23-04-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप जो
शिक्षायें देते हैं, उन्हें अमल में लाओ, तुम्हें प्रतिज्ञा कर अपने वचन से फिरना
नहीं है, आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना है''
प्रश्नः-
तुम्हारी
पढ़ाई का सार क्या है? तुम्हें कौन-सा अभ्यास अवश्य करना है?
उत्तर:-
तुम्हारी पढ़ाई है वानप्रस्थ में जाने की। इस पढ़ाई का सार है वाणी से परे जाना।
बाप ही सबको वापस ले जाते हैं। तुम बच्चों को घर जाने के पहले सतोप्रधान बनना है।
इसके लिए एकान्त में जाकर देही-अभिमानी रहने का अभ्यास करो। अशरीरी बनने का अभ्यास
ही आत्मा को सतोप्रधान बनायेगा।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सतोप्रधान बनने के लिए याद की यात्रा से अपनी बैटरी चार्ज
करनी है। अभुल बनना है। अपना रजिस्टर अच्छा रखना है। कोई भी ग़फलत नहीं करनी है।
2) कोई भी बेकायदे कर्म नहीं करना है, माया के त़ूफानों की परवाह न कर,
कर्मेन्द्रिय जीत बनना है। लीवर-घड़ी समान एक्यूरेट पुरुषार्थ करना है।
वरदान:-
सेवा द्वारा
खुशी, शक्ति और सर्व की आशीर्वाद प्राप्त करने वाली पुण्य आत्मा भव
सेवा का प्रत्यक्षफल - खुशी
और शक्ति मिलती है। सेवा करते आत्माओं को बाप के वर्से का अधिकारी बना देना - यह
पुण्य का काम है। जो पुण्य करता है उसको आशीर्वाद जरूर मिलती है। सभी आत्माओं के
दिल में जो खुशी के संकल्प पैदा होते, वह शुभ संकल्प आशीर्वाद बन जाते हैं और
भविष्य भी जमा हो जाता है इसलिए सदा अपने को सेवाधारी समझ सेवा का अविनाशी फल खुशी
और शक्ति सदा लेते रहो।
स्लोगन:-
मन्सा-वाचा की शक्ति से विघ्न का पर्दा हटा दो तो अन्दर कल्याण का दृश्य दिखाई दे।