ओम् शान्ति।
बाप बच्चों को ज्ञान और भक्ति पर समझाते हैं। यह तो बच्चे समझते हैं कि सतयुग में
भक्ति नहीं होती। ज्ञान भी सतयुग में नहीं मिलता। श्रीकृष्ण न भक्ति करते हैं, न
ज्ञान की मुरली बजाते हैं। मुरली माना ज्ञान देना। गायन है ना मुरली में जादू। तो
जरूर कोई जादू होगा ना। सिर्फ मुरली बजाना यह कॉमन बात है। फकीर लोग भी मुरली बजाते
हैं। इसमें तो ज्ञान का जादू है। अज्ञान को जादू नहीं कहेंगे। मनुष्य समझते हैं
श्रीकृष्ण मुरली बजाता था, उनकी बहुत महिमा करते हैं। बाप कहते हैं श्रीकृष्ण तो
देवता था। मनुष्य से देवता, देवता से मनुष्य, यह होता ही रहता है। दैवी सृष्टि भी
होती है तो मनुष्य सृष्टि भी होती है। इस ज्ञान से मनुष्य से देवता बनते हैं। जब
सतयुग है तो यह ज्ञान का वर्सा है। सतयुग में भक्ति होती नहीं। देवता जब मनुष्य बनते
हैं तब भक्ति शुरू होती है। मनुष्य को विकारी, देवताओं को निर्विकारी कहा जाता है।
देवताओं की सृष्टि को पवित्र दुनिया कहा जाता है। अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे
हो। देवताओं में फिर यह ज्ञान होगा नहीं। देवतायें सद्गति में हैं, ज्ञान चाहिए
दुर्गति वालों को। इस ज्ञान से ही दैवी गुण आते हैं। ज्ञान की धारणा वालों की चलन
देवताई होती है। कम धारणा वालों की चलन मिक्स होती है। आसुरी चलन तो नहीं कहेंगे।
धारणा नहीं तो हमारे बच्चे कैसे कहलायेंगे। बच्चे बाप को नहीं जानते तो बाप भी बच्चों
को कैसे जानेंगे। कितनी कच्ची-कच्ची गालियाँ बाप को देते हैं। भगवान को गाली देना
कितना खराब है। फिर जब वह ब्राह्मण बनते तो गाली देना बन्द हो जाता है। तो इस ज्ञान
का विचार सागर मंथन करना चाहिए। स्टूडेन्ट विचार सागर मंथन कर ज्ञान को उन्नति में
लाते हैं। तुमको यह ज्ञान मिलता है, उस पर अपना विचार सागर मंथन करने से अमृत
निकलेगा। विचार सागर मंथन नहीं होगा तो क्या मंथन होगा? आसुरी विचार मंथन, जिससे
किचड़ा ही निकलता है। अभी तुम ईश्वरीय स्टूडेन्ट हो। जानते हो मनुष्य से देवता बनने
की पढ़ाई बाप पढ़ा रहे हैं। देवता तो नहीं पढ़ायेंगे। देवताओं को कभी ज्ञान का सागर
नहीं कहा जाता है। बाप ही ज्ञान का सागर है। तो अपने से पूछना चाहिए हमारे में सभी
दैवी गुण हैं? अगर आसुरी गुण हैं तो उसे निकाल देना चाहिए तब ही देवता बनेंगे।
अभी तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुग पर। पुरूषोत्तम बन रहे हो तो वातावरण भी बहुत
अच्छा होना चाहिए। छी-छी बातें मुख से नहीं निकलनी चाहिए। नहीं तो कहा जायेगा कम
दर्जे का है। वातावरण से झट पता पड़ जाता है। मुख से वचन ही दु:ख देने वाले निकलते
हैं। तुम बच्चों को बाप का नाम बाला करना है। सदैव मुखड़ा हर्षित रहना चाहिए। मुख
से सदैव रत्न ही निकलें। यह लक्ष्मी-नारायण कितने हर्षितमुख हैं, इनकी आत्मा ने
ज्ञान रत्न धारण किये थे। मुख से यह रत्न निकाले थे। रत्न ही सुनते सुनाते थे। कितनी
खुशी रहनी चाहिए। अभी तुम जो ज्ञान रत्न लेते हो वह फिर सच्चे हीरे-जवाहरात बन जाते
हैं। 9 रत्नों की माला कोई हीरे-जवाहरात की नहीं, इन चैतन्य रत्नों की माला है।
मनुष्य लोग फिर वह रत्न समझ अंगूठियाँ आदि पहनते हैं। ज्ञान रत्नों की माला इस
पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही बनती है। यह रत्न ही 21 जन्मों के लिए मालामाल बना देते
हैं, जिसको कोई लूट न सके। यहाँ पहनो तो झट कोई लूट लेवे। तो अपने को बहुत-बहुत
समझदार बनाना है। आसुरी गुणों को निकालना है। आसुरी गुण वाले की शक्ल ही ऐसी हो जाती
है। क्रोध में तो लाल तांबा मिसल हो जाते हैं। काम विकार वाले तो एकदम काले मुँह
