ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना कि दो दुनिया हैं - एक पाप की दुनिया, एक
पुण्य की दुनिया। दु:ख की दुनिया और सुख की दुनिया। सुख जरूर नई दुनिया, नये मकान
में हो सकता है। पुराने मकान में दु:ख ही होता है इसलिए उनको खलास किया जाता है।
फिर नये मकान में सुख में बैठना होता है। अब बच्चे जानते हैं भगवान को कोई मनुष्य
मात्र नहीं जानते। रावण राज्य होने कारण बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि, तमोप्रधान बुद्धि
हो गये हैं। बाप आकर समझाते हैं मुझे भगवान तो कहते हैं परन्तु जानते कोई भी नहीं
हैं। भगवान को नहीं जानते तो कोई काम के न रहे। दु:ख में ही हे प्रभु, हे ईश्वर कह
पुकारते हैं। परन्तु वन्डर है, एक भी मनुष्य मात्र बेहद के बाप रचता को जानते नहीं।
कह देते हैं सर्वव्यापी है, कच्छ-मच्छ में परमात्मा है। यह तो परमात्मा की ग्लानि
करते हैं। बाप को कितना डिफेम करते हैं इसलिए भगवानुवाच है - जब भारत में मेरी और
देवी-देवताओं की ग्लानि करते-करते सीढ़ी उतरते तमोप्रधान बन जाते हैं, तब मैं आता
हूँ। ड्रामा अनुसार बच्चे कहते हैं इस पार्ट में फिर भी आना पड़ेगा। बाप कहते हैं
यह ड्रामा बना हुआ है। मैं भी ड्रामा के बंधन में बंधा हुआ हूँ। इस ड्रामा से मैं
भी छूट नहीं सकता हूँ। मुझे भी पतित को पावन बनाने आना ही पड़ता है। नहीं तो नई
दुनिया कौन स्थापन करेगा? बच्चों को रावण राज्य के दु:खों से छुड़ाए नई दुनिया में
कौन ले जायेगा? भल इस दुनिया में ऐसे तो बहुत ही धनवान मनुष्य हैं, समझते हैं हम तो
स्वर्ग में बैठे हैं, धन है, महल हैं, ऐरोप्लेन हैं परन्तु अचानक ही कोई बीमार हो
पड़ते हैं, बैठे-बैठे मर जाते हैं, कितना दु:ख होता है। उन्हों को यह पता नहीं कि
सतयुग में कभी अकाले मृत्यु होती नहीं, दु:ख की बात नहीं। वहाँ आयु भी बड़ी रहती
है। यहाँ तो अचानक मर जाते हैं। सतयुग में ऐसी बातें होती नहीं। वहाँ क्या होता है?
यह भी कोई नहीं जानते इसलिए बाप कहते हैं कितने तुच्छ बुद्धि हैं। मैं आकर इन्हों
को स्वच्छ बुद्धि बनाता हूँ। रावण पत्थरबुद्धि, तुच्छ बुद्धि बनाते हैं। भगवान
स्वच्छ बुद्धि बना रहे हैं। बाप तुमको मनुष्य से देवता बना रहे हैं। सब बच्चे कहते
हैं सूर्यवंशी महाराजा-महारानी बनने आये हैं। एम ऑब्जेक्ट सामने है। नर से नारायण
बनना है। यह है सत्य नारायण की कथा। फिर भक्ति में ब्राह्मण कथा सुनाते रहते हैं।
सचमुच कोई नर से नारायण बनता थोड़ेही है। तुम तो सचमुच नर से नारायण बनने आये हो।
कोई-कोई पूछते हैं आपकी संस्था का उद्देश्य क्या है? बोलो नर से नारायण बनना - यह
है हमारा उद्देश्य। परन्तु यह कोई संस्था नहीं है। यह तो परिवार है। माँ, बाप और
बच्चे बैठे हैं। भक्ति मार्ग में तो गाते थे तुम मात-पिता.......। हे मात-पिता जब
