03-11-2024     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 25.10.2002 "बापदादा"    मधुबन


“ब्राह्मण जीवन का आधार - प्युरिटी की रॉयल्टी"


आज स्नेह का सागर अपने स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। चारों ओर के स्नेही बच्चे रूहानी सूक्ष्म डोरी में बंधे हुए अपने स्वीट होम में पहुंच गये हैं। जैसे बच्चे स्नेह से खिंचकर पहुंच गये हैं वैसे बाप भी बच्चों के स्नेह की डोर में बंधा हुआ बच्चों के सम्मुख पहुंच गये हैं। बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर के बच्चे भी दूर बैठे भी स्नेह में समाये हुए हैं। सम्मुख के बच्चों को भी देख रहे हैं और दूर बैठे हुए बच्चों को भी देख देख हर्षित हो रहे हैं। ये रूहानी अविनाशी स्नेह, परमात्म स्नेह, आत्मिक स्नेह सारे कल्प में अभी अनुभव कर रहे हो।

बापदादा हर एक बच्चे की पवित्रता की रॉयल्टी देख रहे हैं। ब्राह्मण जीवन की रॉयल्टी है ही प्युरिटी। तो हर एक बच्चे के सिर पर रूहानी रॉयल्टी की निशानी प्युरिटी की लाइट का ताज देख रहे हैं। आप सभी भी अपने प्युरिटी का ताज, रूहानी रॉयल्टी का ताज देख रहे हो? पीछे वाले भी देख रहे हो? कितनी शोभनिक ताजधारी सभा है। है ना पाण्डव? ताज चमक रहा है ना! ऐसी सभा देख रहे हो ना! कुमारियां, ताजधारी कुमारियां हो ना! बापदादा देख रहे हैं कि बच्चों की रॉयल फैमिली कितनी श्रेष्ठ है! अपने अनादि रॉयल्टी को याद करो, जब आप आत्मायें परमधाम में भी रहती हो तो आत्मा रूप में भी आपकी रूहानी रॉयल्टी विशेष है। सर्व आत्मायें भी लाइट रूप में हैं लेकिन आपकी चमक सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है। याद आ रहा है परमधाम? अनादि काल से आपकी झलक फलक न्यारी है। जैसे आकाश में देखा होगा सितारे सभी चमकते हैं, सब लाइट ही हैं लेकिन सर्व सितारों में कोई विशेष सितारों की चमक न्यारी और प्यारी होती है। ऐसे ही सर्व आत्माओं के बीच आप आत्माओं की चमक रूहानी रॉयल्टी, प्युरिटी की चमक न्यारी है। याद आ रहा है ना? फिर आदिकाल में आओ, आदिकाल को याद करो तो आदिकाल में भी देवता स्वरूप में रूहानी रॉयल्टी की पर्सनालिटी कितनी विशेष रही? सारे कल्प में देवताई स्वरूप की रॉयल्टी और किसी की रही है? रूहानी रॉयल्टी, प्युरिटी की पर्सनाल्टी याद है ना! पाण्डवों को भी याद है? याद आ गया? फिर मध्य-काल में आओ तो मध्यकाल द्वापर से लेकर आपके जो पूज्य चित्र बनाते हैं, उन चित्रों की रॉयल्टी और पूजा की रॉयल्टी द्वापर से अभी तक किसी चित्र की है? चित्र तो बहुतों के हैं लेकिन ऐसे विधि पूर्वक पूजा और किसी आत्माओं की है? चाहे धर्म पितायें हैं, चाहे नेतायें हैं, चाहे अभिनेतायें हैं, चित्र तो सबके बनते लेकिन चित्रों की रॉयल्टी और पूजा की रॉयल्टी किसी की देखी है? डबल फारेनर्स ने अपनी पूजा देखी है? आप लोगों ने देखी है या सिर्फ सुना है? ऐसे विधिपूर्वक पूजा और चित्रों की चमक, रूहानियत और किसकी भी नहीं हुई है, न होगी। क्यों? प्युरिटी की रॉयल्टी है। प्युरिटी की पर्सनाल्टी है। अच्छा देख लिया अपनी पूजा? नहीं देखी हो तो देख लेना। अभी लास्ट में संगमयुग पर आओ तो संगम पर भी सारे विश्व के अन्दर प्युरिटी की रॉयल्टी ब्राह्मण जीवन का आधार है। प्युरिटी नहीं तो प्रभु प्यार का अनुभव भी नहीं। सर्व परमात्म प्राप्तियों का अनुभव नहीं। ब्राह्मण जीवन की पर्सनाल्टी प्युरिटी है और प्युरिटी ही रूहानी रॉयल्टी है। तो आदि अनादि, आदि मध्य और अन्त सारे कल्प में यह रूहानी रॉयल्टी चलती रही है।

