ओम् शान्ति।
भक्त जिसकी महिमा करते हैं, तुम उनके सम्मुख बैठे हो, तो कितनी खुशी होनी चाहिए।
उनको कहते हैं शिवाए नम:। तुमको तो नम: नहीं करना है। बाप को बच्चे याद करते हैं,
नम: कभी नहीं करते। यह भी बाप है, इनसे तुमको वर्सा मिलता है। तुम नम: नहीं करते
हो, याद करते हो। जीव की आत्मा याद करती है। बाप ने इस तन का लोन लिया है। वह हमको
रास्ता बता रहे हैं - बाप से बेहद का वर्सा कैसे लिया जाता है। तुम भी अच्छी रीति
जानते हो। सतयुग है सुखधाम और जहाँ आत्मायें रहती हैं उसको कहा जाता है शान्तिधाम।
तुम्हारी बुद्धि में है कि हम शान्तिधाम के वासी हैं। इस कलियुग को कहा ही जाता है
दु:खधाम। तुम जानते हो हम आत्मायें अब स्वर्ग में जाने के लिए, मनुष्य से देवता बनने
के लिए पढ़ रही हैं। यह लक्ष्मी-नारायण देवतायें हैं ना। मनुष्य से देवता बनना है
नई दुनिया के लिए। बाप द्वारा तुम पढ़ते हो। जितना पढ़ेंगे, पढ़ाई में पुरूषार्थ
कोई का तीखा होता है, कोई का ढीला होता है। सतोप्रधान पुरूषार्थी जो होते हैं वह
दूसरे को भी आपसमान बनाने का नम्बरवार पुरूषार्थ कराते हैं, बहुतों का कल्याण करते
हैं। जितना धन से झोली भरकर और दान करेंगे उतना फ़ायदा होगा। मनुष्य दान करते हैं,
उसका दूसरे जन्म में अल्पकाल के लिए मिलता है। उसमें थोड़ा सुख बाकी तो दु:ख ही
दु:ख है। तुमको तो 21 जन्मों के लिए स्वर्ग के सुख मिलते हैं। कहाँ स्वर्ग के सुख,
कहाँ यह दु:ख! बेहद के बाप द्वारा तुमको स्वर्ग में बेहद का सुख मिलता है। ईश्वर
अर्थ दान पुण्य करते हैं ना। वह है इनडायरेक्ट। अभी तुम तो सम्मुख हो ना। अब बाप
बैठ समझाते हैं - भक्ति मार्ग में ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैं तो दूसरे जन्म में
मिलता है। कोई अच्छा करते हैं तो अच्छा मिलता है, बुरा पाप आदि करते हैं तो उसको ऐसा
मिलता है। यहाँ कलियुग में तो पाप ही होते रहते हैं, पुण्य होता ही नहीं। करके
अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। अभी तो तुम भविष्य सतयुग में 21 जन्मों के लिए सदा
सुखी बनते हो। उसका नाम ही है सुखधाम। प्रदर्शनी में भी तुम लिख सकते हो कि
शान्तिधाम और सुखधाम का यह मार्ग है, शान्तिधाम और सुख-धाम में जाने का सहज मार्ग।
अभी तो कलियुग है ना। कलियुग से सतयुग, पतित दुनिया से पावन दुनिया में जाने का सहज
रास्ता - बिगर कौड़ी खर्चा। तो मनुष्य समझें क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं ना। बाप
बिल्कुल सहज करके समझाते हैं। इसका नाम ही है सहज राजयोग, सहज ज्ञान।
बाप तुम बच्चों को कितना सेन्सीबुल बनाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण सेन्सीबुल हैं
ना। भल श्रीकृष्ण के लिए क्या-क्या लिख दिया है, वह हैं झूठे कलंक। श्रीकृष्ण कहता
है मईया मैं नहीं माखन खायो... अब इसका भी अर्थ नहीं समझते। मैं नहीं माखन खायो, तो
बाकी खाया किसने? बच्चे को दूध पिलाया जाता है, बच्चे माखन खायेंगे या दूध पियेंगे!
यह जो दिखाया है मटकी फोड़ी आदि-आदि - ऐसी कोई बातें हैं नहीं। वो तो स्वर्ग का
फर्स्ट प्रिन्स है। महिमा तो एक शिवबाबा की ही है। दुनिया में और किसकी महिमा है नहीं!
