ओम् शान्ति।
बच्चे समझते हैं कि हमारे दुर्भाग्य के दिन बदलकर अब सदा के लिए सौभाग्य के दिन आ
रहे हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार भाग्य बदलते ही रहते हैं। स्कूल में भी भाग्य
बदलते रहते हैं ना अर्थात् ऊंच होते जाते हैं। तुम अच्छी रीति जानते हो - अब यह रात
खत्म होने वाली है, अब भाग्य बदल रहा है। ज्ञान की वर्षा होती रहती है। सेन्सीबुल
बच्चे समझते हैं बरोबर दुर्भाग्य से हम सौभाग्यशाली बन रहे हैं अर्थात् स्वर्ग के
मालिक बन रहे हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हम अपना दुर्भाग्य से सौभाग्य बना रहे
हैं। अब रात से दिन हो रहा है। यह तुम बच्चों बिगर कोई को पता नहीं है। बाबा गुप्त
है तो उनकी बातें भी गुप्त हैं। भल मनुष्यों ने बैठकर सहज राजयोग और सहज ज्ञान की
बातें शास्त्रों में लिखी हैं परन्तु जिन्होंने लिखा वह तो मर गये। बाकी जो पढ़ते
हैं वह कुछ समझ नहीं सकते हैं क्योंकि बेसमझ हैं। कितना फ़र्क है। तुम भी नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार समझते हो। सभी एकरस पुरूषार्थ नहीं करते हैं। दुर्भाग्य किसको,
सौभाग्य किसको कहा जाता है - यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो। और तो सभी घोर
अन्धियारे में हैं। उनको जगाना है समझाकर। सौभाग्यशाली कहा जाता है सूर्यवंशियों
को, 16 कला सम्पूर्ण वही हैं। हम बाप से स्वर्ग के लिए सौभाग्य बना रहे हैं, जो बाप
स्वर्ग रचने वाला है। अंग्रेजी जानने वालों को भी तुम समझा सकते हो हम हेविनली गॉड
फादर द्वारा हेविन का सौभाग्य बना रहे हैं। हेविन में है सुख, हेल में है दु:ख।
गोल्डन एज माना सतयुग सुख, आइरन एज माना कलियुग दु:ख। बिल्कुल सहज बात है। हम अभी
पुरूषार्थ कर रहे हैं। अंग्रेज, क्रिश्चियन आदि बहुत आयेंगे। बोलो, हम अब सिर्फ एक
ही हेविनली गॉड फादर को याद करते हैं क्योंकि मौत सामने खड़ा है। बाप कहते हैं तुमको
मेरे पास आना है। जैसे तीर्थों पर जाते हैं ना। बौद्धियों का अपना तीर्थ स्थान है,
क्रिश्चियन का अपना। हर एक की रस्म-रिवाज अपनी होती है। हमारी है बुद्धियोग की बात।
जहाँ से पार्ट बजाने आए हैं, वहाँ फिर जाना है। वह है हेविन स्थापन करने वाला गॉड
फादर। उसने हमको बताया है हम आपको भी सच्चा पथ (रास्ता) बतलाते हैं। बाप गॉड फादर
को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। जब कोई बीमार पड़ते हैं तो उनको सभी जाकर
सावधान करते हैं कि राम कहो। बंगाल में जब कोई मरने पर होता है तो गंगा पर ले जाते
हैं फिर कहते हैं हरी बोल, हरी बोल.... तो हरी के पास चले जायेंगे। परन्तु कोई जाता
नहीं है। सतयुग में तो कहेंगे नहीं कि राम-राम कहो या हरी बोल कहो। द्वापर से फिर
यह भक्ति मार्ग शुरू होता है। ऐसे नहीं, सतयुग में कोई भगवान या गुरू को याद किया
जाता है। वहाँ तो सिर्फ अपनी आत्मा को याद किया जाता है, हम आत्मा एक शरीर छोड़
दूसरा लेगी। अपनी बादशाही याद पड़ती है। समझते हैं हम बादशाही में जाकर जन्म लेंगे।
यह अब पक्का निश्चय है, बादशाही तो मिलनी ही है ना। बाकी किसको याद करेंगे अथवा
दान-पुण्य करेंगे? वहाँ कोई गरीब होता ही नहीं जिसको बैठ दान-पुण्य करें। भक्ति
मार्ग की रस्म-रिवाज अलग, ज्ञान मार्ग की रस्म-रिवाज अलग है। अभी बाप को सब-कुछ दे
21 जन्म का वर्सा ले लिया। बस, फिर दान-पुण्य करने की दरकार नहीं। ईश्वर बाप को हम
सब-कुछ दे देते हैं। ईश्वर ही स्वीकार करते हैं। स्वीकार न करें तो फिर देवे कैसे?
