ओम् शान्ति।
भारत में भारतवासी गाते हैं आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... अब बच्चे जानते
हैं हम आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। अपना परिचय दे
रहे हैं और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का भी परिचय दे रहे हैं। कोई तो पक्के
निश्चयबुद्धि हैं, कोई कम समझते हैं, नम्बरवार तो हैं ना। बच्चे जानते हैं हम जीव
आत्मायें परमपिता परमात्मा के सम्मुख बैठे हैं। गाया जाता है आत्मायें परमात्मा अलग
रहे बहुकाल। अब मूलवतन में जब आत्मायें हैं तो अलग होने की बात नहीं उठती। यहाँ आने
से जब जीव आत्मा बनते हैं तो परमात्मा बाप से सभी आत्मायें अलग होती हैं। परमपिता
परमात्मा से अलग होकर यहाँ पार्ट बजाने आते हैं। आगे तो बिगर अर्थ ऐसे ही गाते थे।
अभी तो बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा से हम अलग हो यहाँ
पार्ट बजाने आते हैं। तुम ही पहले-पहले बिछुड़े हो तो शिवबाबा भी पहले-पहले तुमसे
ही मिलते हैं। तुम्हारे खातिर बाप को आना पड़ता है। कल्प पहले भी इन बच्चों को ही
पढ़ाया था जो फिर स्वर्ग के मालिक बनें। उस समय और कोई खण्ड नहीं था। बच्चे जानते
हैं हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे जिसको डीटी रिलीजन, डीटी डिनायस्टी भी कहते
हैं। हर एक को अपना रिलीजन होता है। रिलीजन इज माइट कहा जाता है। धर्म में ताकत रहती
है। तुम बच्चे जानते हो यह लक्ष्मी-नारायण कितनी ताकत वाले थे। भारतवासी अपने धर्म
को ही नहीं जानते। किसकी भी बुद्धि में नहीं आता बरोबर भारत में इनका ही धर्म था।
धर्म को न जानने के कारण इरिलीजस बन गये हैं। रिलीजन में आने से तुम्हारे में कितनी
ताकत रहती है। तुम आइरन एजेड पहाड़ को उठाए गोल्डन एजेड बना देते हो। भारत को सोने
का पहाड़ बना देते हो। वहाँ तो खानियों में ढेर सोना भरा रहता है। सोने के पहाड़
होंगे जो फिर वह खुलेंगे। सोने को गलाकर उनकी ईटें बनाई जाती हैं। मकान तो बड़ी ईटों
का ही बनायेंगे ना। माया मछन्दर का खेल भी दिखाते हैं ना। वह सब हैं कहानियां। बाप
कहते हैं इन सबका सार मैं तुमको सुनाता हूँ। दिखाते हैं ध्यान में देखा हम झोली
भरकर ले जाते हैं, ध्यान से नीचे उतरा, तो कुछ नहीं रहा। जैसे तुम्हारा भी होता है।
इसको कहा जाता है दिव्य दृष्टि। इसमें कुछ रखा नहीं है। नौधा भक्ति बहुत करते हैं।
वह भक्त माला ही अलग है, यह ज्ञान माला अलग है। रूद्र माला और विष्णु की माला है
ना। वह फिर है भक्ति की माला। अभी तुम पढ़ रहे हो राजाई के लिए। तुम्हारा बुद्धियोग
है टीचर के साथ और राजाई के साथ। जैसे कॉलेज में पढ़ते हैं तो बुद्धियोग टीचर के
साथ रहता है। बैरिस्टर खुद पढ़ाकर आप समान बनाते हैं। यह बाबा खुद तो बनते नहीं। यह
वन्डर है यहाँ। तुम्हारी यह है रूहानी पढ़ाई। तुम्हारा बुद्धियोग शिवबाबा के साथ
है, उनको ही नॉलेजफुल ज्ञान का सागर कहा जाता है। जानी-जाननहार का यह मतलब नहीं है
कि वह सबके दिलों को बैठ जानेगा कि इनके अन्दर क्या चल रहा है। वह जो थॉट रीडर होते
हैं वो सब सुनाते हैं। उसको भूत विद्या कहा जाता है। यहाँ तो बाप पढ़ाते हैं,
