ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, जाना तो है शरीर छोड़कर। इस दुनिया को भी भूल जाना
है। यह भी एक अभ्यास है। जब कोई शरीर में खिटपिट होती है तो शरीर को भी कोशिश कर
भूलना होता है तो दुनिया को भी भूलना होता है। भूलने का अभ्यास रहता है सुबह को। बस,
अब वापिस जाना है। यह ज्ञान तो बच्चों को मिला है। सारी दुनिया को छोड़ अब घर जाना
है। जास्ती ज्ञान की तो दरकार नहीं रहती। कोशिश कर उसी धुन में रहना है। भल शरीर को
कितनी भी तकल़ीफ होती है, बच्चों को समझाया जाता है - कैसे अभ्यास करो। जैसेकि तुम
हो ही नहीं। यह भी अच्छा अभ्यास है। बाकी थोड़ा समय है। जाना है घर, फिर बाप की मदद
है या इनकी अपनी मदद है। मदद मिलती जरूर है और पुरूषार्थ भी करना होता है। यह जो
कुछ देखने में आता है, वह है नहीं। अब घर जाना है। वहाँ से फिर अपनी राजधानी में आना
है। पिछाड़ी में यह दो बातें जाकर रहती हैं - जाना है फिर आना है। देखा जाता है इस
याद में रहने से शरीर के रोग जो तंग करते हैं, वह भी ऑटोमेटिकली ठण्डे हो जाते हैं।
वह खुशी रह जाती है। खुशी जैसी खुराक नहीं इसलिए बच्चों को भी यह समझाना पड़ता है।
बच्चे, अब घर चलना है, स्वीट होम में चलना है, इस पुरानी दुनिया को भूल जाना है।
इसको कहा जाता है याद की यात्रा। अभी ही बच्चों को मालूम पड़ता है। बाप कल्प-कल्प
आते हैं, यही सुनाते हैं कल्प बाद फिर मिलेंगे। बाप कहते हैं - बच्चे, अभी तुम जो
सुनते हो, फिर कल्प बाद भी यही सुनेंगे। यह तो बच्चे जानते हैं, बाप कहते हैं - हम
कल्प-कल्प आकर बच्चों को मार्ग बताता हूँ। मार्ग पर चलना बच्चों का काम है। बाप आकर
मार्ग बताते हैं, साथ में ले जाते हैं। सिर्फ मार्ग नहीं बताते लेकिन साथ में ले भी
जाते हैं। यह भी समझाया जाता है - यह जो चित्र आदि हैं, पिछाड़ी में कुछ भी काम नहीं
आते। बाप ने अपना परिचय दे दिया है। बच्चे समझ जाते हैं बाप का वर्सा बेहद की
बादशाही है। जो कल मन्दिरों में जाते थे, महिमा गाते थे इन बच्चों (लक्ष्मी-नारायण)
की, बाबा तो इन्हों को भी बच्चे-बच्चे कहेंगे ना, जो उन्हों के ऊंच बनने की महिमा
गाते थे, अब फिर ऊंच बनने का पुरूषार्थ करते हैं। शिवबाबा के लिए नई बात नहीं। तुम
बच्चों के लिए नई बात है। युद्ध के मैदान में तो बच्चे हैं। संकल्प-विकल्प भी इन्हें
तंग करेंगे। यह खाँसी भी इनके कर्म का हिसाब-किताब है, इनको भोगना है। बाबा तो मौज
में है, इनको कर्मातीत बनना है। बाप तो है ही सदा कर्मातीत अवस्था में। हम तुम बच्चों
को माया के तूफान आदि कर्मभोग आयेंगे। यह समझाना चाहिए। बाप तो रास्ता बताते हैं,
बच्चों को सब कुछ समझाते हैं। इस रथ को कुछ होता है तो तुमको फीलिंग आयेगी कि दादा
को कुछ हुआ है। बाबा को कुछ नहीं होता, इनको होता है। ज्ञान मार्ग में अन्धश्रद्धा
की बात नहीं होती। बाप समझाते हैं मैं किस तन में आता हूँ। बहुत जन्मों के अन्त के
पतित तन में मैं प्रवेश करता हूँ। दादा भी समझते हैं जैसे और बच्चे हैं, मैं भी
हूँ। दादा पुरूषार्थी है, सम्पूर्ण नहीं है। तुम सब प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे
ब्राह्मण पुरूषार्थ करते हो, विष्णु पद पाने। लक्ष्मी-नारायण कहो, विष्णु कहो, बात
तो एक ही है। बाप ने समझाया भी है आगे नहीं समझते थे। न ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को, न
अपने आप को समझते थे। अभी तो बाप को, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को देखने से बुद्धि में
आता है - यह ब्रह्मा तपस्या करते हैं। यही सफेद ड्रेस है। कर्मातीत अवस्था भी यहाँ
होती है। इनएडवान्स तुमको साक्षात्कार होता है - यह बाबा फरिश्ता बनेंगे। तुम भी
