14-09-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 18.01.2007 "बापदादा" मधुबन
“अब स्वयं को मुक्त
कर मास्टर मुक्तिदाता बन सबको मुक्ति दिलाने के निमित्त बनो''
आज स्नेह के सागर
बापदादा चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। दो प्रकार के बच्चे देख-देख
हर्षित हो रहे हैं। एक हैं लवलीन बच्चे और दूसरे हैं लवली बच्चे, दोनों के स्नेह की
लहरें बाप के पास अमृतवेले के भी पहले से पहुँच रही हैं। हर एक बच्चे के दिल से
ऑटोमेटिक गीत बज रहा है - “मेरे बाबा''। बापदादा के दिल से भी यही गीत बजता - “मेरे
बच्चे, लाडले बच्चे, बापदादा के भी सिरताज बच्चे''।
आज स्मृति दिवस के
कारण सबके मन में स्नेह की लहर ज्यादा है। अनेक बच्चों की स्नेह के मोतियों की
मालायें बापदादा के गले में पिरो रही हैं। बाप भी अपने स्नेही बांहों की माला बच्चों
को पहना रहे हैं। बेहद के बापदादा की बेहद की बांहों में समा गये हैं। आज सब विशेष
स्नेह के विमान में पहुंच गये हैं और दूर-दूर से भी मन के विमान में अव्यक्त रूप
से, फरिश्तों के रूप से पहुंच गये हैं। सभी बच्चों को बापदादा आज स्मृति दिवस सो
समर्थ दिवस की पदमापदम याद दे रहे हैं। यह दिवस कितनी स्मृतियां दिलाता है और हर
स्मृति सेकण्ड में समर्थ बना देती है। स्मृतियों की लिस्ट सेकण्ड में स्मृति में आ
जाती है ना। स्मृति सामने आते समर्थी का नशा चढ़ जाता है। पहली-पहली स्मृति याद है
ना! जब बाप के बने तो बाप ने क्या स्मृति दिलाई? आप कल्प पहले वाली भाग्यवान आत्मा
हो। याद करो इस पहली स्मृति से क्या परिवर्तन आ गया? आत्म-अभिमानी बनने से परमात्म
बाप के स्नेह का नशा चढ़ गया। क्यों नशा चढ़ा? दिल से पहला स्नेह का शब्द कौन सा
निकला? “मेरा मीठा बाबा'' और इस एक गोल्डन शब्द निकलने से नशा क्या चढ़ा? सारी
परमात्म प्राप्तियां मेरा बाबा कहने से, जानने से, मानने से आपकी अपनी प्राप्तियां
हो गई। अनुभव है ना! मेरा बाबा कहने से कितनी प्राप्तियां आपकी हो गई! जहाँ
प्राप्तियां होती हैं वहाँ याद करनी नहीं पड़ती लेकिन स्वत: ही आती है, सहज ही आती
है क्योंकि मेरी हो गई ना! बाप का खजाना मेरा खजाना हो गया, तो मेरापन याद किया नहीं
जाता है, याद रहता ही है। मेरा भुलाना मुश्किल होता है, याद करना मुश्किल नहीं होता।
जैसे अनुभव है मेरा शरीर, तो भूलता है? भुलाना पड़ता है, क्यों? मेरा है ना! तो जहाँ
मेरापन आता है वहाँ सहज याद हो जाती है। तो स्मृति ने समर्थ आत्मा बना दिया - एक
शब्द “मेरा बाबा'' ने। भाग्य विधाता अखुट खजाने के दाता को मेरा बना लिया। ऐसी कमाल
करने वाले बच्चे हो ना! परमात्म पालना के अधिकारी बन गये, जो परमात्म पालना सारे
कल्प में एक बार मिलती है, आत्मायें और देव आत्माओं की पालना तो मिलती है लेकिन
परमात्म पालना सिर्फ एक जन्म के लिए मिलती है।
तो आज के स्मृति सो
समर्थी दिवस पर परमात्म पालना का नशा और खुशी सहज याद रही ना! क्योंकि आज का
वायुमण्डल सहज याद का था। तो आज के दिन सहजयोगी रहे कि आज के दिन भी याद के लिए
युद्ध करनी पड़ी? क्योंकि आज का दिन स्नेह का दिन कहेंगे ना, तो स्नेह मेहनत को मिटा
देता है। स्नेह सब बातें सहज कर देता है। तो सभी आज के दिन विशेष सहजयोगी रहे या
मुश्किल आई? जिसको आज के दिन मुश्किल आई हो वह हाथ उठाओ। किसको भी नहीं आई? सब
सहजयोगी रहे। अच्छा जो सहजयोगी रहे वह हाथ उठाओ। (सभी ने उठाया) अच्छा - सहजयोगी रहे?
