23-06-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 19.03.20 "बापदादा" मधुबन
“निर्माण और निर्मान
के बैलेन्स से दुआओं का खाता जमा करो''
आज बापदादा अपने होली
हैपी हंसों की सभा में आये हैं। चारों ओर होली हंस दिखाई दे रहे हैं। होलीहंसों की
विशेषता को सभी अच्छी तरह से जानते हो। सदा होली हैपी हंस अर्थात् स्वच्छ और साफ
दिल। ऐसे होलीहंसों की स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण हर शुभ आशायें सहज पूर्ण होती
हैं। सदा तृप्त आत्मा रहते हैं। श्रेष्ठ संकल्प किया और पूर्ण हुआ। मेहनत नहीं करनी
पड़ती। क्यों? बापदादा को सबसे प्रिय, सबसे समीप साफ दिल प्यारे हैं। साफ दिल सदा
बापदादा के दिलतख्त नशीन, सर्व श्रेष्ठ संकल्प पूर्ण होने के कारण वृत्ति में,
दृष्टि में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सरल और स्पष्ट एक समान दिखाई देते हैं।
सरलता की निशानी है - दिल, दिमाग, बोल एक समान। दिल में एक, बोल में और (दूसरा) -
यह सरलता की निशानी नहीं है। सरल स्वभाव वाले सदा निर्माणचित, निरहंकारी,
निर-स्वार्थी होते हैं। होलीहंस की विशेषता - सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल
दृष्टि।
बापदादा इस वर्ष में
सभी बच्चों में दो विशेषतायें चलन और चेहरे में देखने चाहते हैं। सभी पूछते हैं ना
- आगे क्या करना है? इस सीज़न के विशेष समाप्ति के बाद क्या करना है? सभी सोचते हो
ना - आगे क्या होना है! आगे क्या करना है! सेवा के क्षेत्र में तो यथाशक्ति मैजारिटी
ने बहुत अच्छी प्रगति की है, आगे बढ़े हैं। बापदादा इस उन्नति के लिए मुबारक भी देते
हैं - बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। साथ-साथ रिजल्ट में एक बात दिखाई दी,
क्या वह सुनायें? टीचर्स सुनायें, डबल फारेनर्स सुनायें? पाण्डव सुनायें? हाथ उठाओ
तभी सुनायेंगे, नहीं तो नहीं सुनायेंगे। (सभी ने हाथ उठाया) बहुत अच्छा। एक बात क्या
देखी? क्योंकि आज वतन में बापदादा की आपस में रूहरिहान थी, कैसे रूहरिहान करेंगे?
दोनों कैसे एक दो में रूहरिहान करेंगे? जैसे यहाँ इस दुनिया में आप लोग मोनोएक्टिंग
करते हो ना! बहुत अच्छी-अच्छी करते हो। तो आप लोंगो की साकारी दुनिया में तो एक
आत्मा दो पार्ट बजाती है और बापदादा दो आत्मायें एक शरीर है। फर्क हुआ ना! तो बहुत
मजे की बात होती है।
तो आज वतन में बापदादा
की रूहरिहान चली - किस बात पर? आप सब जानते हो कि ब्रह्मा बाप को उमंग क्या होता
है? जानते हो ना अच्छी तरह से? ब्रह्मा बाप का उमंग था - जल्दी से जल्दी हो। तो शिव
बाप ने कहा ब्रह्मा बाप को - विनाश वा परिवर्तन करना तो एक ताली भी नहीं, चपटी (चुटकी)
बजाने की बात है। लेकिन आप पहले 108 नहीं, आधी माला बनाकर दो। तो ब्रह्मा बाप ने
क्या उत्तर दिया होगा? बताओ। (तैयार हो रहे हैं) अच्छा - आधी माला भी तैयार नहीं
हुई है? पूरी माला की बात छोड़ो, आधी माला तैयार हुई है? (सभी हँस रहे हैं) हँसना
