ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे..... अब रूहानी आत्मा तो नहीं कहेंगे। रूह अथवा आत्मा एक ही
बात है। रूहानी बच्चों प्रति बाप समझाते हैं। आगे कभी भी आत्माओं को परमपिता
परमात्मा ने ज्ञान नहीं दिया है। बाप खुद कहते हैं मैं एक ही बार कल्प के
पुरुषोत्तम संगमयुग पर आता हूँ। ऐसे और कोई कह न सके - सारे कल्प में सिवाए संगमयुग
के, बाप खुद कभी आते ही नहीं। बाप संगम पर ही आते हैं जबकि भक्ति पूरी होती है और
बाप फिर बच्चों को बैठ ज्ञान देते हैं। अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करो। यह कई
बच्चों के लिए बहुत मुश्किल लगता है। है बहुत सहज परन्तु बुद्धि में ठीक रीति बैठता
नहीं है। तो घड़ी-घड़ी समझाते रहते हैं। समझाते हुए भी नहीं समझते हैं। स्कूल में
टीचर 12 मास पढ़ाते हैं फिर भी कोई नापास हो पड़ते हैं। यह बेहद का बाप भी रोज़
बच्चों को पढ़ाते हैं। फिर भी कोई को धारणा होती है, कोई भूल जाते हैं। मुख्य बात
तो यही समझाई जाती है कि अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। बाप ही कहते हैं
मामेकम् याद करो, और कोई मनुष्य मात्र कभी कह नहीं सकेंगे। बाप कहते हैं मैं एक ही
बार आता हूँ। कल्प के बाद फिर संगम पर एक ही बार तुम बच्चों को ही समझाता हूँ। तुम
ही यह ज्ञान प्राप्त करते हो। दूसरा कोई लेते ही नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा के तुम
मुख वंशावली ब्राह्मण इस ज्ञान को समझते हो। जानते हो कल्प पहले भी बाप ने इस संगम
पर यह ज्ञान सुनाया था। तुम ब्राह्मणों का ही पार्ट है, इन वर्णों में भी फिरना तो
जरूर है। और धर्म वाले इन वर्णों में आते ही नहीं, भारतवासी ही इन वर्णों में आते
हैं। ब्राह्मण भी भारतवासी ही बनते हैं, इसलिए बाप को भारत में आना पड़ता है। तुम
हो प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण। ब्राह्मणों के बाद फिर हैं देवतायें
और क्षत्रिय। क्षत्रिय कोई बनते नहीं हैं। तुमको तो ब्राह्मण बनाते हैं फिर तुम
देवता बनते हो। वही फिर धीरे-धीरे कला कम होती तो उनको क्षत्रिय कहते हैं। क्षत्रिय
ऑटोमेटिकली बनना है। बाप तो आकर ब्राह्मण बनाते हैं फिर ब्राह्मण से देवता फिर वही
क्षत्रिय बनते हैं। तीनों धर्म एक ही बाप अभी स्थापन करते हैं। ऐसे नहीं कि
सतयुग-त्रेता में फिर आते हैं। मनुष्य न समझने के कारण कह देते सतयुग-त्रेता में भी
आते हैं। बाप कहते हैं मैं युगे-युगे आता नहीं हूँ, मैं आता ही हूँ एक बार, कल्प के
संगम पर। तुमको मैं ही ब्राह्मण बनाता हूँ - प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा। मैं तो
परमधाम से आता हूँ। अच्छा ब्रह्मा कहाँ से आता है? ब्रह्मा तो 84 जन्म लेते हैं,
मैं नहीं लेता हूँ। ब्रह्मा सरस्वती जो ही विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण बनते
हैं, वही 84 जन्म लेते हैं फिर उनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश कर इनको ब्रह्मा
बनाता हूँ। इनका नाम ब्रह्मा मैं रखता हूँ। यह कोई इनका नाम अपना नहीं है। बच्चे का
जन्म होता है तो छठी करते हैं, जन्म दिन मनाते हैं, इनकी जन्म पत्री का नाम तो
लेखराज था। वह तो छोटेपन का था। अभी नाम बदला है जबकि इनमें बाप ने प्रवेश किया है
