ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। अब शिव भगवान् निराकार को तो सभी मानते हैं। एक ही निराकार शिव है,
जिसकी सब पूजा करते हैं। बाकी जो भी देहधारी हैं उनका साकार रूप है। पहले-पहले
निराकार आत्मा थी फिर साकार बनी है। साकार बनती है, शरीर में प्रवेश करती है तब उनका
पार्ट चलता है। मूलवतन में तो कोई पार्ट है नहीं। जैसे एक्टर्स घर में हैं तो नाटक
का पार्ट नहीं। स्टेज पर आने से पार्ट बजाते हैं। आत्मायें भी यहाँ आकर शरीर द्वारा
पार्ट बजाती हैं। पार्ट पर ही सारा मदार है। आत्मा में तो कोई फर्क नहीं है। जैसे
तुम बच्चों की आत्मा है, वैसे इनकी आत्मा है। बाप परम आत्मा क्या करते हैं? उनका
आक्यूपेशन क्या है, वो जानना है। कोई प्रेजीडेन्ट है, राजा है, यह आत्मा का
आक्यूपेशन है ना। यह पवित्र देवतायें हैं, इसलिए इनको पूजा जाता है। अभी तुम समझते
हो यह पढ़ाई पढ़कर लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक बने हैं। किसने बनाया? परम आत्मा
ने। तुम आत्मायें भी पढ़ाती हो। बड़ाई यह है जो बाप आकर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं
और राजयोग भी सिखलाते हैं। कितना सहज है। इसको कहा जाता है राजयोग। बाप को याद करने
से हम सतोप्रधान बन जाते हैं। बाप तो है ही सतोप्रधान। उनकी कितनी महिमा गाते हैं।
भक्ति मार्ग में कितना फल, दूध आदि चढ़ाते हैं। समझ कुछ नहीं। देवताओं को पूजते
हैं, शिव पर दूध, फूल आदि चढ़ाते हैं, कुछ पता नहीं। देवताओं ने राज्य किया। अच्छा,
शिव पर क्यों चढ़ाते? उसने क्या कर्त्तव्य किया है जो इतना पूजते हो? देवताओं का तो
फिर भी मालूम है, वह हैं स्वर्ग के मालिक। उन्हों को किसने बनाया, यह भी पता नहीं।
पूजा भी करते हैं शिव की परन्तु ख्याल में नहीं कि यह भगवान् है। भगवान् ने इन्हों
को ऐसा बनाया है। कितनी भक्ति करते हैं। हैं सब अन्जान। तुमने भी शिव की पूजा की
होगी, अभी तुम समझते हो, आगे कुछ भी नहीं जानते थे। उनका आक्यूपेशन क्या है, क्या
सुख देते हैं, कुछ भी पता नहीं था। क्या यह देवतायें सुख देते हैं? भल राजा-रानी,
प्रजा को सुख देते हैं परन्तु उन्हों को तो शिवबाबा ने ऐसा बनाया ना। बलिहारी उनकी
है। यह तो सिर्फ राजाई करते हैं, प्रजा भी बन जाती है। बाकी यह कोई का कल्याण नहीं
करते हैं। अगर करते भी हैं तो अल्पकाल के लिए। अभी तुम बच्चों को बाप बैठ पढ़ाते
हैं। उनको कहा जाता है कल्याणकारी। बाप अपना परिचय देते हैं, मेरे लिंग की तुम पूजा
करते थे, उनको परम आत्मा कहते थे। परम आत्मा से परमात्मा हो जाता। परन्तु यह नहीं
जानते कि यह क्या करते हैं। बस, सिर्फ कह देंगे कि वह सर्वव्यापी है। नाम-रूप से
न्यारा है। फिर उस पर दूध आदि चढ़ाना, शोभता नहीं है। आकार है तब तो उस पर चढ़ाते
हैं ना। उनको निराकार तो कह नहीं सकते। तुमसे मनुष्य आरग्यु बहुत करते हैं, बाबा के
आगे भी आकर आरग्यु ही करेंगे। फालतू माथा खपायेंगे। फायदा कुछ भी नहीं। यह समझाना
तो तुम बच्चों का काम है। तुम बच्चे जानते हो बाबा ने हमको कितना ऊंच बनाया है। यह
