ओम् शान्ति।
बाप समझा रहे हैं ऊंच ते ऊंच है भगवान फिर उनको ऊंच ते ऊंच कमान्डर इन चीफ आदि भी
कहो क्योंकि तुम सेना हो ना। तुम्हारा सुप्रीम कमान्डर कौन है? यह भी जानते हो दो
सेनाये हैं - वह है जिस्मानी, तुम हो रूहानी। वह हद के, तुम बेहद के। तुम्हारे में
कमान्डर्स भी हैं, जनरल भी हैं, लेफ्टीनेंट भी हैं। बच्चे जानते हैं हम श्रीमत पर
राजधानी स्थापन कर रहे हैं। लड़ाई आदि की तो कोई बात नहीं। हम सारे विश्व पर फिर से
अपना दैवी राज्य स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर। कल्प-कल्प हमारा यह पार्ट बजता है।
यह सब हैं बेहद की बातें। उन लड़ाइयों में यह बातें नहीं। ऊंच ते ऊंच बाप है। उनको
जादूगर, रत्नागर, ज्ञान का सागर भी कहते हैं। बाप की महिमा अपरम-अपार है। तुम्हें
बुद्धि से सिर्फ बाप को याद करना है। माया याद भुला देती है। तुम हो डबल अहिंसक
रूहानी सेना। तुमको यही ख्याल है कि हम अपना राज्य कैसे स्थापन करें। ड्रामा जरूर
करायेगा। पुरुषार्थ तो करना होता है ना। जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं, आपस में राय करनी
चाहिए। माया से युद्ध तो अन्त तक तुम्हारी चलती रहेगी। यह भी जानते हो महाभारत
लड़ाई होनी है जरूर। नहीं तो पुरानी दुनिया का विनाश कैसे हो। बाबा हमको श्रीमत दे
रहे हैं। हम बच्चों को फिर से अपना राज्य-भाग्य स्थापन करना है। इस पुरानी दुनिया
का विनाश हो फिर भारत में जयजयकार हो जाना है, जिसके लिए तुम निमित्त बने हो। तो
आपस में मिलना चाहिए। कैसे-कैसे हम सर्विस करें। सभी को बाप का पैगाम सुनायें कि अब
इस पुरानी दुनिया का विनाश होना है। बाप नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं। लौकिक
बाप भी नया मकान बनाते हैं तो बच्चे खुश होते हैं। वह है हद की बात, यह है सारे
विश्व की बात। नई दुनिया को सतयुग, पुरानी दुनिया को कलियुग कहा जाता है। अब पुरानी
दुनिया है तो यह मालूम होना चाहिए - बाप कब और कैसे आकर नई दुनिया स्थापन करते हैं।
तुम्हारे में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं। बड़े ते बड़ा है बाप, बाकी फिर
नम्बरवार महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे हैं। कमान्डर, कैप्टन यह तो सिर्फ मिसाल दे
समझाया जाता है। तो बच्चों को आपस में मिल राय निकालनी चाहिए कि सबको बाप का परिचय
कैसे दें, यह है रूहानी सेवा। हम अपने भाई-बहिनों को चेतावनी कैसे दें कि बाप नई
दुनिया स्थापन करने के लिए आये हैं। पुरानी दुनिया का विनाश भी सामने खड़ा है। यह
वही महाभारत लड़ाई है। मनुष्य तो यह भी समझते नहीं हैं कि महाभारत लड़ाई के बाद फिर
क्या!
तुम अभी फील करते हो कि अभी हम संगम पर पुरुषोत्तम बन रहे हैं। अब बाप आये हैं
पुरुषोत्तम बनाने,इसमें लड़ाई आदि की कोई बात ही नहीं है। बाप समझाते हैं - बच्चे,
पतित दुनिया में एक भी पावन नहीं हो सकता और पावन दुनिया में फिर एक भी पतित नहीं
हो सकता। इतनी छोटी बात भी कोई समझते नहीं हैं। तुम बच्चों को सब चित्रों आदि का
सार समझाया जाता है। भक्ति मार्ग में मनुष्य जप-तप, दान-पुण्य आदि जो भी करते हैं,
उससे अल्पकाल के लिए काग विष्टा समान सुख की प्राप्ति होती है। परन्तु जब कोई यहाँ
आकर समझे तब यह बातें बुद्धि में बैठें। यह है ही भक्ति का राज्य। ज्ञान रिंचक भी
नहीं। जैसे पतित दुनिया में पावन एक भी नहीं, वैसे ज्ञान भी एक के सिवाए और कोई में
नहीं। वेद-शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं। सीढ़ी उतरनी ही है। अभी तुम ब्राह्मण
बने हो, इसमें नम्बरवार सेना है। मुख्य-मुख्य जो कमान्डर, कैप्टन, जनरल आदि हैं,
उन्हों को आपस में मिल राय करनी चाहिए, हम बाबा का सन्देश कैसे देवें। बच्चों को
समझाया है - मैसेन्जर, पैगम्बर अथवा गुरू एक ही होता है। बाकी सब हैं भक्ति मार्ग
के। संगमयुगी सिर्फ तुम हो। यह लक्ष्मी-नारायण एम ऑब्जेक्ट बिल्कुल एक्यूरेट है।
भक्ति-मार्ग में सत्य नारायण की कथा, तीजरी की कथा, अमर कथा बैठ सुनाते हैं। अभी
बाप तुमको सच्ची सत्य नारायण की कथा सुना रहे हैं। भक्तिमार्ग में हैं पास्ट की बातें,
जो होकर जाते हैं उनका बाद में फिर मन्दिर आदि बनाते हैं। जैसे शिवबाबा अभी तुमको
पढ़ा रहे हैं फिर भक्तिमार्ग में यादगार बनायेंगे। सतयुग में शिव वा लक्ष्मी-नारायण
आदि कोई का चित्र नहीं होता। ज्ञान बिल्कुल अलग है, भक्ति अलग है। यह भी तुम जानते
हो इसलिए बाप ने कहा है हियर नो ईविल, टॉक नो ईविल.......