आप आते हैं तो हम आपसे सुख घनेरे लेते हैं, हम विश्व के मालिक बनते हैं। अभी तुम
विश्व के मालिक बनते हो ना, सो भी स्वर्ग के। अब ऐसे बाप को देखते कितना खुशी का
पारा चढ़ना चाहिए। जिसको आधाकल्प याद किया है - हे भगवान आओ, आप आयेंगे तो हम आपसे
बहुत सुख पायेंगे। यह बेहद का बाप तो बेहद का वर्सा देते हैं, सो भी 21 जन्म के लिए।
बाप कहते हैं - मैं तुमको दैवी सम्प्रदाय बनाता हूँ, रावण आसुरी सम्प्रदाय बनाते
हैं। मैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ। वहाँ पवित्रता के कारण आयु
भी बड़ी रहती है। यहाँ हैं भोगी, अचानक मरते रहते हैं। वहाँ योग से वर्सा मिला हुआ
रहता है। आयु भी 150 वर्ष रहती है। अपने समय पर एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। तो यह
नॉलेज बाप ही बैठकर देते हैं। भक्त भगवान को ढूंढते हैं, समझते हैं शास्त्र पढ़ना,
तीर्थ आदि करना - यह सब भगवान से मिलने के रास्ते हैं। बाप कहते हैं यह रास्ते हैं
ही नहीं। रास्ता तो मैं ही बताऊंगा। तुम तो कहते थे - हे अंधों की लाठी प्रभु आओ,
हमको शान्तिधाम-सुखधाम ले चलो। तो बाप ही सुखधाम का रास्ता बताते हैं। बाप कभी दु:ख
नहीं देते। यह तो बाप पर झूठे इल्ज़ाम लगा देते हैं। कोई मरता है तो भगवान को गाली
देने लग पड़ते। बाप कहते हैं मैं थोड़ेही किसी को मारता हूँ या दु:ख देता हूँ। यह
तो हर एक का अपना पार्ट है। मैं जो राज्य स्थापन करता हूँ, वहाँ अकाले मृत्यु, दु:ख
आदि कभी होता ही नहीं। मैं तुमको सुखधाम ले चलता हूँ। बच्चों के रोमांच खड़े हो जाने
चाहिए। ओहो, बाबा हमको पुरूषोत्तम बना रहे हैं। मनुष्यों को यह पता नहीं है कि
संगमयुग को पुरूषोत्तम कहा जाता है। भक्ति मार्ग में भक्तों ने फिर पुरूषोत्तम मास
आदि बैठ बनाये हैं। वास्तव में है पुरूषोत्तम युग, जबकि बाप आकर ऊंच ते ऊंच बनाते
हैं। अभी तुम पुरूषोत्तम बन रहे हो। सबसे ऊंच ते ऊंच पुरूषोत्तम, लक्ष्मी-नारायण ही
हैं। मनुष्य तो कुछ भी समझते नहीं। चढ़ती कला में ले जाने वाला एक ही बाप है। सीढ़ी
पर किसको भी समझाना बहुत सहज है। बाप कहते हैं अब खेल पूरा हुआ, घर चलो। अभी यह
पुराना छी-छी चोला छोड़ना है। तुम पहले नई दुनिया में सतोप्रधान थे फिर 84 जन्म भोग
तमोप्रधान शूद्र बने हो। अब फिर शूद्र से ब्राह्मण बने हो। अब बाप आये हैं भक्ति का
फल देने। बाप ने सतयुग में फल दिया था। बाप है ही सुखदाता। बाप पतित-पावन आते हैं
तो सारी दुनिया के मनुष्य मात्र तो क्या, प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाते हैं। अभी
तो प्रकृति भी तमोप्रधान है। अनाज आदि मिलता ही नहीं, वह समझते हैं हम यह-यह करते
हैं। अगले साल बहुत अनाज होगा। परन्तु कुछ भी होता नहीं। नैचुरल कैलेमिटीज़ को कोई