तो अपने आपको देखो - दर्पण तो आप सबके पास है ना? दर्पण है? देख सकते हो? तो देखो। हमारे अन्दर प्युरिटी की रॉयल्टी कितने परसेन्ट में है? हमारे चेहरे से प्युरिटी की झलक दिखाई देती है? चलन में प्युरिटी की फलक दिखाई देती है? फलक अर्थात् नशा। चलन में वह फलक अर्थात् रूहानी नशा दिखाई देता है? देख लिया अपने को? देखने में कितना समय लगता है? सेकण्ड ना? तो सभी ने देखा अपने को?

कुमारियां:- झलक फलक है? अच्छा है, सभी उठो, खड़े हो जाओ। (कुमारियां लाल पट्टा लगाकर बैठी हैं, जिस पर लिखा है एकव्रता) सुन्दर लगता है ना। एकव्रता का अर्थ ही है प्युरिटी की रॉयल्टी। तो एकव्रता का पाठ पक्का कर लिया है! वहाँ जाकर कच्चा नहीं कर लेना। और कुमार ग्रुप उठो। कुमारों का ग्रुप भी अच्छा है। कुमारों ने दिल में प्रतिज्ञा का पट्टा बांध लिया है, इन्होंने (कुमारियों ने) तो बाहर से भी बांध लिया है। प्रतिज्ञा का पट्टा बांधा है कि सदा अर्थात् निरन्तर प्युरिटी की पर्सनाल्टी में रहने वाले कुमार हैं। ऐसे हैं? बोलो, जी हाँ। ना जी या हाँ जी? या वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे थोड़ा-थोड़ा ढीला हो गया! ऐसे नहीं करना। जब तक ब्राह्मण जीवन में जीना है तब तक सम्पूर्ण पवित्र रहना ही है। ऐसा वायदा है? पक्का वायदा है तो हाथ हिलाओ। टी.वी. में आपके फोटो निकल रहे हैं। जो ढीला होगा ना उसको यह चित्र भेजेंग़े इसलिए ढीला नहीं होना, पक्का रहना। हाँ पक्के हैं, पाण्डव तो पक्के होते हैं। पक्के पाण्डव, बहुत अच्छा।