तुम बच्चों को अभी कितनी खुशी है, नई दुनिया स्थापन हो रही है। सुखधाम की स्थापना
अर्थ बाबा हमको फिर से डायरेक्शन दे रहे हैं, उसमें भी नम्बरवन डायरेक्शन देते हैं
पावन बनो। पतित तो सभी हैं ना। तो जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं उन्हों को आपस में
मिलकर राय करनी चाहिए कि सर्विस को कैसे बढ़ायें, गरीबों को कैसे मैसेज दें, बाप तो
कल्प पहले मिसल आया है। कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। राजधानी
जरूर स्थापन होनी है। समझेंगे जरूर। जो देवी-देवता धर्म के नहीं हैं वह नहीं समझेंगे।
विनाश काले ईश्वर से विपरीत बुद्धि हैं ना। तुम बच्चे जानते हो हमारा धनी है इसलिए
तुम्हें न विकार में जाना है, न लड़ना-झगड़ना है। तुम्हारा ब्राह्मण धर्म बहुत ऊंच
है। वह शूद्र धर्म के, तुम ब्राह्मण धर्म के। तुम चोटी वह पैर। चोटी के ऊपर है ऊंच
ते ऊंच भगवान निराकार। इन आंखों से न देखने के कारण विराट रूप में चोटी (ब्राह्मण)
और शिवबाबा को दिखाते नहीं हैं। सिर्फ कहते हैं देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। जो
देवता बनते हैं वही फिर से पुनर्जन्म ले क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। विराट
रूप का भी अर्थ कोई नहीं जानते। अभी तुम समझते हो तो करेक्ट चित्र बनाना है। शिवबाबा
भी दिखाया है और ब्राह्मण भी दिखाये हैं, तुमको अब सबको यह मैसेज देना है कि अपने
को आत्मा समझ बाप को याद करो। तुम्हारा काम है मैसेज देना। जैसे बाप की महिमा
अपरमअपार है, वैसे भारत की भी बहुत महिमा है। यह भी 7 रोज कोई सुने तब बुद्धि में
बैठे। कहते हैं फुर्सत नहीं। अरे, आधा कल्प पुकारते आये हो, अब वह प्रैक्टिकल में
आया हुआ है। बाप को आना ही है अन्त में। यह भी तुम ब्राह्मण जानते हो नम्बरवार
पुरुषार्थ अनुसार। पढ़ाई शुरू की और निश्चय हुआ। माशूक आया हुआ है, जिसको हम पुकारते
थे, जरूर कोई शरीर में आया होगा। उनको अपना शरीर तो है नहीं। बाप कहते हैं मैं इनमें
प्रवेश कर तुम बच्चों को सृष्टि चक्र की, रचयिता और रचना की नॉलेज देता हूँ। यह और
कोई नहीं जानते। यह पढ़ाई है। बहुत सहज करके समझाते हैं। बाबा कहते हैं हम तुमको
कितना धनवान बनाता हूँ। कल्प-कल्प तुम्हारे जैसा पवित्र और सुखी कोई नहीं। तुम बच्चे
इस समय सभी को ज्ञान दान देते हो। बाप तुम्हें रत्नों का दान देते हैं, तुम दूसरों
को देते हो। भारत को स्वर्ग बनाते हो। तुम अपने ही तन-मन-धन से श्रीमत पर भारत को
स्वर्ग बना रहे हो। कितना ऊंचा कार्य है। तुम गुप्त सेना हो, किसको भी पता नहीं है।
तुम जानते हो हम विश्व की बादशाही ले रहे हैं, श्रीमत द्वारा श्रेष्ठ बनते हैं। अब
बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। श्रीकृष्ण तो कह न सके, वह तो प्रिन्स था। तुम
प्रिन्स बनते हो ना। सतयुग-त्रेता में पवित्र प्रवृत्ति मार्ग है। अपवित्र राजायें
पवित्र राजा-रानी लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग वालों
का राज्य चलता है फिर होता है अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग। आधा-आधा है ना। दिन और रात।
लाखों वर्ष की बात हो फिर आधा-आधा तो हो न सके। लाखों वर्ष हो तो फिर हिन्दू जो
वास्तव में देवता धर्म के हैं उनकी संख्या बहुत बड़ी होनी चाहिए। अनगिनत होने चाहिए।
अभी तो गिनती करते हैं ना। यह ड्रामा में नूँध है, फिर भी होगा। मौत सामने खड़ा है।
