ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं बाप मुरली बजाते हैं। मुरली सबके पास जाती है और जो मुरली पढ़कर
सर्विस करते हैं उन्हों का समाचार मैगज़ीन में आता है। अब जो बच्चे मैगज़ीन पढ़ते
हैं, उन्हें सेन्टर्स के सर्विस समाचार का मालूम पड़ेगा - फलानी-फलानी जगह ऐसी
सर्विस हो रही है। जो पढ़ेंगे ही नहीं तो उनको कुछ भी समाचार का मालूम नहीं पड़ेगा
और पुरूषार्थ भी नहीं करेंगे। सर्विस का समाचार सुनकर दिल में आता है मैं भी ऐसी
सर्विस करूँ। मैगज़ीन से मालूम पड़ता है, हमारे भाई-बहिन कितनी सर्विस करते हैं। यह
तो बच्चे समझते हैं - जितनी सर्विस, उतना ऊंच पद मिलेगा इसलिए मैगज़ीन भी उत्साह
दिलाती है सर्विस के लिए। यह कोई फालतू नहीं बनती है। फालतू वह समझते हैं जो खुद
पढ़ते नहीं हैं। कोई कहते हम अक्षर नहीं जानते, अरे रामायण, भागवत, गीता आदि सुनने
के लिए जाते हैं, यह भी सुननी चाहिए। नहीं तो सर्विस का उमंग नहीं बढ़ेगा। फलानी
जगह यह सर्विस हुई। शौक हो तो किसको कहें वह पढ़कर सुनाये। बहुत सेन्टर्स पर ऐसे भी
होगा जो मैगज़ीन नहीं पढ़ते होंगे। बहुत हैं जिनके पास तो सर्विस का नाम-निशान भी
नहीं रहता। तो पद भी ऐसा पायेंगे। यह तो समझते हैं राजधानी स्थापन हो रही है, उसमें
जो जितनी मेहनत करते हैं, उतना पद पाते हैं। पढ़ाई में अटेन्शन नहीं देंगे तो फेल
हो जायेंगे। सारा मदार है इस समय की पढ़ाई पर। जितना पढ़ेंगे और पढ़ायेंगे उतना अपना
ही फ़ायदा है। बहुत बच्चे हैं जिनको मैगज़ीन पढ़ने का ख्याल भी नहीं आता है। वो
पाई-पैसे का पद पा लेंगे। वहाँ यह ख्यालात नहीं रहते कि इसने यह पुरूषार्थ किया है
तब यह पद मिला है। नहीं। कर्म-विकर्म की बातें सब यहाँ बुद्धि में हैं।
कल्प के संगमयुग पर ही बाप समझाते हैं, जो नहीं समझते हैं वह तो जैसे पत्थरबुद्धि
हैं। तुम भी समझते हो हम तुच्छ बुद्धि थे फिर उसमें भी परसेन्टेज़ होती हैं। बाबा
बच्चों को समझाते रहते हैं, अभी कलियुग है, इनमें अपार दु:ख होते हैं। यह-यह दु:ख
हैं, जो सेन्सीबुल होंगे वह झट समझ जायेंगे कि यह तो ठीक बोलते हैं। तुम भी जानते
हो कल हम कितने दु:खी थे, अपार दु:खों के बीच थे। अभी फिर अपार सुखों के बीच में जा
रहे हैं। यह है ही रावण राज्य कलियुग - यह भी तुम जानते हो। जो जानते हैं लेकिन औरों
को नहीं समझाते है तो बाबा कहेगा कुछ नहीं जानते हैं। जानते हैं तब कहें जब सर्विस
करें, समाचार मैगज़ीन में आये। दिन-प्रतिदिन बाबा बहुत सहज प्वाइंट्स भी सुनाते रहते
हैं। वो लोग तो समझते कलियुग अजुन बच्चा है, जब संगम समझें तब भेंट कर सकें - सतयुग
और कलियुग में। कलियुग में अपार दु:ख हैं, सतयुग में अपार सुख हैं। बोलो, अपार सुख
हम बच्चों को बाप दे रहे हैं जो हम वर्णन कर रहे हैं। और कोई ऐसे समझा न सके। तुम
नई बातें सुनाते हो और कोई तो यह पूछ न सके कि तुम स्वर्गवासी हो या नर्कवासी हो?
तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं, इतनी प्वाइंट्स याद नहीं कर सकते हैं, समझाने समय
देह-अभिमान आ जाता है। आत्मा ही सुनती वा धारण करती है। परन्तु अच्छे-अच्छे महारथी
भी यह भूल जाते हैं। देह-अभिमान में आकर बोलने लग पड़ते हैं, ऐसे सबका होता है। बाप
तो कहते हैं सब पुरूषार्थी हैं। ऐसे नहीं कि आत्मा समझ बात करते हैं। नहीं, बाप
आत्मा समझ ज्ञान देते हैं। बाकी जो भाई-भाई हैं, वह पुरूषार्थ कर रहे हैं - ऐसी
अवस्था में ठहरने का। तो बच्चों को भी समझाना है, कलियुग में अपार दु:ख हैं, सतयुग
में अपार सुख हैं। अभी संगमयुग चल रहा है। बाप रास्ता बताते हैं, ऐसे नहीं बाप सुख
देते हैं। सुख का रास्ता बताते हैं। रावण भी दु:ख देते नहीं हैं, दु:ख का उल्टा
रास्ता बताते हैं। बाप न दु:ख देते हैं, न सुख देते हैं, सुख का रास्ता बताते हैं।
फिर जो जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना सुख मिलेगा। सुख देते नहीं हैं। बाप की श्रीमत
पर चलने से सुख पाते हैं। बाप तो सिर्फ रास्ता बताते हैं, रावण से दु:ख का रास्ता
मिलता है। अगर बाप देता हो तो फिर सबको एक जैसा वर्सा मिलना चाहिए। जैसे लौकिक बाप
भी वर्सा बांटते हैं। यहाँ तो जो जैसा पुरूषार्थ करे। बाप रास्ता बहुत सहज बताते
हैं। ऐसे-ऐसे करेंगे तो इतना ऊंच पद पायेंगे। बच्चों को पुरूषार्थ करना होता है -
हम सबसे जास्ती पद पायें, पढ़ना है। ऐसे नहीं यह भल ऊंच पद पायें, मैं बैठा रहूँ।
नहीं, पुरूषार्थ फर्स्ट। ड्रामा अनुसार पुरूषार्थ जरूर करना होता है। कोई तीव्र
पुरूषार्थ करते हैं, कोई डल। सारा पुरूषार्थ पर मदार है। बाप ने तो रास्ता बताया है
- मुझे याद करो। जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। ड्रामा पर छोड़ नहीं
देना है। यह तो समझ की बात है।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। तो जरूर जो पार्ट बजाया है वही बजाना
पड़े। सब धर्म फिर से अपने समय पर आयेंगे। समझो क्रिश्चियन अब 100 करोड़ हैं फिर
इतने ही पार्ट बजाने आयेंगे। न आत्मा विनाश होती, न उनका पार्ट कभी विनाश हो सकता
है। यह समझने की बातें हैं। जो समझते हैं तो समझायेंगे भी जरूर। धन दिये धन ना खुटे।
धारणा होती रहेगी, औरों को भी साहूकार बनाते रहेंगे लेकिन तकदीर में नहीं है तो फिर
अपने को भी बेवश समझते हैं। टीचर कहेंगे तुम बोल नहीं सकते तो तुम्हारी तकदीर में
पाई-पैसे का पद है। तकदीर में नहीं तो तदबीर क्या कर सकते। यह है बेहद की पाठ-शाला।
हर एक टीचर की सब्जेक्ट अपनी होती है। बाप के पढ़ाने का तरीका बाप ही जाने और तुम
बच्चे जानो, और कोई नहीं जान सकते। तुम बच्चे कितनी कोशिश करते हो तो भी जब कोई समझें।
बुद्धि में बैठता ही नहीं है। जितना नज़दीक होते जायेंगे, देखने में आता है होशियार
होते जायेंगे। अब म्युज़ियम, रूहानी कॉलेज आदि भी खोलते हैं। तुम्हारा तो नाम ही
न्यारा है रूहानी युनिवर्सिटी। गवर्मेन्ट भी देखेगी। बोलो, तुम्हारी है जिस्मानी