पढ़ाई है। बाप टीचर बन पढ़ाते हैं। तुम मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ रहे हो।
देवी-देवता हैं सतयुग में। कलियुग में होते नहीं। राम राज्य ही नहीं जो पवित्र रह
सकें। देवी-देवता थे फिर वाम मार्ग में चले जाते हैं। बाकी जैसे चित्र दिखाये हैं,
ऐसे नहीं। जगन्नाथ के मन्दिर में तुम देखेंगे काले चित्र हैं। बाप कहते हैं माया
जीते जगतजीत बनो। तो उन्होंने फिर जगत-नाथ नाम रख दिया है। ऊपर में सब गन्दे चित्र
दिखाये हैं, देवतायें वाम मार्ग में गये तो काले बन पड़े। उनकी भी पूजा करते रहते
हैं। मनुष्यों को तो कुछ पता नहीं - कब हम पूज्य थे? 84 जन्मों का हिसाब किसकी भी
बुद्धि में नहीं है। पहले पूज्य सतोप्रधान फिर 84 जन्म लेते-लेते तमोप्रधान पुजारी
बन पड़ते हैं। रघुनाथ मन्दिर में काला चित्र दिखाते हैं, अर्थ तो उनका कुछ भी समझते
नहीं। अभी तुम बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं। ज्ञान चिता पर बैठ गोरे बनते हो, काम
चिता पर बैठ काले बन पड़ते हो। देवतायें वाम मार्ग में जाकर विकारी बन पड़े फिर उनका
नाम देवता तो रख नहीं सकते। वाम मार्ग में जाने से काले बन पड़े हो, यह निशानी
दिखाई है। तुम जानते हो कि शिवबाबा तो काला बनता ही नहीं। वह तो हीरा है, जो तुमको
भी हीरे जैसा बनाते हैं। वह तो कभी काला बनते नहीं, उनको फिर काला क्यों बना दिया
है! कोई काला होगा, उसने बैठ काला बनाया होगा। शिवबाबा कहते हैं हमने क्या दोष किया
जो मुझे काला बना दिया है। मैं तो आता ही हूँ सबको गोरा बनाने, मैं तो सदैव गोरा
हूँ। मनुष्यों की ऐसी बुद्धि बन पड़ी है जो कुछ भी समझते नहीं। शिवबाबा तो है ही
सबको हीरा बनाने वाला। मैं तो एवर गोरा मुसाफिर हूँ। मैंने क्या किया जो मुझे काला
बनाया है। अब तुमको भी गोरा बनना है ऊंच पद पाने लिए। ऊंच पद कैसे पाना है? वह तो
बाप ने समझाया है फालो फादर। जैसे इसने (बाबा ने) सब-कुछ बाप के हवाले कर दिया।
फादर को देखो कैसे सब कुछ दे दिया। भल साधारण थे, न बहुत गरीब, न बहुत साहूकार थे।
बाबा अभी भी कहते हैं तुम्हारा खान पान बीच का साधारण होना चाहिए। न बहुत ऊंच, न
बहुत कम। बाप ही सब शिक्षा देते हैं। यह भी देखने में तो साधारण ही आते हैं। तुमको
कहते है कहाँ है भगवान्, दिखाओ। अरे, आत्मा बिन्दी है, उनको देखेंगे क्या! यह तो
जानते हो आत्मा का साक्षात्कार इन आंखों से होता नहीं। तुम कहते हो भगवान् पढ़ाते
हैं तो जरूर कोई शरीरधारी होगा। निराकार कैसे पढ़ायेंगे। मनुष्यों को तो कुछ भी पता
नहीं है। जैसे तुम आत्मा हो, शरीर द्वारा पार्ट बजाते हो। आत्मा ही पार्ट बजाती है।
आत्मा ही बोलती है, शरीर द्वारा। तो आत्मा वाच। परन्तु आत्मा वाच शोभता नहीं। आत्मा
तो वानप्रस्थ, वाणी से परे है, वाच तो शरीर से ही करेगी। वाणी से परे सिर्फ आत्मा
ही रह जाती है। वाणी में आना है तो शरीर जरूर चाहिए। बाप भी ज्ञान का सागर है तो
जरूर किसके शरीर का आधार लेगा ना। उसको रथ कहा जाता है। नहीं तो वह सुनाये कैसे?
