ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों को बाप ने समझाया है, यहाँ तुम बच्चों को इस ख्याल से जरूर बैठना होता
है, यह बाबा भी है, टीचर और सतगुरू भी है। और यह भी महसूस करते हो - बाबा को याद
करते-करते पवित्र बन, पवित्रधाम में जाकर पहुँचेंगे। बाप ने समझाया है कि पवित्रधाम
से ही तुम नीचे उतरते हो। उसका नाम ही है पवित्रधाम। सतोप्रधान से फिर सतो, रजो, तमो.....
अभी तुम समझते हो कि हम नीचे गिरे हुए हैं अर्थात् वेश्यालय में हैं। भल तुम
संगमयुग पर हो, परन्तु ज्ञान से तुम जानते हो कि हमने किनारा किया हुआ है फिर भी
अगर हम शिवबाबा की याद में रहते हैं तो शिवालय दूर नहीं। शिवबाबा को याद नहीं करते
तो शिवालय बहुत दूर है। सजायें खानी पड़ती हैं तो बहुत दूर हो जाता है। तो बाप बच्चों
को कोई जास्ती तकलीफ नहीं देते हैं। एक तो बार-बार कहते हैं मन्सा-वाचा-कर्मणा
पवित्र बनना है। यह आंखें भी बड़ा धोखा देती हैं, इनसे बहुत सम्भालकर चलना होता है।
बाप ने समझाया है कि ध्यान और योग बिल्कुल अलग है। योग अर्थात् याद। आंखें खुली होते
भी तुम याद कर सकते हो। ध्यान को कोई योग नहीं कहा जाता। भोग भी ले जाते हैं तो
डायरेक्शन अनुसार ही जाना है। इसमें माया भी बहुत आती है। माया ऐसी है जो एकदम नाक
में दम कर देती है। जैसे बाप बलवान है, वैसे माया भी बड़ी बलवान है। इतनी बलवान है
जो सारी दुनिया को वेश्यालय में ढकेल दिया है इसलिए इसमें बहुत खबरदारी रखनी होती
है। बाप की कायदे अनुसार याद चाहिए। बेकायदे कोई काम किया तो एकदम गिरा देती है।
ध्यान आदि की कभी कोई इच्छा नहीं रखनी है। इच्छा मात्रम् अविद्या..... बाप तुम्हारी
सब मनोकामनायें बिगर मांगे पूरी कर देते हैं, अगर बाप की आज्ञा पर चले तो। अगर बाप
की आज्ञा न मान उल्टा रास्ता लिया तो हो सकता है स्वर्ग के बदले नर्क में ही गिर
जाएं। गायन भी है गज को ग्राह ने खाया। बहुतों को ज्ञान देने वाले, भोग लगाने वाले
आज हैं कहाँ, क्योंकि बेकायदे चलन के कारण पूरे मायावी बन जाते हैं। डीटी बनते-बनते
डेविल बन जाते हैं। बाप जानते हैं कि बहुत अच्छे पुरुषार्थी जो देवता बनने वाले थे
वह असुर बन असुरों के साथ रहते हैं। ट्रेटर हो जाते हैं। बाप का बनकर फिर माया के
बन जाते, उन्हें ट्रेटर कहा जाता है। अपने ऊपर नज़र रखनी होती है। श्रीमत का
उल्लंघन किया तो यह गिरे। पता भी नहीं पड़ेगा। बाप तो बच्चों को सावधान करते हैं कि
कोई ऐसी चलन न चलो जो रसातल में पहुँच जाओ।
कल भी बाबा ने समझाया - बहुत गोप हैं आपस में कमेटियां आदि बनाते हैं, जो कुछ
करते हैं, श्रीमत के आधार बिगर करते हैं तो डिस सर्विस करते हैं। बिगर श्रीमत करेंगे
तो गिरते ही जायेंगे। बाबा ने शुरू में कमेटी बनाई थी तो माताओं की बनाई थी क्योंकि
कलष तो माताओं को ही मिलता है। वन्दे मातरम् गाया हुआ है ना। अगर गोप लोग कमेटी
बनाते हैं तो वन्दे गोप तो गायन नहीं है। श्रीमत पर नहीं तो माया के जाल में फँस
पड़ते हैं। बाबा ने माताओं की कमेटी बनाई, उन्हों के हवाले सब कुछ कर दिया। पुरुष
अक्सर करके देवाला मारते हैं, स्त्रियाँ नहीं। तो बाप भी कलष माताओं पर रखते हैं।
इस ज्ञान मार्ग में मातायें भी देवाला मार सकती हैं। पद्मापद्म भाग्यशाली जो बनने
वाले हैं, वह माया से हार खाकर देवाला मार सकते हैं। इसमें स्त्री-पुरुष दोनों
देवाला मार सकते हैं और मारते भी हैं। कितने हार खाकर चले गये गोया देवाला मार दिया
ना। बाप समझाते हैं भारतवासियों ने तो पूरा देवाला मारा है। माया कितनी जबरदस्त है।
जो समझ नहीं सकते हैं हम क्या थे, कहाँ से एकदम नीचे आकर गिरे हैं। यहाँ भी ऊंच
