ओम् शान्ति।
जब ओम् शान्ति कहा जाता है तो बहुत खुशी होनी चाहिए क्योंकि वास्तव में आत्मा है ही
शान्त स्वरूप, उसका स्वधर्म ही शान्त है। इस पर संन्यासी भी कहते हैं, शान्ति का तो
तुम्हारे गले में हार पड़ा है। शान्ति को बाहर कहाँ ढूँढते हो। आत्मा स्वत: शान्त
स्वरूप है। इस शरीर में पार्ट बजाने आना पड़ता है। आत्मा सदा शान्त रहे तो कर्म कैसे
करेगी? कर्म तो करना ही है। हाँ, शान्तिधाम में आत्मायें शान्त रहती हैं। वहाँ शरीर
है नहीं, यह कोई भी संन्यासी आदि नहीं समझते कि हम आत्मा हैं, शान्तिधाम में रहने
वाली हैं। बच्चों को समझाया गया है - शान्तिधाम हमारा देश है, फिर हम सुखधाम में
आकर पार्ट बजाते हैं फिर रावण राज्य होता है दु:खधाम में। यह 84 जन्मों की कहानी
है। भगवानुवाच है ना अर्जुन प्रति कि तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। एक को क्यों
कहते हैं? क्योंकि एक की गैरन्टी है। इन राधे-कृष्ण की तो गैरन्टी है ना तो इनको ही
कहते हैं। यह बाप भी जानते हैं, बच्चे भी जानते हैं कि यह जो सब बच्चे हैं सब तो 84
जन्म लेने वाले नहीं हैं। कोई बीच में आयेंगे, कोई अन्त में आयेंगे। इनकी तो सर्टेन
है। इनको कहते हैं - हे बच्चे। तो यह अर्जुन हुआ ना। रथ पर बैठा है ना। बच्चे खुद
भी समझ सकते हैं - हम जन्म कैसे लेंगे? सर्विस ही नहीं करते हैं तो सतयुग नई दुनिया
में पहले कैसे आयेंगे? इनकी तकदीर कहाँ है। पीछे जो जन्म लेंगे उनके लिए तो पुराना
घर होता जायेगा ना। मैं इनके लिए कहता हूँ, जिनके लिए तुमको भी सर्टेन है। तुम भी
समझ सकते हो - मम्मा-बाबा 84 जन्म लेते हैं। कुमारका है, जनक है, ऐसे-ऐसे महारथी जो
हैं वह 84 जन्म लेते हैं। जो सर्विस नहीं करते हैं तो जरूर कुछ जन्म बाद में आयेंगे।
समझते हैं हम तो नापास हो जायेंगे, पिछाड़ी में आ जायेंगे। स्कूल में दौड़ी पहन
निशाने तक आकर फिर वापिस लौटते हैं ना। सब एकरस हो न सकें। रेस में ज़रा पाव इंच का
भी फर्क पड़ता है तो प्लस में आ जाता है, यह भी अश्व रेस है। अश्व घोड़े को कहा जाता
है। रथ को भी घोड़ा कहा जाता है। बाकी यह जो दिखाते हैं दक्ष प्रजापिता ने यज्ञ रचा,
उसमें घोड़े को हवन किया, यह सब बातें हैं नहीं। न दक्ष प्रजापिता है, न कोई यज्ञ
रचा है। पुस्तकों में भक्ति मार्ग की कितनी दन्त कथायें हैं। उनका नाम ही कथा है।
बहुत कथायें सुनते हैं। तुम तो यह पढ़ते हो। पढ़ाई को कथा थोड़ेही कहेंगे। स्कूल
में पढ़ते हैं, एम ऑब्जेक्ट रहती है। हमको इस पढ़ाई से यह नौकरी मिलेगी। कुछ न कुछ
मिलता है। अभी तुम बच्चों को देही-अभिमानी बहुत बनना है। यही मेहनत है। बाप को याद
करने से ही विकर्म विनाश होंगे। खास याद करना होता है, ऐसे नहीं कि मैं तो शिवबाबा
का बच्चा हूँ ना फिर याद क्या करें। नहीं, याद करना है अपने को स्टूडेन्ट समझकर। हम
आत्माओं को शिवबाबा पढ़ा रहे हैं, यह भी भूल जाते हैं। शिवबाबा एक ही टीचर है जो
सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ सुनाते हैं, यह भी याद नहीं रहता है। हर एक बच्चे