मनुष्य से देवता बनाने। गायन भी है मनुष्य से देवता. . . अभी तुम बच्चे समझते हो हम
अभी ब्राह्मण बने हैं फिर दूसरे जन्म में देवता बनेंगे। आदि सनातन देवी-देवता ही
गाये जाते हैं। शास्त्रों में तो ढेर कहानियाँ लिख दी हैं। यह तो बाप डायरेक्ट बैठ
पढ़ाते हैं।
भगवानुवाच - भगवान ही ज्ञान का सागर, सुख का सागर, शान्ति का सागर है। तुम बच्चों
को वर्सा देते हैं। यह पढ़ाई है तुम्हारी 21 जन्मों के लिए। तो कितना अच्छी रीति
पढ़ना चाहिए। यह रूहानी पढ़ाई बाप एक ही बार आकर पढ़ाते हैं, नई दुनिया की स्थापना
करने लिए। नई दुनिया में इन देवी-देवताओं का राज्य था। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा
द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। जब यह धर्म था तो और कोई
धर्म नहीं थे। अभी और सब धर्म हैं इसलिए त्रिमूर्ति पर भी तुम समझाते हो - ब्रह्मा
द्वारा स्थापना एक धर्म की। अभी वह धर्म है नहीं। गाते भी हैं मैं निर्गुण हारे में
कोई गुण नाही, आपेही तरस परोई . . . हमारे में कोई गुण नहीं कहते तो बुद्धि गॉड
फादर की तरफ ही जाती है, उनको ही मर्सीफुल कहा जाता है। बाप आते ही हैं बच्चों के
सब दु:खों को खलास कर 100 प्रतिशत सुख देने। कितना रहम करते हैं। तुम समझते हो बाबा
के पास हम आये हैं तो बाप से पूरा सुख लेना है। वह है ही सुखधाम, यह है दु:खधाम। इस
चक्र को भी अच्छी रीति समझना है। शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो तो अन्त मती सो गति
हो जायेगी। शान्तिधाम को याद करेंगे तो जरूर शरीर छोड़ना पड़े तब आत्मायें
शान्तिधाम में जायेंगी। एक बाप के सिवाए और कोई की याद न आये। एकदम लाइन क्लीयर
चाहिए। एक बाप को याद करने से अन्दर खुशी का पारा चढ़ता है। इस पुरानी दुनिया में
तो अल्पकाल क्षण भंगुर सुख है। यह साथ नहीं चल सकता। साथ यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही
चलते हैं। यानी यह ज्ञान रत्नों की कमाई ही साथ चलती है जो फिर तुम 21 जन्म
प्रालब्ध भोगेंगे। हाँ, विनाशी धन भी साथ उनका जाता है जो बाप को मदद करते हैं। बाबा
हमारी भी कौड़ियां ले वहाँ महल दे देना। बाप कौड़ियों के बदले कितने रत्न देते हैं।
जैसे अमेरिकन लोग होते हैं, बहुत पैसे खर्च कर पुरानी-पुरानी चीज़ें खरीद करते हैं।
पुरानी चीज़ का मनुष्य बहुत दाम ले लेते हैं। अमेरिकन लोगों से पाई की चीज़ का
हज़ार ले लेंगे। बाबा भी कितना अच्छा ग्राहक है। भोलानाथ गाया हुआ है ना। मनुष्यों
को यह भी पता नहीं है, वो तो शिव-शंकर एक कह देते हैं। उनके लिए कहते भर दो झोली।
अभी तुम बच्चे समझते हो हमको ज्ञान रत्न मिलते हैं, जिससे हमारी झोली भरती है। यह
है बेहद का बाप। वह फिर शंकर के लिए कह देते और फिर दिखाते हैं - धतूरा खाते थे,
भांग पीते थे। क्या-क्या बातें बैठ बनाई हैं! तुम बच्चे अभी सद्गति के लिए पढ़ाई पढ़
रहे हो। यह पढ़ाई है ही बिल्कुल शान्त में रहने की। यह बत्तियां आदि जो जलाते हैं,
शो करते हैं, वह भी इसलिए कि मनुष्य आकर पूछें आप शिव जयन्ती इतनी क्यों मनाते हो?