न स्वीकार करें तो वह भी दुर्भाग्य। स्वीकार करना पड़ता है ताकि उनका ममत्व मिटे।
यह भी राज़ तुम बच्चे जानते हो। जब जरूरत ही नहीं होगी तो स्वीकार क्या करेंगे? यहाँ
तो कुछ इकट्ठा नहीं करना है। यहाँ से तो ममत्व मिटा देना पड़ता है।
बाबा ने समझाया है - बाहर कहाँ जाते हो तो अपने को बहुत हल्का समझो। हम बाप के
बच्चे हैं, हम आत्मा रॉकेट से भी तीखी हैं। ऐसे देही-अभिमानी हो पैदल करेंगे तो कभी
थकेंगे नहीं। देह का भान नहीं आयेगा। जैसेकि यह टांगे चलती नहीं। हम उड़ते जा रहे
हैं। देही-अभिमानी हो तुम कहाँ भी जाओ। आगे तो मनुष्य तीर्थ आदि पर पैदल ही जाते
थे। उस समय मनुष्यों की बुद्धि तमोप्रधान नहीं थी। बहुत श्रद्धा से जाते थे, थकते
नहीं थे। बाबा को याद करने से मदद तो मिलेगी ना। भल वह पत्थर की मूर्ति है परन्तु
बाबा उस समय अल्पकाल के लिए मनोकामना पूरी कर देते हैं। उस समय रजोप्रधान याद थी तो
उससे भी बल मिलता था, थकावट नहीं होती थी। अभी तो बड़े आदमी झट थक जाते हैं। गरीब
लोग बहुत तीर्थों पर जाते हैं। साहूकार लोग बड़े भभके से घोड़े आदि पर जायेंगे। वह
गरीब तो पैदल चले जायेंगे। भावना का भाड़ा जितना गरीबों को मिलता है उतना साहूकारों
को नहीं मिलता। इस समय भी तुम जानते हो - बाबा गरीब निवाज़ हैं फिर मूँझते क्यों
हो? भूल क्यों जाते हो? बाबा कहते हैं तुमको कोई तकलीफ नहीं करनी है। सिर्फ एक साजन
को याद करना है। तुम सभी सजनियाँ हो तो साजन को याद करना पड़े। उस साजन को भोग लगाने
के बिना खाने में लज्जा नहीं आती? वह साजन भी है, बाप भी है। कहते हैं मुझे तुम नहीं
खिलायेंगे! तुमको तो हमें खिलाना चाहिए ना! देखो, बाबा युक्तियाँ बतलाते हैं। तुम
बाप अथवा साजन मानते हो ना। जो खिलाता है, पहले तो उनको खिलाना चाहिए। बाबा कहते
हमको भोग लगाकर, हमारी याद में खाओ। इसमें बड़ी मेहनत है। बाबा बार-बार समझाते हैं,
बाबा को याद जरूर करना है। बाबा खुद भी बार-बार पुरूषार्थ करते रहते हैं। तुम
कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है। तुम सीढ़ी चढ़ी ही नहीं हो। कन्या की तो साजन के
साथ सगाई होती ही है। तो ऐसे साजन को याद कर भोजन खाना चाहिए। उनको हम याद करते हैं
और वह हमारे पास आ जाते हैं। याद करेंगे तो भासना लेंगे। तो ऐसी-ऐसी बातें करनी
चाहिए बाबा के साथ। तुम्हारी यह प्रैक्टिस होगी रात को जागने से। अभ्यास पड़ जायेगा
तो फिर दिन में भी याद रहेगी। भोजन पर भी याद करना चाहिए। साजन के साथ तुम्हारी
सगाई हुई है। तुम्हीं से खाऊं..... यह पक्का प्रण करना है। जब याद करेंगे तभी तो वह
खायेंगे ना। उनको तो भासना ही मिलनी है क्योंकि उनको अपना शरीर तो नहीं है। कुमारियों
के लिए तो बहुत सहज है, इनको जास्ती फैसल्टीज़ (सहूलियतें) हैं। शिवबाबा हमारा सलोना
