19-10-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 31.03.2007 "बापदादा" मधुबन
सपूत बन अपनी सूरत से
बाप की सूरत दिखाना, निर्माण (सेवा) के साथ निर्मल वाणी, निर्मान स्थिति का बैलेन्स
रखना
आज बापदादा चारों ओर
के बच्चों के भाग्य की रेखायें देख हर्षित हो रहे हैं। सभी बच्चों के मस्तक में
चमकती हुई ज्योति की रेखा चमक रही है। नयनों में रूहानियत की भाग्य रेखा दिखाई दे
रही है। मुख में श्रेष्ठ वाणी के भाग्य की रेखा दिखाई दे रही है। होठों में रूहानी
मुस्कराहट देख रहे हैं। हाथों में सर्व परमात्म खजाने की रेखा दिखाई दे रही है। हर
याद के कदम में पदमों की रेखा देख रहे हैं। हर एक के हृदय में बाप के लव में लवलीन
की रेखा देख रहे हैं। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य हर एक बच्चा अनुभव कर रहे हैं ना! क्योंकि
यह भाग्य की रेखायें स्वयं बाप ने हर एक के श्रेष्ठ कर्म की कलम से खींची है। ऐसा
श्रेष्ठ भाग्य जो अविनाशी है, सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है लेकिन अनेक जन्मों की
अविनाशी भाग्य रेखायें हैं। अविनाशी बाप है और अविनाशी भाग्य की रेखायें हैं। इस
समय श्रेष्ठ कर्म के आधार पर सर्व रेखायें प्राप्त होती हैं। इस समय का पुरुषार्थ
अनेक जन्म की प्रालब्ध बना देता है।
सभी बच्चों को जो
प्रालब्ध अनेक जन्म मिलनी है, बापदादा वह अभी इस समय, इस जन्म में पुरुषार्थ के
प्रालब्ध की प्राप्ति देखने चाहते हैं। सिर्फ भविष्य नहीं लेकिन अभी भी यह सब रेखायें
सदा अनुभव में आयें क्योंकि अभी के यह दिव्य संस्कार आपका नया संसार बना रहा है। तो
चेक करो, चेक करना आता है ना! स्वयं ही स्वयं के चेकर बनो। तो सर्व भाग्य की रेखायें
अभी भी अनुभव होती हैं? ऐसे तो नहीं समझते कि यह प्रालब्ध अन्त में दिखाई देगी?
प्राप्ति भी अब है तो प्रालब्ध का अनुभव भी अभी करना है। भविष्य संसार के संस्कार
अभी प्रत्यक्ष जीवन में अनुभव होना है। तो क्या चेक करो? भविष्य संसार के संस्कारों
का गायन करते हो कि भविष्य संसार में एक राज्य होगा। याद है ना वह संसार! कितने बार
उस संसार में राज्य किया है? याद है कि याद दिलाने से याद आता है? क्या थे, वह
स्मृति में है ना? लेकिन वही संस्कार अभी के जीवन में प्रत्यक्ष रूप में हैं? तो
चेक करो अभी भी मन में, बुद्धि में, सम्बन्ध-सम्पर्क में, जीवन में एक राज्य है? वा
कभी-कभी आत्मा के राज्य के साथ-साथ माया का राज्य भी तो नहीं है? जैसे भविष्य
प्रालब्ध में एक ही राज्य है, दो नहीं है। तो अभी भी दो राज्य तो नहीं है? जैसे
भविष्य राज्य में एक राज्य के साथ एक धर्म है, वह धर्म कौन सा है? सम्पूर्ण पवित्रता
की धारणा का धर्म है। तो अभी चेक करो कि पवित्रता सम्पूर्ण है? स्वप्न में भी
अपवित्रता का नामनिशान नहीं हो। पवित्रता अर्थात् संकल्प, बोल, कर्म और
सम्बन्ध-सम्पर्क में एक ही धारणा सम्पूर्ण पवित्रता की हो। ब्रह्माचारी हो। अपनी
चेकिंग करने आती है? जिसको अपनी चेकिंग करनी आती है वह हाथ उठाओ। आती है और करते भी
हैं? करते हैं, करते हैं? टीचर्स को आता है? डबल फारेनर्स को आता है? क्यों? अभी की
पवित्रता के कारण आपके जड़ चित्र से भी पवित्रता की मांग करते हैं। पवित्रता अर्थात्
एक धर्म अब की स्थापना है जो भविष्य में भी चलती है। ऐसे ही भविष्य का क्या गायन
है? एक राज्य, एक धर्म और साथ में सदा सुख-शान्ति, सम्पत्ति, अखण्ड सुख, अखण्ड
शान्ति, अखण्ड सम्पत्ति। तो अब के आपके स्वराज्य के जीवन में, वह है विश्व राज्य और
इस समय है स्वराज्य, तो चेक करो अविनाशी सुख, परमात्म सुख, अविनाशी अनुभव होता है?