शिव ही भारत को धनवान बनाते हैं ना। इन लक्ष्मी-नारायण को स्वर्ग का मालिक किसने
बनाया - यह तुम जानते हो। यह लक्ष्मी-नारायण आगे जन्म में कौन थे? यह आगे जन्म में
जगत अम्बा ज्ञान-ज्ञानेश्वरी थी जो फिर राज-राजेश्वरी बनती है। अब पद किसका बड़ा
है? देखने में तो यह स्वर्ग के मालिक हैं। जगत अम्बा कहाँ की मालिक थी? इनके पास
क्यों जाते हैं? ब्रह्मा को भी 100 भुजा वाला, 200 भुजा वाला, 1000 भुजा वाला दिखाते
हैं ना। जितने बच्चे होते जाते हैं, भुजायें बढ़ती जाती हैं। जगदम्बा को भी लक्ष्मी
से जास्ती भुजायें दी हैं, उनके पास ही जाकर सब कुछ मांगते हैं। बहुत आशायें ले जाते
हैं - बच्चा चाहिए, यह चाहिए. . . लक्ष्मी के पास कभी ऐसी आशायें नहीं ले जायेंगे।
वह तो सिर्फ धनवान है। जगत अम्बा से तो स्वर्ग की बादशाही मिलती है। यह भी किसको पता
नहीं - जगत अम्बा से क्या मांगना चाहिए! यह तो पढ़ाई है ना। जगत अम्बा क्या पढ़ाती
है? राजयोग। इसको कहा ही जाता है बुद्धियोग। तुम्हारी और सब तरफ से बुद्धि निकल एक
बाप से लग जाती है। बुद्धि तो अनेक तरफ भागती है ना। अब बाप कहते हैं मेरे साथ
बुद्धियोग लगाओ, नहीं तो विकर्म विनाश नहीं होंगे इसलिए बाबा फोटो निकालने की भी मना
करते हैं। यह तो इनकी देह है ना।
बाप खुद दलाल बन कहते हैं अभी तुम्हारा वह हथियाला कैन्सिल है। काम चिता से उतर
अब ज्ञान चिता पर बैठो। काम चिता से उतरो। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो
विकर्म विनाश होंगे। और कोई मनुष्य ऐसे कह न सकें। मनुष्य को भगवान भी नहीं कहा जा
सकता। तुम बच्चे जानते हो बाप ही पतित-पावन है। वही आकर काम चिता से उतार ज्ञान चिता
पर बिठाते हैं। वह है रूहानी बाप। वह इनमें बैठ कहते हैं तुम भी आत्मा हो, औरों को
भी यही समझाते रहो। बाप कहते हैं - मनमनाभव। मनमनाभव कहने से ही स्मृति आ जायेगी।
इस पुरानी दुनिया का विनाश भी सामने खड़ा है। बाप समझाते हैं यह है महाभारी महाभारत
लड़ाई। कहेंगे लड़ाई तो विलायत में भी होती है फिर इसको महाभारत लड़ाई क्यों कहते
हैं? भारत में ही यज्ञ रचा हुआ है, इनसे ही विनाश ज्वाला निकली है। तुम्हारे लिए नई
दुनिया चाहिए तो मीठे बच्चे पुरानी दुनिया का जरूर विनाश होना चाहिए। तो इस लड़ाई
की जड़ यहाँ से निकलती है। इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से महाभारी लड़ाई, विनाश ज्वाला
प्रज्जवलित हुई। भल शास्त्रों में लिखा हुआ है परन्तु किसने कहा है यह नहीं जानते।
अभी बाप समझा रहे हैं नई दुनिया के लिए। अभी तुम राजाई लेते हो, तुम देवी-देवता बनते
हो। तुम्हारे राज्य में और कोई भी होना नहीं चाहिए। डेविल वर्ल्ड विनाश होता है।
बुद्धि में याद रहना चाहिए - कल हमने राज्य किया था। बाप ने राज्य दिया था फिर 84
जन्म लेते आये। अभी फिर बाबा आया हुआ है। तुम बच्चों में यह तो ज्ञान है ना। बाप ने
यह ज्ञान दिया है। जब डीटी धर्म की स्थापना होती है तो बाकी सारे डेविल वर्ल्ड का