चढ़ते-चढ़ते फिर श्रीमत को भूल अपनी मत पर चलते हैं तो देवाला मार देते हैं। वो लोग
तो देवाला मारते फिर 5-7 वर्ष बाद खड़े हो जाते हैं। यहाँ तो 84 जन्मों का देवाला
मारते हैं। ऊंच पद पा न सकें। देवाला मारते ही रहते हैं। बाबा के पास फ़ोटो होता तो
बतलाते। तुम कहेंगे बाबा तो बिल्कुल ठीक कहते हैं। यह कितना बड़ा महारथी था, बहुतों
को उठाते थे। आज हैं नहीं। देवाले में हैं। बाबा घड़ी-घड़ी बच्चों को सावधान करते
रहते हैं। अपनी मत पर कमेटियाँ आदि बनाना इसमें कुछ रखा नहीं है। आपस में मिलकर
झरमुई झगमुई करना, यह ऐसा करता था, फलाना ऐसा करता था........., सारा दिन यही करते
रहते हैं। बाप से बुद्धियोग लगाने से ही सतोप्रधान बनेंगे। बाप का बने और बाप से
योग नहीं तो घड़ी-घड़ी गिरते रहेंगे। कनेक्शन ही टूट पड़ता है। लिंक टूट जाए तो
घबराना नहीं चाहिए। माया हमें इतना तंग क्यों करती है। कोशिश कर बाप के साथ लिंक
जोड़नी चाहिए। नहीं तो बैटरी चार्ज कैसे होगी। विकर्म होने से बैटरी डिस्चार्ज हो
जाती है। शुरू में कितने ढेर के ढेर बाबा के आकर बने। भट्ठी में आये फिर आज कहाँ
हैं। गिर पड़े क्योंकि पुरानी दुनिया याद आई। अभी बाप कहते हैं मैं तुमको बेहद का
वैराग्य दिलाता हूँ, इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगाओ। दिल स्वर्ग से लगानी है।
अगर ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनना है तो मेहनत करनी पड़े। बुद्धियोग एक बाप के साथ होना
चाहिए। पुरानी दुनिया से वैराग्य। सुखधाम और शान्तिधाम को याद करो। जितना हो सके
उठते, बैठते, चलते, फिरते बाप को याद करो। यह तो बिल्कुल ही सहज है। तुम यहाँ आये
ही हो नर से नारायण बनने के लिए। सबको कहना है कि अब तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना
है क्योंकि रिटर्न जर्नी होती है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट माना नर्क से
स्वर्ग, फिर स्वर्ग से नर्क। यह चक्र फिरता ही रहता है।
बाप ने कहा है यहाँ स्वदर्शन चक्रधारी होकर बैठो। इसी याद में रहो कि हमने कितने
बार चक्र लगाया है। अभी फिर से हम देवता बन रहे हैं। दुनिया में कोई भी इस राज़ को
नहीं समझते हैं। यह ज्ञान देवताओं को है नहीं। वह तो हैं ही पवित्र। उनमें ज्ञान ही
नहीं जो शंख बजावें। वह पवित्र हैं, उनको यह निशानी देने की दरकार नहीं। निशानी तब
होती है जब दोनों इकट्ठे होते हैं। तुमको भी निशानी नहीं क्योंकि तुम आज देवता
बनते-बनते कल असुर बन जाते हो। बाप देवता बनाते, माया असुर बना देती है। बाप जब
समझाते हैं तब पता पड़ता है कि सचमुच हमारी अवस्था गिरी हुई है। कितने बिचारे
शिवबाबा के खजाने में जमा कराते फिर मांगकर असुर बन जाते। इसमें योग की ही सारी कमी
है। योग से ही पवित्र बनना है। बुलाते भी हो बाबा आओ, हमें पतित से पावन बनाओ, जो
हम स्वर्ग में जा सके। याद की यात्रा है ही पावन बन ऊंच पद पाने के लिए। जो मर जाते
हैं फिर भी जो कुछ सुना है तो शिवालय में आयेंगे जरूर। पद भल कैसा भी पायें। एक बार
याद किया तो स्वर्ग में आयेंगे जरूर। बाकी ऊंच पद पा न सकें। स्वर्ग का नाम सुनकर
खुश होना चाहिए। फेल हो पाई-पैसे का पद पा लिया, इसमें खुश नहीं हो जाना है। फीलिंग
तो आती है ना - मैं नौकर हूँ। पिछाड़ी में तुम्हें सब साक्षात्कार होंगे कि हम क्या
बनेंगे, हमसे क्या विकर्म हुआ है, जो ऐसी हालत हुई है। मैं महारानी क्यों नहीं बनूँ।
कदम-कदम पर खबरदारी से चलने से तुम पद्मापद्मपति बन सकते हो। मन्दिरों में देवताओं
को पद्म की निशानी दिखाते हैं। दर्जे में फर्क हो जाता है। आज की राजाई का कितना