बाप पतित से पावन बनने लिए शिक्षा देते हैं। प्रेरणा की बात नहीं। यह तो ज्ञान की
बात है। वह आये कैसे? किसके शरीर में आये? आयेगा तो जरूर मनुष्य में ही। किस मनुष्य
में आये? कोई को पता नहीं है, सिवाए तुम्हारे। रचयिता खुद ही बैठ अपना परिचय देते
हैं। मैं कैसे और किस रथ में आता हूँ। बच्चे तो जानते हैं कि बाप का रथ कौन-सा है।
बहुत मनुष्य मूंझे हुए हैं। किस-किस का रथ बना देते हैं। जानवर आदि में तो आ न सकें।
बाप कहते हैं मैं किस मनुष्य में आऊं। यह तो समझ नहीं सकते। आना भी भारत में ही होता
है। भारतवासियों में भी किसके तन में आऊं, क्या प्रेजीडेंट वा साधू महात्मा के रथ
में आयेगा? ऐसे भी नहीं है कि पवित्र रथ में आना है। यह तो है ही रावण राज्य। गायन
भी है दूर देश का रहने वाला।
यह भी बच्चों को पता है कि भारत अविनाशी खण्ड है। उसका कभी विनाश नहीं होता।
अविनाशी बाप अविनाशी भारत खण्ड में ही आते हैं। किस तन में आते हैं, वह खुद ही बताते
हैं। और तो कोई जान न सके। तुम जानते हो कोई साधू महात्मा में भी आ न सके। वह हैं
हठयोगी, निवृत्ति मार्ग वाले। बाकी रहे भारतवासी भक्त। अब भक्तों में भी किस भक्त
में आये? भक्त पुराना चाहिए, जिसने बहुत भक्ति की हो। भक्ति का फल भगवान् को देने
आना पड़ता है। भारत में भक्त तो ढेर हैं। कहेंगे यह बड़ा भक्त है, इसमें आना चाहिए।
ऐसे तो बहुत भक्त बन पड़ते हैं। कल भी कोई को वैराग्य आये, भक्त बन जाये। वह तो इस
जन्म का भक्त हो गया ना। उसमें आयेंगे नहीं। मैं उसमें आता हूँ, जिसने पहले-पहले
भक्ति शुरू की। द्वापर से लेकर भक्ति शुरू हुई है। यह हिसाब-किताब कोई समझ न सकें।
कितनी गुप्त बातें हैं। मैं आता हूँ उसमें जो पहले-पहले भक्ति शुरू करते हैं।
नम्बरवन जो पूज्य था वही फिर नम्बरवन पुजारी भी बनेगा। खुद ही कहते हैं यह रथ ही
पहले नम्बर में जाते हैं। फिर 84 जन्म भी यही लेते हैं। मैं इनके ही बहुत जन्मों के
अन्त के भी अन्त में प्रवेश करता हूँ। इनको ही फिर नम्बरवन राजा बनना है। यही बहुत
भक्ति करते थे। भक्ति का फल भी इनको मिलना चाहिए। बाप दिखलाते हैं बच्चों को कि देखो
यह मेरे पर वारी कैसे गया। सब कुछ दे दिया। इतने ढेर बच्चों को सिखलाने लिए धन भी
चाहिए। ईश्वर का यज्ञ रचा हुआ है। खुदा इसमें बैठ रूद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं, इसको
पढ़ाई भी कहा जाता है। रूद्र शिवबाबा जो ज्ञान का सागर है, उसने यज्ञ रचा है ज्ञान
देने के लिए। अक्षर बिल्कुल ठीक है। राजस्व, स्वराज्य पाने के लिए यज्ञ। इसको यज्ञ