जानते हो हम कर्मातीत अवस्था को पाकर फरिश्ता बनेंगे नम्बरवार। जब तुम फरिश्ते बनते
हो तब समझते हो कि अब लड़ाई लगेगी। मिरूआ मौत....... यह बहुत ऊंच अवस्था है। बच्चों
को धारणा करनी है। यह भी निश्चय है कि हम चक्र लगाते हैं। और कोई इन बातों को समझ न
सके। नया ज्ञान है और फिर पावन बनने के लिए बाप याद सिखाते हैं, यह भी समझते हो बाप
से वर्सा मिलता है। कल्प-कल्प बाप के बच्चे बनते हैं, 84 का चक्र लगाया है। कोई को
भी तुम समझाओ तुम आत्मा हो, परमपिता परमात्मा बाप है, अब बाप को याद करो। तो उनकी
बुद्धि में आयेगा दैवी प्रिन्स बनना है तो इतना पुरूषार्थ करना है। विकार आदि सब
छोड़ देना है। बाप समझाते हैं बहन-भाई भी नहीं, भाई-भाई समझो और बाप को याद करो तो
विकर्म विनाश होंगे और कोई तकलीफ नहीं है। पिछाड़ी में और कोई बातों की दरकार नहीं
पड़ेगी। सिर्फ बाप को याद करना है, आस्तिक बनना है। ऐसा सर्वगुण सम्पन्न बनना है।
लक्ष्मी-नारायण का चित्र बड़ा एक्यूरेट है। सिर्फ बाप को भूल जाने से दैवी गुण धारण
करना भी भूल जाते हैं। बच्चे एकान्त में बैठ विचार करो - बाबा को याद करके हमको यह
बनना है, यह गुण धारण करना है। बात तो बहुत छोटी है। बच्चों को कितनी मेहनत करनी
पड़ती है। कितना देह-अभिमान आ जाता है। बाप कहते हैं “देही-अभिमानी भव''। बाप से ही
वर्सा लेना है। बाप को याद करेंगे तब तो किचड़ा निकलेगा।
बच्चे जानते हैं अभी बाबा आया हुआ है। ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना करते
हैं। तुम बच्चे जानते हो स्थापना हो रही है। इतनी सहज बात भी तुमसे खिसक जाती है।
एक अल़फ है, बेहद के बाप से बादशाही मिलती है। बाप को याद करने से नई दुनिया याद आ
जाती है। अबलायें-कुब्जायें भी बहुत अच्छा पद पा सकती हैं। सिर्फ अपने को आत्मा समझ
बाप को याद करो। बाप ने तो रास्ता बताया है। कहते हैं - अपने को आत्मा निश्चय करो।
बाप की पहचान तो मिली। बुद्धि में बैठ जाता है अब 84 जन्म पूरे हुए, घर जायेंगे फिर
आकर स्वर्ग में पार्ट बजायेंगे। यह प्रश्न नहीं उठता कि कहाँ याद करूँ, कैसे करुँ?
बुद्धि में है कि बाप को याद करना है। बाप कहाँ भी जाये, तुम तो उनके ही बच्चे हो
ना। बेहद के बाप को याद करना है। यहाँ बैठे हो तो तुमको आनन्द आता है। सम्मुख बाप
से मिलते हो। मनुष्य मूँझ जाते हैं कि शिवबाबा की जयन्ती कैसे होगी! यह भी समझते नहीं
कि शिवरात्रि क्यों कहा जाता है? श्रीकृष्ण के लिए समझते हैं ना रात को जयन्ती होती
है परन्तु इस रात्रि की बात नहीं। वह आधा कल्प की रात पूरी होती है फिर बाप को आना
पड़ता है नई दुनिया की स्थापना करने, है बहुत सहज। बच्चे खुद समझते हैं - सहज है।
दैवी गुण धारण करने हैं। नहीं तो सौ गुणा पाप हो जाता है। मेरी निन्दा कराने वाले
ऊंच ठौर नहीं पा सकेंगे। बाप की निन्दा करायेंगे तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। बहुत मीठा
बनना चाहिए। रफ-डफ बात करना - यह दैवीगुण नहीं है। समझना चाहिए यह आसुरी अवगुण है।
प्यार से समझाना होता है - यह तुम्हारा दैवी गुण नहीं है। यह भी बच्चे जानते हैं अभी
कलियुग पूरा होता है, यह है संगमयुग। मनुष्यों को तो कुछ पता नहीं है। कुम्भकरण की
नींद में सोये पड़े हैं। समझते हैं 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं। हम जीते रहेंगे, सुख
भोगते रहेंगे। यह नहीं समझते दिन-प्रतिदिन और ही तमोप्रधान बनते हैं। तुम बच्चों ने
विनाश का साक्षात्कार भी किया है! आगे चलकर ब्रह्मा का, श्रीकृष्ण का भी
साक्षात्कार करते रहेंगे। ब्रह्मा के पास जाने से तुम स्वर्ग का ऐसा प्रिन्स बनेंगे
इसलिए अक्सर करके ब्रह्मा और श्रीकृष्ण दोनों के साक्षात्कार होते हैं। कोई को