इस समय तो सब पतित हैं परन्तु भक्ति मार्ग की भी महिमा है, भक्त माला भी गाई जाती
है ना। फीमेल्स में मीरा का नाम है, मेल्स में नारद मुख्य गाया हुआ है। तुम जानते
हो एक है भक्त माला, दूसरी है ज्ञान की माला। भक्त माला से रूद्र माला के बने हैं
फिर रूद्र माला से विष्णु की माला बनती है। रूद्र माला है संगमयुग की, यह राज़ तुम
बच्चों की बुद्धि में है। यह बातें तुमको बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं। सम्मुख जब
बैठते हो तो तुम्हारे रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। अहो सौभाग्य - 100 प्रतिशत
दुर्भाग्यशाली से हम सौभाग्यशाली बनते हैं। कुमारियां तो काम कटारी के नीचे गई नहीं
हैं। बाप कहते हैं वह है काम कटारी। ज्ञान को भी कटारी कहते हैं। बाप ने कहा है
ज्ञान के अस्त्र शस्त्र, तो उन्होंने फिर देवियों को स्थूल अस्त्र शस्त्र दे दिये
हैं। वह तो हैं हिंसक चीजें। मनुष्यों को यह पता नहीं है कि स्वदर्शन चक्र क्या है?
शास्त्रों में श्रीकृष्ण को भी स्वदर्शन चक्र दे हिंसा ही हिंसा दिखा दी है। वास्तव
में है ज्ञान की बात। तुम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बने हो उन्हों ने फिर हिंसा की बात
दिखा दी है। तुम बच्चों को अब स्व अर्थात् चक्र का ज्ञान मिला है। तुमको बाबा कहते
हैं - ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी। इनका अर्थ भी अभी
तुम समझते हो। तुम्हारे में सारे 84 जन्मों का और सृष्टि चक्र का ज्ञान है। पहले
सतयुग में एक सूर्यवंशी धर्म है फिर चन्द्रवंशी। दोनों को मिलाकर स्वर्ग कहा जाता
है। यह बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार सबकी बुद्धि में हैं। जैसे तुमको बाबा ने
पढ़ाया है, तुम पढ़कर होशियार हुए हो। अब तुमको फिर औरों का कल्याण करना है।
स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। जब तक ब्रह्मा मुख वंशावली नहीं बने तो शिवबाबा से वर्सा
कैसे लेंगे। अभी तुम बने हो ब्राह्मण। वर्सा शिवबाबा से ले रहे हो। यह भूलना नहीं
चाहिए। प्वाइंट नोट करनी चाहिए। यह सीढ़ी है 84 जन्मों की। सीढ़ी उतरने में तो सहज
होती है। जब सीढ़ी चढ़ते हैं तो कमर को हाथ दे कैसे चढ़ते हैं। परन्तु लिफ्ट भी है।
अभी बाबा आते ही हैं तुमको लिफ्ट देने। सेकेण्ड में चढ़ती कला होती है। अब तुम बच्चों
को तो खुशी होनी चाहिए कि हमारी चढ़ती कला है। मोस्ट बील्वेड बाबा मिला है। उन जैसी
प्यारी चीज़ कोई होती नहीं। साधू-सन्त आदि जो भी हैं सब उस एक माशूक को याद करते
हैं, सभी उनके आशिक हैं। परन्तु वह कौन है, यह कुछ भी समझते नहीं हैं। सिर्फ
सर्वव्यापी कह देते हैं।
तुम अभी जानते हो कि शिवबाबा हमको इन द्वारा पढ़ाते हैं। शिवबाबा को अपना शरीर
तो है नहीं। वह है परम आत्मा। परम आत्मा माना परमात्मा। जिसका नाम है शिव। बाकी सब
आत्माओं के शरीर पर नाम अलग-अलग पड़ते हैं। एक ही परम आत्मा है, जिसका नाम शिव है।
फिर मनुष्यों ने अनेक नाम रख दिये हैं। भिन्न-भिन्न मन्दिर बनाये हैं। अभी तुम अर्थ
