ओम् शान्ति।
बच्चे इतना समय यहाँ बैठे हैं। दिल में भी आता है कि हम जैसे शिवालय में बैठे हैं।
शिवबाबा भी याद आ जाता है। स्वर्ग भी याद आ जाता है। याद से ही सुख मिलता है। यह भी
बुद्धि में याद रहे, हम शिवालय में बैठे हैं तो भी खुशी होगी। जाना तो आखरीन सभी को
शिवालय में है। शान्तिधाम में कोई को बैठ नहीं जाना है। वास्तव में शान्तिधाम को भी
शिवालय कहेंगे, सुखधाम को भी शिवालय कहेंगे। दोनों स्थापन करते हैं। तुम बच्चों को
याद भी दोनों को करना है। वह शिवालय है शान्ति के लिए और वह शिवालय है सुख के लिए।
यह है दु:खधाम। अभी तुम संगम पर बैठे हो। शान्तिधाम और सुखधाम के सिवाए और किसकी भी
याद नहीं होनी चाहिए। भल कहाँ भी बैठे हो, धन्धे आदि में बैठे हो तो भी बुद्धि में
दोनों शिवालय याद आने चाहिए। दु:खधाम भूल जाना है। बच्चे जानते हैं यह वेश्यालय,
दु:खधाम अब खत्म हो जाना है।
यहाँ बैठे तुम बच्चों को झुटका आदि भी नहीं आना चाहिए। बहुतों की बुद्धि कहाँ-कहाँ
और तरफ चली जाती है। माया के विघ्न पड़ते हैं। तुम बच्चों को बाप घड़ी-घड़ी कहते
हैं - बच्चे, मनमनाभव। भिन्न-भिन्न प्रकार की युक्तियां भी बतलाते हैं। यहाँ बैठे
हो, बुद्धि में यह याद करो कि हम पहले शान्तिधाम, शिवालय में जायेंगे फिर सुखधाम
में आयेंगे। ऐसा याद करने से पाप कटते जायेंगे। जितना तुम याद करते हो उतना कदम
बढ़ाते हो। यहाँ और कोई ख्यालात में नहीं बैठना चाहिए। नहीं तो तुम औरों को नुकसान
पहुँचाते हो। फायदे के बदले और ही नुकसान करते हो। आगे जब बैठते थे तो सामने कोई को
जांच करने के लिए बिठाया जाता था - कौन झुटका खाते हैं, कौन आंखें बन्द कर बैठते
हैं, तो बड़ा खबरदार रहते थे। बाप भी देखते थे इनका बुद्धियोग कहाँ भटकता है क्या
या झुटका खाते हैं क्या? ऐसे भी बहुत आते हैं, जो कुछ भी समझते नहीं हैं।
ब्राह्मणियां ले आती हैं। शिवबाबा के आगे बच्चे बड़े अच्छे होने चाहिए, जो ग़फलत
में नहीं रहें क्योंकि यह कोई ऑर्डनरी टीचर नहीं। बाप बैठ सिखलाते हैं। यहाँ बहुत
सावधान होकर बैठना चाहिए। बाबा 15 मिनट शान्ति में बिठाते हैं। तुम तो घण्टा दो
घण्टा बैठते हो। सब तो महारथी नहीं हैं। जो कच्चे हैं, उनको सावधान करना है। सावधान
करने से सुज़ाग हो जायेंगे। जो याद में नहीं रहते, व्यर्थ ख्यालात चलाते रहते हैं,
वह जैसे विघ्न डालते हैं क्योंकि बुद्धि कहाँ न कहाँ भटकती है। महारथी, घोड़ेसवार,
प्यादे सब बैठे हैं।
बाबा आज विचार सागर मंथन करके आये थे - म्युज़ियम में अथवा प्रर्दशनी में तुम
बच्चे जो शिवालय, वेश्यालय और पुरूषोत्तम संगमयुग तीनों ही बताते हो, यह बहुत अच्छा
है समझाने के लिए। यह चित्र बहुत बड़े-बड़े बनाने चाहिए। सबसे अच्छा बड़ा हाल इनके
