08-12-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 13.02.2003 "बापदादा" मधुबन
“वर्तमान समय अपना
रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष करो''
आज वरदाता बाप अपने
ज्ञान दाता, शक्ति दाता, गुण दाता, परमात्म सन्देश वाहक बच्चों को देख रहे हैं। हर
एक बच्चा मास्टर दाता बन आत्माओं को बाप के समीप लाने के लिए दिल से प्रयत्न कर रहे
हैं। विश्व में अनेक प्रकार की आत्मायें हैं, किन आत्माओं को ज्ञान अमृत चाहिए,
अन्य आत्माओं को शक्ति चाहिए, गुण चाहिए, आप बच्चों के पास सर्व अखण्ड खजाने हैं।
हर एक आत्मा की कामना पूर्ण करने वाले हो। दिन प्रतिदिन समय समाप्ति का समीप आने के
कारण अब आत्मायें कोई नया सहारा ढूंढ रही हैं। तो आप आत्मायें नया सहारा देने के
निमित्त बनी हुई हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख खुश है। एक तरफ आवश्यकता
है और दूसरे तरफ उमंग-उत्साह है। आवश्यकता के समय एक बूंद का भी महत्व होता है। तो
इस समय आपकी दी हुई अंचली का, सन्देश का भी महत्व है।
वर्तमान समय आप सभी
बच्चों का रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष होने का समय है। आप ब्राह्मण आत्माओं के
अनादि स्वरूप में भी दातापन के संस्कार भरे हुए हैं इसलिए कल्प वृक्ष के चित्र में
आप वृक्ष के जड़ में दिखाये हुए हैं क्योंकि जड़ द्वारा ही सारे वृक्ष को सब कुछ
पहुंचता है। आपका आदि स्वरूप देवता रूप, उसका अर्थ ही है देव ता अर्थात् देने वाला।
आपका मध्य का स्वरूप पूज्य चित्र हैं तो मध्य समय में भी पूज्य रूप में आप वरदान
देने वाले, दुआयें देने वाले, आशीर्वाद देने वाले दाता रूप हो। तो आप आत्माओं का
विशेष स्वरूप ही दातापन का है। तो अभी भी परमात्म सन्देश वाहक बन विश्व में बाप की
प्रत्यक्षता का सन्देश फैला रहे हैं। तो हर एक ब्राह्मण बच्चा चेक करो कि अनादि, आदि
दातापन के संस्कार हर एक के जीवन में सदा इमर्ज रूप में रहते हैं? दातापन के
संस्कार वाली आत्माओं की निशानी है - वह कभी भी यह संकल्प-मात्र भी नहीं करते कि
कोई दे तो देवें, कोई करे तो करें, नहीं। निरन्तर खुले भण्डार हैं। तो बापदादा चारों
ओर के बच्चों के दातापन के संस्कार देख रहे थे। क्या देखा होगा? नम्बरवार तो है ही
ना! कभी भी यह संकल्प नहीं करो - यह हो तो मैं भी यह करूं। दातापन के संस्कार वाले
को सर्व तरफ से सहयोग स्वत: प्राप्त होता है। न सिर्फ आत्माओं द्वारा लेकिन प्रकृति
भी समय प्रमाण सहयोगी बन जाती है। यह सूक्ष्म हिसाब है कि जो सदा दाता बनता है, उस
पुण्य का फल समय पर सहयोग, समय पर सफलता उस आत्मा को सहज प्राप्त होता है इसलिए सदा
दातापन के संस्कार इमर्ज रूप में रखो। पुण्य का खाता एक का 10 गुणा फल देता है। तो
सारे दिन में नोट करो - संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा पुण्य
आत्मा बन पुण्य का खाता कितना जमा किया? मन्सा सेवा भी पुण्य का खाता जमा करती है।
वाणी द्वारा किसी कमजोर आत्मा को खुशी में लाना, परेशान को शान की स्मृति में लाना,
दिलशिकस्त आत्मा को अपनी वाणी द्वारा उमंग-उत्साह में लाना, सम्बन्ध-सम्पर्क से