कोई साधन वा कोई सैलवेशन के आधार पर सुख का अनुभव तो नहीं होता? कभी किसी भी कारण
से दु:ख की लहर अनुभव में नहीं आनी चाहिए। कोई नाम, मान-शान के आधार पर तो सुख
अनुभव नहीं होता है? क्यों? यह नाम मान शान, साधन, सैलवेशन यह स्वयं ही विनाशी हैं,
अल्पकाल के हैं। तो विनाशी आधार से अविनाशी सुख नहीं मिलता। चेक करते जाओ। अभी भी
सुनते भी जाओ और अपने में चेक भी करते जाओ तो पता पड़ेगा कि अब के संस्कार और
भविष्य संसार की प्रालब्ध में कितना अन्तर है! आप सबने जन्मते ही बापदादा से वायदा
किया है, याद है वायदा कि भूल गया है? यही वायदा किया कि हम सभी बाप के साथी बन,
विश्व कल्याणकारी बन नया सुख शान्तिमय संसार बनाने वाले हैं। याद है? अपना वायदा
याद है? याद है तो हाथ उठाओ। पक्का वायदा है या थोड़ा गड़बड़ हो जाती है? नया संसार
अब परमात्म संस्कार के आधार से बनाने वाले हैं। तो सिर्फ अभी पुरुषार्थ नहीं करना
है लेकिन पुरुषार्थ की प्रालब्ध भी अभी अनुभव करनी है। सुख के साथ शान्ति को भी चेक
करो - अशान्त सरकमस्टांश, अशान्त वायुमण्डल उसमें भी आप शान्ति सागर के बच्चे सदा
कमल पुष्प समान अशान्ति को भी शान्ति के वायुमण्डल में परिवर्तन कर सकते हो? शान्त
वायुमण्डल है, उसमें आपने शान्ति अनुभव की, यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन आपका
वायदा है अशान्ति को शान्ति में परिवर्तन करने वाले हैं। तो चेक करो - चेक कर रहे
हैं ना? परिवर्तक हो, परवश तो नहीं हो ना? परिवर्तक हो। परिवर्तक कभी परवश नहीं हो
सकता। इसी प्रकार से सम्पत्ति, अखुट सम्पत्ति, वह स्वराज्य अधिकारी की क्या है?
ज्ञान, गुण और शक्तियां स्वराज्य अधिकारी की सम्पत्तियां यह हैं। तो चेक करो -
ज्ञान के सारे विस्तार के सार को स्पष्ट जान गये हो ना? ज्ञान का अर्थ यह नहीं है
कि सिर्फ भाषण किया, कोर्स कराया, ज्ञान का अर्थ है समझ। तो हर संकल्प, हर कर्म बोल,
ज्ञान अर्थात् समझदार, नॉलेजफुल बनके करते हैं? सर्वगुण प्रैक्टिकल जीवन में इमर्ज
रहते हैं? सर्व हैं वा यथाशक्ति हैं? इसी प्रकार सर्व शक्तियां - आपका टाइटिल है -
मास्टर सर्वशक्तिवान, शक्तिवान नहीं हैं। तो सर्व शक्तियां सम्पन्न हैं? और दूसरी
बात सर्व शक्तियां समय पर कार्य करती हैं? समय पर हाज़िर होती हैं या समय बीत जाता
है फिर याद आता है? तो चेक करो तीनों ही बातें एक राज्य, एक धर्म और अविनाशी
सुख-शान्ति, सम्पत्ति क्योंकि नये संसार में यह बातें जो अभी स्वराज्य के समय का
अनुभव है, वह नहीं हो सकेगा। अभी इन सभी बातों का अनुभव कर सकते हैं। अभी से यह
संस्कार इमर्ज होंगे तब अनेक जन्म प्रालब्ध के रूप में चलेंगे। ऐसे तो नहीं समझते
हैं कि धारण कर रहे हैं, हो जायेगा, अन्त तक तो हो ही जायेंगे!
