29-04-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - यह सच्चा-सच्चा सत का संग है ऊपर चढ़ने का, तुम अभी सत बाप के संग में आये हो इसलिए झूठ संग में कभी नहीं जाना''

प्रश्नः-
तुम बच्चों की बुद्धि किस आधार पर सदा बेहद में टिक सकती है?

उत्तर:-
बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिरता रहे, जो कुछ ड्रामा में चल रहा है, यह सब नूँध है। सेकण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होनी है। यह बात बुद्धि में अच्छी तरह आ जाये तो बेहद में टिक सकते हो। बेहद में टिकने के लिए ध्यान पर रहे कि अब विनाश होना है, हमें वापिस घर जाना है, पावन बन करके ही हम घर जायेंगे।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस दु:खधाम का बुद्धि से संन्यास कर शान्तिधाम और सुखधाम स्मृति में रखना है। भारत की वा अपनी सच्ची सेवा करनी है। सबको रूहानी नॉलेज सुनानी है।

2) अपना सतयुगी जन्म सिद्ध अधिकार लेने के लिए एक बाप में पूरा निश्चय रखना है। अन्दर से अजपाजाप करते रहना है। पढ़ाई रोज़ जरूर पढ़नी है।

वरदान:-
सर्व संबंधों की अनुभूति के साथ प्राप्तियों की खुशी का अनुभव करने वाले तृप्त आत्मा भव

जो सच्चे आशिक हैं वह हर परिस्थिति में, हर कर्म में सदा प्राप्ति की खुशी में रहते हैं। कई बच्चे अनुभूति करते हैं कि हाँ वह मेरा बाप है, साजन है, बच्चा है...लेकिन प्राप्ति जितनी चाहते हैं उतनी नहीं होती। तो अनुभूति के साथ सर्व संबंधों द्वारा प्राप्ति की महसूसता हो। ऐसे प्राप्ति और अनुभूति करने वाले सदा तृप्त रहते हैं। उन्हें कोई भी चीज़ की अप्राप्ति नहीं लगती। जहाँ प्राप्ति है वहाँ तृप्ति जरूर है।

स्लोगन:-
निमित्त बनो तो सेवा की सफलता का शेयर मिल जायेगा।