01-10-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - रोज़ रात को
अपना पोतामेल निकालो, डायरी रखो तो डर रहेगा कि कहीं घाटा न पड़ जाए''
प्रश्नः-
कल्प पहले वाले
भाग्यशाली बच्चों को बाप की कौन सी बात फौरन टच होगी?
उत्तर:-
बाबा रोज़-रोज़
जो बच्चों को याद की युक्तियां बतलाते हैं, वह भाग्यशाली बच्चों को ही टच होती
रहेंगी। वह उन्हें फौरन अमल में लायेंगे। बाबा कहते बच्चे कुछ टाइम एकान्त में बगीचे
में जाकर बैठो। बाबा से मीठी-मीठी बातें करो, अपना चार्ट रखो तो उन्नति होती रहेगी।
ओम् शान्ति।
मिलेट्री को पहले-पहले सावधान किया जाता है - अटेन्शन प्लीज़। बाप भी बच्चों को कहते
हैं अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करते रहते हो? बच्चों को समझाया है यह
ज्ञान बाप इस समय ही दे सकते हैं। बाप ही पढ़ाते हैं। भगवानुवाच है ना - मूल बात हो
जाती है यह कि भगवान कौन है? कौन पढ़ाते हैं? यह बात पहले समझने और निश्चय करने की
होती है। फिर अतीन्द्रिय सुख में भी रहना है। आत्मा को बहुत खुशी होनी चाहिए। हमको
बेहद का बाप मिला है। बाप एक ही बार आकर मिलते हैं वर्सा देने। किसका वर्सा? विश्व
की बादशाही का वर्सा देते हैं, 5 हजार वर्ष पहले मिसल। यह तो पक्का निश्चय है - बाप
आया हुआ है। फिर से सहज राजयोग सिखलाते हैं, सिखलाना पड़ता है। बच्चे को कोई सिखलाया
नहीं जाता है। आपेही मुख से मम्मा बाबा निकलता रहेगा क्योंकि अक्षर तो सुनते हैं
ना। यह है रूहानी बाप। आत्मा को आन्तरिक गुप्त नशा रहता है। आत्मा को ही पढ़ना है।
परमपिता परमात्मा तो नॉलेजफुल है ही। वह कोई पढ़ा नहीं है। उनमें नॉलेज है ही, किसकी
नॉलेज है? यह भी तुम्हारी आत्मा समझती है। बाबा में सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त
की नॉलेज है। कैसे एक धर्म की स्थापना और अनेक धर्मों का विनाश होता है, यह सब जानते
हैं - इसलिए उनको जानी जाननहार कह देते हैं। जानी जाननहार का अर्थ क्या है? यह कोई
भी बिल्कुल जानते नहीं हैं। अभी तुम बच्चों को बाप ने समझाया है कि यह स्लोगन भी
जरूर लगाओ कि मनुष्य होकर अगर क्रियेटर और रचना के आदि मध्य अन्त ड्युरेशन,
रिपीटेशन को नही जाना तो क्या कहा जाए.. यह रिपीटेशन अक्षर भी बहुत जरूरी है।
करेक्शन तो होती रहती है ना। गीता का भगवान कौन... यह चित्र बड़ा फर्स्टक्लास है।
सारे वर्ल्ड में यह है सबसे नम्बरवन भूल। परमपिता परमात्मा को न जानने कारण फिर कह
देते सब भगवान के रूप हैं। जैसे छोटे बच्चे से पूछा जाता है तुम किसका बच्चा? कहेंगे
फलाने का। फलाना किसका बच्चा? फलाने का। फिर कह देंगे वह हमारा बच्चा। वैसे यह भी
भगवान को जानते नहीं तो कह देते हम भगवान हैं। इतनी पूजा भी करते हैं परन्तु समझते
नहीं। गाया जाता है ब्रह्मा की रात तो जरूर ब्राह्मण ब्राह्मणियों की भी रात होगी।
यह सब धारण करने की बातें हैं। यह धारणा उनको होगी जो योग में रहते हैं। याद को ही
बल कहा जाता है। ज्ञान तो है सोर्स ऑफ इनकम। याद से शक्ति मिलती है जिससे विकर्म
विनाश होते हैं। तुम्हें बुद्धि का योग बाप से लगाना है। यह ज्ञान बाप अभी ही देते
हैं फिर कभी मिलता ही नहीं। सिवाए बाप के कोई दे न सके। बाकी सब हैं भक्ति मार्ग के
शास्त्र, कर्म-काण्ड की क्रियायें। उसको ज्ञान नहीं कहेंगे। स्प्रीचुअल नॉलेज एक