प्युरिटी की वृत्ति है - शुभ भावना, शुभ कामना। कोई कैसा भी हो लेकिन पवित्र वृत्ति अर्थात् शुभ भावना, शुभ कामना और पवित्र दृष्टि अर्थात् सदा हर एक को आत्मिक रूप में देखना वा फरिश्ता रूप में देखना। तो वृत्ति, दृष्टि और तीसरा है कृति अर्थात् कर्म में, तो कर्म में भी सदा हर आत्मा को सुख देना और सुख लेना। यह है प्युरिटी की निशानी। वृत्ति, दृष्टि और कृति तीनों में यह धारणा हो। कोई क्या भी करता है, दु:ख भी देता है, इन्सल्ट भी करता है, लेकिन हमारा कर्तव्य क्या है? क्या दु:ख देने वाले को फालो करना है या बापदादा को फालो करना है? फालो फादर है ना! तो ब्रह्मा बाप ने दु:ख दिया वा सुख दिया? सुख दिया ना! तो आप मास्टर ब्रह्मा अर्थात् ब्राह्मण आत्माओं को क्या करना है? कोई दु:ख देवे तो आप क्या करेंगे? दु:ख देंगे? नहीं देंगे? बहुत दु:ख देवे तो? बहुत गाली देवे, बहुत इनसल्ट करे, तो थोड़ा तो फील करेंगे या नहीं? कुमारियां फील करेंगी? थोड़ा। तो फालो फादर। यह सोचो मेरा कर्तव्य क्या है! उसका कर्तव्य देख अपना कर्तव्य नहीं भूलो। वह गाली दे रहा है, आप सहनशील देवी, सहनशील देव बन जाओ। आपकी सहनशीलता से गाली देने वाले भी आपको गले लगायेंगे। सहनशीलता में इतनी शक्ति है, लेकिन थोड़ा समय सहन करना पड़ता है। तो सहनशीलता के देव वा देवियां हो ना? हो? सदा यही स्मृति रखो - मैं सहनशील का देवता हूँ, मैं सहनशीलता की देवी हूँ। तो देवता अर्थात् देने वाला दाता, कोई गाली देता है, रिस्पेक्ट नहीं करता है तो किचड़ा है ना कि अच्छी चीज़ है? तो आप लेते क्यों हो? किचड़ा लिया जाता है क्या? कोई आपको किचड़ा देवे तो आप लेगें? नहीं लेंगे ना। तो रिस्पेक्ट नहीं करता, इन्सल्ट करता, गाली देता, आपको डिस्टर्ब करता, तो यह क्या है? अच्छी चीज़ें हैं। फिर आप लेते क्यों हो? थोड़ा-थोड़ा तो ले लेते हो, पीछे सोचते हो नहीं लेना था। तो अभी लेना नहीं। लेना अर्थात् मन में धारण करना, फील करना। तो अपने अनादिकाल, आदिकाल, मध्यकाल, संगम काल, सारे कल्प के प्युरिटी की रॉयल्टी, पर्सनाल्टी याद करो। कोई क्या भी करे आपकी पर्सनाल्टी को कोई छीन नहीं सकता। यह रूहानी नशा है ना? और डबल फारेनर्स को तो डबल नशा है ना! डबल नशा है ना? सब बात का डबल नशा। प्युरिटी का भी डबल नशा, सहनशील देवी-देवता बनने का भी डबल नशा। है ना डबल? सिर्फ अमर रहना। अमर भव का वरदान कभी नहीं भूलना।

अच्छा - जो प्रवृत्ति वाले हैं अर्थात् युगल, वैसे सिंगल रहते हैं, कहने में युगल आता है, वह उठो। खड़े हो जाओ। युगल तो बहुत हैं, कुमार, कुमारियां तो थोड़े हैं। कुमारों से तो युगल बहुत हैं। तो युगल मूर्त बापदादा ने आप सबको प्रवृत्ति में रहने के लिए डायरेक्शन क्यों दिया है? आपको युगल रहने की छुट्टी क्यों दी है? प्रवृत्ति में रहने की छुट्टी क्यों दी है, जानते हो? क्योंकि युगल रूप में रहते इन महामण्डलेश्वरों को पांव में झुकाना है। है इतनी हिम्मत? वह लोग कहते हैं कि साथ रहते पवित्र रहना मुश्किल है और आप क्या कहते हो? मुश्किल है या सहज है? (बहुत सहज है) पक्का है? या कभी इज़ी, कभी लेजी? इसलिए बापदादा ने ड्रामानुसार आप सबको दुनिया के आगे, विश्व के आगे एग्जैम्पुल बनाया है। चैलेन्ज करने के लिए। तो प्रवृत्ति में रहते भी निवृत्त, अपवित्रता से निवृत्त रह सकते हो? तो चैलेन्ज करने वाले हो ना? सभी चैलेन्ज करने वाले हो, थोड़ा-थोड़ा डरते तो नहीं हो, चैलेन्ज तो करें लेकिन पता नहीं क्या हो! तो चैलेन्ज करो विश्व को क्योंकि नई बात यही है कि साथ रहते भी स्वप्न मात्र भी अपवित्रता का संकल्प नहीं आये, यही संगमयुग के ब्राह्मण जीवन की विशेषता है। तो ऐसे विश्व के शोकेस में आप एग्जैम्पुल हो, सैम्पुल कहो एग्जैम्पुल कहो। आपको देख करके सबमें ताकत आयेगी हम भी बन सकते हैं। ठीक है ना? शक्तियां ठीक है? पक्के हो ना? कच्चे पक्के तो नहीं? पक्के। बापदादा भी आपको देख करके खुश है। मुबारक हो। देखो कितने हैं? बहुत अच्छे।