को अपने दिल से पूछना है कि कितना समय बाप की याद ठहरती है? जास्ती टाइम तो
बाहरमुखता में ही जाता है। यह याद ही मुख्य है। इस भारत के योग की ही बहुत महिमा
है। परन्तु योग कौन सिखलाते हैं - यह किसको पता नहीं है। गीता में श्रीकृष्ण का नाम
डाल दिया है। अब श्रीकृष्ण को याद करने से तो एक भी पाप नहीं कटेगा क्योंकि वह तो
शरीरधारी है। पांच तत्वों का बना हुआ है। उनको याद किया तो गोया मिट्टी को याद किया,
5 तत्वों को याद किया। शिवबाबा तो अशरीरी है इसलिए कहते हैं अशरीरी बनो, मुझ बाप को
याद करो।
कहते भी हो - हे पतित-पावन, वह तो एक हुआ ना। युक्ति से पूछना चाहिए - गीता का
भगवान कौन? भगवान रचयिता तो एक होता है। अगर मनुष्य अपने को भगवान कहलाते भी हैं तो
ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि तुम सब हमारे बच्चे हो। या तो कहेंगे ततत्वम् या कहेंगे
ईश्वर सर्वव्यापी है। हम भी भगवान, तुम भी भगवान, जिधर देखता हूँ तू ही तू है।
पत्थर में भी तू, ऐसे कह देते। तुम हमारे बच्चे हो, यह कह नहीं सकते। यह तो बाप ही
कहते हैं - हे मेरे लाडले रूहानी बच्चों। ऐसे और कोई कह न सके। मुसलमान को अगर कोई
कहे मेरे लाडले बच्चों, तो थप्पड़ मार दें। यह एक ही पारलौकिक बाप कह सकते हैं। और
कोई सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दे न सके। 84 के सीढ़ी का राज़ कोई समझा न सके
सिवाए निराकार बाप के। उनका असली नाम ही है शिव। यह तो मनुष्यों ने अथाह नाम रख दिये
हैं। अनेक भाषायें हैं। तो अपनी-अपनी भाषा में नाम रख देते हैं। जैसे बाम्बे में
बबुलनाथ कहते हैं, परन्तु वह अर्थ थोड़ेही समझते। तुम समझते हो कांटों को फूल बनाने
वाला है। भारत में शिवबाबा के हजारों नाम होंगे, अर्थ कुछ नहीं जानते। बाप बच्चों
को ही समझाते हैं। उसमें भी माताओं को बाबा जास्ती आगे करते हैं। आजकल फीमेल्स का
मान भी है क्योंकि बाप आये हैं ना। बाप माताओं की महिमा ऊंच करते हैं। तुम शिव शक्ति
सेना हो, तुम ही शिवबाबा को जानते हो। सच तो एक ही है। गाया भी जाता है सच की बेड़ी
हिले डुले, डूबे नहीं। तो तुम सच्चे हो, नई दुनिया की स्थापना कर रहे हो। बाकी झूठी
बेड़ियां सब खत्म हो जायेंगी। तुम भी कोई यहाँ राज्य करने वाले नहीं हो। तुम फिर
दूसरे जन्म में आकर राज्य करेंगे। यह बड़ी गुप्त बातें हैं जो तुम ही जानते हो। यह
बाबा न मिला होता तो कुछ भी नहीं जानते थे। अभी जाना है।
यह है युधिष्ठिर, युद्ध के मैदान में बच्चों को खड़ा करने वाला। यह है
नानवायोलेन्स, अहिंसक। मनुष्य हिंसा समझ लेते हैं मारा-मारी को। बाप कहते हैं पहली
मुख्य हिंसा तो काम कटारी की है इसलिए काम महाशत्रु कहा है, इन पर ही विजय पानी है।
मूल बात है ही काम विकार की, पतित माना विकारी। विकारी कहा ही जाता है पतित बनने
वाले को, जो विकार में जाते हैं। क्रोध करने वाले को ऐसे नहीं कहेंगे कि यह विकारी
है। क्रोधी को क्रोधी, लोभी को लोभी कहेंगे। देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है।
