ओम् शान्ति।
बाप कहते हैं आत्म-अभिमानी वा देही-अभिमानी हो बैठो क्योंकि आत्मा में ही अच्छे वा
बुरे संस्कार भरे जाते हैं। सबका असर आत्मा पर होता है। आत्मा को ही पतित कहा जाता
है। पतित आत्मा कहा जाता है तो जरूर जीव आत्मा ही होगी। आत्मा शरीर के साथ ही होगी।
पहली-पहली बात कहते हैं आत्मा होकर बैठो। अपने को शरीर नहीं, आत्मा समझ बैठो। आत्मा
ही इन आरगन्स को चलाती है। घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा समझने से परमात्मा याद आयेगा।
अगर देह याद आई तो देह का बाप याद आयेगा इसलिए बाप कहते हैं - आत्म-अभिमानी बनो।
बाप पढ़ा रहे हैं, यह है पहला पाठ। तुम आत्मा अविनाशी हो, शरीर विनाशी है। ‘हम आत्मा
हैं' यह पहला शब्द याद नहीं करेंगे तो कच्चे पड़ जायेंगे। मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं
हूँ - यह शब्द इस समय बाप पढ़ाते हैं। आगे कोई भी पढ़ाते नहीं थे। बाप आये ही हैं
आत्म-अभिमानी बनाकर ज्ञान देने लिए। पहला ज्ञान देते हैं - हे आत्मा तुम पतित हो,
क्योंकि यह है ही पुरानी दुनिया। प्रदर्शनी में भी तुम बच्चे बहुतों को समझाते हो।
प्रश्न-उत्तर करते हैं तो जब दिन के समय रेस्ट मिलती है, उस समय आपस में मिलना
चाहिए, समाचार पूछना चाहिए, किसने क्या-क्या प्रश्न पूछे, हमने क्या समझाया। फिर
उनको समझाना है। फिर उस पर ऐसे नहीं, ऐसे समझाना चाहिए। समझाने की युक्ति सबकी एक
नहीं होती। मूल बात है अपने को आत्मा समझते हो या देह? दो बाप भी सबके हैं जरूर। जो
भी देहधारी हैं, उनका लौकिक बाप भी है, पारलौकिक भी है। हद का बाप तो कॉमन है। यहाँ
तुमको मिला है बेहद का बाप, वह हम आत्माओं को बैठ समझाते हैं। वह एक ही बाप भी है,
टीचर भी है, गुरू भी है। यह पक्का कर देना चाहिए। जब तुम किसको समझाते हो, जो-जो
तुमसे प्रश्न पूछते हैं उस पर आपस में बैठना चाहिए, जो होशियार हैं उनको भी बैठना
चाहिए। तुमको टाइम मिलता है दिन के समय। ऐसा नहीं कि भोजन खाते हैं इसलिए नींद का
नशा आये। जो बहुत खाना खाते हैं उनको नींद का आलस्य आता है। दिन में क्लास करना
चाहिए - फलाने ने यह यह पूछा, हमने यह रेसपॉन्स किया। प्रश्न तो भिन्न-भिन्न पूछेंगे।
उनका रेसपॉन्स भी चाहिए रीयल। देखना चाहिए उनको कशिश में लाया, सेटिस्फाय हुआ? नहीं
तो फिर करेक्शन निकालनी चाहिए। जो होशियार हैं, उनको भी बैठना चाहिए। ऐसे नहीं, खाना
खाया जल्दी नींद आये। देवतायें खाना बहुत थोड़ा खाते हैं क्योंकि खुशी है ना इसलिए
कहा जाता है खुशी जैसी खुराक नहीं। तुम बच्चों को अथाह खुशी होनी चाहिए। ब्राह्मण
बनने में बड़ी खुशी है। ब्राह्मण बनते ही तब हैं जब उनको खुशी मिलती है। देवताओं को
खुशी है ना क्योंकि उन्हों के पास धन महल आदि सब कुछ है। तो उन्हों के लिए खुशी ही
काफी है। खुशी में खाना भी बहुत थोड़ा, सूक्ष्म खायेंगे। यह भी एक कायदा है। जास्ती