बाप के पास है और वह ब्राह्मणों को ही देते हैं। और कोई के पास स्प्रीचुअल नॉलेज
होती नहीं। दुनिया में कितने धर्म मठ पंथ हैं, कितनी मतें हैं। बच्चों को समझाने
में कितनी मेहनत होती है। कितने तूफान आते हैं। गाते भी हैं - नईया मेरी पार लगाओ।
सबकी नईया तो पार नहीं जा सकती। कोई डूब भी जायेगी, कोई खड़ी हो जायेगी। 2-3 वर्ष
हो जाते हैं, कइयों का पता ही नहीं। कोई तो पुर्जा-पुर्जा (टुकड़े-टुकड़े) हो जाते
हैं। कोई वहाँ ही खड़े हो जाते हैं, इसमें मेहनत बहुत है। आर्टीफिशयल योग भी कितने
निकले हैं। कितने योग आश्रम हैं। रूहानी योग आश्रम कोई हो न सके। बाप ही आकर आत्माओं
को रूहानी योग सिखलाते हैं। बाबा कहते हैं यह तो बहुत सहज योग है। इन जैसा सहज कुछ
भी है नहीं। आत्मा ही शरीर में आकर पार्ट बजाती है। 84 जन्म मैक्सीमम हैं, बाकी तो
कम-कम होते जायेंगे। यह बातें भी तुम बच्चों में कोई की बुद्धि में हैं। बुद्धि में
धारणा बड़ा मुश्किल होती है। पहली बात बाप समझाते हैं कहाँ भी जाते हो तो पहले-पहले
बाप का परिचय दो। बाप का परिचय कैसे देवें, इसके लिए युक्ति रची जाती है। वह जब
निश्चय हो तब समझें बाप तो सत्य है। जरूर बाप सत्य बातें ही बताते होंगे। इनमें
संशय नहीं लाना चाहिए। याद में ही मेहनत है, इसमें माया आपोजीशन करती है। घड़ी-घड़ी
याद भुला देती है इसलिए बाबा कहते हैं - चार्ट लिखो। तो बाबा भी देखे कौन कितना याद
करते हैं। क्वार्टर परसेन्ट भी चार्ट नहीं रखते हैं। कोई कहते हैं हम तो सारा दिन
याद में रहता हूँ। बाबा कहते हैं यह तो बड़ी मुश्किल है। सारा दिन रात तो बांधेलियां
जो मार खाती रहती वह याद में रहती होंगी, शिवबाबा कब इन सन्बन्धियों से हम छूटेंगे?
आत्मा पुकारती है - बाबा हम बन्धन से कैसे छूटें। अगर कोई बहुत याद में रहते हैं तो
बाबा को चार्ट भेजें। डायरेक्शन मिलते हैं रोज़ रात को अपना पोतामेल निकालो, डायरी
रखो। डायरी रखने से डर रहेगा, हमारा घाटा न निकल आये। बाबा देखेंगे तो क्या कहेंगे
- इतने मोस्ट बील्वेड बाबा को इतना समय ही याद करते हो! लौकिक बाप को, स्त्री को
तुम याद करते हो, मुझे इतना थोड़ा भी याद नहीं करते हो। चार्ट लिखो तो आपेही लज्जा
आयेगी। इस हालत में मैं पद पा नहीं सकूंगा, इसलिए बाबा चार्ट पर जोर दे रहे हैं।
बाप को और 84 के चक्र को याद करना है तो फिर चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। आप समान
बनायेंगे तब तो प्रजा पर राज्य करेंगे। यह है ही राजयोग - नर से नारायण बनने का। एम
ऑब्जेक्ट यह है। जैसे आत्मा को देखा नहीं जाता, समझा जाता है। इनमें आत्मा है, यह
भी समझा जाता है। इन लक्ष्मी-नारायण की जरूर राजधानी होगी। इन्हों ने सबसे जास्ती
मेहनत की है तब स्कालरशिप पाई है। जरूर इन्हों की बहुत प्रजा होगी। ऊंच ते ऊंच पद
पाया है, जरूर बहुत योग लगाया है तब पास विद ऑनर हुए। यह भी कारण निकालना चाहिए,
हमारा योग क्यों नहीं लगता है? धन्धे आदि के झंझट में बहुत बुद्धि चली जाती है। उनसे
टाइम निकाल इस तरफ जास्ती ध्यान देना चाहिए। कुछ टाइम निकाल बगीचे में एकान्त में
बैठना चाहिए। फीमेल तो जा न सकें। उनको तो घर सम्भालना है। पुरुषों को सहज है। कल्प
पहले वाले जो भाग्यशाली होंगे उनको ही यह टच होगा। पढ़ाई तो बहुत अच्छी है। बाकी हर
एक की बुद्धि अपनी होती है। कैसे भी करके बाप से वर्सा लेना है। बाप डायरेक्शन सब