देवतायें निर्लोभी, निर्मोही, निर्विकारी हैं। वह कभी विकार में नहीं जाते। तुमको
कहते हैं विकार बिगर बच्चे कैसे होंगे? उन्हों को तो निर्विकारी मानते हो ना। वह है
ही वाइसलेस दुनिया। द्वापर कलियुग है विशश दुनिया। खुद को विकारी, देवताओं को
निर्विकारी कहते तो हैं ना। तुम जानते हो हम भी विकारी थे। अब इन जैसा निर्विकारी
बन रहे हैं। इन लक्ष्मी-नारायण ने भी याद के बल से यह पद पाया है फिर पा रहे हैं।
हम ही देवी-देवता थे, हमने कल्प पहले ऐसे राज्य पाया था, जो गँवाया, फिर हम पा रहे
हैं। यही चिंतन बुद्धि में रहे तो भी खुशी रहेगी। परन्तु माया यह स्मृति भुला देती
है। बाबा जानते हैं तुम स्थाई याद में रह नहीं सकेंगे। तुम बच्चे अडोल बन याद करते
रहो तो जल्दी कर्मातीत अवस्था हो जाए और आत्मा वापिस चली जाए। परन्तु नहीं। पहले
नम्बर में तो यह जाने वाला है। फिर है शिवबाबा की बरात। शादी में मातायें मिट्टी के
मटके में ज्योति जगाकर ले जाती हैं ना, यह निशानी है। शिवबाबा साजन तो सदा जागती
ज्योत है। बाकी हमारी ज्योति जगाई है। यहाँ की बात फिर भक्ति मार्ग में ले गये हैं।
तुम योगबल से अपनी ज्योति जगाते हो। योग से तुम पवित्र बनते हो। ज्ञान से धन मिलता
है। पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहा जाता है ना। योगबल से तुम खास भारत और आम सारे
विश्व को पवित्र बनाते हो। इसमें कन्यायें बहुत अच्छी मददगार बन सकती हैं। सर्विस
कर ऊंच पद पाना है। जीवन हीरे जैसा बनाना है, कम नहीं। गाया जाता है फालो फादर मदर।
सी मदर फादर और अनन्य ब्रदर्स, सिस्टर्स।
तुम बच्चे प्रदर्शनी में भी समझा सकते हो कि तुमको दो फादर हैं - लौकिक और
पारलौकिक। इसमें बड़ा कौन? बड़ा तो जरूर बेहद का बाप हुआ ना। वर्सा उनसे मिलना
चाहिए। अभी वर्सा दे रहे हैं, विश्व का मालिक बना रहे हैं। भगवानुवाच - तुमको
राजयोग सिखाता हूँ फिर तुम दूसरे जन्म में विश्व के मालिक बनेंगे। बाप कल्प-कल्प
भारत में आकर भारत को बहुत साहूकार बनाते हैं। तुम विश्व के मालिक बनते हो इस पढ़ाई
से। उस पढ़ाई से क्या मिलेगा? यहाँ तो तुम हीरे जैसा बनते हो 21 जन्म लिए। उस पढ़ाई
में रात-दिन का फर्क है। यह तो बाप, टीचर, गुरू एक ही है। तो बाप का वर्सा, टीचर का
वर्सा और गुरू का वर्सा सब देते हैं। अब बाप कहते हैं देह सहित सबको भूलना है। आप
मुये मर गई दुनिया। बाप के एडाप्टेड बच्चे बने, बाकी किसको याद करेंगे। दूसरों को
देखते हुए जैसे कि देखते नहीं। पार्ट में भी आते हैं परन्तु बुद्धि में है - अब हमको
घर जाना है फिर यहाँ आकर पार्ट बजाना है। यह बुद्धि में रहे तो भी बहुत खुशी रहेगी।
बच्चों को देह भान छोड़ देना चाहिए। यह पुरानी चीज़ यहाँ छोड़नी है, अब वापिस जाना
है। नाटक पूरा होता है। पुरानी सृष्टि को आग लग रही है। अन्धे की औलाद अन्धे अज्ञान
नींद में सोये पड़े हैं। मनुष्य तो समझेंगे यह सोया हुआ मनुष्य दिखाया है। परन्तु
यह अज्ञान नींद की बात है, जिससे तुम जगाते हो। ज्ञान अर्थात् दिन है सतयुग, अज्ञान
