ओम् शान्ति।
अब यह गीत तो हुआ रांग क्योंकि परमात्मा कोई शमा तो है नहीं। परमात्मा को वास्तव
में शमा नहीं कहा जाता है। यह तो भक्तों ने अनेक नाम रख दिये हैं। न जानने के कारण
कहते भी हैं - नेती-नेती, हम नहीं जानते, नास्तिक हैं। फिर भी जो नाम आया वह कह देते।
ब्रह्म, शमा, ठिक्कर, भित्तर में भी परमात्मा कह देते क्योंकि भक्ति मार्ग में कोई
भी बाप को यथार्थ रीति पहचान नहीं सकते। बाप को ही आकर अपना परिचय देना है। शास्त्र
आदि कोई में भी बाप का परिचय नहीं है इसलिए उन्हों को नास्तिक कहा जाता है। अब बच्चों
को बाप ने परिचय दिया है, परन्तु अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना, इसमें बहुत ही
बुद्धि का काम है। इस समय हैं पत्थरबुद्धि। आत्मा में बुद्धि है। आरगन्स द्वारा पता
पड़ता है - आत्मा की बुद्धि पारस है या पत्थर है? सारा मदार आत्मा पर है। मनुष्य तो
कह देते हैं आत्मा ही परमात्मा है। वह तो निर्लेप है इसलिए जो चाहो करते रहो।
मनुष्य होकर बाप को ही नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं माया रावण ने सबकी पत्थरबुद्धि
बना दी है। दिन-प्रति-दिन तमोप्रधान जास्ती होते जाते हैं। माया का बहुत जोर है,
सुधरते ही नहीं। बच्चों को समझाया जाता है रात को सारे दिन का पोतामेल निकालो - क्या
किया? हमने भोजन देवताओं मिसल खाया? चलन कायदेसिर चली या अनाड़ियों मिसल? रोजाना
अपना पोतामेल नहीं सम्भालेंगे तो तुम्हारी उन्नति कभी नहीं होगी। बहुतों को माया
थप्पड़ मारती रहती है। लिखते हैं कि आज हमारा बुद्धियोग फलाने के नाम-रूप में गया,
आज यह पाप कर्म हुए। ऐसा सच लिखने वाला कोटों में कोई ही है। बाप कहते हैं मैं जो
हूँ, जैसा हूँ मुझे बिल्कुल नहीं जानते। अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करें तब
कुछ बुद्धि में बैठे। बाप कहते हैं भल अच्छे-अच्छे बच्चे हैं, बहुत अच्छा ज्ञान
सुनाते हैं, योग कुछ नहीं। पहचान पूरी है नहीं, समझ नहीं सकते इसलिए किसको समझा नहीं
सकते। सारी दुनिया के मनुष्य मात्र रचता और रचना को बिल्कुल जानते नहीं तो गोया कुछ
भी नहीं जानते। यह भी ड्रामा में नूँध है। फिर भी होगा। 5 हज़ार वर्ष बाद फिर यह
समय आयेगा और मुझे आकर समझाना होगा। राजाई लेना कम बात नहीं है! बहुत मेहनत है। माया
अच्छा ही वार करती है, बड़ी युद्ध चलती है। बॉक्सिंग होती है ना। बहुत होशियार जो
होते हैं, उनकी ही बॉक्सिंग होती है। फिर भी एक-दो को बेहोश कर देते हैं ना। कहते
हैं बाबा माया के बहुत तूफान आते हैं, यह होता है। सो भी बहुत थोड़े सच लिखते हैं।
बहुत हैं जो छिपा लेते हैं। समझ नहीं कि मुझे बाबा को कैसे सच सुनाना है? क्या
श्रीमत लेनी है? वर्णन नहीं कर सकते। बाप जानते हैं माया बड़ी प्रबल है। सच बतलाने
में बड़ी लज्जा आती है, उनसे कर्म ऐसे हो जाते हैं जो बताने में लज्जा आती है। बाप