संगम पर। सो भी नाम बदलते तब हैं जबकि यह वानप्रस्थ अवस्था में हैं। वह संन्यासी तो
घरबार छोड़ चले जाते हैं तब नाम बदलता है। यह तो घर में ही रहते हैं, इनका नाम
ब्रह्मा रखा, क्योंकि ब्राह्मण चाहिए ना। तुमको अपना बनाकर पवित्र ब्राह्मण बनाते
हैं। पवित्र बनाया जाता है। ऐसे नहीं कि तुम जन्म से ही पवित्र हो। तुमको पवित्र
बनने की शिक्षा मिलती है। कैसे पवित्र बनें? वह है मुख्य बात।
तुम जानते हो कि भक्ति मार्ग में पूज्य एक भी हो नहीं सकता। मनुष्य गुरूओं आदि
को माथा टेकते हैं क्योंकि घरबार छोड़ पवित्र बनते हैं, बाकी उनको पूज्य नहीं कहेंगे।
पूज्य वह जो किसको भी याद न करे। संन्यासी लोग ब्रह्म तत्व को याद करते हैं ना,
प्रार्थना करते हैं। सतयुग में कोई को भी याद नहीं करते। अब बाप कहते है तुमको याद
करना है एक को। वह तो है भक्ति। तुम्हारी आत्मा भी गुप्त है। आत्मा को यथार्थ रीति
कोई जानते नहीं। सतयुग-त्रेता में भी शरीरधारी अपने नाम से पार्ट बजाते हैं। नाम
बिगर तो पार्टधारी हो न सकें। कहाँ भी हो शरीर पर नाम जरूर पड़ता है। नाम बिगर
पार्ट कैसे बजायेंगे। तो बाप ने समझाया है भक्ति मार्ग में गाते हैं - आप आयेंगे तो
हम आपको ही अपना बनायेंगे, दूसरा न कोई। हम आपका ही बनेंगे, यह आत्मा कहती है। भक्ति
मार्ग में जो भी देहधारी हैं जिनके नाम रखे जाते हैं, उनको हम नहीं पूजेंगे। जब आप
आयेंगे तो आप पर ही कुर्बान जायेंगे। कब आयेंगे, यह भी नहीं जानते। अनेक देहधारियों
की, नाम धारियों की पूजा करते रहते हैं। जब आधा-कल्प भक्ति पूरी होती है तब बाप आते
हैं। कहते हैं तुम जन्म-जन्मान्तर कहते आये हो - हम तुम्हारे बिगर किसको भी याद नहीं
करेंगे। अपनी देह को भी याद नहीं करेंगे। परन्तु मुझे जानते ही नहीं हैं तो याद कैसे
करेंगे। अब बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा समझो और
बाप को याद करो। बाप ही पतित-पावन है, उनको याद करने से तुम पावन सतोप्रधान बन
जायेंगे। सतयुग-त्रेता में भक्ति होती नहीं। तुम कोई को भी याद नहीं करते। न बाप
को, न चित्रों को। वहाँ तो सुख ही सुख रहता है। बाप ने समझाया है - जितना तुम
नज़दीक आते जायेंगे, कर्मातीत अवस्था होती जायेगी। सतयुग में नई दुनिया, नये मकान
में खुशी भी बहुत रहती है फिर 25 परसेन्ट पुराना होता है तो जैसे स्वर्ग ही भूल जाता
है। तो बाप कहते हैं तुम गाते थे आपके ही बनेंगे, आप से ही सुनेंगे। तो जरूर आप
परमात्मा को ही कहते हो ना। आत्मा कहती है परमात्मा बाप के लिए। आत्मा सूक्ष्म
बिन्दी है, उनको देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए। आत्मा का ध्यान कर नहीं सकेंगे।
हम आत्मा इतनी छोटी बिन्दी हैं, ऐसा समझ याद करना मेहनत है। आत्मा के साक्षात्कार
की कोशिश नहीं करते, परमात्मा के लिए कोशिश करते हैं, जिसके लिए सुना है कि वह
हज़ार सूर्य से तेजोमय है। किसको साक्षात्कार होता है तो कहते हैं बहुत तेजोमय था
क्योंकि वही सुना हुआ है। जिसकी नौधा भक्ति करेंगे, देखेंगे भी वही। नहीं तो
विश्वास ही न बैठे। बाप कहते हैं आत्मा को ही नहीं देखा है तो परमात्मा को कैसे
देखेंगे। आत्मा को देख ही कैसे सकते और सबके तो शरीर का चित्र है, नाम है, आत्मा है
बिन्दी, बहुत छोटी है, उनको कैसे देखें। कोशिश बहुत करते हैं, परन्तु इन आंखों से
देख न सकें। आत्मा को ज्ञान की अव्यक्त आंखें मिलती हैं।
