ओम् शान्ति।
भगवानुवाच, आत्म-अभिमानी भव - पहले-पहले जरूर कहना पड़े। यह है बच्चों के लिए
सावधानी। बाप कहते हैं कि हम बच्चे-बच्चे कहते हैं तो आत्माओं को ही देखता हूँ,
शरीर तो पुरानी जुत्ती है। यह सतोप्रधान बन नहीं सकता। सतोप्रधान शरीर तो सतयुग में
ही मिलेगा। अभी तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान बन रही है। शरीर तो वही पुराना है। अभी
तुमको अपनी आत्मा को सुधारना है। पवित्र बनना है। सतयुग में शरीर भी पवित्र मिलेगा।
आत्मा को शुद्ध करने के लिए एक बाप को याद करना होता है। बाप भी आत्मा को देखते
हैं। सिर्फ देखने से आत्मा शुद्ध नहीं बनेगी। वह तो जितना बाप को याद करेंगे उतना
शुद्ध होते जायेंगे। यह तो तुम्हारा काम है। बाप को याद करते-करते सतोप्रधान बनना
है। बाप तो आया ही है रास्ता बताने। यह शरीर तो अन्त तक पुराना ही रहेगा। यह तो
सिर्फ कर्मेन्द्रियां हैं, जिससे आत्मा का कनेक्शन है। आत्मा गुल-गुल बन जाती है
फिर कर्तव्य भी अच्छे करती है। वहाँ पंछी जानवर भी अच्छे-अच्छे रहते हैं। यहाँ
चिड़िया मनुष्यों को देख भागती है, वहाँ तो ऐसे अच्छे-अच्छे पंछी तुम्हारे आगे-पीछे
घूमते फिरते रहेंगे वह भी कायदेसिर। ऐसे नहीं घर के अन्दर घुस आयेंगे, गंद करके
जायेंगे। नहीं, बहुत कायदे की दुनिया होती है। आगे चल तुमको सब साक्षात्कार होते
रहेंगे। अभी मार्जिन तो बहुत पड़ी है। स्वर्ग की महिमा तो अपरमअपार है। बाप की महिमा
भी अपरमअपार है, तो बाप के प्रापर्टी की महिमा भी अपरमअपार है। बच्चों को कितना नशा
चढ़ना चाहिए। बाप कहते हैं मैं उन आत्माओं को याद करता हूँ, जो सर्विस करते हैं वह
ऑटोमेटिकली याद आते हैं। आत्मा में मन-बुद्धि है ना। समझते हैं कि हम फर्स्ट नम्बर
की सर्विस करते या सेकण्ड नम्बर की करते हैं। यह सब नम्बरवार समझते हैं। कोई तो
म्युजियम बनाते हैं, प्रेजीडेण्ट, गवर्नर आदि के पास जाते हैं। जरूर अच्छी रीति
समझाते होंगे। सबमें अपना-अपना गुण है। कोई में अच्छे गुण होते हैं तो कहा जाता है
यह कितना गुणवान है। जो सर्विसएबुल होंगे वह सदैव मीठा बोलेंगे। कड़ुवा कभी बोल नहीं
सकेंगे। जो कड़ुवा बोलने वाले हैं उनमें भूत है। देह-अभिमान है नम्बरवन, फिर उनके
पीछे और भूत प्रवेश करते हैं।
मनुष्य बद-चलन भी बहुत चलते हैं। बाप कहते हैं इन बिचारों का दोष नहीं है। तुमको
मेहनत ऐसी करनी है जैसे कल्प पहले की है, अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो फिर
आहिस्ते-आहिस्ते सारे विश्व की डोर तुम्हारे हाथों में आने वाली है। ड्रामा का चक्र
है, टाइम भी ठीक बताते हैं। बाकी बहुत कम समय बचा है। वो लोग आजादी देते हैं तो दो
टुकड़ा कर देते हैं, आपस में लड़ते रहें। नहीं तो उन्हों का बारूद आदि कौन लेगा। यह
भी उन्हों का व्यापार है ना। ड्रामा अनुसार यह भी उन्हों की चालाकी है। यहाँ भी
टुकड़े-टुकड़े कर दिया है। वह कहते यह टुकड़ा हमको मिले, पूरा बंटवारा नहीं किया गया
है, इस तरफ पानी जास्ती जाता है, खेती बहुत होती है, इस तरफ पानी कम है। आपस में लड़
पड़ते हैं, फिर सिविलवार हो पड़ती है। झगड़े तो बहुत होते हैं। तुम जब बाप के बच्चे
बने हो तो तुम भी गाली खाते हो। बाबा ने समझाया था - अभी तुम कलंगीधर बनते हो। जैसे
बाबा गाली खाते हैं, तुम भी गाली खाते हो। यह तो जानते हो कि इन बिचारों को पता नहीं
है कि यह विश्व के मालिक बनते हैं। 84 जन्मों की बात तो बहुत सहज है। आपेही पूज्य,
आपेही पुजारी भी तुम बनते हो। कोई की बुद्धि में धारणा नहीं होती है, यह भी ड्रामा