तो बहुत रिगार्ड दे उठाते हैं। यह बहुत अच्छा है, इनको आलराउन्ड सर्विस पर भेज दूँगा।
बस देह-अहंकार आया, माया का थप्पड़ खाया, यह गिरा। बाबा तो उठाने लिए महिमा भी करते
हैं। पुचकार दे उठाऊंगा। तुम तो बहुत अच्छे हो। स्थूल सेवा में भी अच्छे हो। परन्तु
यथार्थ रीति बैठ बताते हैं कि मंजिल बहुत भारी है। देह और देह के सम्बन्ध को छोड़
अपने को अशरीरी आत्मा समझना - यह पुरूषार्थ करना बुद्धि का काम है। सब पुरूषार्थी
हैं। कितनी बड़ी राजाई स्थापन हो रही है। बाप के सब बच्चे भी हैं, स्टूडेन्ट भी हैं
तो फालोअर्स भी हैं। यह सारी दुनिया का बाप है। सभी उस एक को बुलाते हैं। वह आकर
बच्चों को समझाते रहते हैं। फिर भी इतना रिगार्ड थोड़ेही रहता है। बड़े-बड़े आदमी
आते हैं, कितना रिगार्ड से उनकी सम्भाल करते हैं। कितना भभका रहता है। इस समय तो
हैं सब पतित। परन्तु अपने को समझते थोड़ेही हैं। माया ने बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि
बना दिया है। कह देते सतयुग की आयु इतनी लम्बी है तो बाप कहते हैं 100 प्रतिशत
बेसमझ हुए ना। मनुष्य होकर और क्या काम करते रहते हैं। 5 हज़ार वर्ष की बात को लाखों
वर्ष कह देते हैं! यह भी बाप आकर समझाते हैं। 5 हज़ार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण
का राज्य था। यह दैवीगुण वाले मनुष्य थे इसलिए उनको देवता, आसुरी गुण वाले को असुर
कहा जाता है। असुर और देवता में रात-दिन का फ़र्क है। कितना मारामारी झगड़ा लगा पड़ा
है। खूब तैयारियाँ होती रहती हैं। इस यज्ञ में सारी दुनिया स्वाहा होनी है। इनके
लिए यह सब तैयारियाँ चाहिए ना। बाम्ब्स निकले सो निकले फिर बन्द थोड़ेही हो सकते।
थोड़े समय के अन्दर सबके पास ढेर हो जायेंगे क्योंकि विनाश तो फटाफट होना चाहिए ना।
फिर हॉस्पिटल आदि थोड़ेही रहेगी। किसको पता भी नहीं पड़ेगा। मासी का घर थोड़ेही है।
विनाश-साक्षात्कार कोई पाई-पैसे की बात नहीं है। सारी दुनिया की आग देख सकेंगे!
साक्षात्कार होता है - सिर्फ आग ही आग लगी हुई है। सारी दुनिया खत्म होनी है। कितनी
बड़ी दुनिया है। आकाश तो नहीं जलेगा। इनके अन्दर जो कुछ है, सब विनाश होना है।
सतयुग और कलियुग में रात-दिन का फर्क है। कितने ढेर मनुष्य हैं, जानवर हैं, कितनी
सामग्री है। यह भी बच्चों की बुद्धि में मुश्किल बैठता है। विचार करो - 5 हज़ार
वर्ष की बात है। देवी-देवताओं का राज्य था ना! कितने थोड़े मनुष्य थे। अब कितने
मनुष्य हैं। अभी है कलियुग, इनका जरूर विनाश होना है।
अब बाप आत्माओं को कहते हैं मामेकम् याद करो। यह भी समझ से याद करना है। ऐसे ही
शिव-शिव तो बहुत कहते रहते हैं। छोटे बच्चे भी कह देते परन्तु बुद्धि में समझ कुछ
नहीं। अनुभव से नहीं कहते कि वह बिन्दी है। हम भी इतनी छोटी बिन्दी हैं। ऐसे समझ से
याद करना है। पहले तो मैं आत्मा हूँ - यह पक्का करो फिर बाप का परिचय बुद्धि में
