ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों (आत्माओं) ने शरीर द्वारा गीत सुना? क्योंकि बाप अभी बच्चों को
आत्म-अभिमानी बना रहे हैं। तुमको आत्मा का भी ज्ञान मिलता है। दुनिया में एक भी
मनुष्य नहीं, जिसको आत्मा का सही ज्ञान हो। तो फिर परमात्मा का ज्ञान कैसे हो सकता?
यह बाप ही बैठ समझाते हैं। समझाना शरीर के साथ ही है। शरीर बिगर तो आत्मा कुछ कर नहीं
सकती। आत्मा जानती है हम कहाँ के निवासी हैं, किसके बच्चे हैं। अभी तुम यथार्थ रीति
जानते हो। सब एक्टर्स पार्टधारी हैं। भिन्न-भिन्न धर्म की आत्मायें कब आती हैं, यह
भी तुम्हारी बुद्धि में है। बाप डिटेल नहीं समझाते हैं, मुट्टा (होलसेल) समझाते
हैं। होल-सेल अर्थात् एक सेकण्ड में ऐसी समझानी देते हैं जो सतयुग आदि से लेकर अन्त
तक मालूम पड़ जाता है कि कैसे हमारा पार्ट नूंधा हुआ है। अभी तुम जानते हो बाप कौन
है, उनका इस ड्रामा के अन्दर क्या पार्ट है? यह भी जानते हैं ऊंच ते ऊंच बाप है,
सर्व का सद्गति दाता, दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। शिव जयन्ती गाई हुई है। जरूर कहेंगे
शिव जयन्ती सबसे ऊंच है। खास भारत में ही जयन्ती मनाते हैं। जिस-जिस की राजाई में
जिस ऊंच पुरुष की पास्ट की हिस्ट्री अच्छी होती है तो उनकी स्टैम्प भी बनाते हैं।
अब शिव की जयन्ती भी मनाते हैं। समझाना चाहिए सबसे ऊंच जयन्ती किसकी हुई? किसकी
स्टैम्प बनानी चाहिए? कोई साधू-सन्त अथवा सिक्खों का, मुसलमानों का वा अंग्रेजों
का, कोई फिलॉसाफर अच्छा होगा तो उनकी स्टैम्प बनाते रहते हैं। जैसे राणा प्रताप आदि
की भी बनाते हैं। अब वास्तव में स्टैम्प होनी चाहिए बाप की, जो सबका सद्गति दाता
है। इस समय बाप न आये तो सद्गति कैसे हो क्योंकि सब रौरव नर्क में गोता खा रहे हैं।
सबसे ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा, पतित-पावन। मन्दिर भी शिव के बहुत ऊंचे स्थान पर बनाते
हैं क्योंकि ऊंच ते ऊंच है ना।
बाप ही आकर भारत को स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। जब वह आते हैं तब सद्गति करते
हैं, तो उस बाप की ही याद रहनी चाहिए। स्टैम्प भी शिवबाबा की कैसे बनायें? भक्ति
मार्ग में तो शिवलिंग बनाते हैं। वही ऊंच ते ऊंच आत्मा ठहरे। ऊंच ते ऊंच मन्दिर भी
शिव का ही मानेंगे। सोमनाथ शिव का मन्दिर है ना। भारतवासी तमोप्रधान होने कारण यह
भी नहीं जानते कि शिव कौन है जिसकी पूजा करते हैं, उसका आक्यूपेशन तो जानते नहीं।
राणा प्रताप ने भी लड़ाई की, वह तो हिंसा हो गई। इस समय तो सब हैं डबल हिंसक। विकार
में जाना, काम कटारी चलाना यह भी हिंसा है ना। डबल अहिंसक तो यह लक्ष्मी-नारायण
हैं। मनुष्यों को जब पूरा ज्ञान हो तब अर्थ सहित स्टैम्प निकले। सतयुग में स्टैम्प
निकलती ही इन लक्ष्मी-नारायण की है। शिवबाबा का ज्ञान तो वहाँ रहता नहीं तो जरूर
ऊंच ते ऊंच लक्ष्मी-नारायण की ही स्टैम्प लगती होगी। अभी भी भारत का वह स्टैम्प होना
