03-03-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - इस बेहद
नाटक को सदा स्मृति में रखो तो अपार खुशी रहेगी, इस नाटक में जो अच्छे पुरूषार्थी
और अनन्य हैं, उनकी पूजा भी अधिक होती है''
प्रश्नः-
कौन-सी स्मृति
दुनिया के सब दु:खों से मुक्त कर देती है, हर्षित रहने की युक्ति क्या है?
उत्तर:-
सदा स्मृति रहे
कि अभी हम भविष्य नई दुनिया में जा रहे हैं। भविष्य की खुशी में रहो तो दु:ख भूल
जायेंगे। विघ्नों की दुनिया में विघ्न तो आयेंगे लेकिन स्मृति रहे कि इस दुनिया में
हम बाकी थोड़े दिन हैं तो हर्षित रहेंगे।
गीत:-
जाग सजनियाँ
जाग .......
ओम् शान्ति।
यह गीत बड़ा अच्छा है। गीत सुनने से ही ऊपर से लेकर 84 जन्मों का राज़ बुद्धि में आ
जाता है। यह भी बच्चों को समझाया है तुम जब ऊपर से आते हो तो वाया सूक्ष्मवतन से नहीं
आते हो। अभी वाया सूक्ष्मवतन होकर जाना है। सूक्ष्मवतन बाबा अभी ही दिखाते हैं।
सतयुग-त्रेता में इस ज्ञान की बात भी नहीं रहती है। न कोई चित्र आदि हैं। भक्ति
मार्ग में तो अथाह चित्र हैं। देवियों आदि की पूजा भी बहुत होती है। दुर्गा, काली,
सरस्वती है तो एक ही परन्तु नाम कितने रख दिये हैं। जो अच्छा पुरूषार्थ करते होंगे,
अनन्य होंगे उनकी पूजा भी जास्ती होगी। तुम जानते हो हम ही पूज्य से पुजारी बन बाबा
की और अपनी पूजा करते हैं। यह (बाबा) भी नारायण की पूजा करते थे ना। वन्डरफुल खेल
है। जैसे नाटक देखने से खुशी होती है ना, वैसे यह भी बेहद का नाटक है, इनको कोई भी
जानते नहीं। तुम्हारी बुद्धि में अब सारा ड्रामा का राज़ है। इस दुनिया में कितने
अथाह दु:ख हैं। तुम जानते हो अभी बाकी थोड़ा समय है, हम जा रहे हैं नई दुनिया में।
भविष्य की खुशी रहती है तो वह इस दु:ख को उड़ा देती है। लिखते हैं बाबा बहुत विघ्न
पड़ते हैं, घाटा पड़ जाता है। बाप कहते हैं कुछ भी विघ्न आयें, आज लखपति हो, कल
कखपति बन जाते हो। तुमको तो भविष्य की खुशी में रहना है ना। यह है ही रावण की आसुरी
दुनिया। चलते-चलते कोई न कोई विघ्न पड़ेगा। इस दुनिया में बाकी थोड़े दिन हैं फिर
हम अथाह सुखों में जायेंगे। बाबा कहते हैं ना - कल सांवरा था, गांवड़े का छोरा था,
अभी बाप हमको नॉलेज दे गोरा बना रहे हैं। तुम जानते हो बाप बीजरूप है, सत है,
चैतन्य है। उनको सुप्रीम सोल कहा जाता है। वह ऊंच ते ऊंच रहने वाले हैं, पुनर्जन्म
में नहीं आते हैं। हम सब जन्म-मरण में आते हैं, वह रिजर्वड हैं। उनको तो अन्त में
आकर सबकी सद्गति करनी है। तुम भक्ति मार्ग में जन्म-जन्मान्तर गाते आये हो - बाबा
आप आयेंगे तो हम आपके ही बनेंगे। मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई। हम बाबा के साथ ही
जायेंगे। यह है दु:ख की दुनिया। कितना गरीब है भारत। बाप कहते हैं मैंने भारत को ही
साहूकार बनाया था फिर रावण ने नर्क बनाया है। अभी तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो।
गृहस्थ व्यवहार में भी तो बहुत ही रहते हैं। सबको यहाँ तो नहीं बैठना है। गृहस्थ