अच्छी रीति धारण करो। अन्तर्मुखी बच्चे ही अच्छी रीति समझ सकते हैं कि हम आत्मा
बिन्दी हैं। हमारी आत्मा को अभी नॉलेज मिल रही है कि हमारे में 84 जन्मों का पार्ट
कैसे भरा हुआ है, फिर कैसे आत्मा सतोप्रधान बनती है। यह सब बड़ी अन्तर्मुख हो समझने
की बातें हैं। इसमें ही टाइम लगता है। बच्चे जानते हैं हमारा यह अन्तिम जन्म है। अभी
हम जाते हैं घर। यह बुद्धि में पक्का होना चाहिए कि हम आत्मा हैं। शरीर का भान कम
हो तब बातचीत करने में सुधार हो। नहीं तो चलन बिल्कुल ही बदतर हो जाती है क्योंकि
शरीर से अलग होते नहीं। देह-अभिमान में आकर कुछ न कुछ कह देते हैं। यज्ञ से तो बड़े
ऑनेस्ट चाहिए। अभी तो बहुत अलबेले हैं। खान, पान, वातावरण कुछ सुधारा नहीं है। अभी
तो बहुत टाइम चाहिए। सर्विसएबुल बच्चों को ही बाबा याद करते हैं, पद भी वही पा
सकेंगे। ऐसे ही अपने को सिर्फ खुश करना, वह तो चना चबाना है। इसमें बड़ी अन्तर्मुखता
चाहिए। समझाने की भी युक्ति चाहिए। प्रदर्शनी में कोई समझते थोड़ेही हैं। सिर्फ कह
देते कि आपकी बातें ठीक हैं। यहाँ भी नम्बरवार हैं। निश्चय है हम बच्चे बने हैं,
बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता है। अगर हम बाप की पूरी सर्विस करते रहेंगे तो हमारा
तो यही धंधा है। सारा दिन विचार सागर मंथन होता रहेगा। यह बाबा भी विचार सागर मंथन
करता होगा ना। नहीं तो यह पद कैसे पायेगा! बच्चों को दोनों इकट्ठा समझाते रहते हैं।
दो इंजन मिली हैं क्योंकि चढ़ाई बड़ी है ना। पहाड़ी पर जाते हैं तो गाड़ी को दो
इंजन लगाते हैं। कभी-कभी चलते-चलते गाड़ी खड़ी हो जाती है तो खिसक कर नीचे चले आते
हैं। हमारे बच्चों का भी ऐसे हैं। चढ़ते-चढ़ते, मेहनत करते-करते फिर चढ़ाई चढ़ नहीं
सकते। माया का ग्रहण वा तूफान लगता है तो एकदम नीचे गिरकर पुर्जा-पुर्जा हो जाते
हैं। थोड़ी ही सर्विस की तो अहंकार आ जाता है, गिर पड़ते हैं। समझते नहीं कि बाप
है, साथ में धर्मराज भी है। अगर कुछ ऐसा करते हैं तो हमारे ऊपर बहुत भारी दण्ड पड़ता
है इससे तो बाहर में रहें वह अच्छा है। बाप का बनकर और वर्सा लेना, मासी का घर नहीं
हैं। बाप का बनकर और फिर ऐसा कुछ करते हैं तो नाम बदनाम कर देते हैं। बहुत चोट लग
जाती है। वारिस बनना कोई मासी का घर थोड़ेही है। प्रजा में कोई इतने साहूकार बनते
हैं, बात मत पूछो। अज्ञानकाल में कोई अच्छे होते हैं, कोई कैसे! नालायक बच्चे को तो
कह देंगे हमारे सामने से हट जाओ। यहाँ एक-दो बच्चे की तो बात नहीं। यहाँ माया बड़ी
जबरदस्त है। इसमें बच्चों को बहुत अन्तर्मुख होना है, तब तुम किसको समझा सकेंगे।
तुम्हारे पर बलिहार जायेंगे और फिर बहुत पछतायेंगे - हम बाप के लिए इतनी गाली देते
आये। सर्वव्यापी कहना या अपने को ईश्वर कहना, उन्हों के लिए सज़ा कम थोड़ेही है।
ऐसेही थोड़ेही चले जायेंगे। उन्हों के लिए तो और ही मुसीबत है। जब समय आयेगा तो बाप