आज माया को छुट्टी दे दी थी। आज माया नहीं आई? आज माया को विदाई दे दी? अच्छा आज तो
विदाई दे दी, उसकी मुबारक हो, अगर ऐसे ही स्नेह में समाये रहो तो माया को तो विदाई
सदा के लिए हो जायेगी क्योंकि अभी 70 साल पूरे हो रहे हैं, तो बापदादा इस वर्ष को
न्यारा वर्ष, सर्व का प्यारा वर्ष, मेहनत से मुक्त वर्ष, समस्या से मुक्त वर्ष मनाने
चाहते हैं। आप सभी को पसन्द है? पसन्द है? मुक्त वर्ष मनायेंगे? क्योंकि मुक्तिधाम
में जाना है, अनेक दु:खी अशान्त आत्माओं को मुक्तिदाता बाप से साथी बन मुक्ति दिलाना
है। तो मास्टर मुक्तिदाता जब स्वयं मुक्त बनेंगे तब तो मुक्ति वर्ष मनायेंगे ना!
क्योंकि आप ब्राह्मण आत्मायें स्वयं मुक्त बन अनेकों को मुक्ति दिलाने के निमित्त
हो। एक भाषा जो मुक्ति दिलाने के बजाए बंधन में बांधती है, समस्या के अधीन बनाती
है, वह है ऐसा नहीं, वैसा। वैसा नहीं ऐसा। जब समस्या आती है तो यही कहते हैं बाबा
ऐसा नहीं था, वैसा था ना। ऐसा नहीं होता, ऐसा होता ना। यह है बहाने बाजी करने का
खेल।
बापदादा ने सबका फाइल
देखा, तो फाइल में क्या देखा? मैजॉरिटी का फाइल प्रतिज्ञा करने के पेपर से भरा हुआ
है। प्रतिज्ञा करने के टाइम बहुत दिल से करते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अभी तक देखा
कि फाइल बड़ा होता जाता है लेकिन फाइनल नहीं हुआ है। दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए कहा हुआ
है - जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाए। तो बापदादा ने आज सबके फाइल देखे। बहुत
प्रतिज्ञायें अच्छी-अच्छी की है। मन से भी की है और लिख करके भी की है। तो इस वर्ष
क्या करेंगे? फाइल को बढ़ायेंगे या प्रतिज्ञा को फाइनल करेंगे? क्या करेंगे? पहली
लाइन वाले बताओ, पाण्डव सुनाओ, टीचर्स सुनाओ। इस वर्ष जो बापदादा के पास फाइल बड़ा
होता जाता है, उसको फाइनल करेंगे या इस वर्ष भी फाइल में कागज एड करेंगे? क्या
करेंगे? बोलो पाण्डव, फाइनल करेंगे? जो समझते हैं - झुकना पड़े, बदलना पड़े, सहन
करना भी पड़े, सुनना भी पड़े, लेकिन बदलना ही है, वह हाथ उठाओ। देखो टी.वी. में सबका
फोटो निकालो। सभी का फोटो निकालना, दो तीन चार टी.वी. हैं, सब तरफ के फोटो निकालो।
यह रिकार्ड रखना, बाप को यह फोटो निकाल के देना। कहाँ है टी.वी. वाले? बापदादा भी
फाइल का फायदा तो उठावे। मुबारक हो, मुबारक हो, अपने आपके लिए ही ताली बजाओ।
देखो जैसे एक तरफ
साइन्स, दूसरे तरफ भ्रष्टाचारी, तीसरे तरफ पापाचारी, सब अपने-अपने कार्य में और
वृद्धि करते जा रहे हैं। बहुत नये-नये प्लैन बनाते जाते हैं। तो आप तो वर्ल्ड