आत्मा को अपने श्रेष्ठ संग का रंग अनुभव कराना, इस विधि से पुण्य का खाता जमा कर
सकते हो। इस जन्म में इतना पुण्य जमा करते हो जो आधाकल्प पुण्य का फल खाते हो और
आधाकल्प आपके जड़ चित्र पापी आत्माओं को वायुमण्डल द्वारा पापों से मुक्त करते हैं।
पतित-पावनी बन जाते हो। तो बापदादा हर एक बच्चे का जमा हुआ पुण्य का खाता देखते रहते
हैं।
बापदादा वर्तमान समय
का बच्चों का सेवा का उमंग-उत्साह देख खुश हो रहे हैं। मैजारिटी बच्चों में सेवा का
उमंग अच्छा है। सभी अपने-अपने तरफ से सेवा का प्लैन प्रैक्टिकल में ला रहे हैं। इसके
लिए बापदादा दिल से मुबारक दे रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं और अच्छा करते रहेंगे। सबसे
अच्छी बात यह है - सभी का संकल्प और समय बिजी हो गया है। हर एक को यह लक्ष्य है कि
चारों ओर की सेवा से अभी उल्हनें को पूरा जरूर करना है।
ब्राह्मणों के दृढ़
संकल्प में बहुत शक्ति है। अगर ब्राह्मण दृढ़ संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता! सब
हो जायेगा सिर्फ योग को ज्वाला रूप बनाओ। योग ज्वाला रूप बन जायेगा तो ज्वाला के
पीछे आत्मायें स्वत: ही आ जायेंगी क्योंकि ज्वाला (लाइट) मिलने से उन्हों को रास्ता
दिखाई देगा। अभी योग तो लगा रहे हैं लेकिन योग ज्वाला रूप होना है। सेवा का
उमंग-उत्साह अच्छा बढ़ रहा है लेकिन योग में ज्वाला रूप अभी अण्डरलाइन करनी है। आपकी
दृष्टि में ऐसी झलक आ जाए जो दृष्टि से कोई न कोई अनुभूति का अनुभव करें।
बापदादा को, फारेन
वालों ने यह जो सेवा की थी - कॉल ऑफ टाइम वालों की, उसकी विधि अच्छी लगी कि छोटे से
संगठन को समीप लाया। ऐसे हर ज़ोन, हर सेन्टर अलग-अलग सेवा तो कर रहे हो लेकिन कोई
सर्व वर्गों का संगठन बनाओ। बापदादा ने कहा था कि बिखरी हुई सेवा बहुत है, लेकिन
बिखरी हुई सेवा से कुछ समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय
उस संगठन को समीप लाते रहो और उन्हों को सेवा का उमंग बढ़ाओ। बापदादा देखते हैं कि
ऐसी आत्मायें हैं लेकिन अभी वह पॉवरफुल पालना, संगठित रूप में नहीं मिल रही है।
अलग-अलग यथाशक्ति पालना मिल रही है, संगठन में एक दो को देखकर भी उमंग आता है। यह,
ये कर सकता है, मैं भी कर सकता हूँ, मैं भी करूंगा, तो उमंग आता है। बापदादा अभी
सेवा का प्रत्यक्ष संगठित रूप देखने चाहते हैं। मेहनत अच्छी कर रहे हो, हर एक अपने
वर्ग की, एरिया की, ज़ोन की, सेन्टर की कर रहे हो, बापदादा खुश होते हैं। अब कुछ
सामने लाओ। प्रवृत्ति वालों का भी उमंग बापदादा के पास पहुंचता है और डबल फारेनर्स
का भी डबल कार्य में रहते सेवा में स्वयं के पुरुषार्थ में उमंग अच्छा है, यह देख
करके भी बाप-दादा खुश है।
ब्राह्मण आत्मायें
वर्तमान वायुमण्डल को देख विदेश में डरते तो नहीं हैं? कल क्या होगा, कल क्या होगा...
यह तो नहीं सोचते हैं? कल अच्छा होगा। अच्छा है और अच्छा ही होना है। जितनी दुनिया
में हलचल होगी उतनी ही आप ब्राह्मणों की स्टेज अचल होगी। ऐसे है? डबल विदेशी हलचल
है या अचल है? अचल है? हलचल में तो नहीं हैं ना! जो अचल हैं वह हाथ उठाओ। अचल हैं?