खाने वाले को जास्ती नींद आयेगी। जिसको नींद का नशा होगा वह किसको समझा भी नहीं
सकेंगे, जैसे लाचार। यह ज्ञान की बातें तो बड़ी खुशी से सुननी-सुनानी चाहिए। समझाने
में भी सहज होगा।
मूल बात है बाप का परिचय देना। ब्रह्मा को तो कोई जानते नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा
है, ढेर की ढेर प्रजा है। यह प्रजापिता ब्रह्मा कैसे होगा - इस पर बहुत अच्छी रीति
समझाना है। बाप ने समझाया है इनके बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में वानप्रस्थ
अवस्था में मैं प्रवेश करता हूँ। नहीं तो रथ कहाँ से आये। रथ गाया हुआ ही शिवबाबा
के लिए है। रथ में कैसे आते हैं, उसमें मूँझते हैं। रथ तो जरूर चाहिए। श्रीकृष्ण तो
हो न सके, तो जरूर ब्रह्मा द्वारा समझायेंगे। ऊपर से तो नहीं बोलेंगे। ब्रह्मा कहाँ
से आया? बाप ने सुनाया है मैं इनमें प्रवेश करता हूँ, जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं।
यह खुद नहीं जानते, मैं सुनाता हूँ। श्रीकृष्ण को तो रथ की दरकार ही नहीं।
श्रीकृष्ण कहने से फिर तो भागीरथ गुम हो जायेगा। श्रीकृष्ण को भागीरथ नहीं कहा जाता।
उनका तो पहला जन्म है प्रिन्स का। तो बच्चों को अन्दर में विचार सागर मंथन करना
चाहिए। यह तो बच्चे जानते हैं, वह बातें तो नहीं हैं जो शास्त्रों में लिख दी हैं।
बाकी यह तो ठीक है विचार सागर मंथन किया हुआ कलष लक्ष्मी को दिया है। उसने फिर औरों
को अमृत पिलाया तब स्वर्ग के गेट खुले। परन्तु परमपिता परमात्मा को तो विचार सागर
मंथन करने की दरकार ही नहीं। वह तो बीजरूप है। उनमें नॉलेज है, वही जानते हैं, तुम
भी जानते थे। अभी यह अच्छी रीति समझाना जरूर है। समझने बिगर देवता पद कैसे पायेंगे!
बाप समझाते हैं आत्माओं को रिफ्रेश करने लिए। बाकी तो कुछ भी जानते नहीं। बाप आकर
समझाते हैं अभी तुम्हारा लंगर भक्ति मार्ग से उठा, अब ज्ञान मार्ग में चला है। बाप
कहते हैं मैं तुमको जो ज्ञान देता हूँ वह प्राय:लोप हो जाता है।
एक है निराकार, दूसरा है साकारी बाप। समझाया तो बहुत अच्छा जाता है परन्तु माया
ऐसी है जो कशिश कर गन्द में ले जाती है। पतित बन पड़ते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे,
तुम काम चिता पर चढ़ एकदम कब्रिस्तान में आ गये हो। फिर यहाँ ही परिस्तान होगा जरूर।
आधाकल्प परिस्तान चलता है, फिर आधाकल्प कब्रिस्तान चलता है। अभी सब कब्रदाखिल होने
हैं। सीढ़ी पर भी अच्छी रीति समझा सकते हो। यह है ही पतित राज्य, इसका विनाश जरूर
होना है। इस धरनी पर अभी कब्रिस्तान है। फिर यही धरनी चेंज हो जायेगी अर्थात् आइरन
एज़ड से गोल्डन एज़ड दुनिया होगी, फिर 2 कला कम होंगी। तत्वों की भी कला कम होती
जाती है तो फिर उपद्रव मचाते हैं। तुम सभी को अच्छी रीति समझाते हो। अगर नहीं समझते