क्रियेटर के बच्चे हो, तो आप इस वर्ष ऐसी नवीनता के साधन अपनाओ जो प्रतिज्ञा दृढ़
हो जाए क्योंकि सभी प्रत्यक्षता चाहते हैं। कितना खर्चा कर रहे हैं, जगह-जगह पर
बड़े-बड़े प्रोग्राम कर रहे हैं। हर एक वर्ग मेहनत अच्छी कर रहे हैं लेकिन अभी इस
वर्ष यह एडीशन करो कि जो भी सेवा करो, मानो मुख की सेवा करते हो, तो सिर्फ मुख की
सेवा नहीं, मन्सा वाचा और स्नेह सहयोग रूपी कर्म एक ही समय में तीन सेवायें इकट्ठी
हों। अलग-अलग नहीं हों। एक सेवा में देखा जाता है कि जो बापदादा रिजल्ट देखने चाहते
हैं वह नहीं होती। जो आप भी चाहते हो कि प्रत्यक्षता हो जाए। अभी तक पहले से यह
रिजल्ट बहुत अच्छी है - सब अच्छा-अच्छा, बहुत अच्छा कहके जाते हैं। लेकिन अच्छा बनना
अर्थात् प्रत्यक्षता होना। तो अब एडीशन करो कि एक ही समय पर मन्सा-वाचा, कर्मणा में
स्नेही सहयोगी बनना, हर एक साथी चाहे ब्राह्मण साथी हैं, चाहे बाहर वाले सेवा के
निमित्त जो बनते हैं, वह साथी हों लेकिन सहयोग और स्नेह देना - यह है कर्मणा सेवा
में नम्बर लेना। यह भाषा नहीं कहना, यह ऐसा किया ना, तभी ऐसा करना पड़ा। स्नेह के
बजाए थोड़ा-थोड़ा कहना पड़ा, बाबा शब्द नहीं बोलता। यह करना ही पड़ता है, कहना ही
पड़ता है, देखना ही पड़ता है... यह नहीं। इतने वर्षों में देख लिया, बापदादा ने
छुट्टी दे दी। ऐसा नहीं वैसा करते रहे, लेकिन अभी कब तक? बापदादा से सभी रूहरिहान
में मैजॉरिटी कहते हैं बाबा आखिर भी पर्दा कब खोलेंगे? कब तक चलेगा? तो बापदादा आपको
कहते हैं कि यह पुरानी भाषा, पुरानी चाल, अलबेलेपन की, कडुवेपन की कब तक? बापदादा
का भी क्वेश्चन है कब तक? आप उत्तर दो तो बापदादा भी उत्तर देगा कब तक विनाश होगा
क्योंकि बापदादा विनाश का पर्दा तो अभी भी इसी सेकण्ड में खोल सकता है लेकिन पहले
राज्य करने वाले तो तैयार हों। तो अब से तैयारी करेंगे तब समाप्ति समीप लायेंगे।
किसी भी कमजोरी की बात में कारण नहीं बताओ, निवारण करो, यह कारण था ना। बापदादा सारे
दिन में बच्चों का खेल तो देखते हैं ना, बच्चों से प्यार है ना, तो बार-बार खेल
देखते रहते हैं। बापदादा की टी.वी. बहुत बड़ी है। एक समय पर वर्ल्ड दिखाई दे सकती
है, चारों ओर के बच्चे दिखाई दे सकते हैं। चाहे अमेरिका हो, चाहे गुडगांव हो, सब
दिखाई देते हैं। तो बापदादा खेल बहुत देखते हैं। टालने की भाषा बहुत अच्छी है, यह
कारण था ना, बाबा मेरी गलती नहीं है, इसने ऐसा किया ना। उसने तो किया लेकिन आपने
समाधान किया? कारण को कारण ही बनने दिया या कारण को निवारण में बदली किया? तो सभी
पूछते हैं ना कि बाबा आपकी क्या आशा है? तो बापदादा आशा सुना रहे हैं। बापदादा की