कल कुछ हो जाये तो? तो भी अचल हैं ना! क्या होगा, कुछ नहीं होगा। आप ब्राह्मणों के
ऊपर परमात्म छत्रछाया है। जैसे वाटरप्रूफ कितना भी वाटर हो लेकिन वाटरप्रूफ द्वारा
वाटरप्रूफ हो जाते हैं। ऐसे ही कितनी भी हलचल हो लेकिन ब्राह्मण आत्मायें परमात्म
छत्रछाया के अन्दर सदा प्रूफ हैं। बेफिकर बादशाह हो ना! कि थोड़ा-थोड़ा फिकर है,
क्या होगा? नहीं। बेफिकर। स्वराज्य अधिकारी बन, बेफिकर बादशाह बन, अचल-अडोल सीट पर
सेट रहो। सीट से नीचे नहीं उतरो। अपसेट होना अर्थात् सीट पर सेट नहीं है तो अपसेट
हैं। सीट पर सेट जो है वह स्वप्न में भी अपसेट नहीं हो सकता।
मातायें क्या समझती
हो? सीट पर सेट होना, बैठना आता है? हलचल तो नहीं होती ना! बापदादा कम्बाइन्ड है,
जब सर्वशक्तिवान आपके कम्बाइन्ड है तो आपको क्या डर है! अकेले समझेंगे तो हलचल में
आयेंगे। कम्बाइन्ड रहेंगे तो कितनी भी हलचल हो लेकिन आप अचल रहेंगे। ठीक है मातायें?
ठीक है ना, कम्बाइन्ड हैं ना! अकेले तो नहीं? बाप की जिम्मेवारी है, अगर आप सीट पर
सेट हो तो बाप की जिम्मेवारी है, अपसेट हो तो आपकी जिम्मेवारी है।
आत्माओं को सन्देश
द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का
फल शक्ति मिलती रहेगी। चलते फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियां
करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं
कि मैं तो हूँ ही आत्मा। नहीं, स्मृति में इमर्ज हो। मर्ज रूप में रहता है लेकिन
इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलिंग पावर रहती है। मजा भी आता है,
क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा
रही हूँ? जैसे राजा अपने कर्मचारियों को आर्डर में रखते हैं, आर्डर से कराते हैं,
ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर में रहेंगी।
माया के आर्डर में नहीं रहेंगी, आपके आर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि
करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया आर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी
मुख की शक्ति माया के आर्डर में चल पड़ती है इसीलिए सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने
आर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं
वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य
चलायेंगे। स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मेन्द्रियां
आर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके आर्डर में रहेगी। जिस शक्ति की जिस समय
आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप आर्डर करो
सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे। हर शक्ति आपके आर्डर पर जी हाजिर होगी
क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज़ हो गई। तो अपनी चीज़
को जैसे भी यूज़ करो, जब भी यूज़ करो, ऐसे यह सर्व शक्तियां आपके आर्डर पर रहेंगी,
सर्व कर्मेन्द्रियां आपके आर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी,
मास्टर सर्वशक्तिवान। ऐसे है पाण्डव? मास्टर सर्व शक्तिवान भी हैं और स्वराज्य
अधिकारी भी हैं। ऐसे नहीं कहना कि मुख से निकल गया, किसने आर्डर दिया जो निकल गया!
देखने नहीं चाहते थे, देख लिया। करने नहीं चाहते थे, कर लिया। यह किसके आर्डर पर
होता है? इसको अधिकारी कहेंगे या अधीन कहेंगे? तो अधिकारी बनो, अधीन नहीं। अच्छा।
बापदादा कहते हैं जैसे
अभी मधुबन में सब बहुत-बहुत खुश हो, ऐसे ही सदा खुश-आबाद रहना। रूहे गुलाब हैं। देखो,
चारों ओर देखो सभी रूहे गुलाब खिले हुए गुलाब हैं। मुरझाये हुए नहीं हैं, खिले हुए
गुलाब हैं। तो सदा ऐसे ही खुशनसीब और खुशनुम: चेहरे में रहना। कोई आपके चेहरे को