व्यवहार में रहो, भल रंगीन कपड़े पहनो, कौन कहता है सफेद कपड़े पहनो। बाबा ने कभी
किसको कहा नहीं है। तुमको अच्छा नहीं लगता है तब सफेद कपड़े पहने हैं। यहाँ तुम भल
सफेद वस्त्र पहनकर रहते हो, लेकिन रंगीन कपड़े पहनने वाले, उस ड्रेस में भी बहुतों
का कल्याण कर सकते हैं। मातायें अपने पति को भी समझाती हैं - भगवानुवाच है पवित्र
बनना है। देवतायें पवित्र हैं तब तो उनको माथा टेकते हैं। पवित्र बनना तो अच्छा है
ना। अभी तुम जानते हो सृष्टि का अन्त है। जास्ती पैसे क्या करेंगे। आजकल कितने डाके
लगते हैं, रिश्वतखोरी कितनी लगी पड़ी है। यह अभी के लिए गायन है - किनकी दबी रही
धूल में....... सफली होगी उसकी, जो धनी के नाम खर्चे. . . धनी तो अभी सम्मुख है।
समझदार बच्चे अपना सब कुछ धनी के नाम पर सफल कर लेते हैं।
मनुष्य तो सब पतित-पतितों को दान करते हैं। यहाँ तो पुण्य आत्माओं का दान लेना
है। सिवाए ब्राह्मणों के और कोई से कनेक्शन नहीं है। तुम हो पुण्य आत्मायें। तुम
पुण्य का ही काम करते हो। यह मकान बनाते हैं, वह भी तुम ही रहते हो। पाप की तो कोई
बात नहीं। जो कुछ पैसे हैं - भारत को स्वर्ग बनाने के लिए खर्च करते रहते हैं। अपने
पेट को भी पट्टी बांधकर कहते - बाबा, हमारी एक ईट भी इसमें लगा दो तो वहाँ हमको महल
मिल जायेंगे। कितने समझदार बच्चे हैं। पत्थरों के एवज में सोना मिलता है। समय ही
बाकी थोड़ा है। तुम कितनी सर्विस करते हो। प्रदर्शनी मेले बढ़ते जाते हैं। सिर्फ
बच्चियां तीखी हो जाएं। बेहद के बाप का बनती नहीं हैं, मोह छोड़ती नहीं हैं। बाप
कहते हैं हमने तुमको स्वर्ग में भेजा था, अब फिर तुमको स्वर्ग के लिए तैयार कर रहे
हैं। अगर श्रीमत पर चलेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। यह बातें और कोई समझा न सके। सारा
सृष्टि चक्र तुम्हारी बुद्धि में है - मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूलवतन। बाप कहते
हैं - बच्चे, स्वदर्शन चक्रधारी बनो, औरों को भी समझाते रहो। यह धन्धा देखो कैसा
है। खुद ही धनवान, स्वर्ग का मालिक बनना है, औरों को भी बनाना है। बुद्धि में यही
रहना चाहिए - किसको रास्ता कैसे बतायें? ड्रामा अनुसार जो पास्ट हुआ वह ड्रामा।
सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो होता है, उनको हम साक्षी हो देखते हैं। बच्चों को बाप दिव्य
दृष्टि से साक्षात्कार भी कराते हैं। आगे चल तुम बहुत साक्षात्कार करेंगे। मनुष्य
दु:ख में त्राहि-त्राहि करते रहेंगे, तुम खुशी में ताली बजाते रहेंगे। हम मनुष्य से
देवता बनते हैं तो जरूर नई दुनिया चाहिए। उसके लिये यह विनाश खड़ा है। यह तो अच्छा
है ना। मनुष्य समझते हैं आपस में लड़े नहीं, पीस हो जाए। बस। परन्तु यह तो ड्रामा
में नूँध है। दो बन्दर आपस में लड़े, मक्खन बीच में तीसरे को मिल गया। तो अब बाप
कहते हैं - मुझ बाप को याद करो और सभी को रास्ता बताओ। रहना भी साधारण है, खाना भी
साधारण है। कभी-कभी खातिरी भी की जाती है। जिस भण्डारे से खाया, कहते हैं बाबा यह