क्यों कहते हैं? यज्ञ में तो वह लोग आहुति आदि बहुत डालते हैं। तुम तो पढ़ते हो,
आहुति क्या डालते हो? तुम जानते हो हम पढ़कर होशियार हो जायेंगे। फिर यह सारी दुनिया
इसमें स्वाहा हो जायेगी। यज्ञ में पिछाड़ी के टाइम जो भी सामग्री है, सब डाल देते
हैं।
तुम बच्चे अब जानते हो हमको बाप पढ़ा रहे हैं। बाप है तो बहुत साधारण। मनुष्य
क्या जानें। उन बड़े-बड़े आदमियों की तो बहुत बड़ी महिमा होती है। बाप तो बहुत
साधारण सिम्पुल बैठा है। मनुष्यों को कैसे पता पड़े। यह दादा तो जौहरी था। शक्ति तो
कोई देखने में नहीं आती। सिर्फ इतना कह देते इसमें कुछ शक्ति है। बस। यह नहीं समझते
कि इसमें सर्वशक्तिमान् बाप है। इसमें शक्ति है, वह शक्ति भी आई कहाँ से? बाप ने
प्रवेश किया ना। जो उनका खजाना वह ऐसे थोड़ेही दे देते हैं। तुम योगबल से लेते हो।
वह तो सर्वशक्तिमान् है ही। उनकी शक्ति कहाँ चली नहीं जाती। परमात्मा को
सर्वशक्तिमान् क्यों गाया जाता है, यह भी कोई जानते नहीं। बाप आकर सब बातें समझाते
हैं। बाप कहते मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ, इसमें तो पूरी जंक चढ़ी हुई थी - पुराना
देश, पुराना शरीर, उसके बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ, कट जो चढ़ी है वह कोई
उतार न सके। कट उतारने वाला एक ही सतगुरू है, वह एवर प्योर है। यह तुम समझते हो। यह
सब बुद्धि में बिठाने लिए भी टाइम चाहिए। तुम बच्चों को बाप सब विल कर देते हैं।
बाप ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर है, सारा विल कर देते हैं बच्चों को। आते भी
पुरानी दुनिया में हैं। प्रवेश भी उसमें करते हैं, जो हीरे जैसा था फिर कौड़ी जैसा
बना। वो भल इस समय करोड़पति हैं, परन्तु अल्पकाल के लिए। सबका खलास हो जायेगा। वर्थ
पाउण्ड तो तुम बनते हो। अभी तुम भी स्टूडेन्ट हो। यह भी स्टूडेन्ट है, यह भी बहुत
जन्मों के अन्त में है। कट चढ़ी हुई है। जो बहुत अच्छा पढ़ते, उसमें ही कट चढ़ी हुई
है। वही सबसे पतित बनते हैं, उनको ही फिर पावन बनना है। यह ड्रामा बना हुआ है। बाप
तो रीयल बात बताते हैं। बाप है ट्रूथ। वह कभी उल्टा नहीं बतलाते। यह सब बातें
मनुष्य कोई समझ न सकें। तुम बच्चों बिगर मनुष्यों को कैसे पता पड़े। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऊंच पद पाने के लिए पूरा फालो फादर करना है। सब कुछ बाप के हवाले कर
ट्रस्टी हो सम्भालना है, पूरा वारी जाना है। खानपान, रहन-सहन बीच का साधारण रखना
है। न बहुत ऊंच, न बहुत नींच।
2) बाप ने जो सुख-शान्ति, ज्ञान का खजाना विल किया है, उसे दूसरों को भी देना
है, कल्याणकारी बनना है।