बाकी रही टीचर्स। टीचर्स के बिना तो गति नहीं। टीचर्स उठो। अच्छा - पाण्डव भी अच्छे-अच्छे हैं। वाह! टीचर्स की विशेषता है कि हर टीचर के फीचर से फ्यूचर दिखाई दे। या हर एक टीचर के फीचर्स से फरिश्ता स्वरूप दिखाई दे। ऐसे टीचर्स हो ना! आप फरिश्तों को देखकर और भी फरिश्ते बन जायें। देखो कितने टीचर्स हैं। फारेन ग्रुप में टीचर्स बहुत हैं। अभी तो थोड़े आये हैं। जो नहीं आये हैं उनको भी बापदादा याद कर रहे हैं। अच्छा है, अभी टीचर्स मिलकरके यह प्लैन बनाओ कि अपने चलन और चेहरे से बाप को प्रत्यक्ष कैसे करें? दुनिया वाले कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है और आप कहते हो नहीं है। लेकिन बापदादा कहते हैं कि अभी समय प्रमाण हर टीचर में बाप प्रत्यक्ष दिखाई दे तो सर्वव्यापी दिखाई देगा ना! जिसको देखे उसमें बाप ही दिखाई दे। आत्मा, परमात्मा के आगे छिप जाये और परमात्मा ही दिखाई दे। यह हो सकता है? अच्छा इसकी डेट क्या? डेट तो फिक्स होनी चाहिए ना? तो डेट कौन सी है इसकी? कितना समय चाहिए? (अब से चालू करेंगे) चालू करेंगे, अच्छी हिम्मत है, कितना समय चाहिए? 2002 तो चल रहा है अभी दो हजार कब तक? तो टीचर्स को यही अटेन्शन रखना है कि बस अभी बाप के अन्दर मैं समाई हुई दिखाई दूँ। मेरे द्वारा बाप दिखाई दे। प्लैन बनायेंगे ना! डबल विदेशी मीटिंग करने में तो होशियार हैं? अभी यह मीटिंग करना, इस मीटिंग के बिना जाना नहीं - कि कैसे हम एक एक से बाप दिखाई दे। अभी ब्रह्माकुमारियां दिखाई देती हैं, ब्रह्माकुमारियां बहुत अच्छी हैं लेकिन इनका बाबा कितना अच्छा है, वह देखें। तभी तो विश्व परिवर्तन होगा ना! तो डबल विदेशी इस प्लैन को प्रैक्टिकल शुरू करेंगे ना! करेंगे? पक्का। अच्छा। तो आपकी दादी है ना, उसकी आशा पूर्ण हो जायेगी। ठीक है ना? अच्छा।

देखो, डबल विदेशी कितने सेवाधारी हो, आपके कारण सबको यादप्यार मिल रहा है। बापदादा को भी डबल विदेशियों से ज्यादा तो नहीं कहेंगे लेकिन स्पेशल प्यार है। क्यों प्यार है? क्योंकि डबल विदेशी आत्मायें जो सेवा के निमित्त बन गये हैं, वह विश्व के कोने-कोने में बाप का सन्देश पहुंचाने के निमित्त बने हुए हैं। नहीं तो विदेश की आत्मायें चारों ओर की प्यासी रह जाती। अभी बाप को उल्हना तो नहीं मिलेगा ना कि भारत में आये, विदेश में क्यों नहीं सन्देश दिया। तो बाप का उल्हना पूरा करने के निमित्त बने हो। और जनक को तो उमंग बहुत है, कोई देश रह नहीं जावे। अच्छा है। बाप का उल्हना तो पूरा करेंगे ना! लेकिन आप (दादी जानकी) साथियों को थकाती बहुत हो। थकाती है ना! जयन्ती, थकाती नहीं है? लेकिन इस थकावट में भी मौज़ समाई हुई होती है। पहले लगता है कि यह बार-बार क्या है, लेकिन जब भाषण करके दुआयें ले आते हैं ना तो चेहरा बदल जाता है। अच्छा है, दोनों दादियों में उमंग-उत्साह बढ़ाने की विशेषता है। यह शान्त करके बैठ नहीं सकते। सेवा अभी रही हुई तो है ना? अगर नक्शा लेके देखो चाहे भारत में, चाहे विदेश में, अगर नक्शे में एक-एक स्थान पर राइट लगाते जाओ तो दिखाई देंगे कि अभी भी रहे हुए हैं इसलिए बापदादा खुश भी होते हैं और कहते भी हैं ज्यादा नहीं थकाओ। आप सब सेवा में खुश हो ना! अभी यह कुमारियां भी तो टीचर बनेंगी ना। जो टीचर हैं वह तो हैं ही लेकिन जो टीचर नहीं हैं वह टीचर बनके कोई न कोई सेन्टर सम्भालेंगी ना। हैण्ड्स बनेंगी ना! डबल विदेशी बच्चों को दोनों काम करने का अभ्यास तो है ही। जॉब भी करते हैं सेन्टर भी सम्भालते हैं, इसीलिए बापदादा डबल मुबारक भी देते हैं। अच्छा।