चाहिए। ऊंच ते ऊंच है त्रिमूर्ति शिव। वह तो अविनाशी रहना चाहिए क्योंकि भारत को
अविनाशी राज-गद्दी देते हैं। परमपिता परमात्मा ही भारत को स्वर्ग बनाते हैं।
तुम्हारे में भी बहुत हैं जो यह भूल जाते हैं कि बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाते
हैं। यह माया भुला देती है। बाप को न जानने के कारण भारतवासी कितनी भूलें करते आये
हैं। शिवबाबा क्या करते हैं, यह किसको भी पता नहीं है। शिवजयन्ती का भी अर्थ नहीं
समझते। यह नॉलेज सिवाए बाप के और कोई को नहीं है।
अभी तुम बच्चों को बाप समझाते हैं तुम औरों पर भी रहम करो, अपने ऊपर भी आपेही
रहम करो। टीचर पढ़ाते हैं, यह भी रहम करते हैं ना। यह भी कहते हैं मैं टीचर हूँ।
तुमको पढ़ाता हूँ। वास्तव में इसका नाम पाठशाला भी नहीं कहेंगे। यह तो बहुत बड़ी
युनिवर्सिटी है। बाकी तो सब हैं झूठे नाम। वह कोई सारे युनिवर्स के लिए कॉलेज तो
हैं नहीं। तो युनिवर्सिटी है ही एक बाप की, जो सारे विश्व की सद्गति करते हैं।
वास्तव में युनिवर्सिटी यह एक ही है। इन द्वारा ही सब मुक्ति-जीवनमुक्ति में जाते
हैं अर्थात् शान्ति और सुख को प्राप्त करते हैं। युनिवर्स तो यह हुआ ना, इसलिए बाबा
कहते हैं डरो मत। यह तो समझाने की बात है। ऐसे भी होता है इमर्जेन्सी के टाइम में
कोई किसकी सुनते भी नहीं हैं। प्रजा का प्रजा पर राज्य चलता है और किसी धर्म में
शुरू से राजाई नहीं चलती। वह तो धर्म स्थापन करने आते हैं। फिर जब लाखों की अन्दाज
में हों तब राजाई कर सकें। यहाँ तो बाप राजाई स्थापन कर रहे हैं - युनिवर्स के लिए।
यह भी समझाने की बात है। दैवी राजधानी इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर स्थापन कर रहे हैं।
बाबा ने समझाया है - श्रीकृष्ण, श्रीनारायण, श्रीराम आदि के काले चित्र भी तुम हाथ
में उठाओ फिर समझाओ श्रीकृष्ण को श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं? सुन्दर था फिर श्याम
कैसे बनते हैं? भारत ही हेविन था, अब हेल है। हेल अर्थात् काला, हेविन अर्थात् गोरा।
राम राज्य को दिन, रावण राज्य को रात कहा जाता है। तो तुम समझा सकते हो - देवताओं
को काला क्यों बनाया है। बाप बैठ समझाते हैं - तुम हो अभी पुरुषोत्तम संगमयुग पर।
वह नहीं है, तुम तो यहाँ बैठे हो ना। यहाँ तुम हो ही संगमयुग पर, पुरुषोत्तम बनने
का पुरुषार्थ कर रहे हो। विकारी पतित मनुष्यों से तुम्हारा कोई कनेक्शन ही नहीं है,
हाँ, अभी कर्मातीत अवस्था नहीं हुई है इसलिए कर्म सम्बन्धों से भी दिल लग जाती है।
कर्मातीत बनना उसके लिए चाहिए याद की यात्रा। बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो, तुम्हारा
परमात्मा बाप के साथ कितना लव होना चाहिए। ओहो! बाबा हमको पढ़ाते हैं। वह उमंग कोई
में रहता नहीं है। माया घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में ला देती है। जबकि समझते हो शिवबाबा
हम आत्माओं से बात कर रहे हैं, तो वह कशिश, वह खुशी रहनी चाहिए ना। जिस सुई पर ज़रा