युनिवर्सिटी, यह है रूहानी। रूह पढ़ती है। सारे 84 के चक्र में एक ही बार रूहानी
बाप आकर रूहानी बच्चों को पढ़ाते हैं। ड्रामा (फिल्म) तुम देखेंगे फिर 3 घण्टे बाद
हूबहू रिपीट होगा। यह भी 5 हज़ार वर्ष का चक्र हूबहू रिपीट होता है। यह तुम बच्चे
जानते हो। वह तो सिर्फ भक्ति में शास्त्रों को ही राइट समझते हैं। तुमको तो कोई
शास्त्र नहीं है। बाप बैठ समझाते हैं, बाप कोई शास्त्र पढ़ा है क्या? वह तो गीता
पढ़कर सुनायेंगे। पढ़ा हुआ तो माँ के पेट से नहीं निकलेगा। बेहद के बाप का पार्ट है
पढ़ाने का। अपना परिचय देते हैं। दुनिया को तो पता ही नहीं। गाते भी हैं - बाप
ज्ञान का सागर है। श्रीकृष्ण के लिए नहीं कहते ज्ञान का सागर है। यह लक्ष्मी-नारायण
ज्ञान सागर हैं क्या? नहीं। यही वन्डर है, हम ब्राह्मण ही यह ज्ञान सुनाते हैं
श्रीमत पर। तुम समझाते हो इस हिसाब से हम ब्राह्मण ही प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान
ठहरे। अनेक बार बने थे, फिर होंगे। मनुष्यों की समझ में जब आयेगा तब मानेंगे। तुम
जानते हो कल्प-कल्प हम प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान एडाप्टेड बच्चे बनते हैं। जो
समझते हैं वह निश्चयबुद्धि भी हो जाते हैं। ब्राह्मण बनने बिगर देवता कैसे बनेंगे।
हर एक की बुद्धि पर है। स्कूल में ऐसा होता है - कोई तो स्कॉलरशिप लेते, कोई फेल हो
पड़ते हैं। फिर नयेसिर पढ़ना पड़े। बाप कहते हैं विकार में गिरे तो की कमाई चट हुई,
फिर बुद्धि में बैठेगा नहीं। अन्दर खाता रहेगा।
तुम समझते हो इस जन्म में जो पाप किये हैं, उनका तो सबको पता है। बाकी आगे जन्मों
में क्या किया है वह तो याद नहीं है। पाप किये जरूर हैं। जो पुण्य आत्मा थे वही फिर
पाप आत्मा बनते हैं। हिसाब-किताब बाप बैठ समझाते हैं। बहुत बच्चे हैं, भूल जाते
हैं, पढ़ते नहीं हैं। अगर पढ़ें तो जरूर पढ़ायें भी। कोई डल बुद्धि होशियार बुद्धि
बन जाते, कितनी बड़ी पढ़ाई है। इस बाप की पढ़ाई से ही सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी घराना
बनने का है। वह इस जन्म में ही पढ़कर और मर्तबा पा लेते हैं। तुम तो जानते हो इस
पढ़ाई का पद फिर नई दुनिया में मिलना है। वह कोई दूर नहीं है। जैसे कपड़ा बदला जाता
है ऐसे ही पुरानी दुनिया को छोड़ जाना है नई दुनिया में। विनाश भी होगा जरूर। अब
तुम नई दुनिया के बन रहे हो। फिर यह पुराना चोला छोड़ जाना है। नम्बरवार राजधानी
स्थापन हो रही है, जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वही पहले स्वर्ग में आयेंगे। बाकी पीछे
आयेंगे। स्वर्ग में थोड़ेही आ सकेंगे। स्वर्ग में जो दास-दासियां होंगे वह भी दिल
पर चढ़े हुए होंगे। ऐसे नहीं कि सब आ जायेंगे। अब रूहानी कॉलेज आदि खोलते रहते हैं,
सब आकर पुरूषार्थ करेंगे। जो पढ़ाई में ऊंचे तीखे जायेंगे, वह ऊंच पद पायेंगे। डल
बुद्धि कम पद पायेंगे। हो सकता है, आगे चल डल बुद्धि भी अच्छा पुरूषार्थ करने लग पड़े।