बापदादा ने पहले से
ही इशारा दे दिया है कि बहुतकाल का अभी का अभ्यास बहुतकाल की प्राप्ति का आधार है।
अन्त में हो जायेगा नहीं सोचना, हो जायेगा नहीं, होना ही है। क्यों? स्वराज्य का जो
अधिकार है वह अभी बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। अगर एक जन्म में अधिकारी नहीं बन सकते,
अधीन बन जाते तो अनेक जन्म कैसे होंगे! इसलिए बापदादा सभी चारों ओर के बच्चों को
बार-बार इशारा दे रहे हैं कि अभी समय की रफ्तार तीव्रगति में जा रही है इसलिए सभी
बच्चों को अभी सिर्फ पुरुषार्थी नहीं बनना है लेकिन तीव्र पुरुषार्थी बन, पुरुषार्थ
की प्रालब्ध का अभी बहुतकाल से अनुभव करना है। तीव्र पुरुषार्थ की निशानियां बापदादा
ने पहले भी सुनाई हैं। तीव्र पुरुषार्थी सदा मास्टर दाता होगा, लेवता नहीं देवता,
देने वाला। यह हो तो मेरा पुरुषार्थ हो, यह करे तो मैं भी करूं, यह बदले तो मैं भी
बदलूं, यह बदले, यह करे, यह दातापन की निशानी नहीं है। कोई करे न करे, लेकिन मैं
बापदादा समान करूं, ब्रह्मा बाप समान भी, साकार में भी देखा, बच्चे करें तो मैं करूं
- कभी नहीं कहा, मैं करके बच्चों से कराऊं। दूसरी निशानी है तीव्र पुरुषार्थ की, सदा
निर्मान, कार्य करते भी निर्मान, निर्माण और निर्मान दोनों का बैलेन्स चाहिए। क्यों?
निर्मान बनकर कार्य करने में सर्व द्वारा दिल का स्नेह और दुआयें मिलती हैं। बापदादा
ने देखा कि निर्माण अर्थात् सेवा के क्षेत्र में आजकल सभी अच्छे उमंग-उत्साह से
नये-नये प्लैन बना रहे हैं। इसकी बापदादा चारों ओर के बच्चों को मुबारक दे रहे हैं।
बापदादा के पास
निर्माण के, सेवा के प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे आये हैं। लेकिन बापदादा ने देखा कि
निर्माण के कार्य तो बहुत अच्छे लेकिन जितना सेवा के कार्य में उमंग-उत्साह है उतना
अगर निर्मान स्टेज का बैलेन्स हो तो निर्माण अर्थात् सेवा के कार्य में सफलता और
ज्यादा प्रत्यक्ष रूप में हो सकती है। बापदादा ने पहले भी सुनाया है - निर्मान
स्वभाव, निर्मान बोल और निर्मान स्थिति से सम्बन्ध-सम्पर्क में आना, देवताओं का
गायन करते हैं लेकिन है ब्राह्मणों का गायन, देवताओं के लिए कहते हैं उनके मुख से
जो बोल निकलते वह जैसे हीरे मोती, अमूल्य, निर्मल वाणी, निर्मल स्वभाव। अभी बापदादा
देखते हैं, रिजल्ट सुना दें ना, क्योंकि इस सीजन का लास्ट टर्न है। तो बापदादा ने
देखा कि निर्मल वाणी, निर्मान स्थिति उसमें अभी अटेन्शन चाहिए।
बापदादा ने खजाने के
तीन खाते जमा करो, यह पहले बताया है। तो रिजल्ट में क्या देखा? तीन खाते कौन से
हैं? वह तो याद होगा ना! फिर भी रिवाइज कर रहे हैं - एक है अपने पुरुषार्थ से जमा
का खाता बढ़ाना। दूसरा है - सदा स्वयं भी सन्तुष्ट रहे और दूसरे को भी सन्तुष्ट करे,
भिन्न-भिन्न संस्कार को जानते हुए भी सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना, इससे दुआओं