दबदबा रहता है! है तो अल्प-काल का। सदाकाल के राजा तो बन न सकें। तो अभी बाप कहते
हैं - तुम्हें लक्ष्मी-नारायण बनना है तो पुरुषार्थ भी ऐसा चाहिए। कितना हम औरों का
कल्याण करते हैं? अन्तर्मुख हो कितना समय बाबा की याद में रहते हैं? अभी हम जा रहे
हैं अपने स्वीट होम में। फिर आयेंगे सुखधाम में। यह सब ज्ञान का मन्थन अन्दर में
चलता रहे। बाप में ज्ञान और योग दोनों हैं। तुम्हारे में भी होना चाहिए। जानते हो
हमें शिवबाबा पढ़ाते हैं तो ज्ञान भी हुआ और याद भी हुई। ज्ञान और योग दोनों
साथ-साथ चलता है। ऐसे नहीं, योग में बैठो, बाबा को याद करते रहो और नॉलेज भूल जाए।
बाप योग सिखलाते हैं तो नॉलेज भूल जाते हैं क्या? सारी नॉलेज उनमें रहती है। तुम
बच्चों में भी नॉलेज होनी चाहिए। पढ़ना चाहिए। जैसे कर्म मैं करुँगा मुझे देख और भी
करेंगे। मैं मुरली नहीं पढूँगा तो और भी नहीं पढ़ेंगे। मिथ्या अहंकार आ जाता है तो
माया झट वार कर देती है। कदम-कदम बाप से श्रीमत लेते रहना है। नहीं तो कुछ न कुछ
विकर्म बन जाते हैं। बहुत बच्चे भूले करते बाप को नहीं बताते तो अपनी सत्यानाश कर
लेते हैं। ग़फलत होने से माया थप्पड़ लगा देती है। वर्थ नाट ए पेनी बना देती है।
अहंकार में आने से माया बहुत विकर्म कराती है। बाबा ने ऐसे थोड़ेही कहा है, ऐसी-ऐसी
पुरुषों की कमेटियाँ बनाओ। कमेटी में एक-दो समझू सयानी बच्चियां जरूर होनी चाहिए।
जिनकी ही राय पर काम हो। कलष तो लक्ष्मी पर रखा जाता है ना। गायन भी है, अमृत पिलाते
थे फिर कहाँ यज्ञ में विघ्न डालते थे। अनेक प्रकार के विघ्न डालने वाले हैं। सारा
दिन यही झरमुई झगमुई की बातें करते रहते हैं। यह बहुत खराब है। कोई भी बात हो तो
बाप को रिपोर्ट करनी चाहिए। सुधारने वाला तो एक ही बाप है। तुम अपने हाथ में लॉ नहीं
उठाओ। तुम बाप की याद में रहो। सभी को बाप का परिचय देते रहो तब ऐसा बन सकेंगे। माया
बहुत कड़ी है। किसको नहीं छोड़ती। सदैव बाप को समाचार लिखना चाहिए। डायरेक्शन लेते
रहना चाहिए। यूँ तो डायरेक्शन सदैव मिलते रहते हैं। ऐसे तो बच्चे समझते हैं बाबा ने
तो आपेही इस बात पर समझा दिया, बाबा तो अन्तर्यामी है। बाबा कहते नहीं, मैं तो
नॉलेज पढ़ाता हूँ। इसमें अन्तर्यामी की बात ही नहीं। हाँ, यह जानता हूँ कि यह सब
मेरे बच्चे हैं। हर एक शरीर के अन्दर मेरे बच्चे हैं। बाकी ऐसे नहीं कि बाप सभी के
अन्दर विराजमान है। मनुष्य तो उल्टा ही समझ लेते हैं। बाप कहते हैं मैं जानता हूँ
कि सभी तख्त पर आत्मा विराजमान है। यह तो कितनी सहज बात है। सभी चैतन्य आत्मायें
अपने-अपने तख्त पर बैठी हैं फिर भी परमात्मा को सर्वव्यापी कह देते हैं, यह है एकज
भूल। इस कारण ही भारत इतना गिरा हुआ है। बाप कहते हैं तुमने मेरी बहुत ग्लानि की
है। विश्व के मालिक बनाने वाले को तुमने गाली दी है इसलिए बाप कहते हैं यदा यदाहि......।
बाहर वाले यह सर्वव्यापी का ज्ञान भारतवासियों से सीखते हैं। जैसे भारतवासी उनसे
हुनर सीखते हैं वह फिर उल्टा सीखते हैं। तुम्हें तो एक बाप को याद करना है और बाप
का परिचय भी सबको देना है। तुम हो अन्धों की लाठी। लाठी से राह बतलाते हैं ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की आज्ञा अनुसार हर कार्य करना है। कभी भी श्रीमत का उल्लंघन न
हो तब ही सर्व मनोकामनायें बिना मांगे पूरी होंगी। ध्यान दीदार की इच्छा नहीं रखनी
है, इच्छा मात्रम् अविद्या बनना है।
2) आपस में मिलकर झरमुई झगमुई (एक दूसरे का परचिंतन) नहीं करना है। अन्तर्मुख हो
अपनी जांच करनी है कि हम बाबा की याद में कितना समय रहते हैं, ज्ञान का मंथन अन्दर
चलता है?