तो गोया कौड़ी मिसल हैं, कोई वैल्यु नहीं है। यह वैल्यु तो बाप बैठ बतलाते हैं। गाया
भी जाता है - हीरे जैसा जन्म.... तुम भी पहले बाप को नहीं जानते थे, तुम कौड़ी जैसे
थे। अभी बाप आकर हीरे जैसा बनाते हैं। बाप से ही हीरे जैसा जन्म मिलता है फिर कौड़ी
जैसे क्यों बन पड़ते हो? तुम ईश्वरीय सन्तान हो ना। गायन भी है आत्मायें परमात्मा
अलग रहे बहुकाल... जब वहाँ शान्तिधाम में हैं तो उस मिलन में कोई फ़ायदा नहीं होता।
वह तो सिर्फ पवित्रता वा शान्ति का स्थान है। यहाँ तो तुम जीव आत्मायें हो और
परमात्मा बाप उनको अपना शरीर नहीं है, वह शरीर धारण कर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं।
तुम बाप को जानते हो और कहते हो - बाबा, बाप कहेंगे - ओ बेटे। लौकिक बाप भी कहेगा
ना - हे बाल बच्चे आओ तो तुमको टोली खिलाऊं। झट सब भागेंगे। यह बाप भी कहते हैं -
बच्चे आओ तो तुमको बैकुण्ठ का मालिक बनाऊं, तो जरूर सब भागेंगे। पुकारते भी हैं हम
पतितों को पावन बनाकर, पावन दुनिया विश्व का मालिक बनाने आओ। अब निश्चय है तो मानना
चाहिए। बुलाया भी बच्चों ने है। हम आते भी बच्चों के लिए हैं। बच्चों को ही कहते
हैं तुमने बुलाया है, अब मैं आया हूँ। पतित-पावन भी बाप को ही कहते हैं ना। गंगा आदि
के पानी से तुम पावन बन नहीं सकते। आधाकल्प तुम भूल में चले हो। भगवान् को ढूँढते
हो परन्तु किसको भी समझ में नहीं आता है। बाप कहते हैं - हे बच्चों। तो बच्चों का
भी उस हुल्लास से निकलना चाहिए - हे बाबा। परन्तु इतना हुल्लास से निकलता नहीं है।
इसको देह-अभिमान कहा जाता है, न कि देही-अभिमानी। तुम अभी बाप के सम्मुख बैठे हो।
बेहद के बाप को याद करने से बेहद की बादशाही भी जरूर याद आयेगी। ऐसे बाप को कितना
प्यार से रेसपान्स करना चाहिए। बाप तुम्हारे बुलाने से आया है। ड्रामा अनुसार एक
मिनट भी आगे-पीछे नहीं हो सकता। सभी कहते हैं - ओ फादर रहम करो, लिबरेट करो, हम सब
रावण की जंजीरों में हैं, आप हमारे गाइड बनो। तो बाप गाइड भी बनते हैं, सब उनको
बुलाते हैं - ओ लिबरेटर, ओ गाइड आकर हमारा गाइड बनो। हमको भी साथ ले चलो। अभी तुम
संगम पर खड़े हो। बाप सतयुग की स्थापना कर रहे हैं। अभी है कलियुग, करोड़ों मनुष्य
हैं। सतयुग में तो सिर्फ थोड़े देवी-देवता ही थे तो जरूर विनाश हुआ होगा। वह भी
सामने खड़ा है, जिसके लिए गायन है - साइन्स घमन्डी, कितना बुद्धि से अक्ल निकालते
रहते हैं। वह हैं यादव सम्प्रदाय। फिर हिस्ट्री रिपीट होनी है। अभी तो सतयुग की
हिस्ट्री रिपीट होगी।
तुम समझते हो हम नई दुनिया में ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। पवित्र
जरूर बनना है। तुम समझाते हो इस पतित दुनिया का विनाश जरूर होना है। बच्चे आदि तो
तुम्हारे जीते नहीं रहेंगे। न कोई वारिस बनेंगे, न शादी आदि करेंगे। बहुत गई बाकी