का खाता जमा होता है। अगर किसी भी कारण से सन्तुष्ट करने में कमी रह जाती है तो
पुण्य के खाते में जमा नहीं होता। सन्तुष्टता पुण्य की चाबी है, चाहे रहना, चाहे
करना। और तीसरा है - सेवा में भी सदा नि:स्वार्थ, मैं पन नहीं। मैंने किया, या मेरा
होना चाहिए, यह मैं और मेरापन जहाँ सेवा में आ जाता है वहाँ पुण्य का खाता जमा नहीं
होता। मेरापन, अनुभवी हो यह रॉयल रूप का भी मेरापन बहुत है। रॉयल रूप के मेरेपन की
लिस्ट साधारण मेरेपन से लम्बी है। तो जहाँ भी मैं और मेरेपन का स्वार्थ आ जाता है,
नि:स्वार्थ नहीं है वहाँ पुण्य का खाता कम जमा होता है। मेरेपन की लिस्ट फिर कभी
सुनायेंगे, बड़ी लम्बी है और बड़ी सूक्ष्म है। तो बापदादा ने देखा कि अपने
पुरुषार्थ से यथाशक्ति सभी अपना-अपना खाता जमा कर रहे हैं लेकिन दुआओं का खाता और
पुण्य का खाता वह अभी भरने की आवश्यकता है इसलिए तीनों खाते जमा करने का अटेन्शन।
संस्कार वैरायटी अभी भी दिखाई देंगे, सबके संस्कार अभी सम्पन्न नहीं हुए हैं लेकिन
हमारे ऊपर औरों के कमजोर स्वभाव, कमजोर संस्कारों का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। मैं
मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, कमजोर संस्कार शक्तिशाली नहीं हैं। मुझ मास्टर
सर्वशक्तिवान के ऊपर कमजोर संस्कार का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। सेफ्टी का साधन है
बापदादा की छत्रछाया में रहना। बापदादा के साथ कम्बाइण्ड रहना। छत्रछाया है श्रीमत।
आज बापदादा इशारा दे
रहे हैं कि स्व प्रति हर एक को संकल्प, बोल, सम्पर्क-सम्बन्ध, कर्म में नवीनता लाने
का प्लैन बनाना ही है। बापदादा पहले रिजल्ट देखेंगे क्या नवीनता लाया? क्या पुराना
संस्कार दृढ़ संकल्प से परिवर्तन किया? यह रिजल्ट पहले देखेंगे। क्या सोचते हो, ऐसा
करें? करें? हाथ उठाओ जो कहते हैं करेंगे, करेंगे? अच्छा। करेंगे या दूसरे को
देखेंगे? क्या करेंगे? दूसरे को नहीं देखना, बापदादा को देखना, अपनी बड़ी दादी को
देखना। कितनी न्यारी और प्यारी स्टेज है। बापदादा कहते हैं अगर किसको मैं और हद का
मेरापन से न्यारा देखना हो तो अपने बापदादा के दिलतख्तनशीन दादी को देखो। सारी लाइफ
में हद का मेरापन, हद का मैं-पन इससे न्यारी रही है, उसकी रिजल्ट बीमारी कितनी भी
है लेकिन दु:ख दर्द की भासना से न्यारी है। एक ही शब्द पक्का है, कोई भी पूछता दादी
कुछ दर्द है, दादी कुछ हो रहा है? क्या उत्तर मिलता? कुछ नहीं क्योंकि नि:स्वार्थ
और दिल बड़ी, सर्व को समाने वाली, सर्व की प्यारी, इसकी प्रैक्टिकल निशानी देख रहे
हैं। तो जब ब्रह्मा बाप की बात कहते हैं, तो कहते हैं उसमें तो बाप था ना, लेकिन
दादी तो आपके साथ प्रभू पालना में रही, पढ़ाई में रही, सेवा में साथी रही, तो जब एक
बन सकता है, नि:स्वार्थ स्थिति में तो क्या आप सभी नहीं बन सकते? बन सकते हैं ना!