समझते हो। बाम्बे में बाबुरीनाथ का मन्दिर है, इस समय तुमको कांटों से फूल बनाते
हैं। विश्व के मालिक बनते हो। तो पहली बात मुख्य यह है कि हम आत्माओं का बाप एक है,
उनसे ही भारतवासियों को वर्सा मिलता है। भारत के यह लक्ष्मी-नारायण मालिक हैं ना।
चीन के तो नहीं हैं ना। चीन के होते तो शक्ल ही और होती। यह हैं ही भारत के।
पहले-पहले गोरे फिर सांवरे बनते हैं। आत्मा में ही खाद पड़ती है, सांवरी बनती है।
मिसाल सारा इनके ऊपर है। भ्रमरी कीड़े को चेन्ज कर आपसमान बनाती है। संन्यासी क्या
चेन्ज करते हैं! सफेद कपड़े वाले को गेरू कपड़े पहनाकर माथा मुड़ा देते हैं। तुम तो
यह ज्ञान लेते हो। ऐसे लक्ष्मी-नारायण जैसा शोभनिक बन जायेंगे। अभी तो प्रकृति भी
तमोप्रधान है, तो यह धरती भी तमोप्रधान है। नुकसानकारक है। आसमान में तूफान लगते
हैं, कितना नुकसान करते हैं, उपद्रव होते रहते हैं। अभी इस दुनिया में है परम दु:ख।
वहाँ फिर परम सुख होगा। बाप परम दु:ख से परम सुख में ले जाते हैं। इनका विनाश होता
है फिर सब सतोप्रधान बन जाता है। अभी तुम पुरूषार्थ कर जितना बाप से वर्सा लेना है
उतना ले लो। नहीं तो पिछाड़ी में पश्चाताप करना पड़ेगा। बाबा आया परन्तु हमने कुछ
नहीं लिया। यह लिखा हुआ है - भंभोर को आग लगती है तब कुम्भकरण की नींद से जागते
हैं। फिर हाय-हाय कर मर जाते हैं। हाय-हाय के बाद फिर जय-जयकार होगी। कलियुग में
हाय-हाय है ना। एक-दो को मारते रहते हैं। बहुत ढेर के ढेर मरेंगे। कलियुग के बाद
फिर सतयुग जरूर होगा। बीच में यह है संगम। इसको पुरूषोत्तम युग कहा जाता है। बाप
तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की युक्ति अच्छी बताते हैं। सिर्फ कहते हैं मुझे याद
करो और कुछ भी नहीं करना है। अभी तुम बच्चों को माथा आदि भी नहीं टेकना है। बाबा को
कोई हाथ जोड़ते हैं तो बाबा कहते, न तो तुम आत्मा को हाथ हैं, न बाप को, फिर हाथ
किसको जोड़ते हो। कलियुगी भक्ति मार्ग का एक भी चिन्ह नहीं होना चाहिए। हे आत्मा,
तुम हाथ क्यों जोड़ती हो? सिर्फ मुझ बाप को याद करो। याद का मतलब कोई हाथ जोड़ना नहीं
है। मनुष्य तो सूर्य को भी हाथ जोड़ेंगे, कोई महात्मा को भी हाथ जोड़ेंगे। तुमको
हाथ जोड़ना नहीं है, यह तो मेरा लोन लिया हुआ तन है। परन्तु कोई हाथ जोड़ते हैं तो
रिटर्न में जोड़ना पड़ता है। तुमको तो यह समझना है कि हम आत्मा हैं, हमको इस बंधन
से छूटकर अब वापिस घर जाना है। इनसे तो जैसे ऩफरत आती है। इस पुराने शरीर को छोड़
देना है। जैसे सर्प का मिसाल है। भ्रमरी में भी कितना अक्ल है जो कीड़े को भ्रमरी
बना देती है। तुम बच्चे भी, जो विषय सागर में गोते खा रहे हैं, उनको उससे निकाल
क्षीरसागर में ले जाते हो। अब बाप कहते हैं - चलो शान्तिधाम। मनुष्य शान्ति के लिए
कितना माथा मारते हैं। संन्यासियों को स्वर्ग की जीवनमुक्ति तो मिलती नहीं। हाँ,
मुक्ति मिलती है, दु:ख से छूट शान्तिधाम में बैठ जाते हैं। फिर भी आत्मा पहले-पहले
तो जीवनमुक्ति में आती है। पीछे फिर जीवनबंध में आती है। आत्मा सतोप्रधान है फिर
