ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अब इनको (लक्ष्मी-नारायण) तो अच्छी रीति देखते हो।
यह है एम ऑब्जेक्ट अर्थात् तुम इस घराने के थे। कितना रात-दिन का फर्क है इसलिए
घड़ी-घड़ी इनको देखना है। हमको ऐसा बनना है। इन्हों की महिमा तो अच्छी रीति जानते
हो। यह पॉकेट में रखने से ही खुशी रहेगी। अन्दर में दुविधा जो रहती है, वह नहीं रहनी
चाहिए, इसको देह-अभिमान कहा जाता है। देही-अभिमानी हो इन लक्ष्मी-नारायण को देखेंगे
तो समझेंगे हम ऐसे बन रहे हैं, तो जरूर इनको देखना पड़े। बाप समझाते हैं तुमको ऐसा
बनना है। मध्याजी भव, इनको देखो, याद करो। दृष्टान्त बताते हैं ना - उसने सोचा मैं
भैंस हूँ तो वह अपने को भैंस ही समझने लगा। तुम जानते हो यह हमारा एम ऑब्जेक्ट है।
यह बनने का है। कैसे बनेंगे? बाप की याद से। हर एक अपने से पूछे - बरोबर हम इनको
देख बाप को याद कर रहे हैं? यह तो समझते हो कि बाबा हमको देवता बनाते हैं। जितना हो
सके याद करना चाहिए। यह तो बाप कहते हैं कि निरन्तर याद रह नहीं सकती। परन्तु
पुरूषार्थ करना है। भल गृहस्थ व्यवहार का कार्य करते हुए इनको (लक्ष्मी-नारायण को)
याद करेंगे तो बाप जरूर याद आयेगा। बाप को याद करेंगे तो यह जरूर याद पड़ेगा। हमको
ऐसा बनना है। यही सारा दिन धुन लगी रहे। तो फिर एक-दो की ग्लानि कभी नहीं करेंगे।
यह ऐसा है, फलाना ऐसा है...... जो इन बातों में लग जाते हैं वह ऊंच पद पा नहीं
सकेंगे। ऐसे ही रह जाते हैं। कितना सहज करके समझाया जाता है। इनको याद करो, बाप को
याद करो तो तुम यह बन ही जायेंगे। यहाँ तो तुम सामने बैठे हो, सभी के घर में यह
लक्ष्मी-नारायण का चित्र जरूर होना चाहिए। कितना एक्यूरेट चित्र है। इनको याद करेंगे
तो बाबा याद आयेगा। सारा दिन और बातों के बदले यही सुनाते रहो। फलाना ऐसा है, यह
है..... किसकी निंदा करना - इसको दुविधा कहा जाता है। तुम्हें अपनी दैवी बुद्धि
बनाना है। किसको दु:ख देना, ग्लानि करना, चंचलता करना - यह स्वभाव नहीं होना चाहिए।
इसमें तो आधाकल्प रहे हो। अभी तुम बच्चों को कितनी मीठी शिक्षा मिलती है, इनसे ऊंच
प्यार दूसरा कोई होता नहीं। कोई भी उल्टा-सुल्टा काम श्रीमत बिगर नहीं करना चाहिए।
बाप ध्यान के लिए भी डायरेक्शन देते हैं सिर्फ भोग लगाकर आओ। बाबा यह तो कहते नहीं
कि वैकुण्ठ में जाओ, रास-विलास आदि करो। दूसरी जगह गये तो समझो माया की प्रवेशता
हुई। माया का नम्बरवन कर्तव्य है पतित बनाना। बेकायदे चलन से नुकसान बहुत होता है।
हो सकता है फिर कड़ी सजायें भी खानी पड़े, अगर अपने को सम्भालेंगे नहीं तो। बाप के
साथ-साथ धर्मराज भी है। उनके पास बेहद का हिसाब-किताब रहता है। रावण की जेल में
कितना वर्ष सजायें खाई हैं। इस दुनिया में कितना अपार दु:ख है। अभी बाप कहते हैं और
सब बातें भूल एक बाप को याद करो और सभी दुविधा अन्दर से निकाल दो। विकार में कौन ले
जाते हैं? माया के भूत। तुम्हारा एम ऑब्जेक्ट है ही यह। राजयोग है ना। बाप को याद
