ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं। बच्चे यह तो अच्छी रीति
समझते हैं कि शुरू में आत्मायें सब पवित्र रहती हैं। हम ही पावन थे, पतित और पावन
यह आत्मा के लिए ही कहा जाता है। आत्मा पावन है तो सुख है। बुद्धि में आता है कि हम
पावन बनेंगे तो पावन दुनिया के मालिक बनेंगे। इसके लिए ही पुरूषार्थ करते हैं। 5
हज़ार वर्ष पहले पावन दुनिया थी। उसमें आधाकल्प तुम पावन थे, बाकी रहा आधाकल्प। यह
बातें और कोई समझ नहीं सकते। तुम जानते हो पतित और पावन, सुख और दु:ख, दिन और रात
आधा-आधा है। जो अच्छे समझदार हैं, जिन्होंने बहुत भक्ति की है, वही अच्छी रीति
समझेंगे। बाप कहते हैं - मीठे बच्चों, तुम पावन थे। नई दुनिया में सिर्फ तुम ही थे।
बाकी जो इतने सब हैं वह शान्तिधाम में थे। पहले-पहले हम पावन थे और बहुत थोड़े थे
फिर नम्बरवार मनुष्य सृष्टि वृद्धि को पाती है। अब तुम मीठे बच्चों को कौन समझा रहे
हैं? बाप। आत्माओं को परमात्मा बाप समझाते हैं, इसको कहा जाता है संगम। इसको ही
कुम्भ कहा जाता है। मनुष्य इस संगमयुग को भूल गये हैं। बाबा ने समझाया है 4 युग होते
हैं, पांचवा यह छोटा-सा लीप संगमयुग है। इसकी आयु छोटी है। बाप कहते हैं मैं इनकी
वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ, बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में। बच्चों
को यह खातिरी है ना। बाप ने इनमें प्रवेश किया है, इनकी भी बायोग्राफी सुनाई है।
बाप कहते हैं मैं आत्माओं से ही बात करता हूँ। आत्मा और शरीर दोनों का इकट्ठा पार्ट
होता है। इनको कहा जाता है जीव आत्मा। पवित्र जीव आत्मा, अपवित्र जीव आत्मा। तुम
बच्चों की बुद्धि में है कि सतयुग में बहुत थोड़े देवी-देवता होते हैं। फिर अपने
लिए भी कहेंगे हम जीवात्मा जो सतयुग में पावन थी वह फिर 84 जन्मों के बाद पतित बनी
हैं। पतित से पावन, पावन से पतित - यह चक्र फिरता ही रहता है। याद भी उस पतित-पावन
बाप को करते हैं। तो हर 5 हजार वर्ष बाद बाबा एक ही बार आते हैं, आकर स्वर्ग की
स्थापना करते हैं। भगवान् एक है, जरूर वही पुरानी दुनिया को नया बनायेंगे। फिर नये
को पुराना कौन बनाता है? रावण, क्योंकि रावण ही देह-अभिमानी बनाते हैं। दुश्मन को
जलाया जाता है, मित्र को नहीं जलाया जाता है। सर्व का मित्र एक ही बाप है जो सर्व
की सद्गति करते हैं। उनको सब याद करते हैं क्योंकि वह है ही सबको सुख देने वाला। तो
जरूर दु:ख देने वाला भी कोई होगा। वह है 5 विकारों रूपी रावण। आधाकल्प रामराज्य,
आधाकल्प रावण राज्य। स्वास्तिका निकालते हैं ना। इसका भी अर्थ बाप समझाते हैं। इसमें
पूरा चौथा होता है। जरा भी कम जास्ती नहीं। यह ड्रामा बड़ा एक्यूरेट है। कोई समझते
हैं हम इस ड्रामा से निकल जायें, बहुत दु:खी हैं इससे तो जाकर ज्योति ज्योत समायें
वा ब्रह्म में लीन हो जायें। लेकिन कोई भी जा नहीं सकता। क्या-क्या ख्यालात करते
हैं। भक्ति मार्ग में प्रयत्न भी भिन्न-भिन्न करते हैं। संन्यासी शरीर छोड़ेंगे तो
ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि स्वर्ग वा वैकुण्ठ पधारा। प्रवृत्ति मार्ग वाले कहेंगे फलाना
स्वर्ग पधारा। आत्माओं को स्वर्ग याद है ना। तुमको तो सबसे ज्यादा याद है। तुमको
दोनों की हिस्ट्री-जॉग्राफी का पता है, और कोई को पता नहीं। तुमको भी पता नहीं था।
बाप बैठ बच्चों को सब राज़ समझाते हैं।
यह मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष है। वृक्ष का जरूर बीज भी होना चाहिए। बाप ही समझाते
हैं, पावन दुनिया कैसे पतित बनती हैं फिर मैं पावन बनाता हूँ। पावन दुनिया को कहा