सब आपका है। बाप कहते हैं ट्रस्टी होकर सम्भालो। बाबा सब कुछ आपका दिया हुआ है।
भक्ति मार्ग में सिर्फ कहने मात्र कहते थे। अभी मैं तुमको कहता हूँ ट्रस्टी बनो। अभी
मैं सम्मुख हूँ। मैं भी ट्रस्टी बन फिर तुमको ट्रस्टी बनाता हूँ। जो कुछ करो पूछ कर
करो। बाबा हर बात में राय देते रहेंगे। बाबा मकान बनाऊं, यह करूं, बाबा कहेंगे भल
करो। बाकी पाप आत्माओं को नहीं देना है। बच्ची अगर ज्ञान में नहीं चलती है, शादी
करना चाहती है तो कर ही क्या सकते हैं। बाप तो समझाते हैं तुम क्यों अपवित्र बनती
हो, परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो पतित बन पड़ते हैं। अनेक प्रकार के केस भी
होते रहते हैं। पवित्र रहते भी माया का थप्पड़ लग जाता है, खराब हो पड़ते हैं। माया
बड़ी प्रबल है। वह भी काम वश हो जाते हैं, फिर कहा जाता है ड्रामा की भावी। इस घड़ी
तक जो कुछ हुआ कल्प पहले भी हुआ था। नथिंगन्यु। अच्छा काम करने में विघ्न डालते
हैं, नई बात नहीं। हमको तो तन-मन-धन से भारत को जरूर स्वर्ग बनाना है। सब कुछ बाप
पर स्वाहा करेंगे। तुम बच्चे जानते हो - हम श्रीमत पर इस भारत की रूहानी सेवा कर रहे
हैं। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम अपना राज्य फिर से स्थापन कर रहे हैं। बाप कहते
हैं यह रूहानी हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी तीन पैर पृथ्वी में खोल दो, जिससे मनुष्य
एवरहेल्दी वेल्दी बनें। 3 पैर पृथ्वी के भी कोई देते नहीं हैं। कहते हैं बी.के. जादू
करेंगी, बहन-भाई बनायेंगी। तुम्हारे लिए ड्रामा में युक्ति बड़ी अच्छी रखी हुई है।
बहन-भाई कुदृष्टि रख नहीं सकते। आजकल तो दुनिया में इतना गंद है, बात मत पूछो। तो
जैसे बाप को तरस पड़ा है, ऐसे तुम बच्चों को भी पड़ना चाहिए। जैसे बाप नर्क को
स्वर्ग बना रहे हैं, ऐसे तुम रहमदिल बच्चों को भी बाप का मददगार बनना है। पैसा है
तो हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोलते जाओ। इसमें जास्ती खर्चे की तो कोई बात ही नहीं
है। सिर्फ चित्र रख दो। जिन्होंने कल्प पहले ज्ञान लिया होगा, उनका ताला खुलता
जायेगा। वह आते रहेंगे। कितने बच्चे दूर-दूर से आते हैं पढ़ने लिए। बाबा ने ऐसे भी
देखे हैं, रात को एक गांव से आते हैं, सवेरे सेन्टर पर आकर झोली भरकर जाते हैं। झोली
ऐसी भी न हो जो बहता रहे। वह फिर क्या पद पायेंगे! तुम बच्चों को तो बहुत खुशी होनी
चाहिए। बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं, बेहद का वर्सा देने। कितना सहज ज्ञान है। बाप
समझते हैं जो बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं उन्हें पारसबुद्धि बनाना है। बाबा को तो बड़ी
खुशी रहती है। यह गुप्त है ना। ज्ञान भी है गुप्त। मम्मा-बाबा यह लक्ष्मी-नारायण
बनते हैं तो हम फिर कम बनेंगे क्या! हम भी सर्विस करेंगे। तो यह नशा रहना चाहिए। हम
अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं योगबल से। अभी हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं। वहाँ