साजन कितना मीठा है। आधाकल्प हमने आपको याद किया है, अभी आप आकर मिले हो! हम जो खाते
हैं, आप भी खाओ। ऐसे नहीं, एक बार याद किया बस, फिर तुम खुद खाते जाओ। उनको खिलाना
भूल जाओ। उनको भूलने से उनको मिलेगा नहीं। चीज़ें तो बहुत खाते हो, खिचड़ी खायेंगे,
आम खायेंगे, मिठाई खायेंगे..... ऐसे थोड़ेही शुरू में याद किया, खलास फिर और चीजें
वह कैसे खायेंगे। साज़न नहीं खायेंगे तो माया बीच में खा जायेगी, उनको खाने नहीं
देगी। हम देखते हैं माया खा जाती है तो वह बलवान बन जाती है और तुमको हराती रहती
है। बाबा युक्तियाँ सब बतलाते हैं। बाबा को याद करो तो बाप अथवा साजन बहुत राज़ी
होगा। कहते हो बाबा तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से खाऊं। हम आपको याद कर खाते हैं।
ज्ञान से जानते हैं आप तो भासना ही लेंगे। यह तो लोन का शरीर है। याद करने से वह आते
हैं। सारा मदार तुम्हारी याद पर है। इसको योग कहा जाता है। योग में मेहनत है।
संन्यासी-उदासी ऐसे कभी नहीं कहेंगे। तुमको अगर पुरूषार्थ करना है तो बाबा की
श्रीमत को नोट करो। पूरा पुरूषार्थ करो। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं - कहते हैं जैसे
कर्म मैं करता हूँ, तुम भी करो। वही कर्म मैं तुमको सिखलाता हूँ। बाबा को तो कर्म
नहीं करना है। सतयुग में कर्म कूटते नहीं। बाबा बहुत सहज बातें बताते हैं। तुम्हीं
से बैठूँ, सुनूँ, तुम्हीं से खाऊं...... यह तुम्हारा ही गायन है। साजन के रूप में
वा बाप के रूप में याद करो। गाया हुआ है ना - विचार सागर मंथन कर ज्ञान की
प्वाइंट्स निकालते हैं। इस प्रैक्टिस से विकर्म भी विनाश होंगे, तन्दुरूस्त भी
बनेंगे। जो पुरूषार्थ करेंगे उनको फ़ायदा होगा, जो नहीं करेंगे उनको नुकसान होगा।
सारी दुनिया तो स्वर्ग का मालिक नहीं बनती है। यह भी हिसाब-किताब है।
बाबा बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। गीत तो सुना बरोबर हम यात्रा पर चल रहे हैं।
यात्रा पर भोजन आदि तो खाना ही पड़ता है, सजनी साजन के साथ, बच्चा बाप के साथ
खायेंगे। यहाँ भी ऐसे है। तुम्हारी साजन के साथ जितनी लगन होगी उतना खुशी का पारा
चढ़ेगा। निश्चयबुद्धि विजयन्ती होते जायेंगे। योग माना दौड़ी। यह बुद्धियोग की दौड़ी
है। हम स्टूडेन्ट हैं, टीचर हमको दौड़ना सिखलाते हैं। बाप कहते हैं ऐसे नहीं समझो
कि दिन में सिर्फ कर्म ही करना है। कछुए मिसल कर्म कर फिर याद में बैठ जाओ। भ्रमरी
सारा दिन भूँ-भूँ करती है। फिर कोई उड़ जाते, कोई मर जाते, वह तो एक दृष्टान्त है।
यहाँ तुम भूं-भूं कर आप समान बनाते हो। उसमें कोई का तो बहुत लव रहता है। कोई सड़
जाते हैं, कोई अधूरे रह जाते हैं, भागन्ती हो जाते हैं फिर जाकर कीड़ा बनते हैं। तो
