन बनाने वाले मेहनत मुक्त भव

कई बच्चों को पवित्रता में मेहनत लगती है, इससे सिद्ध है वरदाता बाप से जन्म का वरदान नहीं लिया है। वरदान में मेहनत नहीं होती। हर ब्राह्मण आत्मा को जन्म का पहला वरदान है “पवित्र भव, योगी भव''। जैसे जन्म के संस्कार बहुत पक्के होते हैं, तो पवित्रता ब्राह्मण जन्म का आदि संस्कार, निजी संस्कार है। इसी स्मृति से पवित्र जीवन बनाओ। मेहनत से मुक्त बनो।

स्लोगन:-
ट्रस्टी वह है जिसमें सेवा की शुद्ध भावना है।