लिए होना चाहिए, जो मनुष्यों की बुद्धि में झट बैठे। बच्चों का विचार चलना चाहिए कि
इसमें हम इप्रूवमेंट कैसे लायें। पुरूषोत्तम संगमयुग बहुत अच्छा बनाना चाहिए। उससे
मनुष्यों को बहुत अच्छी समझानी मिल सकती है। तपस्या में भी तुम 5-6 को बिठाते हो
परन्तु नहीं, 10-15 को तपस्या में बिठाना चाहिए। बड़े-बड़े चित्र बनाकर क्लीयर
अक्षर में लिखना चाहिए। तुम इतना समझाते हो फिर भी समझते थोड़ेही हैं। तुम मेहनत
करते हो समझाने के लिए, पत्थर बुद्धि हैं ना। तो जितना हो सके अच्छी रीति समझाना
चाहिए। जो सर्विस में रहते हैं उन्हों को सर्विस बढ़ाने का ख्याल करना है।
प्रोजेक्टर, प्रदर्शनी में इतना मज़ा नहीं है, जितना म्युज़ियम में। प्रोजेक्टर से
तो कुछ भी समझते नहीं। सबसे अच्छा है म्युज़ियम, भल छोटा हो। एक कमरे में तो यह
शिवालय, वेश्यालय और पुरूषोत्तम संगमयुग का सीन हो। समझाने में बड़ी विशाल बुद्धि
चाहिए।
बेहद का बाप, बेहद का टीचर आये हैं तो बैठ थोड़ेही जायेंगे कि बच्चे एम.ए., बी.ए.
पास कर लें। बाप बैठा थोड़ेही रहेगा। थोड़े टाइम में चला जायेगा। बाकी थोड़ा समय है
तो भी जागते नहीं। अच्छी-अच्छी जो बच्चियां होंगी वह कहेंगी कि इन 4-5 सौ रूपयों के
लिए क्यों हम मुफ्त अपना टाइम बरबाद करें। फिर शिवालय में हम क्या पद पायेंगे! बाबा
देखते हैं कुमारियां तो फ्री हैं। भल कितना भी बड़ा पगार हो, तो भी यह तो जैसे
मुट्ठी में चने हैं, यह सब खलास हो जायेंगे। कुछ भी रहेगा नहीं। बाप चने मुट्ठी अब
छुड़ाने आये हैं परन्तु छोड़ते ही नहीं हैं। उसमें हैं चने मुट्ठी, इसमें है विश्व
की बादशाही। वह तो पाई पैसे के चने हैं उनके पिछाड़ी कितना हैरान होते हैं। कुमारियां
तो फ्री हैं। वह पढ़ाई तो पाई पैसे की है। उनको छोड़ यह नॉलेज पढ़ते रहें तो दिमाग
भी खुले। ऐसी छोटी-छोटी बच्चियां बड़ों-बड़ों को बैठ नॉलेज दें, बाप आये हैं -
शिवालय स्थापन करने। यह तो जानते हैं कि यहाँ का सब कुछ मिट्टी में मिल जाना है। यह
चने भी नसीब में नहीं आयेंगे। किसकी मुट्ठी में 5 चने अर्थात् 5 लाख होंगे, वह भी
खत्म हो जायेंगे। अभी टाइम बहुत थोड़ा है। दिन-प्रतिदिन हालत खराब होती जाती है।
अचानक आ़फतें आ जाती हैं। मौत भी अचानक होते रहते हैं, मुट्ठी में चने होते ही
प्राण निकल जाते हैं। तो मनुष्यों को इस बन्दरपने से छुड़ाना है। सिर्फ म्युजियम
देख खुश नहीं होना है, कमाल कर दिखाना है। मनुष्यों को सुधारना है। बाप तुम बच्चों
को विश्व की बादशाही दे रहे हैं। बाकी तो भूगरा (चना) भी किसको नसीब में नहीं आयेगा।
सब खत्म हो जायेंगे, इससे तो क्यों न बाप से बादशाही ले लो। कोई तकल़ीफ की बात नहीं।
सिर्फ बाप को याद करना है और स्वर्दशन चक्र फिराना है। भूगरों से (चनों से) मुट्ठी
खाली कर हीरे-जवाहरों से मुट्ठी भरकर जाना है।
बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे, इन चने मुट्ठी के पिछाड़ी तुम अपना समय क्यों
बरबाद करते हो? हाँ, कोई बुजुर्ग हैं, बाल-बच्चे बहुत हैं तो उनको सम्भालना होता
है। कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है, कोई भी आये तो उनको समझाओ कि बाप हमको यह
बादशाही देते हैं। तो बादशाही लेनी चाहिए ना। अभी तुम्हारी मुट्ठी हीरों से भर रही
है। बाकी और तो सब विनाश हो जायेंगे। बाप समझाते हैं तुमने 63 जन्म पाप किये हैं।
दूसरा पाप है बाप और देवताओं की ग्लानि करना। विकारी भी बने हैं और गाली भी दिया
है। बाप की कितनी ग्लानि की है। बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं - बच्चे, टाइम नहीं
गंवाना चाहिए। ऐसे नहीं, बाबा हम याद नहीं कर सकते। बोलो, बाबा हम अपने को आत्मा
याद नहीं कर सकते। अपने को भूल जाते हैं। देह-अभिमान में आना गोया अपने को भूलना।
अपने को आत्मा याद नहीं कर सकते तो बाप को फिर कैसे याद करेंगे। बहुत बड़ी मंजिल
है। सहज भी बहुत है। बाकी हाँ, माया का आपोजीशन होता है।
मनुष्य गीता आदि भल पढ़ते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते। भारत की है ही
मुख्य गीता। हर एक धर्म का अपना-अपना एक शास्त्र है। जो धर्म स्थापन करने वाले हैं
उनको सतगुरू नहीं कह सकते। यह बड़ी भूल है। सतगुरू तो एक ही है, बाकी गुरू कहलाने
वाले तो ढेर हैं। कोई ने कारपेन्टर का काम सिखाया, इन्जीनियर का काम सिखाया तो वह
भी गुरू हो गया। हर एक सिखलाने वाला गुरू होता है, सतगुरू एक ही है। अब तुमको सतगुरू
मिला है वह सत्य बाप भी है तो सत्य टीचर भी है इसलिए बच्चों को जास्ती ग़फलत नहीं
करनी चाहिए। यहाँ से अच्छी रीति रिफ्रेश होकर जाते हैं फिर घर जाने से यहाँ का सब
भूल जाते हैं। गर्भजेल में बहुत सजायें मिलती हैं। वहाँ तो गर्भ महल होता है।
विकर्म कोई होता नहीं जो सजा खानी पड़े। यहाँ तुम बच्चे समझते हो हम बाप से सम्मुख
पढ़ रहे हैं। बाहर अपने घर में तो ऐसे नहीं कहेंगे। वहाँ समझेंगे भाई पढ़ाते हैं।
यहाँ तो डायरेक्ट बाप के पास आये हैं। बाप बच्चों को अच्छी रीति समझाते हैं। बाप की
और बच्चों की समझानी में फ़र्क हो जाता है। बाप बैठ बच्चों को सावधान करते हैं।
बच्चे-बच्चे कह समझाते हैं। तुम शिवालय और वेश्यालय को समझते हो, बेहद की बात है।
यह क्लीयर कर दिखाओ तो मनुष्यों को कुछ मज़ा आये। वहाँ तो ऐसे ही हंसी-कुड़ी में
समझाते हो, सीरियस हो समझाओ तो अच्छी रीति समझें। रहम करो अपने पर, क्या इस
वेश्यालय में ही रहना है! बाबा के ख्यालात तो चलते हैं ना - कैसे-कैसे समझायें।
बच्चे कितनी मेहनत करते हैं फिर भी जैसे डिब्बी में ठिकरी । हाँ-हाँ करते जाते,