फिर यह ज्ञान नहीं रहेगा। यह ज्ञान अभी के लिए है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) समझदार बन अपना सब कुछ धणी के नाम पर सफल करना है। पतितों को दान नहीं
करना है। सिवाए ब्राह्मणों के और कोई से भी कनेक्शन नहीं रखना है।
2) बुद्धि रूपी झोली में कोई ऐसा छेद न हो जो ज्ञान बहता रहे। बेहद का बाप बेहद
का वर्सा देने के लिए पढ़ा रहे हैं, इस गुप्त खुशी में रहना है। बाप समान रहमदिल
बनना है।
वरदान:-
सम्पन्नता
द्वारा सन्तुष्टता का अनुभव करने वाले सदा हर्षित, विजयी भव
जो सर्व खजानों से सम्पन्न
है वही सदा सन्तुष्ट है। सन्तुष्टता अर्थात् सम्पन्नता। जैसे बाप सम्पन्न है इसलिए
महिमा में सागर शब्द कहते हैं, ऐसे आप बच्चे भी मास्टर सागर अर्थात् सम्पन्न बनो तो
सदा खुशी में नाचते रहेंगे। अन्दर खुशी के सिवाए और कुछ आ नहीं सकता। स्वयं सम्पन्न
होने के कारण किसी से भी तंग नहीं होंगे। किसी भी प्रकार की उलझन या विघ्न एक खेल
अनुभव होगा, समस्या मनोरंजन का साधन बन जायेगी। निश्चयबुद्धि होने के कारण सदा
हर्षित और विजयी होंगे।
स्लोगन:-
नाज़ुक
परिस्थितियों से घबराओ नहीं, उनसे पाठ पढ़कर स्वयं को परिपक्व बनाओ।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य “परमात्मा गुरु, टीचर, पिता के रूप में भिन्न-भिन्न सम्बन्ध का वर्सा
देता है''
देखो, परमात्मा
तीन रूप धारण कर वर्सा देता है। वह हमारा बाप भी है, टीचर भी है तो गुरू भी है। अब
पिता के साथ पिता का सम्बन्ध है, टीचर के साथ टीचर का सम्बन्ध है, गुरू से गुरुपने
का सम्बन्ध है। अगर पिता से फारकती ले ली तो वर्सा कैसे मिलेगा? जब पास होकर टीचर
द्वारा सर्टीफिकेट लेंगे तब टीचर का साथ मिलेगा। अगर बाप का वफादार, फरमानदार बच्चा
हो डायरेक्शन पर नहीं चले तो भविष्य प्रालब्ध नहीं बनेंगी। फिर पूर्ण सद्गति को भी
नहीं प्राप्त कर सकेंगे, न फिर बाप से पवित्रता का वर्सा ले सकेंगे। परमात्मा की
प्रतिज्ञा है अगर तुम तीव्र पुरुषार्थ करोगे तो तुमको 100 गुना फायदा दे दूँगा।
सिर्फ कहने मात्र नहीं, उनके साथ सम्बन्ध भी गहरा चाहिए। अर्जुन को भी हुक्म किया
था कि सबको मारो, निरन्तर मेरे को याद करो। परमात्मा तो समर्थ है, सर्वशक्तिवान है,
वो अपने वायदे को अवश्य निभायेगा, मगर बच्चे भी जब बाप के साथ तोड़ निभायेंगे, जब
सबसे बुद्धियोग तोड़ एक परमात्मा से जोड़ेंगे तब ही उनसे सम्पूर्ण वर्सा मिलेगा।
अव्यक्त इशारे -
सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
जोश में आकर यदि
कोई सत्य को सिद्ध करता है तो जरूर उसमें कुछ न कुछ असत्यता समाई हुई है। कई बच्चों
की भाषा हो गई है - मैं बिल्कुल सच बोलता हूँ, 100 परसेन्ट सत्य बोलता हूँ लेकिन
सत्य को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। सत्य ऐसा सूर्य है जो छिप नहीं सकता, चाहे
कितनी भी दीवारें कोई आगे लाये लेकिन सत्यता का प्रकाश कभी छिप नहीं सकता। सभ्यता
पूर्वक बोल, सभ्यता पूर्वक चलन, इसमें ही सफलता होती है।