विनाश होता है। यह बाप बैठ ब्रह्मा द्वारा सब बातें समझाते हैं। ब्रह्मा भी शिव का
बच्चा है, विष्णु का भी राज़ समझाया है कि ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा
बनता है। अभी तुम समझ गये हो हम ब्राह्मण हैं फिर देवता बनेंगे फिर 84 जन्म लेंगे।
यह नॉलेज देने वाला एक ही बाप है तो फिर कोई मनुष्य से यह नॉलेज मिल कैसे सकती? इसमें
सारी बुद्धि की बात है। बाप कहते हैं कि और सब तरफ से बुद्धि तोड़ो। बुद्धि ही
बिगड़ती है। बाप कहते हैं कि मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। गृहस्थ व्यवहार
में भल रहो। एम ऑबजेक्ट तो सामने खड़ी है। जानते हो हम पढ़कर यह बनेंगे। तुम्हारी
पढ़ाई है ही संगमयुग की। अभी तुम न इस तरफ हो, न उस तरफ। तुम बाहर हो। बाप को खिवैया
भी कहते हैं, गाते भी हैं हमारी नईया पार ले जाओ। इस पर एक कहानी भी बनी हुई है।
कोई चल पड़ते हैं, कोई रुक जाते हैं। अब बाप कहते हैं - मैं इस ब्रह्मा के मुख
द्वारा बैठ सुनाता हूँ। ब्रह्मा कहाँ से आया? प्रजापिता तो जरूर यहाँ चाहिए ना। मैं
इनको एडाप्ट करता हूँ, इनका भी नाम रखता हूँ। तुम भी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण
हो, जो कलियुग अन्त में हैं, फिर वही सतयुग आदि में जायेंगे। तुम ही पहले-पहले बाप
से अलग हो पार्ट बजाने आये हो। हमारे में भी सब तो नहीं कहेंगे ना। यह भी मालूम पड़
जायेगा कौन पूरे 84 जन्म लेते हैं! इन लक्ष्मी-नारायण की तो गैरन्टी है ना। इनके
लिए ही गायन है श्याम-सुन्दर। देवी-देवता सुन्दर थे, सांवरे से सुन्दर बने हैं।
गांवड़े के छोरे से बदल सुन्दर बन जाते हैं, इस समय सब छोरे-छोरियां हैं। यह बेहद
की बात है, उनको कोई जानते नहीं। कितनी अच्छी-अच्छी समझानी दी जाती है। हर एक के
लिए सर्जन एक ही है। यह है अविनाशी सर्जन।
योग को अग्नि कहा जाता है क्योंकि योग से ही आत्मा की अलाए (खाद) निकलती है। योग
अग्नि से तमोप्रधान आत्मा सतोप्रधान बनती है। यदि आग ठण्डी होगी तो अलाए निकलेगी नहीं।
याद को योग अग्नि कहा जाता है, जिससे विकर्म विनाश होते हैं। तो बाप कहते हैं तुमको
कितना समझाता रहता हूँ। धारणा भी हो ना। अच्छा मनमनाभव। इसमें तो थकना नहीं चाहिए
ना। बाप को याद करना भी भूल जाते हैं। यह पतियों का पति तुम्हारा ज्ञान से कितना
श्रृंगार करते हैं। निराकार बाप कहते हैं और सबसे बुद्धियोग तोड़ मुझ अपने बाप को
याद करो। बाप सभी का एक ही है। तुम्हारी अब चढ़ती कला होती है। कहते हैं ना - तेरे
भाने सर्व का भला। बाप आये हैं सर्व का भला करने। रावण तो सबको दुर्गति में ले जाते
हैं, राम सबको सद्गति में ले जाते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की याद से अपार सुखों का अनुभव करने के लिए बुद्धि की लाइन
क्लीयर चाहिए। याद जब अग्नि का रूप ले तब आत्मा सतोप्रधान बनें।
2) बाप कौड़ियों के बदले रत्न देते हैं। ऐसे भोलानाथ बाप से अपनी झोली भरनी है।
शान्त में रहने की पढ़ाई पढ़ सद्गति को प्राप्त करना है।