वाले बन जाते हैं। श्रीकृष्ण को भी काला दिखाते हैं ना। विकारों के कारण ही गोरे से
सांवरा बन गया। तुम बच्चों को हर एक बात का विचार सागर मंथन करना चाहिए। यह पढ़ाई
है बहुत धन पाने की। तुम बच्चों का सुना हुआ है, क्वीन विक्टोरिया का वजीर पहले
बहुत गरीब था। दीवा जलाकर पढ़ता था। परन्तु वह पढ़ाई कोई रत्न थोड़ेही हैं। नॉलेज
पढ़कर पूरा पोजीशन पा लेते हैं। तो पढ़ाई काम आई, न कि पैसा। पढ़ाई ही धन है। वह है
हद का, यह है बेहद का धन। अभी तुम समझते हो बाप हमको पढ़ाकर विश्व का मालिक बना देते
हैं। वहाँ तो धन कमाने के लिए पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे। वहाँ तो अभी के पुरूषार्थ से
अकीचार (अथाह) धन मिलता है। धन अविनाशी बन जाता है। देवताओं के पास बहुत धन था फिर
जब वाम मार्ग, रावण राज्य में आते हैं तो भी कितना धन था। कितने मन्दिर बनवाये। फिर
बाद में मुसलमानों ने लूटा। कितने धनवान थे। आजकल की पढ़ाई से इतना धनवान नहीं बन
सकते हैं। तो इस पढ़ाई से देखो मनुष्य क्या बन जाते हैं! गरीब से साहूकार। अभी भारत
देखो कितना गरीब है! नाम के साहूकार भी जो हैं, उनको तो फुर्सत ही नहीं। अपने धन,
पोजीशन का कितना अहंकार रहता है। इसमें अहंकार आदि मिट जाना चाहिए। हम आत्मा हैं,
आत्मा के पास धन-दौलत, हीरे-जवाहरात आदि कुछ भी नहीं हैं।
बाप कहते हैं मीठे बच्चे, देह सहित देह के सभी सम्बन्ध छोड़ो। आत्मा शरीर छोड़ती
है तो फिर साहूकारी आदि सब खत्म हो जाती है। फिर जब नयेसिर से पढ़े, धन कमाये तब
धनवान बनें या तो दान-पुण्य अच्छा किया होगा तो साहूकार के घर में जन्म लेंगे। कहते
हैं यह पास्ट कर्मों का फल है। नॉलेज का दान दिया है वा कॉलेज धर्मशाला आदि बनाई
है, तो उसका फल मिलता है परन्तु अल्पकाल के लिए। यह दान-पुण्य आदि भी यहाँ किया जाता
है। सतयुग में नहीं किया जाता है। सतयुग में अच्छे ही कर्म होते हैं, क्योंकि अभी
का वर्सा मिला हुआ है। वहाँ कोई भी कर्म विकर्म नहीं बनेगा क्योंकि रावण ही नहीं।
विकार में जाने से विकारी कर्म बन जाते हैं। विकार से विकर्म बनते हैं। स्वर्ग में
विकर्म कोई होता नहीं। सारा मदार कर्मों पर है। यह माया रावण अवगुणी बनाता है। बाप
आकर सर्वगुण सम्पन्न बनाते हैं। राम वंशी और रावण वंशी की युद्ध चलती है। तुम राम
के बच्चे हो, कितने अच्छे-अच्छे बच्चे माया से हार खा लेते हैं। बाबा नाम नहीं
बतलाते हैं, फिर भी उम्मीद रखते हैं। अधम ते अधम का उद्धार करना होता है। बाप को
सारे विश्व का उद्धार करना है। रावण के राज्य में सभी अधम गति को पाये हुए हैं। बाप
तो बचने और बचाने की युक्तियां रोज़-रोज़ समझाते रहते हैं फिर भी गिरते हैं तो अधम
ते अधम बन जाते हैं। वह फिर इतना चढ़ नहीं सकते हैं। वह अधमपना अन्दर खाता रहेगा।
जैसे कहते हो अन्तकाल जो...... उनकी बुद्धि में वह अधमपना ही याद आता रहेगा।
तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - कल्प-कल्प तुम ही सुनते हो, सृष्टि का चक्र
कैसे फिरता है, जानवर तो नहीं जानेंगे ना। तुम ही सुनते हो और समझते हो। मनुष्य तो
मनुष्य ही हैं, इन लक्ष्मी-नारायण को भी नाक-कान आदि सभी हैं फिर भी मनुष्य हैं ना।
परन्तु दैवीगुण हैं इसलिए उन्हें देवता कहा जाता है। यह ऐसा देवता कैसे बनते हैं
फिर कैसे गिरते हैं, इस चक्र का तुम्हें ही पता है। जो विचार सागर मंथन करते रहेंगे,
उनको ही धारणा होगी। जो विचार सागर मंथन नहीं करते उन्हें बुद्धू कहेंगे। मुरली
चलाने वाले का विचार सागर मंथन चलता रहेगा - इस टॉपिक पर यह-यह समझाना है। उम्मींद
रखी जाती है, अभी नहीं समझेंगे परन्तु आगे चलकर जरूर समझेंगे। उम्मींद रखना माना