में उनका ऐसा पार्ट है। कर क्या सकते हैं। कितना भी माथा मारो परन्तु ऊपर चढ़ नहीं
सकते हैं। तदबीर तो कराई जाती है लेकिन उनकी तकदीर में नहीं है। राजधानी स्थापन होती
है, उनमें सब चाहिए। ऐसा समझकर शान्त में रहना चाहिए। कोई से भी खिटपिट की बात नहीं।
प्यार से समझाना पड़ता है - ऐसे न करो। यह आत्मा सुनती है, इससे और ही पद कम हो
जायेगा। कोई-कोई को अच्छी बात समझाओ तो भी अशान्त हो पड़ते हैं, तो छोड़ देना चाहिए।
खुद भी ऐसा होगा तो एक-दो को तंग करता रहेगा। यह पिछाड़ी तक रहेगा। माया भी
दिन-प्रतिदिन कड़ी होती जाती है। महारथियों से माया भी महारथी होकर लड़ती है। माया
के त़ूफान आते हैं फिर प्रैक्टिस हो जाती है बाप को याद करने की, एकदम जैसे
अचल-अडोल रहते हैं। समझते हैं माया हैरान करेगी। डरना नहीं है। कलंगीधर बनने वालों
पर कलंक लगते हैं, इसमें नाराज़ नहीं होना चाहिए। अखबार वाले कुछ भी खिल़ाफ डालते
हैं क्योंकि पवित्रता की बात है। अबलाओं पर अत्याचार होंगे। अकासुर-बकासुर नाम भी
है। स्त्रियों का नाम भी पूतना, सूपनखा है।
अब बच्चे पहले-पहले महिमा भी बाप की सुनाते हैं। बेहद का बाप कहते हैं तुम आत्मा
हो। यह नॉलेज एक बाप के सिवाए कोई दे नहीं सकता। रचता और रचना का ज्ञान, यह है
पढ़ाई, जिससे तुम स्वदर्शन चक्रधारी बन चक्रवर्ती राजा बनते हो। अलंकार भी तुम्हारे
हैं परन्तु तुम ब्राह्मण पुरूषार्थी हो इसलिए यह अलंकार विष्णु को दे दिया है। यह
सब बातें - आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, कोई भी बता नहीं सकते। आत्मा कहाँ से
आई, निकल कैसे जाती, कभी कहते हैं आंखों से निकली, कभी कहते हैं भ्रकुटी से निकली,
कभी कहते हैं माथे से निकल गई। यह तो कोई जान नहीं सकता। अभी तुम जानते हो - आत्मा
शरीर ऐसे छोड़ेगी, बैठे-बैठे बाप की याद में देह का त्याग कर देंगे। बाप के पास तो
खुशी से जाना है। पुराना शरीर खुशी से छोड़ना है। जैसे सर्प का मिसाल है। जानवरों
में भी जो अक्ल है, वह मनुष्यों में नहीं है। वह संन्यासी आदि तो सिर्फ दृष्टांत
देते हैं। बाप कहते हैं तुमको ऐसा बनना है जैसे भ्रमरी कीड़े को ट्रांसफर कर देती
है, तुमको भी मनुष्य रूपी कीड़े को ट्रांसफर कर देना है। सिर्फ दृष्टान्त नहीं देना
है लेकिन प्रैक्टिकल करना है। अब तुम बच्चों को वापिस घर जाना है। तुम बाप से वर्सा
पा रहे हो तो अन्दर में खुशी होनी चाहिए। वह तो वर्से को जानते ही नहीं। शान्ति तो
सबको मिलती है, सब शान्तिधाम में जाते हैं। सिवाए बाप के कोई भी सर्व की सद्गति नहीं
करते। यह भी समझाना होता है, तुम्हारा निवृत्ति मार्ग है, तुम तो ब्रह्म में लीन
होने का पुरूषार्थ करते हो। बाप तो प्रवृत्ति मार्ग बनाते हैं। यह बहुत गुह्य बात
है। पहले तो कोई को अलफ-बे ही पढ़ाना पड़ता है। बोलो तुमको दो बाप हैं - हद का और
बेहद का। हद के बाप के पास जन्म लेते हो विकार से। कितने अपार दु:ख मिलते हैं।
सतयुग में तो अपार सुख हैं। वहाँ तो जन्म ही मक्खन मिसल होता है। कोई दु:ख की बात
नहीं। नाम ही है स्वर्ग। बेहद के बाप से बेहद की बादशाही का वर्सा मिलता है। पहले
है सुख, पीछे है दु:ख। पहले दु:ख फिर सुख कहना रांग है। पहले नई दुनिया स्थापन होती
है, पुरानी थोड़ेही स्थापन होती है। पुराना मकान कभी कोई बनाते हैं क्या। नई दुनिया
में तो रावण हो न सके। यह भी बाप समझाते हैं तो बुद्धि में युक्तियां हों। बेहद का
बाप बेहद का सुख देते हैं। कैसे देते हैं आओ तो समझायें। कहने की भी युक्ति चाहिए।
