ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं। रूहानी बच्चे सुन रहे हैं। पहले-पहले
बाप समझाते हैं जब भी बैठो तो अपने को आत्मा समझकर बैठो। देह न समझो। देह-अभिमानी
को आसुरी सम्प्रदाय कहा जाता है। देही-अभिमानियों को ईश्वरीय सम्प्रदाय कहा जाता
है। ईश्वर को देह है नहीं। वह सदैव आत्म-अभिमानी है। वह है सुप्रीम आत्मा, सभी
आत्माओं का बाप। परम आत्मा अर्थात् ऊंचे ते ऊंचा। मनुष्य जब ऊंचे ते ऊंचा भगवान कहते
हैं तो बुद्धि में आता है वह निराकार लिंग रूप है। निराकार लिंग की पूजा भी होती
है। वह है परमात्मा यानी सभी आत्माओं से ऊंच। है वह भी आत्मा परन्तु ऊंच आत्मा। वह
जन्म-मरण में नहीं आते हैं। बाकी सब पुनर्जन्म लेते हैं और सभी हैं रचना। रचता तो
एक ही बाप है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी रचना है। मनुष्य सृष्टि भी सारी है रचना। रचता
को बाप कहा जाता है। पुरुष को भी रचता कहा जाता है। स्त्री को एडाप्ट करते हैं फिर
उनसे क्रियेट करते हैं, पालना करते हैं। बस विनाश नहीं करते हैं और जो धर्म स्थापक
होते हैं वह भी क्रियेट करते हैं, फिर उनकी पालना करते हैं। विनाश कोई भी नहीं करते।
बेहद का बाप जिसको परम आत्मा कहा जाता है, जैसे आत्मा का रूप बिन्दी है वैसे ही
परमपिता परमात्मा का भी रूप बिन्दी है। बाकी इतना बड़ा लिंग जो बनाते हैं वह सब
भक्ति मार्ग में पूजा के कारण। बिन्दी की पूजा कैसे हो सकती। भारत में रूद्र यज्ञ
रचते हैं तो मिट्टी का शिवलिंग और सालिग्राम बनाकर फिर उनकी पूजा करते हैं। उनको
रूद्र यज्ञ कहा जाता है। वास्तव में असली नाम है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र गीता
ज्ञान यज्ञ। जो शास्त्रों में भी लिखा हुआ है। अब बाप बच्चों को कहते हैं अपने को
आत्मा समझो। और जो भी सतसंग हैं उसमें आत्मा या परमात्मा का ज्ञान न कोई में है, न
दे सकते हैं। वहाँ तो कोई एम आबजेक्ट होती नहीं। तुम बच्चे तो अभी पढ़ाई पढ़ रहे
हो। तुम जानते हो आत्मा शरीर में प्रवेश करती है। आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी
है, शरीर द्वारा पार्ट बजाती है। आत्मा तो अशरीरी है ना। कहते भी हैं नंगे आये हैं,
नंगे जाना है। शरीर धारण किया फिर शरीर छोड़कर नंगे जाना है। यह बाप तुम बच्चों को
ही बैठ समझाते हैं। यह भी बच्चे जानते हैं भारत में सतयुग था तो देवी-देवताओं का
राज्य था, एक ही धर्म था। यह भी भारत-वासी नहीं जानते हैं। बाप को जिसने नहीं जाना
उसने कुछ नहीं जाना। प्राचीन ऋषि-मुनि भी कहते थे - हम रचता और रचना को नहीं जानते
हैं। रचयिता है बेहद का बाप, वही रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। आदि कहा जाता
है शुरू को, मध्य बीच को। आदि है सतयुग, जिसको दिन कहा जाता है, फिर मध्य से अन्त
तक है रात। दिन है सतयुग-त्रेता, स्वर्ग है वन्डर ऑफ वर्ल्ड। भारत ही स्वर्ग था,
जिसमें लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे, यह भारतवासी नहीं जानते हैं। बाप अभी स्वर्ग
की स्थापना कर रहे हैं।
बाप कहते हैं तुम अपने को आत्मा समझो। हम फर्स्टक्लास आत्मा हैं। इस समय