चारों ओर के अति स्नेही, अति समीप सदा आदिकाल से अब तक रॉयल्टी के अधिकारी, सदा अपने चेहरे और चलन से प्युरिटी की झलक दिखाने वाले, सदा स्वयं को सेवा और याद में तीव्र पुरुषार्थ द्वारा नम्बरवन बनने वाले, सदा बाप के समान सर्व शक्ति, सर्व गुण सम्पन्न स्वरूप में रहने वाले, ऐसे सर्व तरफ के हर एक बच्चे को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

विदेश की मुख्य टीचर्स बहिनों से:- सभी ने सेवा के प्लैन अच्छे-अच्छे बनाये हैं ना क्योंकि सेवा समाप्त हो तब आपका राज्य आये। तो सेवा का साधन भी आवश्यक है। लेकिन मन्सा भी हो, वाचा भी हो, साथ-साथ हो। सेवा और स्व-उन्नति दोनों ही साथ हों। ऐसी सेवा सफलता को समीप लाती है। तो सेवा के निमित्त तो हो ही और सभी अपने-अपने स्थान पर सेवा तो अच्छी कर ही रहे हो। बाकी अभी जो काम दिया है, उसका प्लैन बनाओ। उसके लिए क्या-क्या स्वयं में वा सेवा में वृद्धि चाहिए, एडीशन चाहिए वह प्लैन बनाओ। बाकी बापदादा सेवाधारियों को देख करके खुश तो होते ही हैं। सभी अच्छे सेवाकेन्द्र उन्नति को पा रहे हैं ना! उन्नति है ना? अच्छा है। अच्छा हो रहा है ना। हो रहा है और होता रहेगा। अभी सिर्फ जो अलग-अलग बिखरे हुए हैं, उनके संगठन करके उन्हों को पक्का करो। प्रैक्टिकल सबूत सबके आगे दिखाओ। चाहे कोई भी सेवा कर रहे हो, भिन्न-भिन्न प्लैन बनाते हो, कर भी रहे हो, अच्छे चल भी रहे हैं, अभी उन सभी का ग्रुप एक सामने लाओ। जो सेवा का सबूत सारे ब्राह्मण परिवार के सामने आ जाए। ठीक है ना! बाकी सभी अच्छे हो, अच्छे ते अच्छे हो। अच्छा। ओम् शान्ति।
 

वरदान:-
तीन स्मृतियों के तिलक द्वारा श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अचल-अडोल भव

बापदादा ने सभी बच्चों को तीन स्मृतियों का तिलक दिया है, एक स्व की स्मृति फिर बाप की स्मृति और श्रेष्ठ कर्म के लिए ड्रामा की स्मृति। जिन्हें यह तीनों स्मृतियां सदा हैं उनकी स्थिति भी श्रेष्ठ है। आत्मा की स्मृति के साथ बाप की स्मृति और बाप के साथ ड्रामा की स्मृति अति आवश्यक है क्योंकि कर्म में अगर ड्रामा का ज्ञान है तो नीचे ऊपर नहीं होंगे। जो भी भिन्न-भिन्न परिस्थितियां आती हैं, उसमें अचल-अडोल रहेंगे।

स्लोगन:-
दृष्टि को अलौकिक, मन को शीतल और बुद्धि को रहमदिल बनाओ।