सर्विस का शौक है, थकना नहीं है। भल कोई चढ़कर फिर अधम बना है, अगर आता है तो स्नेह
से बिठायेंगे ना वा कहेंगे चले जाओ! हालचाल पूछना पड़े - इतने दिन कहाँ रहे, क्यों
नहीं आये? कहेंगे ना माया से हार खा लिया। समझते भी हैं ज्ञान बड़ा अच्छा है। स्मृति
तो रहती है ना। भक्ति में तो हार जीत पाने की बात ही नहीं। यह नॉलेज है, इसे धारण
करना है। तुम जब तक ब्राह्मण न बने तब तक देवता बन न सको। क्रिश्चियन, बौद्धी, पारसी
आदि में ब्राह्मण थोड़ेही होते हैं। ब्राह्मण के बच्चे ब्राह्मण होते हैं। यह बातें
अभी तुम समझते हो। तुम जानते हो अल्फ को याद करना है। अल्फ को याद करने से बे
बादशाही मिलती है। जब कोई मिले तो बोलो अल्फ अल्लाह को याद करो। अल्फ को ही ऊंच कहा
जाता है। अंगुली से अल्फ तरफ इशारा करते हैं। सीधा ही सीधा अल्फ है। अल्फ को एक भी
कहा जाता है। एक ही भगवान है, बाकी सभी हैं बच्चे। बाप को अल्फ कहा जाता है। बाप
ज्ञान भी देते हैं, अपना बच्चा भी बनाते हैं। तो तुम बच्चों को कितनी खुशी में रहना
चाहिए। बाबा हमारी कितनी सेवा करते हैं, विश्व का मालिक बनाते हैं। फिर खुद उस
पवित्र दुनिया में आते भी नहीं। पावन दुनिया में कोई उनको बुलाते ही नहीं। पतित
दुनिया में ही बुलाते हैं। पावन दुनिया में आकर क्या करेंगे। उनका नाम ही है
पतित-पावन। तो पुरानी दुनिया को पावन दुनिया बनाना उनकी ड्युटी है। बाप का नाम ही
है शिव। बच्चों को सालिग्राम कहा जाता है। दोनों की पूजा होती है। परन्तु पूजा करने
वालों को कुछ भी पता नहीं है, बस एक रस्म-रिवाज़ बना दी है पूजा की। देवियों के भी
फर्स्टक्लास हीरे-मोतियों के महल आदि बनाते हैं, पूजा करते हैं। वह तो मिट्टी का
लिंग बनाया और तोड़ा। बनाने में मेहनत नहीं लगती है। देवियों को बनाने में मेहनत
लगती है, उनकी (शिवबाबा की) पूजा में मेहनत नहीं लगती। मुफ्त में मिलता है। पत्थर
पानी में घिस-घिस कर गोल बन जाता है। पूरा अण्डाकार बना देते हैं। कहते भी हैं अण्डे
मिसल आत्मा है, जो ब्रह्म तत्व में रहती है, इसलिए उनको ब्रह्माण्ड कहते हैं। तुम
ब्रह्माण्ड के और विश्व के भी मालिक बनते हो।
तो पहले-पहले समझानी देनी है एक बाप की। शिव को बाबा कह सभी याद करते हैं। दूसरा
ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं। प्रजा-पिता है तो सारी प्रजा का पिता हुआ ना।
ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। यह सारा ज्ञान अभी तुम बच्चों में है। प्रजापिता ब्रह्मा
तो कहते बहुत हैं परन्तु यथार्थ रीति जानते कोई नहीं। ब्रह्मा किसका बच्चा है? तुम
कहेंगे परमपिता परमात्मा का। शिवबाबा ने इनको एडाप्ट किया है तो यह शरीरधारी हुआ
ना। ईश्वर की सभी औलाद हैं। फिर जब शरीर मिलता है तो प्रजापिता ब्रह्मा की एडाप्शन
कहते हैं। वह एडाप्शन नहीं। क्या आत्माओं को परमपिता परमात्मा ने एडाप्ट किया है?
नहीं, तुमको एडाप्ट किया है। अभी तुम हो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। शिवबाबा एडाप्ट नहीं
करते हैं। सभी आत्मायें अनादि अविनाशी हैं। सभी आत्माओं को अपना-अपना शरीर,
अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है, जो बजाना ही है। यह पार्ट ही अनादि अविनाशी परम्परा
से चला आता है। उनका आदि अन्त नहीं कहा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी साहूकारी, पोज़ीशन आदि का अहंकार मिटा देना है। अविनाशी ज्ञान
धन से स्वयं को मालामाल बनाना है। सर्विस में कभी भी थकना नहीं है।
2) वातावरण को अच्छा रखने के लिए मुख से सदैव रत्न निकालने हैं। दु:ख देने वाले
बोल न निकलें यह ध्यान रखना है। हर्षितमुख रहना है।