मनुष्यमात्र सब देह-अभिमानी हैं। बाप आत्म-अभिमानी बनाते हैं। आत्मा क्या चीज़ है,
यह भी बाप बतलाते हैं। मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। भल कहते भी हैं भृकुटी के बीच
चमकता है अजब सितारा परन्तु वह क्या है, कैसे उसमें पार्ट भरा हुआ है, वह कुछ भी नहीं
जानते। अभी तुमको बाप ने समझाया है, तुम भारतवासियों को 84 जन्मों का पार्ट बजाना
होता है। भारत ही ऊंच खण्ड है, जो भी मनुष्य मात्र हैं, उनका यह तीर्थ है, सर्व की
सद्गति करने बाप यहाँ आते हैं। रावण राज्य से लिबरेट कर गाइड बन ले जाते हैं।
मनुष्य तो ऐसे ही कह देते, अर्थ कुछ भी नहीं जानते। भारत में पहले देवी-देवता थे।
उन्हों को ही फिर पुनर्जन्म लेना पड़ता है। भारतवासी ही सो देवता फिर क्षत्रिय,
वैश्य, शूद्र बनते हैं। पुनर्जन्म लेते हैं ना। इस नॉलेज को पूरी रीति समझने में 7
रोज़ लगते हैं। पतित बुद्धि को पावन बनाना है। यह लक्ष्मी-नारायण पावन दुनिया में
राज्य करते थे ना। उन्हों का ही राज्य भारत में था तो और कोई धर्म नहीं था। एक ही
राज्य था। भारत कितना सालवेन्ट था। हीरे-जवाहरों के महल थे फिर रावण राज्य में
पुजारी बने हैं। फिर भक्ति मार्ग में यह मन्दिर आदि बनाये हैं। सोमनाथ का मन्दिर था
ना। एक मन्दिर तो नहीं होगा। यहाँ भी शिव के मन्दिर में इतने तो हीरे जवाहर थे जो
मुहम्मद गजनवी ऊंट भरकर ले गये। इतने माल थे, ऊंट तो क्या कोई लाखों ऊंट ले आये तो
भी भर न सकें। सतयुग में सोने, हीरे-जवाहरों के तो अनेक महल थे। मुहम्मद गजनवी तो
अभी आया है। द्वापर में भी कितने महल आदि होते हैं। वह फिर अर्थक्वेक में अन्दर चले
जाते हैं। रावण की कोई सोने की लंका होती नहीं है। रावण राज्य में तो भारत का यह
हाल हो जाता है। 100 परसेन्ट इरिलीजस, अनराइटियस, इनसालवेन्ट, पतित विशश, नई दुनिया
को कहा जाता है वाइसलेस। भारत शिवालय था, जिसको वन्डर ऑफ वर्ल्ड कहा जाता है। बहुत
थोड़े मनुष्य थे। अभी तो करोड़ों मनुष्य हैं। विचार करना चाहिए ना। अभी तुम बच्चों
के लिए यह पुरुषोत्तम संगमयुग है, जबकि बाप तुमको पुरुषोत्तम, पारसबुद्धि बना रहे
हैं। बाप मनुष्य से देवता बनने की तुम्हें सुमत देते हैं। बाप की मत के लिए ही गाया
जाता है तुम्हरी गत-मत न्यारी..... इसका भी अर्थ कोई नहीं जानते। बाप समझाते हैं
मैं ऐसी श्रेष्ठ मत देता हूँ जो तुम देवता बन जाते हो। अब कलियुग पूरा होता है,
पुरानी दुनिया का विनाश सामने खड़ा है। मनुष्य बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में
कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं क्योंकि कहते हैं शास्त्रों में लिखा है -
कलियुग तो अभी बच्चा है, 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं। 84 लाख योनियाँ समझने के कारण
कल्प की आयु भी लम्बी-चौड़ी कर दी है। वास्तव में है 5 हज़ार वर्ष। बाप समझाते हैं
तुम 84 जन्म लेते हो, न कि 84 लाख। बेहद का बाप तो इन सभी शास्त्रों आदि को जानते
हैं तब तो कहते हैं यह सब हैं भक्ति मार्ग के, जो आधाकल्प चलते हैं, इससे कोई मुझे