करने से यह वर्सा मिलेगा। तो इस धन्धे में लग जाना चाहिए। किचड़ा सारा अन्दर से
निकाल देना चाहिए। माया की पराकाष्ठा भी बहुत कड़ी है। परन्तु उनको उड़ाते रहना है।
जितना हो सके याद की यात्रा में रहना है। अभी तो निरन्तर याद हो न सके। आखरीन
निरन्तर तक भी आयेंगे तब ही ऊंच पद पायेंगे। अगर अन्दर दुविधा, खराब ख्यालात होंगे
तो ऊंच पद मिल नहीं सकता। माया के वश होकर ही हार खाते हैं।
बाप समझाते हैं - बच्चे, गन्दे काम से हार मत खाओ। निन्दा आदि करते तो तुम्हारी
बहुत बुरी गति हो गई है। अभी सद्गति होती है तो बुरे कर्म मत करो। बाबा देखते हैं
माया ने गले तक ग्रास (हप) कर लिया है। पता भी नहीं पड़ता है। खुद समझते हैं हम
बहुत अच्छा चल रहे हैं, परन्तु नहीं। बाप समझाते हैं - मन्सा, वाचा, कर्मणा मुख से
रत्न ही निकलने चाहिए। गन्दी बातें करना पत्थर हैं। अभी तुम पत्थर से पारस बनते हो
तो मुख से कभी पत्थर नहीं निकलने चाहिए। बाबा को तो समझाना पड़ता है। बाप का हक है
बच्चों को समझाना। ऐसे तो नहीं, भाई भाई को सावधानी देंगे। टीचर का काम है शिक्षा
देना। वह कुछ भी कह सकते हैं। स्टूडेन्ट को हाथ में लॉ नहीं उठाना है। तुम
स्टूडेन्ट हो ना। बाप समझा सकते हैं, बाकी बच्चों को तो बाप का डायरेक्शन है एक बाप
को याद करो। तुम्हारी तकदीर अभी खुली है। श्रीमत पर न चलने से तुम्हारी तकदीर बिगड़
पड़ेगी फिर बहुत पछताना पड़ेगा। बाप की श्रीमत पर न चलने से एक तो सजायें खानी पड़े,
दूसरा पद भी भ्रष्ट। जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर की बाजी है। बाप आकर पढ़ाते
हैं तो बुद्धि में रहना चाहिए - बाबा हमारा टीचर है, जिनसे यह नई नॉलेज मिलती है कि
अपने को आत्मा समझो। आत्मायें और परमात्मा का मेला कहा जाता है ना। 5 हज़ार वर्ष
बाद मिलेंगे, इसमें जितना वर्सा लेना चाहो ले सकते हो। नहीं तो बहुत-बहुत पछतायेंगे,
रोयेंगे। सब साक्षात्कार हो जायेगा। स्कूल में बच्चे ट्रान्सफर होते हैं तो पिछाड़ी
में बैठने वालों को सभी देखते हैं। यहाँ भी ट्रान्सफर होते हैं। तुम जानते हो यहाँ
शरीर छोड़कर फिर जाए सतयुग में प्रिन्स के कॉलेज में भाषा सीखेंगे। वहाँ की भाषा तो
सभी को पढ़नी पड़ती है, मदर लैंगवेज। बहुतों में पूरा ज्ञान नहीं है फिर पढ़ते भी
नहीं हैं रेगुलर। एक-दो बार मिस किया तो आदत पड़ जाती है मिस करने की। संग है माया
के मुरीदों का। शिवबाबा के मुरीद थोड़े हैं। बाकी सब हैं माया के मुरीद। तुम शिवबाबा
के मुरीद बनते हो तो माया सहन नहीं कर सकती है, इसलिए सम्भाल बहुत करनी चाहिए।
छी-छी गन्दे मनुष्यों से बड़ी सम्भाल रखनी है। हंस और बगुले हैं ना। बाबा ने रात को
भी शिक्षा दी है, सारा दिन कोई न कोई की निंदा करना, परचिंतन करना, इनको कोई
दैवीगुण नहीं कहा जाता है। देवतायें ऐसा काम नहीं करते हैं। बाप कहते हैं बाप और
वर्से को याद करो फिर भी निंदा करते रहते हैं। निंदा तो जन्म-जन्मान्तर करते आये