सीढ़ी उतरती है। पहले सुख भोग फिर उतरते-उतरते तमोप्रधान बन पड़े हैं। अब फिर सबको
वापस ले जाने के लिए बाप आये हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे।
बाप ने समझाया है जिस समय मनुष्य शरीर छोड़ते हैं तो उस समय बड़ी तकलीफ भोगते
हैं क्योंकि सजायें भोगनी पड़ती हैं। जैसे काशी कलवट खाते हैं क्योंकि सुना है शिव
पर बलि चढ़ने से मुक्ति मिल जाती है। तुम अभी बलि चढ़ते हो ना, तो भक्ति मार्ग में
भी फिर वह बातें चलती हैं। तो शिव पर जाकर बलि चढ़ते हैं। अब बाप समझाते हैं वापिस
तो कोई जा नहीं सकते। हाँ, इतना बलिहार जाते हैं तो पाप कट जाते हैं फिर
हिसाब-किताब नयेसिर शुरू होता है। तुम इस सृष्टि चक्र को जान गये हो। इस समय सबकी
उतरती कला है। बाप कहते हैं मैं आकर सर्व की सद्गति करता हूँ। सबको घर ले जाता हूँ।
पतितों को तो साथ नहीं ले जाऊंगा इसलिए अब पवित्र बनो तो तुम्हारी ज्योत जग जायेगी।
शादी के टाइम स्त्री के माथे पर मटकी में ज्योत जगाते हैं। यह रसम भी यहाँ भारत में
ही है। स्त्री के माथे पर मटकी में ज्योत जगाते हैं, पति के ऊपर नहीं जगाते, क्योंकि
पति के लिए तो ईश्वर कहते हैं। ईश्वर पर फिर ज्योत कैसे जगायेंगे। तो बाप समझाते
हैं मेरी तो ज्योत जगी हुई है। मैं तुम्हारी ज्योत जगाता हूँ। बाप को शमा भी कहते
हैं। ब्रह्म-समाजी फिर ज्योति को मानते हैं, सदैव ज्योत जगी रहती है, उनको ही याद
करते हैं, उनको ही भगवान समझते हैं। दूसरे फिर समझते हैं छोटी ज्योति (आत्मा) बड़ी
ज्योति (परमात्मा) में समा जायेगी। अनेक मतें हैं। बाप कहते हैं तुम्हारा धर्म तो
अथाह सुख देने वाला है। तुम स्वर्ग में बहुत सुख देखते हो। नई दुनिया में तुम देवता
बनते हो। तुम्हारी पढ़ाई है ही भविष्य नई दुनिया के लिए, और सब पढ़ाईयां यहाँ के
लिए होती हैं। यहाँ तुमको पढ़कर भविष्य में पद पाना है। गीता में भी बरोबर राजयोग
सिखलाया है। फिर पिछाड़ी में लड़ाई लगी, कुछ भी नहीं रहा। पाण्डवों के साथ कुत्ता
दिखाते हैं। अब बाप कहते हैं मैं तुमको गॉड-गॉडेज बनाता हूँ। यहाँ तो अनेक प्रकार
के दु:ख देने वाले मनुष्य हैं। काम कटारी चलाए कितना दु:खी बनाते हैं। तो अब तुम
बच्चों को यह खुशी रहनी चाहिए कि बेहद का बाप ज्ञान का सागर हमको पढ़ा रहे हैं।
मोस्ट बील्वेड माशूक है। हम आशिक उनको आधाकल्प याद करते हैं। तुम याद करते आये हो,
अब बाप कहते हैं मैं आया हूँ, तुम मेरी मत पर चलो। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को
याद करो। दूसरा न कोई। सिवाए मेरी याद के तुम्हारे पाप भस्म नहीं होंगे। हर बात में
सर्जन से राय पूछते रहो। बाबा राय देंगे - ऐसे-ऐसे तोड़ निभाओ। अगर राय पर चलेंगे
तो कदम-कदम पर पदम मिलेंगे। राय ली तो रेसपॉन्सिबिल्टी छूटी। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेने के लिए डायरेक्ट ईश्वर अर्थ
दान-पुण्य करना है। ज्ञान धन से झोली भरकर सबको देना है।
2) इस पुरूषोत्तम युग में स्वयं को सर्व बन्धनों से मुक्त कर जीवनमुक्त बनना है।
भ्रमरी की तरह भूँ-भूँ कर आप समान बनाने की सेवा करनी है।