बहुत अच्छा है, गांव में समझाना चाहिए। खुद नहीं समझते। साहूकार पैसे वाले लोग तो
समझेंगे भी नहीं। बिल्कुल अटेन्शन ही नहीं देंगे। वह पिछाड़ी में आयेंगे। फिर तो टू
लेट हो जायेंगे। न उनका धन काम में आयेगा, न योग में रह सकेंगे। बाकी हाँ, सुनेंगे
तो प्रजा में आयेंगे। गरीब बहुत ऊंच पद पा सकते हैं। तुम कन्याओं के पास क्या है।
कन्या को गरीब कहा जाता है क्योंकि बाप का वर्सा तो बच्चे को मिलता है। बाकी
कन्या-दान दिया जाता है, तब विकार में जाती है। कहेंगे शादी करो तो पैसे देंगे।
पवित्र रहना है तो एक पाई भी नहीं देंगे। मनोवृत्ति देखो कैसी है। तुम कोई से भी डरो
मत। खुली रीति समझाना चाहिए। फुर्त होना चाहिए। तुम तो बिल्कुल सच कहते हो। यह है
संगमयुग। उस तरफ है चने मुट्ठी, इस तरफ है हीरों की मुट्ठी। अभी तुम बन्दर से
मन्दिर लायक बनते हो। पुरूषार्थ कर हीरे जैसा जन्म लेना चाहिए ना। शक्ल भी बहादुर
शेरनी जैसी होनी चाहिए। कोई-कोई की शक्ल जैसे रिढ़ बकरी मिसल है। थोड़ा आवाज़ से डर
जायेंगे। तो बाप सभी बच्चों को खबरदार करते हैं। कन्याओं को तो फंसना नहीं चाहिए।
और ही बंधन में फँसेंगे तो फिर विकार के लिए डन्डे खायेंगे। ज्ञान अच्छी रीति धारण
करेंगी तो विश्व की महारानी बनेंगी। बाप कहते हैं मैं तुमको विश्व की बादशाही देने
आया हूँ। परन्तु किसी-किसी के नसीब में नहीं है। बाप है ही गरीब निवाज़। गरीब हैं
कन्यायें। मां-बाप शादी नहीं करा सकते हैं तो दे देते हैं। तो उनको नशा चढ़ना चाहिए।
हम अच्छी रीति पढ़कर पद तो अच्छा पायें। अच्छे स्टूडेन्ट जो होते हैं, वह पढ़ाई पर
ध्यान देते हैं - हम पास विद् आनर हो जायें। उनको ही फिर स्कॉलरशिप मिलती है। जितना
पुरूषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे, वह भी 21 जन्म लिए। यहाँ है अल्पकाल का सुख।
आज कुछ मर्तबा, कल मौत आ गया, खलास। योगी और भोगी में फ़र्क है ना। तो बाप कहते हैं
गरीबों पर ज्यादा अटेन्शन दो। साहूकार मुश्किल उठायेंगे। सिर्फ कहते बहुत अच्छा है।
यह संस्था बहुत अच्छी है, बहुतों का कल्याण करेगी। अपना कुछ भी कल्याण नहीं करते।
बहुत अच्छा कहा, बाहर गये, खलास। माया डन्डा उठाकर बैठी है, जो हौंसला ही गुम कर
देती है। एक ही थप्पड़ लगाने से अक्ल चट कर देती है। बाप समझाते हैं - भारत का हाल
देखो क्या हो गया है। बच्चों ने ड्रामा को तो अच्छी रीति समझा है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) चने मुट्ठी छोड़ बाप से विश्व की बादशाही लेने का पूरा पुरूषार्थ करना
है। किसी भी बात में डरना नहीं है, निडर बन बंधनों से मुक्त होना है। अपना समय सच्ची
कमाई में सफल करना है।
2) इस दु:खधाम को भूल शिवालय अर्थात् शान्तिधाम, सुखधाम को याद करना है। माया के
विघ्नों को जान उनसे सावधान रहना है।