हो। दुविधा अन्दर रहती ही है। यह भी अन्दर मारामारी है। मुफ्त अपना खून करते हैं।
बहुतों को घाटा डालते हैं। फलाना ऐसा है, इसमें तुम्हारा क्या जाता है। सबका सहायक
एक बाप है। अभी तो श्रीमत पर चलना है। मनुष्य मत तो बड़ा गन्दा बना देती है। एक-दो
की ग्लानि करते रहते हैं। ग्लानि करना यह है माया का भूत। यह है ही पतित दुनिया।
तुम समझते हो कि हम अभी पतित से पावन बन रहे हैं। तो यह बड़ी खराबियाँ हैं। समझाया
जाता है आज से अपना कान पकड़ना चाहिए - कभी ऐसा कर्म नहीं करेंगे। कुछ भी अगर देखते
हो तो बाबा को रिपोर्ट करनी चाहिए। तुम्हारा क्या जाता है! तुम एक-दो की ग्लानि क्यों
करते हो! बाप सुनता तो सब-कुछ है ना। बाप ने कानों और आंखों का लोन लिया है ना। बाप
भी देखते हैं तो यह दादा भी देखते हैं। चलन, वातावरण तो कोई-कोई का बिल्कुल ही
बेकायदे चलता है। जिनका बाप नहीं होता है, उनको छोरा कहा जाता है। वह अपने बाप को
भी नहीं जानते, याद भी नहीं करते हैं। सुधरने बदले और ही बिगड़ते हैं, इसलिए अपना
ही पद गँवाते हैं। श्रीमत पर नहीं चलते तो छोरे हैं। माँ-बाप की श्रीमत पर नहीं चलते
हैं। त्वमेव माताश्च पिता... बन्धू आदि भी बनते हैं।
परन्तु ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर ही नहीं तो मदर फिर कहाँ से होगी, इतनी भी
बुद्धि नहीं। माया बुद्धि एकदम फेर देती है। बेहद के बाप की आज्ञा नहीं मानते हैं
तो दण्ड पड़ जाता है। जरा भी सद्गति नहीं होती है। बाप देखते हैं तो कहेंगे ना -
इनकी क्या बुरी गति होगी। यह तो टांगर, अक के फूल हैं। जिसको कोई भी पसन्द नहीं करता
है। तो सुधरना चाहिए ना। नहीं तो पद भ्रष्ट हो जायेंगे। जन्म-जन्मान्तर के लिए घाटा
पड़ जायेगा। परन्तु देह-अभिमानियों की बुद्धि में बैठता ही नहीं। आत्म-अभिमानी ही
बाप से लव कर सकते हैं। बलिहार जाना कोई मासी का घर नहीं है। बड़े-बड़े आदमी बलिहार
तो जा न सकें। वह बलिहार जाने का अर्थ भी नहीं समझते हैं। हृदय विदीर्ण होता है।
बहुत बन्धनमुक्त भी हैं। बच्चा आदि कुछ भी नहीं है। कहते हैं बाबा आप ही हमारे सब
कुछ हो। ऐसे मुख से कहते हैं परन्तु सच नहीं। बाप से भी झूठ बोल देते हैं। बलिहार
गये तो अपना ममत्व निकाल देना चाहिए। अभी तो पिछाड़ी है तो श्रीमत पर चलना पड़े।
मिलकियत आदि से भी ममत्व निकल जाए। बहुत हैं ऐसे बन्धनमुक्त। शिवबाबा को अपना बनाया
है, एडाप्ट करते हैं ना। यह हमारा बाप टीचर सतगुरू है। हम उनको अपना बनाते हैं, उनकी
पूरी मिलकियत लेने। जो बच्चे बन गये हैं वह घराने में जरूर आते हैं। परन्तु फिर उसमें
पद कितने हैं। कितने दास-दासियां हैं। एक-दो पर हुक्म चलाते हैं। दासियों में भी
नम्बरवार बनते हैं। रॉयल घराने में बाहर के दास-दासियां तो नहीं आयेंगे ना। जो बाप
के बने हैं, उनको बनना है। ऐसे-ऐसे बच्चे हैं जिनमें पाई का भी अक्ल नहीं है।
बाबा ऐसे तो कहते नहीं कि मम्मा को याद करो वा मेरे रथ को याद करो। बाप कहते हैं
मामेकम् याद करो। देह के सब बन्धन छोड़ अपने को आत्मा समझो। बाप समझाते हैं कि