थोड़ी रही। थोड़ा समय है, उसका भी हिसाब है। आगे ऐसे नहीं कहते थे। अभी टाइम थोड़ा
है। पहले वाले जो शरीर छोड़कर गये हुए हैं, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जन्म लिया
है। कोई यहाँ आये भी होंगे। दिखाई पड़ता है जैसेकि यहाँ का बिछुड़ा हुआ है। उनको
ज्ञान के बिगर मज़ा नहीं आयेगा। माँ-बाप को भी कहते हैं हम तो यहाँ जायेंगे। यह तो
सहज समझने की बाते हैं। विनाश जरूर होना ही है। लड़ाई की तैयारी भी देख रहे हो। आधा
खर्चा तो इन्हों का इस लड़ाई के सामान में ही लग जाता है। एरोप्लेन आदि कैसे बनाते
हैं, कहते हैं घर बैठे भी सारे ख़लास हो जायेंगे। ऐसी-ऐसी चीजें बनाते रहते हैं
क्योंकि हॉस्पिटल आदि तो रहेंगे नहीं। ड्रामा में यह भी जैसे बाप के इशारे मिलते
हैं। वह भी ड्रामा में नूँध है। समझते हैं ऐसा न हो जो बीमार पड़ जाएं। मरना तो सबको
जरूर है। राम गयो रावण गयो.... जो योग में रह आयु बढ़ाते होंगे उनकी जरूर बढ़ेगी।
अपनी खुशी से शरीर छोड़ देंगे। जैसे मिसाल बताते हैं ब्रह्म ज्ञानी हैं, वह भी
ब्रह्म में जाने के लिए ऐसे खुशी से शरीर छोड़ते हैं। परन्तु ब्रह्म में कोई जाते
नहीं, न पाप कटते हैं। पुनर्जन्म फिर भी यहाँ लेते हैं। पाप कटने की युक्ति बाप
बतलाते हैं कि मामेकम् याद करो और कोई को याद नहीं करना है। लक्ष्मी-नारायण को भी
याद नहीं करना है। तुम जानते हो इस पुरूषार्थ से हम यह पद पा रहे हैं। स्वर्ग की
स्थापना हो रही है। हम पढ़ रहे हैं यह पद पाने के लिए, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
उन्हों की जो डिनायस्टी चलती है वह बाप ने संगम पर अभी स्थापन की है। तुम भाषण भी
ऐसा करो, जो एक्यूरेट किसी की भी बुद्धि में बैठ जाए। इस समय हम ईश्वरीय सम्प्रदाय
और प्रजापिता ब्रह्मा की मुख वंशावली भाई-बहन हैं। हम आत्मायें सब भाई-भाई हैं।
ब्रह्माकुमार-कुमारियों की शादी होती नहीं। यह भी बाप समझाते हैं कैसे गिर पड़ते
हैं, काम अग्नि जलाती है। परन्तु डर रहता है एक बार हम गिरा तो की कमाई चट हो जायेगी।
काम से हारा तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। कमाई कितनी बड़ी है! मनुष्य पद्म करोड़ कमाते
हैं। उनको यह थोड़ेही पता है कि थोड़े समय में यह सब ख़त्म होना है। बाम्ब्स बनाने
वाले जानते हैं यह दुनिया ख़त्म होनी है, हमको कोई प्रेरक है, हम बनाते रहते हैं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान को अन्दर घोटना है अर्थात् विचार सागर मंथन करना है। ज्ञान की
आपस में रूहरिहान कर फिर दूसरों को समझाना है। सुस्ती वा आलस्य को छोड़ देना है।
2) देही-अभिमानी बन बड़े हुल्लास से बाप को याद करना है। सदा इसी नशे में रहना
है कि हम बाप के पास आये हैं कौड़ी से हीरा बनने। हम हैं ईश्वरीय सन्तान।