नहीं मिलते। यह भी विचार करने की बात है कि अगर कल्प की आयु लाखों वर्ष दें फिर तो
संख्या बहुत होनी चाहिए। जबकि क्रिश्चियन की संख्या 2 हज़ार वर्ष में इतनी हुई है।
भारत का असुल धर्म देवी-देवता धर्म है, वह चला आना चाहिए परन्तु आदि सनातन
देवी-देवता धर्म को भूल जाने कारण कह देते हमारा हिन्दू धर्म है। हिन्दू धर्म तो
होता ही नहीं। भारत कितना ऊंच था। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था तो विष्णुपुरी थी।
अब है रावणपुरी। वही देवी-देवतायें 84 जन्म के बाद क्या बन गये हैं। देवताओं को
वाइसलेस समझ, अपने को विशश समझ उन्हों की पूजा करते हैं। सतयुग में भारत वाइसलेस
था, नई दुनिया थी, जिसको नया भारत कहते हैं। यह है पुराना भारत। नया भारत क्या था,
पुराना भारत क्या है, नई दुनिया में भारत ही नया था, अब पुरानी दुनिया में भारत भी
पुराना है। क्या गति हो गई है। भारत ही स्वर्ग था, अभी नर्क है। भारत मोस्ट
सालवेन्ट था, भारत ही मोस्ट इनसालवेन्ट है, सबसे भीख मांग रहे हैं। प्रजा से भी भीख
मांगते हैं। यह तो समझ की बात है ना। आज के देह-अभिमानी मनुष्यों को थोड़ा पैसा मिला
तो समझते हैं हम तो स्वर्ग में बैठे हैं। सुखधाम (स्वर्ग) को बिल्कुल जानते नहीं
क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं। अब उन्हें पारसबुद्धि बनाने के लिए 7 रोज़ की भट्ठी में
बिठाओ क्योंकि पतित हैं ना। पतित को यहाँ तो बिठा नहीं सकते। यहाँ पावन ही रह सकते
हैं। पतित को एलाउ नहीं कर सकते।
तुम अभी पुरुषोत्तम संगमयुग पर बैठे हो। जानते हो बाबा हमको ऐसा पुरुषोत्तम बनाते
हैं। यह सच्ची सत्य नारायण की कथा है। सत्य बाप तुमको नर से नारायण बनने का राजयोग
सिखला रहे हैं। ज्ञान सिर्फ एक बाप के पास है, जिसको ज्ञान का सागर कहा जाता है।
शान्ति का सागर, पवित्रता का सागर, यह उस एक की ही महिमा है। दूसरे कोई की महिमा हो
नहीं सकती। देवताओं की महिमा अलग है, परमपिता परमात्मा शिव की महिमा अलग है। वह है
बाप। श्रीकृष्ण है देवता।सूर्यवंशी सो चन्द्रवंशी सो वैश्यवंशी....., मनुष्य हम सो
का अर्थ भी समझते नहीं। हम आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं, कितना रांग है। अभी तुम
समझाते हो कि भारत की चढ़ती कला और उतरती कला कैसे होती है। यह है ज्ञान, वह सब है
भक्ति। सतयुग में सब पावन थे, राजा-रानी का राज्य चलता था। वहाँ वजीर भी नहीं होता
है क्योंकि राजा-रानी खुद ही मालिक हैं। बाप से वर्सा लिया हुआ है। उनमें अक्ल है,
लक्ष्मी-नारायण को कोई के राय लेने की दरकार नहीं है। वहाँ वजीर होते नहीं। भारत
जैसा पवित्र देश कोई था नहीं। महान् पवित्र देश था। नाम ही था स्वर्ग, अभी है नर्क।
नर्क से फिर स्वर्ग बाप ही बनायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप की सुमत पर चलकर मनुष्य से देवता बनना है। इस सुहावने संगमयुग
पर स्वयं को पुरुषोत्तम पारसबुद्धि बनाना है।
2) 7 रोज़ की भट्ठी में बैठ पतित बुद्धि को पावन बुद्धि बनाना है। सत्य बाप से
सत्य नारायण की सच्ची कथा सुन नर से नारायण बनना है।