ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे यह तो समझ गये हैं कि एक तरफ है भक्ति, दूसरे तरफ है ज्ञान।
भक्ति तो अथाह है और सिखाने वाले अनेक हैं। शास्त्र भी सिखाते हैं, मनुष्य भी सिखाते
हैं। यहाँ न कोई शास्त्र हैं, न मनुष्य हैं। यहाँ सिखाने वाला एक ही रूहानी बाप है
जो आत्माओं को समझाते हैं। आत्मा ही धारण करती है। परमपिता परमात्मा में यह सारा
ज्ञान है, 84 के चक्र का उनमें नॉलेज है, इसलिए उनको भी स्वदर्शन चक्रधारी कह सकते
हैं। हम बच्चों को भी वह स्वदर्शन चक्रधारी बना रहे हैं। बाबा भी ब्रह्मा के तन में
है, इसलिए उनको ब्राह्मण भी कहा जा सकता है। हम भी उनके बच्चे ब्राह्मण सो देवता
बनते हैं। अब बाप बैठ याद की यात्रा सिखलाते हैं, इसमें हठयोग आदि की कोई बात नहीं।
वह लोग हठयोग से ट्रांस आदि में जाते हैं। यह कोई बड़ाई नहीं है। ट्रांस की बड़ाई
कुछ भी नहीं है। ट्रांस तो एक पाई पैसे का खेल है। तुम्हें ऐसे कभी किसी को नहीं
कहना है कि हम ट्रांस में जाते हैं क्योंकि आजकल विलायत आदि में जहाँ-तहाँ ढेर के
ढेर ट्रांस में जाते हैं। ट्रांस में जाने से न उनको कोई फ़ायदा है, न तुमको कोई
फ़ायदा है। बाबा ने समझ दी है। ट्रांस में न तो याद की यात्रा है, न ज्ञान है।
ध्यान अथवा ट्रांस वाला कभी कुछ भी ज्ञान नहीं सुनेगा, न कोई पाप भस्म होंगे।
ट्रांस का महत्व कुछ भी नहीं है। बच्चे योग लगाते हैं, उनको कोई ट्रांस नहीं कहा
जाता है। याद से विकर्म विनाश होंगे। ट्रांस में विकर्म विनाश नहीं होंगे। बाबा
सावधान करते हैं कि बच्चे ट्रांस का शौक मत रखो।
तुम जानते हो इन संन्यासियों आदि को ज्ञान तब मिलता है जबकि विनाश का समय होता
है। भल तुम उन्हें ऐसे निमंत्रण देते रहो लेकिन यह ज्ञान उनके कलष में जल्दी नहीं
आयेगा। जब विनाश सामने देखेंगे तब आयेंगे। समझेंगे अब तो मौत आया कि आया। जब नज़दीक
देखेंगे तब मानेंगे। उन्हों का पार्ट ही अन्त में है। तुम कहते हो अब विनाश आया कि
आया, मौत आना है। वह समझते हैं इन्हों के यह गपोड़े हैं।
तुम्हारा झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता है। संन्यासियों को सिर्फ कहना है कि बाप को याद
करो। यह भी बाप ने समझाया है कि तुमको ऑखें बन्द नहीं करनी हैं। आंखे बन्द होंगी तो
बाप को कैसे देखेंगे। हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा के सामने बैठे हैं। वह देखने
में नहीं आता है, लेकिन यह ज्ञान बुद्धि में है। तुम बच्चे समझते हो परमपिता
परमात्मा हमको पढ़ा रहे हैं - इस शरीर के आधार से। ध्यान आदि की कोई बात ही नहीं।
ध्यान में जाना कोई बड़ी बात नहीं है। यह भोग आदि की ड्रामा में सब नूँध है।
सर्वेन्ट बन भोग लगाकर आते हो। जैसे सर्वेन्ट लोग बड़े आदमी को खिलाते हैं। तुम भी
सर्वेन्ट हो, देवताओं को भोग लगाने जाते हो। वह हैं फ़रिश्ते। वहाँ मम्मा-बाबा को
देखते हैं। वह सम्पूर्ण मूर्ति भी एम आब्जेक्ट है। उनको ऐसा फ़रिश्ता किसने बनाया?