यह भूँ-भूँ करना बहुत सहज है। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार...। अभी हम योग
लगा रहे हैं, देवता बनने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। यही ज्ञान गीता में था। वह
मनुष्य से देवता बनाकर गये थे। सतयुग में तो सब देवतायें थे। जरूर उन्हों को
संगमयुग पर ही आकर देवता बनाया होगा। वहाँ तो देवता बनने का योग नहीं सिखलायेंगे।
सतयुग आदि में देवी-देवता धर्म था और कलियुग अन्त में है आसुरी धर्म। यह बात सिर्फ
गीता में ही लिखी हुई है। मनुष्य को देवता बनाने में देरी नहीं लगती है क्योंकि एम
ऑब्जेक्ट बता देते हैं। वहाँ सारी दुनिया में एक धर्म होगा। दुनिया तो सारी होगी
ना। ऐसे नहीं, चीन, यूरोप नहीं होंगे, होंगे परन्तु वहाँ मनुष्य नहीं होंगे। सिर्फ
देवता धर्म वाले होंगे, और धर्म वाले होते नहीं। अभी है कलियुग। हम भगवान द्वारा
मनुष्य से देवता बन रहे हैं। बाप कहते हैं तुम 21 जन्म सदा सुखी बनेंगे। इसमें
तकलीफ की कोई बात ही नहीं। भक्ति मार्ग में भगवान के पास जाने के लिए कितनी मेहनत
की है। कहते हैं पार निर्वाण गया। ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि भगवान के पास गया। कहेंगे
स्वर्ग गया। एक के जाने से तो स्वर्ग नहीं बनेगा। सबको जाना है। गीता में लिखा हुआ
है भगवान कालों का काल है। मच्छरों सदृश्य सभी को वापिस ले जाते हैं। बुद्धि भी कहती
है चक्र रिपीट होना है। तो पहले-पहले जरूर सतयुगी देवी-देवता धर्म रिपीट होगा। फिर
बाद में और धर्म रिपीट होंगे। बाबा कितना सहज बतलाते हैं - मन्मनाभव। बस। 5 हज़ार
वर्ष पहले भी गीता के भगवान ने कहा था लाडले बच्चे। अगर श्रीकृष्ण कहेंगे तो दूसरे
धर्म वाले कोई सुन न सकें। भगवान कहेंगे तो सभी को लगेगा - गॉड फादर हेविन स्थापन
करते हैं जिसमें फिर हम जाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे। इसमें कोई खर्चे आदि की बात नहीं
है सिर्फ सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानना है।
तुम बच्चों को विचार सागर मंथन करना है। कर्म करते दिन-रात ऐसे पुरूषार्थ करते
रहो। विचार सागर मंथन नहीं करेंगे या बाप को याद नहीं करेंगे, सिर्फ कर्म करते
रहेंगे तो रात को भी वही ख्यालात चलते रहेंगे। मकान बनाने वाले को मकान का ही ख्याल
चलेगा। भल विचार सागर मंथन करने की रेसपॉन्सिबिलिटी इन पर है परन्तु कहते हैं कलष
लक्ष्मी को दिया तो तुम लक्ष्मी बनती हो ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत को नोट कर पुरूषार्थ करना है। बाप ने जो कर्म करके सिखाया है,
वही करने हैं। विचार सागर मंथन कर ज्ञान की प्वाइंट्स निकालनी हैं।
2) अपने आपसे प्रण करना है कि हम बाप की याद में ही भोजन खायेंगे। तुम्हीं से
बैठूँ, तुम्हीं से खाऊं... यह वायदा पक्का निभाना है।