जाता है स्वर्ग। स्वर्ग पास्ट हो गया फिर जरूर रिपीट होना है इसलिए कहा जाता है
वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट होती है अर्थात् वर्ल्ड ही पुरानी से नई, नई से पुरानी
होती है। रिपीट माना ही ड्रामा है। ‘ड्रामा' अक्षर बहुत अच्छा है, शोभता है। चक्र
हूबहू फिरता ही रहता है, नाटक को हूबहू नहीं कहा जाता। कोई बीमार हो पड़ते हैं तो
छुट्टी ले लेते हैं। तो तुम बच्चों की बुद्धि में है - हम पूज्य देवता थे फिर पुजारी
बनें। बाप आकर पतित से पावन बनने की युक्ति बताते हैं जो कि 5 हज़ार वर्ष पहले बताई
थी। सिर्फ कहते हैं बच्चों मुझे याद करो। बाप पहले-पहले तुमको आत्म-अभिमानी बनाते
हैं। पहले-पहले यह शब्क (पाठ) देते हैं - बच्चे, अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो।
इतना तुमको याद कराता हूँ, तुम फिर भी भूल जाते हो! भूलते ही रहेंगे जब तक ड्रामा
का अन्त आये। अन्त में जब विनाश का समय होगा तब पढ़ाई पूरी होगी फिर तुम शरीर छोड़
देंगे। जैसे सर्प भी एक पुरानी खाल छोड़ देते हैं ना। तो बाप भी समझाते हैं तुम जब
बैठते हो अथवा चलते फिरते हो, देही-अभिमानी होकर रहो। आगे तुमको देह-अभिमान था। अब
बाप कहते हैं आत्म-अभिमानी बनो। देह-अभिमान में आने से तुमको 5 विकार पकड़ लेते
हैं। आत्म-अभिमानी बनने से कोई विकार पकड़ेगा नहीं। देही-अभिमानी बन बाप को बहुत
प्यार से याद करना है। आत्माओं को परमात्मा बाप का प्यार मिलता है, इस संगमयुग पर।
इसको कल्याणकारी संगम कहा जाता है, जबकि बाप और बच्चे आकर मिलते हैं। तुम आत्मायें
भी शरीर में हो। बाप भी शरीर में आकर तुमको आत्मा निश्चय कराते हैं। बाप एक ही बार
आते हैं, जबकि सभी को वापिस ले जाना है। समझाते भी हैं - हम तुमको कैसे वापिस ले
जायेंगे। तुम कहते भी हो हम सभी पतित हैं, आप पावन हो। आप आकर हमको पावन बनाओ। तुम
बच्चों को पता नहीं है कि बाबा कैसे पावन बनायेंगे। जब तक बनावे नहीं तब तक क्या
जानें। यह भी तुम समझते हो आत्मा छोटा सितारा है। बाप भी छोटा सितारा है। परन्तु वह
ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर है। तुमको भी आप समान बनाते हैं। यह ज्ञान तुम बच्चों
को है जो तुम फिर सबको समझाते हो। फिर सतयुग में जब तुम होंगे तो यह ज्ञान सुनायेंगे
क्या? नहीं। ज्ञान सागर बाप तो एक ही है जो तुमको अभी ही पढ़ाते हैं। जीवन कहानी तो
सबकी चाहिए ना। वह बाप सुनाते ही रहते हैं। परन्तु तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो,
तुम्हारी माया के साथ युद्ध है। तुम फील करते हो बाबा को हम याद करते हैं, फिर भूल
जाते हैं। बाप कहते हैं माया ही तुम्हारी दुश्मन है, जो तुमको भुला देती है अर्थात्
बाप से बेमुख कर देती है। तुम बच्चे एक ही बार बाप के सम्मुख होते हो। बाप एक ही
बार वर्सा देते हैं। फिर बाप को सम्मुख आने की दरकार ही नहीं। पाप आत्मा से पुण्य
आत्मा, स्वर्ग का मालिक बनाया। बस। फिर क्या आकर करेंगे। तुमने बुलाया और मैं
बिल्कुल पूरे टाइम पर आया। हर 5 हज़ार वर्ष बाद मैं अपने समय पर आता हूँ। यह किसको
भी पता नहीं है। शिवरात्रि क्यों मनाते हैं, उसने क्या किया? किसको भी पता नहीं है
इसलिए शिवरात्रि की हॉली डे आदि कुछ नहीं करते हैं। और सबकी हॉली डे करते हैं लेकिन
शिवबाबा आते हैं, इतना पार्ट बजाते हैं, उनका कोई को पता नहीं पड़ता। अर्थ ही नहीं
जानते। भारत में कितना अज्ञान है।
तुम बच्चे जानते हो कि शिवबाबा ही ऊंच ते ऊंच है तो जरूर मनुष्यों को ऊंच ते ऊंच
बनायेंगे। बाप कहते हैं मैंने इनको ज्ञान दिया, योग सिखाया फिर वह नर से नारायण बना।