बाकी ध्यान में जाना तो कोई बड़ी बात नहीं है। जैसे यहाँ शिवबाबा तुमको पढ़ाते हैं,
वैसे वहाँ भी शिवबाबा इन द्वारा कुछ समझायेंगे। सूक्ष्मवतन में क्या होता है, यह
सिर्फ जानना होता है। बाकी ट्रांस आदि को कुछ भी महत्व नहीं देना है। कोई को ट्रांस
दिखलाना - यह भी बचपन है। बाबा सबको सावधान करते हैं - ट्रांस में मत जाओ, इसमें भी
कई बार माया प्रवेश हो जाती है।
यह पढ़ाई है, कल्प-कल्प बाप आकर तुमको पढ़ाते हैं। अभी है संगमयुग। तुमको
ट्रांसफर होना है। ड्रामा के प्लैन अनुसार तुम पार्ट बजा रहे हो, पार्ट की महिमा
है। बाप आकर पढ़ाते हैं ड्रामा अनुसार। तुमको बाप से एक बार पढ़कर मनुष्य से देवता
जरूर बनना है। इसमें बच्चों को तो खुशी होती है। हम बाप को भी और रचना के आदि मध्य
अन्त को भी जान गये हैं। बाप की शिक्षा पाकर बहुत हर्षित होना चाहिए। तुम पढ़ते ही
हो नई दुनिया के लिए। वहाँ है ही देवताओं का राज्य तो जरूर पुरूषोत्तम संगमयुग पर
पढ़ना होता है। तुम इस दु:ख से छूटकर सुख में जाते हो। यहाँ तमोप्रधान होने कारण
तुम बीमार आदि होते हो। यह सब रोग मिट जाने हैं। मुख्य है ही पढ़ाई, इनसे ट्रांस आदि
का कनेक्शन नहीं है। यह बड़ी बात नहीं। बहुत जगह ऐसे ध्यान में चले जाते हैं फिर
कहते मम्मा आई, बाबा आया। बाप कहते हैं यह कुछ भी नहीं है। बाप तो एक ही बात समझाते
हैं - तुम जो आधाकल्प देह-अभिमानी बन पड़े हो, अब देही-अभिमानी बन बाप को याद करो
तो विकर्म विनाश हों, इसको याद की यात्रा कहा जाता है। योग कहने से यात्रा नहीं
सिद्ध होती। तुम आत्माओं को यहाँ से जाना है, तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। तुम
अभी यात्रा कर रहे हो। उन्हों का जो योग है, उसमें यात्रा की बात नहीं। हठयोगी तो
ढेर हैं। वह है हठयोग, यह है बाप को याद करना। बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों अपने
को आत्मा समझो। ऐसे और कोई कभी नहीं समझायेंगे। यह तो है पढ़ाई। बाप का बच्चा बना
फिर बाप से पढ़ना और पढ़ाना है। बाबा कहते हैं तुम म्युज़ियम खोलो, आपेही तुम्हारे
पास आयेंगे। बुलाने की तकल़ीफ नहीं होगी। कहेंगे यह ज्ञान तो बड़ा अच्छा है, कभी
सुना नहीं है। इसमें तो कैरेक्टर सुधरते हैं। मुख्य है ही पवित्रता, जिस पर ही
हंगामें आदि होते हैं। बहुत फेल भी होते हैं। तुम्हारी अवस्था ऐसी हो जाती है जो इस
दुनिया में होते हुए उनको देखते नहीं हैं। खाते-पीते भी तुम्हारी बुद्धि उस तरफ हो।
जैसे बाप नया मकान बनाते हैं तो सबकी बुद्धि नये मकान तरफ चली जाती है ना। अभी नई
दुनिया बन रही है। बेहद का बाप बेहद का घर बना रहे हैं। तुम जानते हो हम स्वर्गवासी
बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं। अब चक्र पूरा हुआ है। अब हमको घर और स्वर्ग में