अभी तुम जानते हो हम आत्मा कितनी छोटी हैं। मुझ आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट
नूंधा हुआ है, जो मुझे रिपीट करना है। बाप की श्रीमत मिलती है श्रेष्ठ बनाने के लिए,
तो उस पर चलना चाहिए। तुम्हें दैवी गुण धारण करने हैं। खान-पान भी रॉयल होना चाहिए,
चलन बड़ी रॉयल चाहिए। तुम देवता बनते हो। देवतायें खुद पूज्य हैं, यह कभी किसकी पूजा
नहीं करते। यह तो डबल सिरताज हैं ना। यह कभी किसे पूजते नहीं, तो पूज्य ठहरे ना।
सतयुग में किसको पूजने की दरकार ही नहीं। बाकी हाँ एक दो को रिगार्ड जरूर देंगे। ऐसे
नमन करना, इनको रिगार्ड कहा जाता है। ऐसे नहीं दिल में उनको याद करना है। रिगार्ड
तो देना ही है। जैसे प्रेजीडेण्ट है, सब रिगार्ड रखते हैं। जानते हैं यह बड़े मर्तबे
वाला है। नमन थोड़ेही करना है। तो बाप समझाते हैं - यह ज्ञान मार्ग बिल्कुल अलग चीज़
है, इसमें सिर्फ अपने को आत्मा समझना है जो तुम भूल गये हो। शरीर के नाम को याद कर
लिया है। काम तो जरूर नाम से ही करना है। बिगर नाम किसको बुलायेंगे कैसे। भल तुम
शरीरधारी बन पार्ट बजाते हो परन्तु बुद्धि से शिवबाबा को याद करना है। श्रीकृष्ण के
भक्त समझते हैं हमको श्रीकृष्ण को ही याद करना है। बस जिधर देखता हूँ - कृष्ण ही
कृष्ण है। हम भी कृष्ण, तुम भी कृष्ण। अरे तुम्हारा नाम अलग, उनका नाम अलग.... सब
कृष्ण ही कृष्ण कैसे हो सकते। सबका नाम कृष्ण थोड़ेही होता है, जो आता सो बोलते रहते
हैं। अब बाप कहते हैं भक्तिमार्ग के सब चित्रों आदि को भूल एक बाप को याद करो।
चित्रों को तो तुम पतित-पावन नहीं कहते, हनूमान आदि पतित-पावन थोड़ेही हैं। अनेक
चित्र हैं, कोई भी पतित-पावन नहीं है। कोई भी देवी आदि जिसको शरीर है उनको
पतित-पावन नहीं कहेंगे। 6-8 भुजाओं वाली देवियाँ आदि बनाते हैं, सब अपनी बुद्धि से।
यह हैं कौन, वह तो जानते नहीं। यह पतित-पावन बाप की औलाद मददगार हैं, यह किसको भी
पता नहीं है। तुम्हारा रूप तो यह साधारण ही है। यह शरीर तो विनाश हो जायेंगे। ऐसे
नहीं कि तुम्हारे चित्र आदि रहेंगे। यह सब खत्म हो जायेंगे। वास्तव में देवियाँ तुम
हो। नाम भी लिया जाता है - सीता देवी, फलानी देवी। राम देवता नहीं कहेंगे। फलानी
देवी वा श्रीमती कह देते, वह भी रांग हो जाता। अब पावन बनने के लिए पुरुषार्थ करना
है। तुम कहते भी हो पतित से पावन बनाओ। ऐसे नहीं कहते कि लक्ष्मी-नारायण बनाओ। पतित
से पावन भी बाप बनाते हैं। नर से नारायण भी वह बनाते हैं। वो लोग पतित-पावन निराकार
को कहते हैं। और सत्य नारायण की कथा सुनाने वाले फिर और दिखाये हैं। ऐसे तो कहते नहीं
बाबा सत्य नारायण की कथा सुनाकर अमर बनाओ, नर से नारायण बनाओ। सिर्फ कहते हैं आकर
पावन बनाओ। बाबा ही सत्य नारायण की कथा सुनाकर पावन बनाते हैं। तुम फिर औरों को
सत्य कथा सुनाते हो। और कोई जान न सके। तुम ही जानते हो। भल तुम्हारे घर में मित्र,
सम्बन्धी, भाई आदि हैं परन्तु वह भी नहीं समझते। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं को श्रेष्ठ बनाने के लिए बाप की जो श्रीमत मिलती है, उस पर चलना
है, दैवीगुण धारण करने हैं। खान-पान, चलन सब रॉयल रखना है।
2) एक-दो को याद नहीं करना है, लेकिन रिगार्ड जरूर देना है। पावन बनने का
पुरुषार्थ करना और कराना है।