देते हैं। करना तो बच्चों को ही है। बाबा डायरेक्शन देंगे जनरल। एक-एक पर्सनल भी
आकर कोई पूछे तो राय दे सकते हैं। तीर्थो पर बड़े-बड़े पहाड़ों पर जाते हैं तो पण्डे
लोग सावधान करते रहते हैं। बड़ी मुश्किलात से जाते हैं। तुम बच्चों को तो बाप बहुत
सहज युक्ति बताते हैं। बाप को याद करना है। शरीर का भान खत्म करना है। बाप कहते हैं
मुझे याद करो। बाप आकर नॉलेज दे चले जाते हैं। आत्मा जैसा तीखा रॉकेट और कोई हो नहीं
सकता। वो लोग मून आदि तरफ जाने में कितना टाइम वेस्ट करते हैं। यह भी ड्रामा में
नूंध है। यह सांइस का हुनर भी विनाश में मदद करता है। वह है साइंस, तुम्हारी है
साइलेन्स। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना - यह है डेड साइलेन्स। मैं आत्मा शरीर
से अलग हूँ। यह शरीर पुरानी जुत्ती है। सर्प कछुए के मिसाल भी तुम्हारे लिए हैं,
तुम ही कीड़े जैसे मनुष्यों को भूँ-भूँ कर मनुष्य से देवता बनाती हो। विषय सागर से
क्षीर सागर में ले जाना तुम्हारा काम है। संन्यासियों को यह यज्ञ तप आदि कुछ भी करना
नहीं है। भक्ति और ज्ञान है ही गृहस्थियों के लिए। उन्हों को तो सतयुग में आना ही
नहीं है। वह क्या जानें इन बातों से। यह भी ड्रामा में नूँध है इस निवृत्ति मार्ग
वालों की। जिन्होंने पूरे 84 जन्म लिए हैं - वही ड्रामा अनुसार आते रहेंगे। इसमें
भी नम्बरवार निकलते रहेंगे। माया बड़ी प्रबल है। आंखें बड़ी क्रिमिनल हैं। ज्ञान का
तीसरा नेत्र मिलने से आंखे सिविल बनती हैं फिर आधाकल्प कभी क्रिमिनल नहीं बनेंगी।
यह हैं बड़ी धोखेबाज। तुम जितना बाप को याद करेंगे उतना कर्मेन्द्रियाँ शीतल होंगी।
फिर 21 जन्म कर्मेन्द्रियों को चंचलता में आना नहीं है। वहाँ कर्मेन्द्रियों में
चंचलता होती नहीं। सब कर्मेन्द्रियां शान्त सतोगुणी रहती हैं। देह-अभिमान के बाद ही
सब शैतानी आती है। बाप तुमको देही-अभिमानी बनाते हैं। आधाकल्प के लिए तुमको वर्सा
मिल जाता है। जितनी जो मेहनत करते हैं, उतना ऊंच पद पायेंगे। मेहनत करनी है -
देही-अभिमानी बनने की, फिर कर्मेन्द्रियां धोखा नहीं देंगी। अन्त तक युद्ध चलती
रहेगी। जब कर्मातीत अवस्था को पायेंगे तब वह लड़ाई भी शुरू होगी। दिन प्रतिदिन आवाज
होता जायेगा, मौत से डरेंगे।
बाप कहते हैं यह ज्ञान सबके लिए है। सिर्फ बाप का परिचय देना है। हम आत्मायें सब
भाई-भाई हैं। सब एक बाप को याद करते हैं। गॉड फादर कहते हैं। करके कोई नेचर को मानने
वाले होते हैं। परन्तु गॉड तो है ना। उनको याद करते हैं मुक्ति-जीवनमुक्ति के लिए।
मोक्ष तो है नहीं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को रिपीट करना है। बुद्धि भी कहती
है जब सतयुग था तो एक ही भारत था। मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते। इन लक्ष्मी-नारायण
का राज्य था ना। लाखों वर्ष की बात हो न सके। लाखों वर्ष होते तो कितनी ढेर संख्या
हो जाती। बाप कहते हैं अब कलियुग पूरा हो सतयुग की स्थापना हो रही है। वह समझते हैं
कलियुग तो अजुन बच्चा है, इतने हजार वर्ष की आयु है। तुम बच्चे जानते हो यह कल्प है
ही 5 हजार वर्ष का। भारत में ही यह स्थापना हो रही है। भारत ही अब स्वर्ग बन रहा
है। अभी हम श्रीमत पर यह राज्य स्थापन कर रहे हैं। अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
पहला-पहला शब्द ही यह दो। जब तक बाप का निश्चय नहीं होगा तब तक प्रश्न पूछते रहेंगे।