जाना है तो उसके लिए पावन भी जरूर बनना है। याद की यात्रा से पावन बनना है। याद में
ही विघ्न पड़ते हैं, इसमें ही तुम्हारी लड़ाई है। पढ़ाई में लड़ाई की बात नहीं होती।
पढ़ाई तो बिल्कुल सिम्पल है। 84 के चक्र की नॉलेज तो बहुत सहज है। बाकी अपने को
आत्मा समझ बाप को याद करो, इसमें है मेहनत। बाप कहते हैं याद की यात्रा भूलो मत। कम
से कम 8 घण्टा तो जरूर याद करो। शरीर निर्वाह के लिए कर्म भी करना है। नींद भी करनी
है। सहज मार्ग है ना। अगर कहें नींद न करो, तो यह हठयोग हो गया। हठयोगी तो बहुत
हैं। बाप कहते हैं उस तरफ कुछ भी नहीं देखो, उससे कुछ फ़ायदा नहीं। कितने हठयोग आदि
सिखलाते हैं। यह सब है मनुष्य मत। तुम आत्मायें हो, आत्मा ही शरीर ले पार्ट बजाती
है, डॉक्टर आदि बनती है। परन्तु मनुष्य देह-अभिमानी बन पड़े हैं - मैं फलाना
हूँ....।
अभी तुम्हारी बुद्धि में है - हम आत्मा हैं। बाप भी आत्मा है। इस समय तुम आत्माओं
को परमपिता पढ़ाते हैं इसलिए गायन है - आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल..
कल्प-कल्प मिलते हैं। बाकी जो भी सारी दुनिया है, वह सब देह-अभिमान में आकर देह
समझकर ही पढ़ते पढ़ाते हैं। बाप कहते हैं मैं आत्माओं को पढ़ाता हूँ। जज, बैरिस्टर
आदि भी आत्मा बनती है। तुम आत्मा सतोप्रधान पवित्र थी फिर तुम पार्ट बजाते-बजाते सब
पतित बने हो तब पुकारते हो बाबा आकर हमको पावन आत्मा बनाओ। बाप तो है ही पावन। यह
बात जब सुनें तब धारणा हो। तुम बच्चों को धारणा होती है तो तुम देवता बनते हो। और
कोई की बुद्धि में बैठेगा नहीं क्योंकि यह है नई बात। यह है ज्ञान। वह है भक्ति।
तुम भी भक्ति करते-करते देह-अभिमानी बन जाते हो। अब बाप कहते हैं - बच्चे,
आत्म-अभिमानी बनो। हम आत्माओं को बाप इस शरीर द्वारा पढ़ाते हैं। घड़ी-घड़ी याद रखो
यह एक ही समय है जब आत्माओं का बाप परमपिता पढ़ाते हैं। बाकी तो सारे ड्रामा में कभी
पार्ट ही नहीं है, सिवाए इस संगमयुग के इसलिए बाप फिर भी कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों
अपने को आत्मा निश्चय करो, बाप को याद करो। यह बड़ी ऊंची यात्रा है - चढ़े तो चाखे
वैकुण्ठ रस। विकार में गिरने से एकदम चकनाचूर हो जाते हैं। फिर भी स्वर्ग में तो
आयेंगे, लेकिन पद बहुत कम होगा। यह राजाई स्थापन हो रही है। इसमें कम पद वाले भी
चाहिए, सब थोड़ेही ज्ञान में चलते हैं। फिर तो बाबा को बहुत बच्चे मिलने चाहिए। अगर
मिलते हैं तो भी थोड़े टाइम के लिए। तुम माताओं की बहुत महिमा है, वन्दे मातरम् भी
गाया जाता है। जगत अम्बा का कितना बड़ा भारी मेला लगता है क्योंकि बहुत सर्विस की