विष्णु का होता है। परन्तु उनसे इतना समझ नहीं सकेंगे। नारायण का होने से समझ सकते
हैं। यहाँ हम जाते ही हैं देवता बनने के लिए। तो तुम अभी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त
का पाठ पढ़ते हो। पाठ पढ़ाया जाता है याद के लिए। पाठ आत्मा पढ़ती है। देह का भान
उतर जाता है। आत्मा ही सब कुछ करती है। अच्छे अथवा बुरे संस्कार आत्मा में ही होते
हैं।
तुम मीठे-मीठे बच्चे 5 हज़ार वर्ष के बाद आकर मिले हो। तुम वही हो। फीचर्स भी वही
हैं, 5 हज़ार वर्ष पहले भी तुम ही थे। तुम भी कहते हो 5 हज़ार वर्ष बाद आप वही आकर
मिले हो, जो हमको मनुष्य से देवता बना रहे हो। हम देवता थे फिर असुर बन पड़े हैं।
देवताओं के गुण गाते आये, अपने अवगुण वर्णन करते आये। अब फिर देवता बनना है क्योंकि
दैवी दुनिया में जाना है। तो अब अच्छी रीति पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाओ। टीचर तो सबको
कहेंगे ना, पढ़ो। अच्छी मार्क्स में पास हो तो हमारा भी नाम बाला और तुम्हारा भी
नाम बाला होगा। ऐसे बहुत कहते हैं - बाबा, आपके पास आने से कुछ निकलता ही नहीं। सब
भूल जाते हैं। आने से ही चुप हो जायेंगे। यह दुनिया जैसे कि खत्म हुई पड़ी है। फिर
तुम आयेंगे नई दुनिया में। वह तो बड़ी शोभनिक नई दुनिया होगी। कोई शान्तिधाम में
विश्राम पाते हैं। कोई को विश्राम नहीं मिलता है। आलराउण्ड पार्ट है। परन्तु
तमोप्रधान दु:ख से छूट जाते हैं। वहाँ शान्ति, सुख सब मिल जाता है। तो ऐसे अच्छी
रीति पुरूषार्थ करना चाहिए। ऐसे नहीं कि जो नसीब में होगा। नहीं, पुरूषार्थ करना
चाहिए। समझा जाता है कि राजधानी स्थापन हो रही है। हम श्रीमत पर अपने लिए राजधानी
स्थापन कर रहे हैं। बाबा जो श्रीमत देने वाला है वह खुद राजा आदि नहीं बना है। उनकी
श्रीमत से हम बनते हैं। नई बात है ना। कभी कोई ने न तो सुनी, न देखी। अभी तुम बच्चे
समझते हो श्रीमत पर हम बैकुण्ठ की बादशाही स्थापन करते हैं। हमने अनगिनत बार राजाई
स्थापन की है। करते और गँवाते हैं। यह चक्र फिरता ही रहता है। पादरी लोग जब चक्र
लगाने निकलते हैं तो और कोई को देखना भी पसन्द नहीं करते हैं। सिर्फ क्राइस्ट की ही
याद में रहते हैं। शान्ति में चक्र लगाते हैं। समझ है ना। क्राइस्ट की याद में कितना
रहते हैं। जरूर क्राइस्ट का साक्षात्कार हुआ होगा। सब पादरी ऐसे थोड़ेही होते हैं।
कोटों में कोई, तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोटों में कोई ऐसी याद में रहते होंगे।
ट्राई करके देखो। और कोई को नहीं देखो। बाप को याद करते स्वदर्शन चक्र फिराते रहो।
तुमको अथाह खुशी होगी। श्रेष्ठाचारी देवताओं को कहा जाता है, मनुष्यों को
भ्रष्टाचारी कहा जाता है। इस समय तो देवता कोई है नहीं। आधाकल्प दिन, आधाकल्प रात -
यह भारत की ही बात है। बाप कहते हैं मैं आकर सबकी सद्गति करता हूँ, बाकी जो और धर्म
वाले हैं, वह अपने-अपने समय पर अपने धर्म की आकर स्थापना करते हैं। सब आकर यह मंत्र
ले जाते हैं। बाप को याद करना है, जो याद करेंगे वह अपने धर्म में ऊंच पद पायेंगे।
तुम बच्चों को पुरूषार्थ करके रूहानी म्युज़ियम अथवा कॉलेज खोलने चाहिए। लिख दो
- विश्व की अथवा स्वर्ग की राजाई सेकण्ड में कैसे मिल सकती है, आकर समझो। बाप को
याद करो तो बैकुण्ठ की बादशाही मिलेगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) चलते-फिरते एक बाप की ही याद रहे और कुछ देखते हुए भी दिखाई न दे -
ऐसा अभ्यास करना है। एकान्त में अपनी जाँच करनी है कि हमारे में दैवीगुण कहाँ तक आये
हैं?
2) ऐसा कोई कर्त्तव्य नहीं करना है, जिससे बाप की निन्दा हो, दैवीगुण धारण करने
हैं। बुद्धि में रहे - अभी घर जाना है फिर अपनी राजधानी में आना है।