बापदादा को निश्चय है कि आप ही बनने वाले हैं। कितने बार बने हैं? याद है? अनेक
कल्प बाप समान बने हैं और अभी भी आप ही बनने वाले हो। इसी उमंग से, उत्साह से उड़ते
चलो। बाप को आपमें निश्चय है तो आप भी अपने में सदा निश्चयबुद्धि, बनना ही है ऐसा
निश्चयबुद्धि बन उड़ते चलो। जब बाप से प्यार है, प्यार में 100 परसेन्ट से भी ज्यादा
है, ऐसे कहते हो। यह ठीक है? जो भी सभी बैठेहैं वा जो भी अपने-अपने स्थान पर सुन रहे
हैं, देख रहे हैं वह सभी प्यार की सबजेक्ट में अपने को 100 परसेन्ट समझते हैं? वह
हाथ उठाओ। 100 परसेन्ट? (सभी ने उठाया) अच्छा। पीछे वाले लम्बे हाथ उठाओ, हिलाओ। (आज
22 हजार से भी अधिक भाई बहिनें पहुंचे हुए हैं) इसमें तो सभी ने हाथ उठाया। तो
प्यार की निशानी है समान बनना। जिससे प्यार होता है उस जैसा बोलना, उस जैसा चलना,
उस जैसा सम्बन्ध-सम्पर्क निभाना, यह है प्यार की निशानी।
आज बापदादा अभी-अभी
देखना चाहते हैं कि एक सेकण्ड में स्वराज्य के सीट पर कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग
पावर के संस्कार में इमर्ज रूप से सेकण्ड में बैठ सकते हैं! तो एक सेकण्ड में दो
तीन मिनट के लिए राज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो जाओ। अच्छा। (ड्रिल)
चारों ओर के बच्चों
की यादप्यार के पत्र और साथ-साथ जो भी साइंस के साधन हैं उन्हों द्वारा यादप्यार
बापदादा के पास पहुंच गई है। अपने दिल का समाचार भी बहुत बच्चे लिखते भी हैं और
रूहरिहान में भी सुनाते हैं। बापदादा उन सभी बच्चों को रेसपान्ड दे रहे हैं कि सदा
सच्ची दिल पर साहेब राज़ी है। दिल की दुआयें और दिल का दुलार बापदादा का विशेष उन
आत्माओं प्रति है। चारों ओर के जो भी समाचार देते हैं, सभी अच्छे-अच्छे उमंग-उत्साह
के प्लैन जो भी बनाये हैं, उसकी बापदादा मुबारक भी दे रहे हैं और वरदान भी दे रहे
हैं, बढ़ते चलो, बढ़ाते चलो।
चारों ओर के बापदादा
के कोटों में कोई, कोई में भी कोई श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को बापदादा का विशेष
यादप्यार, बापदादा सभी बच्चों को हिम्मत और उमंग-उत्साह की मुबारक भी दे रहे हैं।
आगे तीव्र पुरुषार्थी बनने की, बैलेन्स की पदमा-पदमगुणा ब्लैसिंग भी दे रहे हैं। सभी
के भाग्य का सितारा सदा चमकता रहे और औरों का भाग्य बनवाते रहें इसकी भी दुआयें दे
रहे हैं। चारों ओर के बच्चे अपने अपने स्थान पर सुन भी रहे हैं, देख भी रहे हैं और
बापदादा भी सभी चारों ओर के दूर बैठेबच्चों को देख-देख खुश हो रहे हैं। देखते रहो
और मधुबन की शोभा सदा बढ़ाते रहो। तो सभी बच्चों को दिल की दुआओं साथ नमस्ते।
वरदान:-
अटेन्शन रूपी
घृत द्वारा आत्मिक स्वरूप के सितारे की चमक को बढ़ाने वाले आकर्षण मूर्त भव
जब बाप द्वारा, नॉलेज
द्वारा आत्मिक स्वरूप का सितारा चमक गया तो बुझ नहीं सकता, लेकिन चमक की परसेन्टेज
कम और ज्यादा हो सकती है। यह सितारा सदा चमकता हुआ सबको आकर्षित तब करेगा जब रोज़
अमृतवेले अटेन्शन रूपी घृत डालते रहेंगे। जैसे दीपक में घृत डालते हैं तो वह एकरस
जलता है। ऐसे सम्पूर्ण अटेन्शन देना अर्थात् बाप के सर्व गुण वा शक्तियों को स्वयं
में धारण करना। इसी अटेन्शन से आकर्षण मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:-
बेहद की वैराग्यवृत्ति द्वारा साधना के बीज को प्रत्यक्ष करो।
अव्यक्त इशारे - स्वयं
और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
योग की शक्ति जमा करने
के लिए कर्म और योग का बैलेंस और बढ़ाओ। कर्म करते योग की पॉवरफुल स्टेज रहे - इसका
अभ्यास बढ़ाओ। जैसे सेवा के लिए इन्वेन्शन करते वैसे इन विशेष अनुभवों के अभ्यास के
लिए समय निकालो और नवीनता लाकरके सबके आगे एक्जाम्पुल बनो।
सूचनाः- आज मास का
तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष
योग अभ्यास के समय मास्टर सर्वशक्तिवान के शक्तिशाली स्वरूप में स्थित हो प्रकृति
सहित सर्व आत्माओं को पवित्रता की किरणें दें, सतोप्रधान बनाने की सेवा करें।