एक ही आशा है - निवारण दिखाई देवे, कारण खत्म हो जाए। समस्या समाप्त हो जाए, समाधान
होता रहे। हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन - हो सकता है? कांध तो हिलाओ। पीछे
वाले हो सकता है? (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा। तो कल अगर टी.वी. खोलेंगे, टी.वी में
देखेंगे तो जरूर ना। तो कल टी.वी. देखेंगे तो चाहे फॉरेन चाहे इन्डिया, चाहे छोटे
गांव, चाहे बहुत बड़ी स्टेट, कहाँ भी कारण दिखाई नहीं देगा? पक्का? इसमें हाँ नहीं
कर रहे हैं? होगा? हाथ उठाओ। हाथ बहुत अच्छा उठाते हो, बापदादा खुश हो जाता। कमाल
है हाथ उठाने की। खुश करना तो आता है बच्चों को क्योंकि बापदादा देखते हैं सोचो -
जो आप कोटों में कोई, कोई में कोई निमित्त बने हो, अभी इन बच्चों के सिवाए और कौन
करेगा? आपको ही तो करना है ना! तो बापदादा की आप बच्चों में उम्मीदें हैं। और जो
आयेंगे ना, वह तो आपकी अवस्था देख करके ही ठीक हो जायेंगे, उन्हों को मेहनत नहीं
करनी पड़ेगी। आप बन जाओ बस क्योंकि आप सभी ने जन्म लेते ही बाप से वायदा किया है -
साथ रहेंगे, साथी बनेंगे और साथ चलेंगे और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आयेंगे। यह
वायदा किया है ना? जब साथ रहेंगे, साथ चलेंगे तो साथ में सेवा के साथी भी तो हो ना!
तो अभी क्या करेंगे?
हाथ तो बहुत अच्छा उठाया, बापदादा खुश हो गये लेकिन जब भी कोई बात आवे ना तो यह दिन,
यह तारीख, यह टाइम याद करना तो हमने क्या हाथ उठाया था। मदद मिल जायेगी। आपको बनना
तो पड़ेगा। अभी सिर्फ जल्दी बन जाओ। आप सोचते हो ना, हम ही कल्प पहले भी थे, अभी भी
हैं और हर कल्प हमें ही बनना है, यह तो पक्का है ना या दो साल बनेंगे तीसरे साल
खिसक जायेंगे! ऐसे तो नहीं होगा? तो सदा याद रखो हम ही निमित्त हैं, हम ही कोटों
में कोई, कोई में कोई हैं। कोटों में कोई तो आयेंगे लेकिन आप कोई में कोई हो।
तो आज स्नेह का दिन
है, तो स्नेह में कुछ भी करना मुश्किल नहीं होता इसलिए बापदादा आज ही सभी को याद
दिला रहे हैं। ब्रह्मा बाबा से बच्चों का कितना प्यार है - यह देख करके शिवबाबा को
बहुत खुशी होती है। चारों ओर देखा चाहे सप्ताह का स्टूडेन्ट है, चाहे 70 साल वाला
है। 70 साल वाला और 7 दिन वाला भी आज के दिन प्यार में समाया हुआ है। तो शिव बाप भी
ब्रह्मा बाप से बच्चों का प्यार देख करके हर्षित होते हैं।
आज के दिन का और
समाचार सुनायें। आज के दिन एडवान्स पार्टी भी बापदादा के पास इमर्ज होती है। तो
एडवांस पार्टी भी आपको याद कर रही है कि कब बाप के साथ मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेंगे!