प्रीत रखनी है तो एक से रखो तब बेड़ा पार होगा। बाप के डायरेक्शन पर चलो। मोहजीत
राजा की कथा भी है ना! पहले नम्बर में हैं बच्चे, बच्चा तो मिलकियत का मालिक बनेगा।
स्त्री तो हाफ पार्टनर है, बच्चा तो फुल मालिक बन जाता है। तो बुद्धि उस तरफ जाती
है, बाबा को फुल मालिक बनायेंगे तो यह सब कुछ तुमको दे देंगे। लेन-देन की बात ही नहीं।
यह तो समझ की बात है। भल तुम सुनते हो फिर दूसरे दिन सब भूल जाता है। बुद्धि में
रहेगा तो दूसरों को भी समझा सकेंगे। बाप को याद करने से तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
यह तो बहुत सहज है, मुख चलाते रहो। एम आब्जेक्ट बताते रहो। विशालबुद्धि तो झट
समझेंगे। अन्त में यह चित्र आदि ही काम आयेंगे। इसमें सारा ज्ञान भरा हुआ है।
लक्ष्मी-नारायण और राधे-कृष्ण का आपस में क्या सम्बन्ध है? यह कोई नहीं जानते।
लक्ष्मी-नारायण तो जरूर पहले प्रिन्स होंगे। बेगर टू प्रिन्स हैं ना! बेगर टू किंग
नहीं कहा जाता। प्रिन्स के बाद ही किंग बनते हैं। यह तो बहुत ही सहज है परन्तु माया
कोई को पकड़ लेती है, किसकी निंदा करना, ग्लानि करना - यह तो बहुतों की आदत है। और
तो कोई काम है ही नहीं। बाप को कभी याद नहीं करेंगे। एक-दो की ग्लानि का धन्धा ही
करते हैं। यह है माया का पाठ। बाप का पाठ तो बिल्कुल ही सीधा है। पिछाड़ी में यह
संन्यासी आदि जागेंगे, कहेंगे कि ज्ञान है तो इन बी.के. में है। कुमार-कुमारियां तो
पवित्र होते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हैं। हमारे में कोई खराब ख्याल भी नहीं
आना चाहिए। बहुतों को अभी भी खराब ख्यालात आते हैं, फिर इसकी सज़ा भी बहुत कड़ी है।
बाप समझाते तो बहुत हैं। अगर कुछ चाल तुम्हारी फिर खराब देखी तो यहाँ रह नहीं सकेंगे।
थोड़ी सजा भी देनी होती है, तुम लायक नहीं हो। बाप को ठगते हो। तुम बाप को याद कर
नहीं सकेंगे। अवस्था सारी गिर जाती है। अवस्था गिरना ही सजा है। श्रीमत पर न चलने
से अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं। बाप के डायरेक्शन पर न चलने से और ही भूत की
प्रवेशता होती है। बाबा को तो कभी-कभी ख्याल आता है, कहीं बहुत बड़ी कड़ी सजायें अभी
ही शुरू न हो जाएं। सजायें भी बहुत गुप्त होती हैं ना। कहीं कड़ी पीड़ा न आये। बहुत
गिरते हैं, सजा खाते हैं। बाप तो सब इशारे में समझाते रहते हैं। अपनी तकदीर को लकीर
बहुत लगाते हैं इसलिए बाप खबरदार करते रहते हैं, अभी ग़फलत करने का समय नहीं है,
अपने को सुधारो। अन्त घड़ी आने में कोई देरी नहीं है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कोई भी बेकायदे, श्रीमत के विरूद्ध चलन नहीं चलनी है। स्वयं को स्वयं
ही सुधारना है। छी-छी गन्दे मनुष्यों से अपनी सम्भाल करनी है।
2) बन्धनमुक्त हैं तो पूरा-पूरा बलिहार जाना है। अपना ममत्व निकाल देना है। कभी
भी किसी की निंदा वा परचिंतन नहीं करना है। गन्दे खराब ख्यालातों से स्वयं को मुक्त
रखना है।