कोई समझदार बुद्धि नीचे भी चले जाते हैं। पुरूषार्थ से समझा जाता है। यह सारा ड्रामा
चल रहा है। आत्मा शरीर धारण कर यहाँ पार्ट बजाती है, नया चोला धारण कर नया पार्ट
बजाती है। कब क्या, कब क्या बनती है। संस्कार आत्मा में होते हैं। ज्ञान बाहर में
ज़रा भी किसी के पास नहीं है। बाप जब आकर पढ़ायें तब ही ज्ञान मिले। टीचर ही नहीं
तो ज्ञान कहाँ से आये। वह हैं भक्त। भक्ति में अपार दु:ख हैं, मीरा को भल
साक्षात्कार हुआ परन्तु सुख थोड़ेही था। क्या बीमार नहीं पड़ी होगी। वहाँ तो कोई
प्रकार के दु:ख की बात होती ही नहीं। यहाँ अपार दु:ख हैं, वहाँ अपार सुख हैं। यहाँ
सब दु:खी होते हैं, राजाओं को भी दु:ख है ना, नाम ही है दु:खधाम। वह है सुखधाम।
सम्पूर्ण दु:ख और सम्पूर्ण सुख का यह है संगमयुग। सतयुग में सम्पूर्ण सुख, कलियुग
में सम्पूर्ण दु:ख। दु:ख की जो वैराइटी है सब वृद्धि को पाती रहती है। आगे चल कितना
दु:ख होता रहेगा। अथाह दु:ख के पहाड़ गिरेंगे।
वह लोग तो तुम्हें बोलने का टाइम बहुत थोड़ा देते हैं। दो मिनट देवें तो भी
समझाओ, सतयुग में अपार सुख थे जो बाप देते हैं। रावण से अपार दु:ख मिलते हैं। अब
बाप कहते हैं काम पर जीत पहनो तो जगत जीत बनेंगे। इस ज्ञान का विनाश नहीं होता है।
थोड़ा भी सुना तो स्वर्ग में आयेंगे। प्रजा तो बहुत बनती है। कहाँ राजा, कहाँ रंक।
हर एक की बुद्धि अपनी-अपनी है। जो समझकर औरों को समझाते हैं, वही अच्छा पद पाते
हैं। यह स्कूल भी मोस्ट अनकॉमन है। भगवान् आकर पढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण तो फिर भी दैवी
गुणों वाला देवता है। बाप कहते हैं मैं दैवी गुणों और आसुरी गुणों से न्यारा हूँ।
मैं तुम्हारा बाप आता हूँ पढ़ाने। रूहानी नॉलेज सुप्रीम रूह ही देता है। गीता का
ज्ञान कोई देहधारी मनुष्य वा देवता ने नहीं दिया। विष्णु देवता नम: कहते, तो कृष्ण
कौन? देवता कृष्ण ही विष्णु है - यह कोई जानते नहीं। तुम्हारे में भी भूल जाते हैं।
खुद पूरा समझा हुआ हो तो औरों को भी समझाये। सर्विस करके सबूत ले आये तब समझें कि
सर्विस की इसलिए बाबा कहते हैं लम्बे-चौड़े समाचार न लिखो, वह फलाना आने वाला है,
ऐसे कहकर गया है....... यह लिखने की दरकार नहीं है। कम लिखना होता है। देखो, आया,
ठहरता है? समझकर और सर्विस करने लगे तब समाचार लिखो। कोई-कोई अपना शो बहुत करते
हैं। बाबा को हर बात की रिज़ल्ट चाहिए। ऐसे तो बहुत आते हैं बाबा के पास, फिर चले
जाते हैं, उनसे क्या फ़ायदा। उनको बाबा क्या करे। न उन्हें फ़ायदा, न तुम्हें।
तुम्हारे मिशन की वृद्धि तो हुई नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी बात में बेवश नहीं होना है। स्वयं में ज्ञान को धारण कर दान
करना है। औरों की भी तकदीर जगानी है।
2) किसी से भी बात करते समय स्वयं को आत्मा समझ आत्मा से बात करनी है। ज़रा भी
देह-अभिमान न आये। बाप से जो अपार सुख मिले हैं, वो दूसरों को बांटने हैं।