आज सारी एडवांस पार्टी बापदादा को यही कह रही थी कि हमको तारीख बताओ। तो क्या जवाब
दें? बताओ क्या जवाब दें? जवाब देने में कौन होशियार है? बापदादा तो यही उत्तर देते
हैं कि जल्द से जल्द हो ही जायेगा। लेकिन इसमें आप बच्चों का बाप को सहयोग चाहिए।
सभी साथ चलेंगे ना! साथ चलने वाले हैं या रुक-रूक कर चलने वाले हैं? साथ में चलने
वाले हैं ना! साथ में चलना पसन्द है ना? तो समान बनना पड़ेगा। अगर साथ में चलना है
तो समान तो बनना ही पड़ेगा ना! कहावत क्या है? हाथ में हाथ हो, साथ में साथ हो। तो
हाथ में हाथ अर्थात् समान। तो बोलो दादियां बोलो, तैयारी हो जायेगी? दादियां बोलो।
दादियां हाथ उठाओ। दादायें हाथ उठाओ। आपको कहा जाता है ना बड़े दादा। तो बताओ दादियां,
दादायें क्या तारीख है कोई? (अभी नहीं तो कभी नहीं) अभी नहीं तो कभी नहीं का अर्थ
क्या हुआ? अभी तैयार हैं ना! जवाब तो अच्छा दिया। दादियां? पूरा होना ही है। हर एक
छोटे बड़े इसमें अपने को जिम्मेवार समझें। इसमें छोटा नहीं होना है। 7 दिन का बच्चा
भी जिम्मेवार है क्योंकि साथ चलना है ना। अकेला बाप जाने चाहे तो चला जाए लेकिन बाप
जा नहीं सकता। साथ चलना है। वायदा है बाप का भी और आप बच्चों का भी। वायदा तो निभाना
है ना! निभाना है ना? अच्छा।
चारों ओर के पत्र,
याद-पत्र ईमेल, फोन, चारों ओर के बहुत-बहुत आये हैं, यहाँ मधुबन में भी आये हैं तो
वतन में भी पहुंचे हैं। आज के दिन जो बंधन वाली मातायें हैं, उन्हों की भी बहुत
स्नेह भरी मन की यादें बापदादा के पास पहुंच गई हैं। बापदादा ऐसे स्नेही बच्चों को
बहुत याद भी करते और दुआयें भी देते हैं। अच्छा।
चारों ओर के स्नेही
बच्चों को लवली और लवलीन दोनों बच्चों को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कदम में पदम
जमा करने वाले नॉलेजफुल पावरफुल बच्चों को, सदा स्नेही भी और स्वमानधारी भी,
सम्मानधारी भी, ऐसे सदा बाप की श्रीमत को पालन करने वाले विजयी बच्चों को, सदा बाप
के हर कदम पर कदम उठाने वाले सहजयोगी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
लाइन क्लीयर
के आधार पर नम्बरवन पास होने वाले एवररेडी भव
सदा एवररेडी रहना -
यह ब्राह्मण जीवन की विशेषता है। अपनी बुद्धि की लाइन ऐसी क्लीयर हो जो बाप का कोई
भी इशारा मिला - एवररेडी। उस समय कुछ भी सोचने की जरूरत न हो। अचानक एक ही क्वेश्चन
आयेगा - आर्डर होगा - यहाँ ही बैठ जाओ, यहाँ पहुंच जाओ तो कोई भी बात या संबंध याद
न आये तब नम्बरवन पास हो सकेंगे। लेकिन यह सब अचानक का पेपर होगा - इसलिए एवररेडी
बनो।
स्लोगन:-
मन को शक्तिशाली बनाने के लिए आत्मा को ईश्वरीय स्मृति और शक्ति का भोजन दो।
अव्यक्त इशारे - अब
लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ
कई बच्चे कहते हैं कि
जब योग में बैठते हैं तो आत्म-अभिमानी होने के बदले सेवा याद आती है। लेकिन ऐसा नहीं
होना चाहिए क्योंकि लास्ट समय अगर अशरीरी बनने की बजाए सेवा का भी संकल्प चला तो
सेकण्ड के पेपर में फेल हो जायेंगे। उस समय सिवाय बाप के, निराकारी, निर्विकारी,
निरहंकारी - और कुछ याद नहीं। सेवा में फिर भी साकार में आ जायेंगे इसलिए जिस समय
जो चाहे वह स्थिति हो नहीं तो धोखा मिल जायेगा।