भी जंक नहीं होगी, वह चुम्बक के आगे तुम रखेंगे तो फट से चटक जायेगी। थोड़ी भी कट
होगी तो चटकेगी नहीं। कशिश नहीं होगी। जहाँ से नहीं होगी फिर उस तरफ से चुम्बक
खीचेंगे। बच्चों में कशिश तब होगी जब याद की यात्रा पर होंगे। कट होगी तो खींच नहीं
सकेंगे। हर एक समझ सकते हैं हमारी सुई बिल्कुल पवित्र हो जायेगी तो कशिश भी होगी।
कशिश नहीं होती है क्योंकि कट चढ़ी हुई है। तुम बहुत याद में रहते हो तो विकर्म
भस्म होते हैं। अच्छा, फिर अगर कोई पाप करते तो वह सौगुणा दण्ड हो जाता है। कट चढ़
जाती है, याद नहीं कर सकते। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, याद भूलने से कट चढ़
जाती है। तो वह कशिश, लव नहीं रहता। कट उतरी हुई होगी तो लव होगा, खुशी भी रहेगी।
चेहरा खुशनुम: रहेगा। तुमको भविष्य में ऐसा बनना है। सर्विस नहीं करते तो पुरानी सड़ी
हुई बातें करते रहते। बाप से बुद्धियोग ही तुड़ा देते हैं। जो कुछ चमक थी, वह भी
गुम हो जाती है। बाप से ज़रा भी लव नहीं रहता। लव उनका रहेगा जो अच्छी रीति बाप को
याद करते होंगे। बाप को भी उनसे कशिश होगी। यह बच्चा सर्विस भी अच्छी करता है और
योग में भी रहता है। तो बाप का प्यार उन पर रहता है। अपने ऊपर ध्यान रखते हैं, हमसे
कोई पाप तो नहीं हुआ। अगर याद नहीं करेंगे तो कट कैसे उतरेगी। बाप कहते हैं चार्ट
रखो तो कट उतर जायेगी। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है तो कट उतरनी चाहिए। उतरती भी
है फिर चढ़ती भी है। सौ गुणा दण्ड पड़ जाता है। बाप को याद नहीं करते हैं तो कुछ न
कुछ पाप कर लेते हैं। बाप कहते हैं कट उतरने बिगर तुम मेरे पास आ नहीं सकेंगे। नहीं
तो फिर सज़ा खानी पड़ेगी। मोचरा भी मिलता, पद भी भ्रष्ट हो जाता। बाकी बाप से वर्सा
क्या मिला? ऐसा कर्म नहीं करना चाहिए जो और ही कट चढ़ जाए। पहले तो अपनी कट उतारने
का ख्याल रखो। ख्याल नहीं करते हैं तो फिर बाप समझेंगे इनकी तकदीर में नहीं है।
क्वालिफिकेशन चाहिए। अच्छे कैरेक्टर्स चाहिए। लक्ष्मी-नारायण के कैरेक्टर तो गाये
हुए हैं। इस समय के मनुष्य उन्हों के आगे अपना कैरेक्टर वर्णन करते हैं। शिवबाबा को
जानते ही नहीं, सद्गति करने वाला तो वही है, संन्यासियों के पास जाते हैं। परन्तु
सर्व का सद्गति दाता है ही एक। बाप ही स्वर्ग की स्थापना करते हैं फिर तो नीचे ही
उतरना है। बाप के सिवाए कोई पावन बना न सके। मनुष्य खड्डे के अन्दर जाकर बैठते हैं,
इससे तो गंगा में जाकर बैठें तो साफ हो जाएं क्योंकि पतित-पावनी गंगा कहते हैं ना।
मनुष्य शान्ति चाहते हैं तो वह जब घर जायेंगे तब पार्ट पूरा होगा। हम आत्माओं का घर
है ही निर्वाणधाम। यहाँ शान्ति कहाँ से आई? तपस्या करते हैं, वह भी कर्म करते हैं
ना, करके शान्त में बैठ जायेंगे। शिवबाबा को तो जानते ही नहीं। वह सब है भक्ति
मार्ग, पुरुषोत्तम संगमयुग एक ही है, जबकि बाप आते हैं। आत्मा स्वच्छ बन
मुक्ति-जीवनमुक्ति में चली जाती है। जो मेहनत करेंगे वह राज्य करेंगे, बाकी जो