इन सबसे हिसाब लेंगे। कयामत के समय सबका हिसाब-किताब चुक्तू होता है ना, इसमें बड़ी
विशालबुद्धि चाहिए।
मनुष्य तो देखो किस-किस को पीस प्राइज़ देते रहते हैं। अब वास्तव में पीस करने
वाला तो एक है ना। बच्चों को लिखना चाहिए - दुनिया में प्योरिटी-पीस-प्रासपर्टी
भगवान की श्रीमत पर स्थापन हो रही है। श्रीमत तो मशहूर है। श्रीमत भगवत गीता
शास्त्र को कितना रिगार्ड देते हैं। कोई ने किसके शास्त्र वा मन्दिर को कुछ किया तो
कितना लड़ पड़ते हैं। अभी तुम जानते हो यह सारी दुनिया ही जलकर भस्म हो जायेगी। यह
मन्दिर-मस्जिद आदि को जलाते रहेंगे। ये सब होने के पहले पवित्र होना है। यह ओना लगा
रहे। घरबार भी सम्भालना है। यहाँ आते तो ढेर के ढेर हैं। यहाँ बकरियों मुआफिक तो नहीं
रखना है ना क्योंकि यह तो अमूल्य जीवन है, इनको तो बहुत सम्भाल से रखना है। बच्चों
आदि को ले आना - यह बन्द कर देना होगा। इतने बच्चों को कहाँ बैठ सम्भालेंगे। बच्चों
को छुट्टियाँ मिली तो समझते हैं और कहाँ जायें, चलो मधुबन में बाबा के पास जाते
हैं। यह तो जैसे धर्मशाला हो जाए। फिर युनिवर्सिटी कैसे हुई! बाबा जांच कर रहे हैं
फिर कब आर्डर कर देंगे - बच्चे कोई भी न ले आये। यह बन्धन भी कम हो जायेंगे। माताओं
पर तरस पड़ता है। यह भी बच्चे जानते हैं शिवबाबा तो है गुप्त। इनका भी किसको
रिगार्ड थोड़ेही है। समझते हैं हमारा तो शिवबाबा से कनेक्शन है। इतना भी समझते नहीं
- शिवबाबा ही तो इन द्वारा समझाते हैं ना। माया नाक से पकड़ उल्टा काम कराती रहती
है, छोड़ती ही नहीं। राजधानी में तो सब चाहिए ना। यह सब पिछाड़ी में साक्षात्कार
होंगे। सजाओं के भी साक्षात्कार होंगे। बच्चों को पहले भी यह सब साक्षात्कार हुए
हैं। फिर भी कोई-कोई पाप करना छोड़ते नहीं। कई बच्चों ने जैसे गांठ बांध ली है कि
हमको तो बनना ही थर्ड क्लास है, इसलिए पाप करना छोड़ते ही नहीं। और ही अच्छी रीति
अपनी सजायें तैयार कर रहे हैं। समझाना तो पड़ता है ना। यह गांठ नहीं बांधो कि हमको
तो थर्ड क्लास ही बनना है। अभी गांठ बांधो कि हमको ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनना है। कोई
तो अच्छी गांठ बांधते हैं, चार्ट लिखते हैं - आज के दिन हमने कुछ किया तो नहीं! ऐसे
चार्ट भी बहुत रखते थे, वह आज हैं नहीं। माया बहुत पछाड़ती है। आधाकल्प मैं सुख देता
हूँ तो आधाकल्प फिर माया दु:ख देती है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्तर्मुखी बनकर शरीर के भान से परे रहने का अभ्यास करना है, खान-पान,
चाल-चलन सुधारना है सिर्फ अपने को खुश करके अलबेला नहीं होना है।
2) चढ़ाई बहुत ऊंची है, इसलिए बहुत-बहुत खबरदार होकर चलना है। कोई भी कर्म
सम्भालकर करना है। अहंकार में नहीं आना है। उल्टा कर्म करके सजायें नहीं तैयार करनी
है। गांठ बांधनी है कि हमें इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बनना ही है।