देखे तो आपसे पूछे - क्या मिला है आपको, बड़े खुश हो! हर एक का चेहरा बाप का परिचय
दे। जैसे चित्र परिचय देते हैं ऐसे आपका चेहरा बाप का परिचय दे कि बाप मिला है।
अच्छा।
सब ठीक हैं? विदेश
वाले भी पहुंच गये हैं। अच्छा लगता है ना यहाँ? (मोहिनी बहन, न्यूयार्क) चलो हलचल
सुनने से तो बच गई। अच्छा किया है, सभी इकट्ठे पहुंच गये हैं, बहुत अच्छा किया है।
अच्छा - डबल फारेनर्स, डबल नशा है ना! कहो इतना नशा है जो दिल कहता है कि अगर हैं
तो हम डबल विदेशी हैं। डबल नशा है, स्वराज्य अधिकारी सो विश्व अधिकारी। डबल नशा है
ना! बापदादा को भी अच्छा लगता है। अगर किसी भी ग्रुप में डबल विदेशी नहीं होते हैं
तो अच्छा नहीं लगता है। विश्व का पिता है ना तो विश्व के चाहिए ना! सब चाहिए। मातायें
नहीं हों तो भी रौनक नहीं। पाण्डव नहीं हो तो भी रौनक कम हो जाती है। देखो जिस
सेन्टर पर कोई पाण्डव नहीं हो सिर्फ मातायें हों तो अच्छा लगेगा! और सिर्फ पाण्डव
हों, शक्तियां नहीं हो, तो भी सेवाकेन्द्र का श्रंगार नहीं लगता है। दोनों चाहिए।
बच्चे भी चाहिए। बच्चे कहते हैं, हमारा नाम क्यों नहीं लिया। बच्चों की भी रौनक है।
अच्छा - अभी एक
सेकण्ड में निराकारी आत्मा बन निराकार बाप की याद में लवलीन हो जाओ। (ड्रिल)
चारों ओर के सर्व
स्वराज्य अधिकारी, सदा साक्षीपन की सीट पर सेट रहने वाली अचल अडोल आत्मायें, सदा
दातापन की स्मृति से सर्व को ज्ञान, शक्ति, गुण देने वाले रहमदिल आत्माओं को, सदा
अपने चेहरे से बाप का चित्र दिखाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा खुशनसीब, खुशनुम:
रहने वाले रूहे गुलाब, रूहानी गुलाब बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:-
(सेवा के साथ सब तरफ 108 घण्टे योग के भी अच्छे प्रोग्राम चल रहे हैं) इस योग ज्वाला
से ही विनाश ज्वाला फोर्स में आयेगी। अभी देखो बनाते हैं प्रोग्राम, फिर सोच में पड़
जाते हैं। योग से विकर्म विनाश होंगे, पाप कर्म का बोझ भस्म होगा, सेवा से पुण्य का
खाता जमा होगा। तो पुण्य का खाता जमा कर रहे हैं लेकिन पिछले जो कुछ संस्कार का बोझ
है, वह भस्म योग ज्वाला से होगा। साधारण योग से नहीं। अभी क्या है, योग तो लगाते
हैं लेकिन पाप भस्म होने का ज्वाला रूप नहीं है इसलिए थोड़ा टाइम खत्म होता है फिर
निकल आता है इसलिए रावण को देखो, मारते हैं, जलाते हैं फिर हड्डियां भी पानी में
डाल देते हैं। बिल्कुल भस्म हो जाए, पिछले संस्कार, कमजोर संस्कार बिल्कुल भस्म हो
जाएं, भस्म नहीं हुए हैं। मरते हैं लेकिन भस्म नहीं होते हैं, मरने के बाद फिर जिंदा
हो जाते हैं। संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन होगा। अभी संस्कारों की लीला चल
रही है। संस्कार बीच-बीच में इमर्ज होते हैं ना! नामनिशान खत्म हो जाए, संस्कार
परिवर्तन - यह है विशेष अण्डरलाइन की बात। संस्कार परिवर्तन नहीं हैं तो व्यर्थ
संकल्प भी हैं। व्यर्थ समय भी है, व्यर्थ नुकसान भी है। होना तो है ही। संस्कार
मिलन की महारास गाई हुई है। अभी रास होती है, महारास नहीं हुई है। (महारास क्यों नहीं
होती हैं?) अण्डरलाइन नहीं है, दृढ़ता नहीं है। अलबेलापन भिन्न-भिन्न प्रकार का है।
अच्छा!
वरदान:-
कर्मयोगी बन
हर संकल्प, बोल और कर्म श्रेष्ठ बनाने वाले निरन्तर योगी भव
कर्मयोगी आत्मा का हर
कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो
योगयुक्त नहीं हैं। अगर साधारण वा व्यर्थ कर्म हो जाता है तो निरन्तर योगी नहीं
कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ
कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसी आत्मा ही निरन्तर
योगी बनती है।
स्लोगन:-
स्वयं प्रिय, लोक प्रिय और प्रभू प्रिय आत्मा ही वरदानी मूर्त है।