मेहनत नहीं करेंगे वह सज़ायें खायेंगे। शुरू में साक्षात्कार कराया था, सज़ाओं का।
फिर पिछाड़ी में भी साक्षात्कार होगा। देखेंगे हम श्रीमत पर न चले तब यह हाल हुआ
है। बच्चों को कल्याणकारी बनना है। बाप और रचना का परिचय देना है। जैसे सुई को
मिट्टी के तेल में डालने से कट उतर जाती है, वैसे बाप की याद में रहने से भी कट
उतरती है। नहीं तो वह कशिश, वह लव बाप में नहीं रहता है। लव सारा चला जाता है
मित्र-सम्बन्धियों आदि में, मित्र-सम्बन्धियों के पास जाकर रहते हैं। कहाँ वह जंक
खाया हुआ संग और कहाँ यह संग। जंक खाई हुई चीज़ के संग में उनको भी कट चढ़ जायेगी।
कट उतारने के लिए ही बाप आते हैं। याद से ही पावन बनेंगे। आधाकल्प से बड़ी ज़ोर से
कट चढ़ी हुई है। अब बाप चुम्बक कहते हैं मुझे याद करो। बुद्धि का योग जितना मेरे
साथ होगा उतनी कट उतरेगी। नई दुनिया तो बननी ही है, सतयुग में पहले बहुत छोटा-सा
झाड़ होता है - देवी-देवताओं का, फिर वृद्धि को पाते हैं। यहाँ से ही तुम्हारे पास
आकर पुरुषार्थ करते रहते हैं। ऊपर से कोई नहीं आते हैं, जैसे और धर्म वालों के ऊपर
से आते हैं। यहाँ तुम्हारी राजधानी तैयार हो रही है। सारा मदार पढ़ाई पर है। बाप की
श्रीमत पर चलने पर है, बुद्धियोग बाहर जाता रहता है, तो भी कट लग जाती है। यहाँ आते
हैं तो सब हिसाब-किताब चुक्तू कर, जीते जी सब कुछ खत्म करके आते हैं। संन्यासी भी
संन्यास करते हैं तो भी कितने समय तक सब याद आता रहता है।
तुम बच्चे जानते हो अभी हमको सत का संग मिलता है। हम अपने बाप की ही याद में रहते
हैं। मित्र-सम्बन्धियों आदि को जानते तो हैं ना। गृहस्थ व्यवहार में रहते, कर्म करते
बाप को याद करते हैं, पवित्र बनना है, औरों को भी सिखाना है। फिर तकदीर में होगा तो
चल पड़ेंगे। ब्राह्मण कुल का ही नहीं होगा तो देवता कुल में कैसे आयेगा? बहुत सहज
प्वाइंट्स दी जाती हैं, जो झट किसकी बुद्धि में बैठ जाएं। विनाश काले विपरीत बुद्धि
वाला चित्र भी क्लीयर है। अब वह सावरन्टी तो है नहीं। दैवी सावरन्टी थी, जिसको
स्वर्ग कहा जाता था। अभी तो पंचायती राज्य है, समझाने में कोई हर्जा नहीं है। परन्तु
कट निकली हुई हो तो कोई को तीर लगे। पहले कट निकालने की कोशिश करनी चाहिए। अपना
कैरेक्टर देखना है। रात-दिन हम क्या करते हैं? किचन में भी भोजन बनाते, रोटी पकाते
जितना हो सके याद में रहो, घूमने जाते हो तो भी याद में। बाप सबकी अवस्था को तो
जानते हैं ना। झरमुई-झगमुई करते हैं तो फिर कट और ही चढ़ जाती है। परचिंतन की कोई
बात नहीं सुनो। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जैसे बाप टीचर रूप में पढ़ाकर सब पर रहम करते हैं, ऐसे अपने आप पर और
औरों पर भी रहम करना है। पढ़ाई और श्रीमत पर पूरा ध्यान देना है, अपने कैरेक्टर
सुधारने हैं।
2) आपस में कोई पुरानी सड़ी हुई परचिंतन की बातें करके बाप से बुद्धियोग नहीं
तुड़ाना है। कोई भी पाप कर्म नहीं करना है, याद में रहकर जंक उतारनी है।