अर्थात् रात है कलियुग। यह बड़ी समझने की बातें हैं। कन्या शादी करती है तो
माता-पिता, सासू-ससुर आदि भी याद आयेगा। उनको भूलना पड़े। ऐसे भी युगल हैं, जो
संन्यासियों को दिखाते हैं - हम युगल बनकर कभी विकार में नहीं जाते हैं। ज्ञान
तलवार बीच में है। बाप का फरमान है - पवित्र रहना है। देखो रमेश-उषा हैं, कभी भी
पतित नहीं बने हैं, यह डर है अगर हम पतित बनें तो 21 जन्मों की राजाई खत्म हो जायेगी।
देवाला मार देंगे। ऐसे कोई-कोई फेल हो पड़ते हैं। गन्धर्वी विवाह का नाम तो है ना।
तुम जानते हो पवित्र रहने से पद बहुत ऊंच मिलेगा। एक जन्म के लिए पवित्र बनना है।
योगबल से कर्मेन्द्रियों पर भी कन्ट्रोल आ जाता है। योगबल से तुम सारी दुनिया को
पवित्र बनाते हो। तुम कितने थोड़े बच्चे योगबल से यह सारा पहाड़ उड़ाए सोने का पहाड़
स्थापन करते हो। मनुष्य थोड़ेही समझते हैं, वह तो गोवर्धन पर्वत पिछाड़ी परिक्रमा
देते रहते हैं। यह तो बाप ही आकर सारी दुनिया को गोल्डन एजेड बनाते हैं। ऐसे नहीं
कि हिमालय कोई सोने का हो जायेगा। वहाँ तो सोने की खानियाँ भरतू हो जायेंगी। 5 तत्व
सतोप्रधान हैं, फल भी अच्छा देते हैं। सतोप्रधान तत्वों से यह शरीर भी सतोप्रधान
होते हैं। वहाँ के फल भी बहुत बड़े-बड़े स्वादिष्ट होते हैं। नाम ही है स्वर्ग। तो
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने से ही विकार छूटेंगे। देह-अभिमान आने से विकार
की चेष्टा होती है। योगी कभी विकार में नहीं जायेंगे। ज्ञान बल तो है, परन्तु योगी
नहीं होगा तो गिर पड़ेगा। जैसे पूछा जाता है - पुरूषार्थ बड़ा या प्रालब्ध? तो कहते
हैं पुरूषार्थ बड़ा। वैसे इसमें कहेंगे योग बड़ा। योग से ही पतित से पावन बनते हैं।
अब तुम बच्चे तो कहेंगे हम बेहद के बाप से पढ़ेंगे। मनुष्य से पढ़ने से क्या मिलेगा?
मास में क्या कमाई होगी? यह तुम एक-एक रत्न धारण करते हो। यह है लाखों रूपयों के।
वहाँ पैसे की गिनती नहीं की जाती। अनगिनत धन होता है। सबको अपनी-अपनी खेतियां आदि
होती हैं। अब बाप कहते हैं हम तुमको राजयोग सिखलाते हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट।
पुरूषार्थ करके ऊंच बनना है। राजधानी स्थापन हो रही है। इन लक्ष्मी-नारायण ने कैसे
प्रालब्ध पाई, इनकी प्रालब्ध को जान गये तो बाकी क्या चाहिए। अभी तुम जानते हो कल्प
5 हज़ार वर्ष बाद बाप आते हैं, आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं। तो बच्चों को सर्विस
करने का उमंग होना चाहिए। जब तक कोई को रास्ता नहीं बताया है, खाना नहीं खायेंगे -
इतना उल्लास-उमंग हो तब ऊंच पद पा सकते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ईश्वरीय सर्विस कर अपना जीवन 21 जन्मों के लिए हीरे जैसा बनाना है।
मात-पिता और अनन्य भाई-बहिनों को ही फालो करना है।
2) कर्मातीत अवस्था बनाने के लिए देह सहित सबको भूलना है। अपनी याद अडोल और
स्थाई बनानी है। देवताओं जैसा निर्लोभी, निर्मोही, निर्विकारी बनना है।