क्या कर सकेंगे! फैमन पड़ेगा, अर्थक्वेक होगी, बीमारियाँ होंगी। रक्त की नदियाँ
बहेंगी। यह वही महाभारत लड़ाई है। अब बाप कहते हैं तुम अपना वर्सा पा लो। मैं तुम
बच्चों को स्वर्ग का वर्सा देने आया हूँ। माया रावण श्राप देती है, नर्क का वर्सा
देती है। यह भी खेल बना हुआ है। बाप कहते हैं ड्रामा अनुसार मैं भी शिवालय स्थापन
करता हूँ। यह भारत शिवालय था, अभी वेश्यालय है। विषय सागर में गोता खाते रहते हैं।
अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको शिवालय में ले जाते हैं तो यह खुशी रहनी चाहिए
ना। हमको बेहद का भगवान पढ़ा रहे हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको विश्व का मालिक बनाता
हूँ। भारतवासी अपने धर्म को ही नहीं जानते हैं। हमारी बिरादरी तो बड़े ते बड़ी है
जिससे और बिरादरियाँ निकलती हैं। आदि सनातन कौन-सा धर्म, कौन-सी बिरादरी थी - यह
समझते नहीं हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म वालों की बिरादरी, फिर सेकण्ड नम्बर में
चन्द्रवंशी बिरादरी, फिर इस्लामी वंश की बिरादरी। यह सारे झाड़ का राज़ और कोई समझा
न सके। अभी तो देखो कितनी बिरादरियाँ हैं। टाल-टालियाँ कितनी हैं। यह है वैराइटी
धर्मों का झाड़, यह बातें बाप ही आकर बुद्धि में डालते हैं। यह पढ़ाई है, यह तो रोज़
पढ़नी चाहिए। भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। पतित राजायें तो
विनाशी धन दान करने से बन सकते हैं। मैं तुमको ऐसा पावन बनाता हूँ जो तुम 21 जन्म
के लिए विश्व का मालिक बनते हो। वहाँ कभी अकाले मृत्यु होती नहीं। अपने टाइम पर
शरीर छोड़ते हैं। तुम बच्चों को ड्रामा का राज़ भी बाप ने समझाया है। वह बाइसकोप,
ड्रामा आदि निकले हैं तो इस पर समझाने में भी सहज होता है। आजकल तो बहुत ड्रामा आदि
बनाते हैं। मनुष्यों को बहुत शौक हो गया है। वह सब हैं हद के, यह है बेहद का ड्रामा।
इस समय माया का पाम्प बहुत है। मनुष्य समझते हैं - अभी तो स्वर्ग बन गया है। आगे
थोड़ेही इतनी बड़ी बिल्डिंग्स आदि थी। तो कितना आपोजीशन है। भगवान स्वर्ग रचते हैं
तो माया भी अपना स्वर्ग दिखाती है। यह है सब माया का पॉम्प। इसका फॉल होना है कितनी
जबरदस्त माया है। तुमको उनसे मुँह मोड़ना है। बाप है ही गरीब निवाज़। साहूकारों के
लिए स्वर्ग है, गरीब बिचारे नर्क में हैं। तो अब नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाना
है। गरीब ही वर्सा लेंगे, साहूकार तो समझते हैं हम स्वर्ग में बैठे हैं।
स्वर्ग-नर्क यहाँ ही है। इन सब बातों को अब तुम समझते हो। भारत कितना भिखारी बन गया
है। भारत ही कितना साहूकार था। एक ही आदि सनातन धर्म था। अभी भी कितनी पुरानी चीजें
निकालते रहते हैं। कहते हैं इतने वर्षों की पुरानी चीज़ है। हड्डियाँ निकालते हैं,