यह वही महाभारत लड़ाई है। तो आपस में मिलकर सर्विस का प्लैन बनाना है। सर्विस करते
भी रहते हैं। नये-नये चित्र निकलते हैं, प्रदर्शनी भी करते हैं। अच्छा, फिर क्या
किया जाए? अच्छा रूहानी म्युज़ियम बनाओ। खुद देखकर जायेंगे तो फिर औरों को भेजेंगे।
गरीब अथवा साहूकार धर्माऊ तो निकालते हैं ना। साहूकार जास्ती निकालेंगे, इसमें भी
ऐसे हैं। कोई एक हज़ार निकालेंगे, कोई कम। कोई तो दो रूपये भी भेज देते हैं। कहते
हैं एक रूपये की ईट लगा देना। एक रूपया 21 जन्मों के लिए जमा करना। यह है गुप्त।
गरीब का एक रूपया, साहूकार का एक हजार, बराबर हो जाता है। गरीब के पास है ही थोड़ा
तो क्या कर सकते हैं। हिसाब है ना। व्यापारी लोग धर्माऊ निकालते हैं, अब क्या करना
चाहिए। बाप को मदद देनी है। बाप फिर रिटर्न में 21 जन्म के लिए देते हैं। बाप आकर
गरीबों को मदद करते हैं। अब तो यह दुनिया ही नहीं रहेगी। सब मिट्टी में मिल जायेंगे।
यह भी जानते हो स्थापना जरूर होनी है कल्प पहले मुआफिक। निराकार बाप कहते हैं -
बच्चों, देह के सब धर्म त्याग, एक बाप को याद करो। यह ब्रह्मा भी रचना है ना।
ब्रह्मा किसका बच्चा, किसने क्रियेट किया। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को कैसे क्रियेट करते
हैं, यह भी कोई नहीं जानते हैं। बाप आकर सत्य बात समझाते हैं। ब्रह्मा भी जरूर
मनुष्य सृष्टि में ही होगा। ब्रह्मा की वंशावली गाई हुई है। भगवान मनुष्य सृष्टि की
रचना कैसे रचते हैं, यह कोई नहीं जानते। ब्रह्मा तो यहाँ होना चाहिए ना। बाप कहते
हैं - जिसमें हमने प्रवेश किया है, यह भी बहुत जन्मों के अन्त वाला है। इसने पूरे
84 जन्म लिए हैं। ब्रह्मा कोई क्रियेटर नहीं है। क्रियेटर तो एक निराकार ही है।
आत्मायें भी निराकार हैं। वह तो अनादि हैं। किसी ने क्रियेट नहीं किया फिर ब्रह्मा
कहाँ से आया। बाप कहते हैं - मैंने इसमें प्रवेश कर नाम बदली किया। तुम ब्राह्मणों
के भी नाम बदली किये। तुम हो राजऋषि, शुरू में सन्यास कर साथ में रहने लगे तो नाम
बदली कर दिया। फिर देखा माया खा जाती है तो माला बनाना, नाम रखना छोड़ दिया।
आजकल दुनिया में हर बात में ठगी बहुत है। दूध में भी ठगी। सच्ची चीज़ तो मिलती
नहीं। बाप के लिए भी ठगी। स्वयं को ही भगवान कहलाने लगते हैं। अभी तुम बच्चे जानते
हो आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार
हैं। बाप जानते हैं कौन कैसे पढ़ते और फिर पढ़ाते हैं, क्या पद पायेंगे। निश्चय है
हम बाप द्वारा वर्ल्ड का क्राउन प्रिन्स बन रहे हैं। तो ऐसा पुरुषार्थ कर दिखाना
है। हम क्राउन प्रिन्स बने। फिर 84 का चक्र लगाया अब फिर बनते हैं। यह है नर्क, इनमें
कुछ भी नहीं रहा है। फिर बाप आकर भण्डारा भरपूर कर काल कंटक दूर कर देते हैं। तुम
सबसे पूछो यहाँ भण्डारा भरपूर करने आये हो ना। अमरपुरी में काल आ न सके। बाप आते ही
हैं भण्डारा भरपूर कर काल कंटक दूर करने। वह है अमरलोक, यह है मृत्युलोक। ऐसी
मीठी-मीठी बातें सुननी-सुनानी है। फालतू नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप विश्व का मालिक बनने की पढ़ाई पढ़ाने आये हैं इसलिए कभी ऐसा नहीं
कहना कि हमें फुर्सत नहीं। श्रीमत पर तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी
है।
2) आपस में बहुत मीठी-मीठी ज्ञान की बातें सुननी और सुनानी है। बाप का यह
डायरेक्शन सदा याद रहे - हियर नो ईविल, टॉक नो ईविल......।