30-04-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - अपना पोतामेल चेक करो कि सारे दिन में बाप को कितना समय याद किया, कोई भूल तो नहीं की? क्योंकि तुम हर एक व्यापारी हो''

प्रश्नः-
कौन-सी एक मेहनत अन्तर्मुखी बन करते रहो तो अपार खुशी रहेगी?

उत्तर:-
जन्म-जन्मान्तर जो कुछ किया है, जो सामने आता रहता है, उन सबसे बुद्धियोग निकाल सतोप्रधान बनने के लिए बाप को याद करने की मेहनत करते रहो। चारों तरफ से बुद्धि हटाए अन्तर्मुखी बन बाप को याद करो। सर्विस का सबूत दो तो अपार खुशी रहेगी।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दूसरी सब बातों को छोड़, बुद्धि को चारों तरफ से हटाकर सतोप्रधान बनने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। दैवीगुण धारण करने हैं।

2) बुद्धि में अच्छे-अच्छे ख्यालात लाने हैं, हमारे राज्य (स्वर्ग) में क्या-क्या होगा, उस पर विचार कर अपने को उस जैसे लायक चरित्रवान बनाना है। यहाँ से बुद्धि निकाल देनी है।

वरदान:-
सेवा द्वारा मेवा प्राप्त करने वाले सर्व हद की चाहना से परे सदा सम्पन्न और समान भव

सेवा का अर्थ है मेवा देने वाली। अगर कोई सेवा असन्तुष्ट बनाये तो वो सेवा, सेवा नहीं है। ऐसी सेवा भल छोड़ दो लेकिन सन्तुष्टता नहीं छोड़ो। जैसे शरीर की तृप्ति वाले सदा सन्तुष्ट रहते हैं वैसे मन की तृप्ति वाले भी सन्तुष्ट होंगे। सन्तुष्टता तृप्ति की निशानी है। तृप्त आत्मा में कोई भी हद की इच्छा, मान, शान, सैलवेशन, साधन की भूख नहीं होगी। वे हद की सर्व चाहना से परे सदा सम्पन्न और समान होंगे।

स्लोगन:-
सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ना अर्थात् पुण्य का खाता जमा होना।