है। जो बहुत सर्विस करते हैं वह बड़ा राजा बनते हैं। देलवाड़ा मन्दिर में तुम्हारा
ही यादगार है। तुम बच्चियों को तो बहुत टाइम निकालना चाहिए। तुम भोजन आदि बनाती हो
तो बहुत शुद्ध भोजन याद में बैठ बनाना चाहिए, जो किसको खिलायें तो उनका भी हृदय
शुद्ध हो जाये। ऐसे बहुत थोड़े हैं, जिनको ऐसा भोजन मिलता होगा। अपने से पूछो - हम
शिवबाबा की याद में रहकर भोजन बनाते हैं, जो खाने से ही उनके हृदय पिघल जायें।
घड़ी-घड़ी याद भूल जाती है। बाबा कहते हैं भूलना भी ड्रामा में नूंध है क्योंकि तुम
16 कला तो अभी बने नहीं हो। सम्पूर्ण बनना जरूर है। पूर्णिमा के चन्द्रमा में कितना
तेज होता है, फिर कम होते-होते लकीर जाकर रहती है। घोर अन्धियारा हो जाता है फिर
घोर सोझरा। यह विकार आदि छोड़ बाप को याद करते रहेंगे तो तुम्हारी आत्मा सम्पूर्ण
बन जायेगी। तुम चाहते हो महाराजा बनें परन्तु सब तो बन न सकें। पुरूषार्थ सबको करना
है। कोई तो कुछ पुरूषार्थ नहीं करते इसलिए महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे कहा जाता है।
महारथी थोड़े होते हैं। प्रजा वा लश्कर जितना होता है, उतने कमान्डर्स वा मेजर्स नहीं
होते हैं। तुम्हारे में भी कमान्डर्स, मेजर्स, कैप्टन हैं। प्यादे भी हैं। तुम्हारी
भी यह रूहानी सेना है ना। सारा मदार है याद की यात्रा पर। उनसे ही बल मिलेगा। तुम
हो गुप्त वारियर्स। बाप को याद करने से विकर्मों का जो किचड़ा है वह भस्म हो जाता
है। बाप कहते हैं धन्धाधोरी भल करो। बाप को याद करो। तुम जन्म-जन्मान्तर के आशिक
हो, एक माशूक के। अब वह माशूक मिला है तो उनको याद करना है। आगे भल याद करते थे
परन्तु विकर्म विनाश थोड़ेही होते थे। बाप ने बताया है तुमको यहाँ तमोप्रधान से
सतोप्रधान बनना है। आत्मा को ही बनना है। आत्मा ही मेहनत कर रही है। इसी जन्म में
तुम्हें जन्म-जन्मान्तर की मैल को उतारना है। यह है मृत्युलोक का अन्तिम जन्म फिर
जाना है अमरलोक। आत्मा पावन बनने बिगर तो जा नहीं सकती। सबको अपना-अपना हिसाब-किताब
चुक्तू करके जाना है। अगर सजायें खाकर जायेंगे तो पद कम हो जायेगा। जो सज़ा नहीं
खाते हैं वह सिर्फ माला के 8 दाने कहे जाते हैं। 9 रत्नों की ही अंगूठी आदि बनती
है। ऐसा बनना है तो बाप को याद करने की बहुत मेहनत करनी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) संगमयुग पर स्वयं को ट्रांसफर करना है। पढ़ाई और पवित्रता की धारणा
से अपने कैरेक्टर सुधारने हैं, ट्रांस आदि का शौक नहीं रखना है।
2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है, नींद भी करनी है, हठयोग नहीं है, लेकिन
याद की यात्रा को कभी भूलना नहीं है। योगयुक्त होकर ऐसा शुद्ध भोजन बनाओ और खिलाओ
जो खाने वाले का हृदय शुद्ध हो जाये।