फिर कोई बात का उत्तर नहीं मिलेगा तो समझेंगे यह जानते कुछ भी नहीं और कहते हैं
भगवान हमको पढ़ाते हैं इसलिए पहले-पहले तो एक ही बात पर ठहर जाओ। पहले बाप का
निश्चय करे कि बरोबर सभी आत्माओं का बाप एक ही है और वह है रचता। तो जरूर संगम पर
ही आयेंगे। बाप कहते हैं मैं युगे-युगे नहीं, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। मैं हूँ
ही नई सृष्टि का रचता। तो बीच में कैसे आऊंगा। मैं आता ही हूँ पुरानी और नई के बीच
में। इनको पुरुषोत्तम संगमयुग कहा जाता है। तुम पुरुषोत्तम भी यहाँ बनते हो।
लक्ष्मी-नारायण सबसे पुरुषोत्तम हैं। एम आब्जेक्ट कितनी सहज है। सबको बोलो यह
स्थापना हो रही है। बाबा ने कहा है पुरुषोत्तम अक्षर जरूर डालो क्योंकि यहाँ तुम
कनिष्ट से पुरुषोत्तम बनते हो। ऐसी-ऐसी मुख्य बातें भूलनी नहीं चाहिए। और संवत की
डेट भी जरूर लिखनी चाहिए। यहाँ तुम्हारी पहले से राजाई शुरू हो जाती है, औरों की
राजाई पहले से नहीं होती। वह तो धर्म स्थापक आये तब उनके पीछे उनके धर्म की वृद्धि
हो। करोड़ों बनें तब राजाई चले। तुम्हारी तो शुरू से सतयुग में राजाई होगी। यह किसको
भी बुद्धि में नहीं आता कि सतयुग में इतनी राजाई कहाँ से आई। कलियुग अन्त में इतने
ढेर धर्म हैं, फिर सतयुग में एक धर्म, एक राज्य कैसे हुआ? कितने हीरे जवाहरों के
महल हैं। भारत ऐसा था जिसको पैराडाइज कहते थे। 5 हजार वर्ष की बात है। लाखों वर्ष
का हिसाब कहाँ से आया। मनुष्य कितने मूंझे हुए हैं। अब उनको कौन समझाये। वे समझते
थोड़ेही हैं कि हम आसुरी राज्य में हैं। इनकी (देवताओं की) तो महिमा सर्वगुण
सम्पन्न.. है, इनमें 5 विकार नहीं हैं क्योंकि देही-अभिमानी हैं तो बाप कहते हैं
मुख्य बात है याद की। 84 जन्म लेते-लेते तुम पतित बने हो, अब फिर पवित्र बनना है।
यह ड्रामा का चक्र है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान के तीसरे नेत्र को धारण कर अपनी धोखेबाज आंखों को सिविल बनाना
है। याद से ही कर्मेन्द्रियां शीतल, सतोगुणी बनेगी इसलिए यही मेहनत करनी है।
2) धन्धे आदि से टाइम निकाल एकान्त में जाकर याद में बैठना है। कारण देखना है कि
हमारा योग क्यों नहीं लगता है। अपना चार्ट जरूर रखना है।
वरदान:-
सहनशक्ति
द्वारा अविनाशी और मधुर फल प्राप्त करने वाले सर्व के स्नेही भव
सहन करना मरना नहीं है
लेकिन सबके दिलों में स्नेह से जीना है। कैसा भी विरोधी हो, रावण से भी तेज हो, एक
बार नहीं 10 बार सहन करना पड़े फिर भी सहनशक्ति का फल अविनाशी और मधुर है। सिर्फ यह
भावना नहीं रखो कि मैंने इतना सहन किया तो यह भी कुछ करे। अल्पकाल के फल की भावना
नहीं रखो। रहम भाव रखो - यही है सेवा भाव। सेवा भाव वाले सर्व की कमजोरियों को समा
लेते हैं। उनका सामना नहीं करते।
स्लोगन:-
जो बीत
चुका उसको भूल जाओ, बीती बातों से शिक्षा लेकर आगे के लिए सदा सावधान रहो।
अव्यक्त इशारे -
स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
जैसे बापदादा को
रहम आता है, ऐसे आप बच्चे भी मास्टर रहमदिल बन अपनी मन्सा वृत्ति से वायुमण्डल
द्वारा आत्माओं को बाप द्वारा मिली हुई शक्तियां दो। जब थोड़े समय में सारे विश्व
की सेवा सम्पन्न करनी है, तत्वों सहित सबको पावन बनाना है तो मन्सा द्वारा तीव्रगति
से सेवा करो, योग की शक्तियों का प्रयोग करो।