उन्होंने यह नॉलेज सुनी है। यह ज्ञान तुम्हारे लिए ही है, और किसके लिए शोभता नहीं।
तुमको फिर से बनना है, और कोई नहीं बनते। यह है नर से नारायण बनने की कथा। जिन्होंने
और धर्म स्थापन किये, सब पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बने हैं फिर उन सबको
सतोप्रधान बनना है। उस पद के अनुसार फिर रिपीट करना है। ऊंच पार्टधारी बनने के लिए
तुम कितना पुरूषार्थ कर रहे हो। कौन पुरूषार्थ करा रहे हैं? बाबा। तुम ऊंच बन जाते
हो फिर कभी याद भी नहीं करते हो। स्वर्ग में थोड़ेही याद करेंगे। ऊंच ते ऊंच बाप
है, फिर बनाते भी ऊंच हैं। नारायण से पहले तो श्रीकृष्ण है। फिर तुम ऐसे क्यों कहते
हो कि नर से नारायण बनें? क्यों नहीं कहते हो नर से कृष्ण बनें? पहले नारायण थोड़ेही
बनेंगे? पहले तो प्रिन्स श्रीकृष्ण बनेंगे ना। बच्चा तो फूल होता है वह तो फिर भी
युगल बन जाते हैं। महिमा ब्रह्मचारी की होती है। छोटे बच्चे को सतोप्रधान कहा जाता
है, तुम बच्चों को ख्याल में आना चाहिए - हम पहले-पहले जरूर प्रिन्स बनेंगे। गाया
भी जाता है - बेगर टू प्रिन्स। बेगर किसको कहा जाता है? आत्मा को ही शरीर के साथ
बेगर वा साहूकार कहते हैं। इस समय तुम जानते हो सभी बेगर्स बन जाते हैं। सब खत्म हो
जाते हैं। तुमको इस समय ही बेगर बनना है, शरीर सहित। पाई पैसे जो कुछ हैं ख़त्म हो
जायेंगे। आत्मा को बेगर बनना है, सब कुछ छोड़ना है। फिर प्रिन्स बनना है। तुम जानते
हो धन दौलत आदि सब छोड़कर बेगर बन हम घर जायेंगे। फिर नई दुनिया में प्रिन्स बनकर
आयेंगे। जो कुछ भी है, सब कुछ छोड़ना है। यह पुरानी चीज़ कोई काम की नहीं है। आत्मा
पवित्र हो जायेगी फिर यहाँ आयेगी पार्ट बजाने। कल्प पहले मिसल। जितना-जितना तुम
धारणा करेंगे उतना ऊंच पद मिलेगा। भल इस समय किसी के पास 5 करोड़ हैं, सब ख़त्म हो
जायेंगे। हम फिर से अपनी नई दुनिया में जाते हैं। यहाँ तुम आये हो नई दुनिया में
जाने के लिए। और कोई सतसंग नहीं जिसमें कोई समझे कि हम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे
हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में है बाबा हमको पहले बेगर बनाकर फिर प्रिन्स बनाते
हैं। देह के सब सम्बन्ध छोड़े तो बेगर ठहरा ना। कुछ भी है नहीं। अभी भारत में कुछ
भी नहीं है। भारत अभी बेगर, इनसालवेन्ट है। फिर सालवेन्ट होगा। कौन बनते हैं? आत्मा
शरीर द्वारा बनती है। अभी राजा-रानी भी हैं नहीं। वह भी इनसालवेन्ट हैं, राजा-रानी
का ताज भी नहीं है। न वह ताज है, न रत्न जड़ित ताज है। अन्धेरी नगरी है, सर्वव्यापी
कह देते हैं। गोया सबमें भगवान् है। सब एक समान हैं, कुत्ते-बिल्ली सबमें है इसको
कहा जाता है अन्धेर नगरी.... तुम ब्राह्मणों की रात थी। अब समझते हो ज्ञान दिन आ रहा
है। सतयुग में सभी जागती ज्योत हैं। अभी दीवा बिल्कुल डल हो गया है। भारत में ही
दीवा जगाने की रस्म है। और कोई थोड़ेही दीवा जगाते हैं। तुम्हारी ज्योत उझाई हुई
है। सतोप्रधान विश्व के मालिक थे, वह ताकत कम होते-होते अभी कुछ ताकत ही नहीं रही
है। फिर बाप आये हैं तुमको ताकत देने। बैटरी भरती है। आत्मा को परमात्मा बाप की याद
रहने से बैटरी भरती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अब नाटक पूरा हो रहा है, हमें वापिस जाना है इसलिए आत्मा को बाप की
याद से सतोप्रधान, पावन जरूर बनाना है। बाप समान ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर अभी
ही बनना है।
2) इस देह से भी पूरा बेगर बनने के लिए बुद्धि में रहे कि इन आंखों से जो कुछ भी
देखते हैं, यह सब खत्म हो जाना है। हमें बेगर से प्रिन्स बनना है। हमारी पढ़ाई है
ही नई दुनिया के लिए।