दु:खधाम के दु:खों का भी तुम साक्षात्कार कराओ। कितने अथाह दु:ख हैं, अपरम्पार हैं।
नाम ही है दु:खधाम। इनको सुखधाम कोई कह नहीं सकता। सुखधाम में श्रीकृष्ण रहते हैं।
श्रीकृष्ण के मन्दिर को भी सुखधाम कहते हैं। वह सुखधाम का मालिक था, जिसकी मन्दिरों
में अभी पूजा होती है। अभी यह बाबा लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे तो कहेंगे
ओहो! यह तो हम बनते हैं। इनकी पूजा थोड़ेही करेंगे। नम्बरवन बनते हैं तो फिर सेकण्ड
थर्ड की पूजा क्यों करें। हम तो सूर्यवंशी बनते हैं। मनुष्यों को थोड़ेही पता है।
वह तो सबको भगवान् कहते रहते हैं। अंधकार कितना है। तुम कितना अच्छी रीति समझाते
हो। टाइम लगता है। जो कल्प पहले लगा था, जल्दी कुछ भी कर नहीं सकते। हीरे जैसा जन्म
तुम्हारा यह अभी का है। देवताओं का भी हीरे जैसा जन्म नहीं कहेंगे। वह कोई ईश्वरीय
परिवार में थोड़ेही हैं। यह है तुम्हारा ईश्वरीय परिवार। वह है दैवी परिवार। कितनी
नई-नई बातें हैं। गीता में तो आटे में नमक मिसल है। कितनी भूल कर दी है - श्रीकृष्ण
का नाम डालकर। बोलो, तुम देवताओं को तो देवता कहते हो फिर श्रीकृष्ण को भगवान् क्यों
कहते हो। विष्णु कौन है? यह भी तुम समझते हो। मनुष्य तो बिगर ज्ञान के ऐसे ही पूजा
करते रहते हैं। प्राचीन भी देवी-देवता हैं जो स्वर्ग में होकर गये हैं। सतो, रजो,
तमो में सबको आना है। इस समय सब तमोप्रधान हैं। बच्चों को प्वाइंट्स तो बहुत समझाते
हैं। बैज़ पर भी तुम अच्छा समझा सकते हो। बाप और पढ़ाने वाले टीचर को याद करना पड़े।
परन्तु माया की भी कितनी कशमकशा चलती है। बहुत अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स निकलती रहती
हैं। अगर सुनेंगे नहीं तो सुना कैसे सकेंगे। अक्सर करके बाहर में बड़े महारथी
इधर-उधर जाते हैं तो मुरली मिस कर देते हैं, फिर पढ़ते नहीं। पेट भरा हुआ है। बाप
कहते हैं कितनी गुह्य-गुह्य बातें तुमको सुनाता हूँ, जो सुनकर धारण करना है। धारणा
नहीं होगी तो कच्चे रह जायेंगे। बहुत बच्चे भी विचार सागर मंथन कर अच्छी-अच्छी
प्वाइंट्स सुनाते हैं। बाबा देखते हैं, सुनते हैं जैसी-जैसी अवस्था ऐसी-ऐसी
प्वाइंट्स निकाल सकते हैं। जो कभी इसने नहीं सुनाई है वह सर्विसएबुल बच्चे निकालते
हैं। सर्विस पर ही लगे रहते हैं। मैगज़ीन में भी अच्छी प्वाइंट्स डालते हैं।
तो तुम बच्चे विश्व का मालिक बनते हो। बाप कितना ऊंच बनाते हैं, गीत में भी है
ना सारे विश्व की बागड़ोर तुम्हारे हाथ में होगी। कोई छीन न सके। यह लक्ष्मी-नारायण
विश्व के मालिक थे ना। उन्हों को पढ़ाने वाला जरूर बाप ही होगा। यह भी तुम समझा सकते
हो। उन्होंने राज्य पद पाया कैसे? मन्दिर के पुजारी को पता नहीं। तुमको तो अथाह खुशी
होनी चाहिए। यह भी तुम समझा सकते हो ईश्वर सर्वव्यापी नहीं। इस समय तो 5 भूत
सर्वव्यापी हैं। एक-एक में यह विकार हैं। माया के 5 भूत हैं। माया सर्वव्यापी है।
तुम फिर ईश्वर सर्वव्यापी कह देते हो। यह तो भूल है ना। ईश्वर सर्वव्यापी हो कैसे
सकता। वह तो बेहद का वर्सा देते हैं। कांटों को फूल बनाते हैं। समझाने की प्रैक्टिस
भी बच्चों को करनी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जब कोई अशान्ति फैलाते हैं या तंग करते हैं तो तुम्हें शान्त रहना
है। अगर समझानी मिलते हुए भी कोई अपना सुधार नहीं कर सकते तो कहेंगे इनकी तकदीर
क्योंकि राजधानी स्थापन हो रही है।
2) विचार सागर मंथन कर ज्ञान की नई-नई प्वाइंट्स निकाल सर्विस करनी है। बाप मुरली
में रोज़ जो गुह्य बातें सुनाते हैं, वह कभी मिस नहीं करनी है।