कहते हैं इतने लाखों वर्ष की हैं। अब लाखों वर्ष की हड्डियाँ फिर कहाँ से निकल सकती।
उनका फिर दाम भी कितना रखते हैं।
बाप समझाते हैं मैं आकर सबकी सद्गति करता हूँ, इनमें प्रवेश कर आता हूँ। यह
ब्रह्मा साकारी है, यही फिर सूक्ष्मव-तनवासी फ़रिश्ता बनते हैं। वह अव्यक्त, यह
व्यक्त। बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में आता हूँ, जो नम्बरवन
पावन वह फिर नम्बरवन पतित। मैं इनमें आता हूँ क्योंकि इनको ही फिर नम्बरवन पावन बनना
है। यह अपने को कहाँ कहते हैं कि मैं भगवान हूँ, फलाना हूँ। बाप भी समझते हैं मैं
इस तन में प्रवेश कर इन द्वारा सबको सतोप्रधान बनाता हूँ। अब बाप बच्चों को समझाते
हैं तुम अशरीरी आये थे फिर 84 जन्म ले पार्ट बजाया, अब वापिस जाना है। अपने को आत्मा
समझो, देह-अभिमान तोड़ो। सिर्फ याद की यात्रा पर रहना है और कोई तकलीफ नहीं है। जो
पवित्र बनेंगे, नॉलेज सुनेंगे वही विश्व के मालिक बनेंगे। कितना बड़ा स्कूल है।
पढ़ाने वाला बाप कितना निरहंकारी बन पतित दुनिया, पतित तन में आते हैं। भक्ति मार्ग
में तुम उनके लिए कितना अच्छा सोने का मन्दिर बनाते हो। इस समय तुमको स्वर्ग का
मालिक बनाता हूँ तो पतित शरीर में आकर बैठता हूँ। फिर भक्ति मार्ग में तुम हमको
सोमनाथ मन्दिर में बिठाते हो। सोने हीरों का मन्दिर बनाते हो क्योंकि तुम जानते हो
हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं इसलिए खातिरी करते हो। यह सब राज़ समझाया है। भक्ति
पहले अव्यभिचारी फिर व्यभिचारी होती है। आजकल देखो मनुष्यों की भी पूजा करते रहते
हैं। गंगा के कण्ठे पर देखो शिवोहम् कह बैठ जाते हैं। मातायें जाकर दूध चढ़ाती हैं,
पूजा करती हैं। इस दादा ने खुद भी किया है, पुजारी नम्बरवन बना है ना। वन्डर है ना।
बाप कहते हैं यह वन्डरफुल दुनिया है। कैसे स्वर्ग बनता है, कैसे नर्क बनता है - सब
राज़ बच्चों को समझाते रहते हैं। यह ज्ञान तो शास्त्रों में नहीं है। वह हैं
फिलॉसाफी के शास्त्र। यह है स्प्रीचुअल नॉलेज जो रूहानी फादर के वा तुम ब्राह्मणों
के सिवाए कोई दे न सके। और तुम ब्राह्मणों के सिवाए रूहानी नॉलेज किसको मिल न सके।
जब तक ब्राह्मण न बनें तो देवता बन न सकें। तुम बच्चों को बहुत खुशी रहनी चाहिए,
भगवान हमको पढ़ाते हैं, श्री कृष्ण नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) माया का बहुत बड़ा पॉम्प है, इससे अपना मुँह मोड़ लेना है। सदा इसी
खुशी में रोमांच खड़े हो कि हम तो अभी पुरूषोत्तम बन रहे हैं, भगवान हमें पढ़ाते
हैं।
2) विश्व का राज्य-भाग्य लेने के लिए सिर्फ पवित्र बनना है। जैसे बाप निरहंकारी
बन पतित दुनिया, पतित तन में आते हैं, ऐसे बाप समान निरहंकारी बन सेवा करनी है।