माना कुछ है! जो बोलते हैं आधी माला तैयार है, वह एक हाथ उठाओ। तैयार हुई है? बहुत
थोड़े हैं। जो समझते हैं कि हो रही है, वह हाथ उठाओ। मैजारिटी कहते हैं हो रही है
और मैनारिटी कहते हैं हो गई है। जिन्होंने हाथ उठाया है कि तैयार हुई है, उनको
बापदादा कहते हैं आप नाम लिख-कर देना। अच्छी बात है ना! बापदादा ही देखेंगे और कोई
नहीं देखेंगे, बंद होगा। बापदादा देखेंगे कि ऐसे अच्छे उम्मीदवार रत्न कौन-कौन हैं।
बापदादा भी समझते हैं होने चाहिए। तो इनसे नाम लेना, इनका फोटो निकालो।
तो ब्रह्मा बाप ने
क्या जवाब दिया? आप सबने तो अच्छे-अच्छे जवाब दिये। ब्रह्मा बाप ने कहा तो बस सिर्फ
इतनी देरी है जो आप चपटी बजायेंगे, वह तैयार हो जायेंगे। तो अच्छी बात हुई ना! तो
शिव बाप ने कहा अच्छा सारी माला तैयार है? आधी माला का तो जवाब मिला, सारी माला के
लिए पूछा। उसमें कहा थोड़ा टाइम चाहिए। यह रूहरिहान चली। क्यों थोड़ा टाइम चाहिए?
रूहरिहान में तो प्रश्न-उत्तर ही चलता है ना। क्यों थोड़ा टाइम चाहिए? कौन सी विशेष
कमी है जिसके कारण आधी माला भी रूकी हुई है? तो चारों ओर के बच्चे हर एरिया, एरिया
के इमर्ज करते गये, जैसे आपके जोन हैं ना, ऐसे ही एक-एक जोन नहीं, ज़ोन तो
बहुत-बहुत बड़े हैं ना। तो एक-एक विशेष शहर को इमर्ज करते गये और सबके चेहरे देखते
गये, देखते-देखते ब्रह्मा बाप ने कहा कि एक विशेषता अभी जल्दी से जल्दी सभी बच्चे
धारण कर लेंगे तो माला तैयार हो जायेगी। कौन सी विशेषता? तो यही कहा कि जितनी
सर्विस में उन्नति की है, सर्विस करते हुए आगे बढ़े हैं। अच्छे आगे बढ़े हैं लेकिन
एक बात का बैलेन्स कम है। वह यही बात कि निर्माण करने में तो अच्छे आगे बढ़ गये हैं
लेकिन निर्माण के साथ निर्मान - वह है निर्माण और वह है निर्मान। मात्रा का अन्तर
है। लेकिन निर्माण और निर्मान दोनों के बैलेन्स में अन्तर है। सेवा की उन्नति में
निर्मानता के बजाए कहाँ-कहाँ, कब-कब स्व-अभिमान भी मिक्स हो जाता है। जितना सेवा
में आगे बढ़ते हैं, उतना ही वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, चाल में निर्मानता
दिखाई दे, इस बैलेन्स की अभी बहुत आवश्यकता है। अभी तक जो सभी सम्बन्ध-सम्पर्क वालों
से ब्लैसिंग मिलनी चाहिए वह ब्लैसिंग नहीं मिलती है। और पुरुषार्थ कोई कितना भी करता
है, अच्छा है लेकिन पुरुषार्थ के साथ अगर दुआओं का खाता जमा नहीं है तो दाता-पन की
स्टेज, रहमदिल बनने की स्टेज की अनुभूति नहीं होगी। आवश्यक है - स्व पुरुषार्थ और
साथ-साथ बापदादा और परिवार के छोटे-बड़ों की दुआयें। यह दुआयें जो हैं - यह पुण्य
का खाता जमा करना है। यह मार्क्स में एडीशन होती है। कितनी भी सर्विस करो, अपनी
सर्विस की धुन में आगे बढ़ते चलो, लेकिन बापदादा सभी बच्चों में यह विशेषता देखने
चाहते हैं कि सेवा के साथ निर्मानता, मिलनसार - यह पुण्य का खाता जमा होना
बहुत-बहुत आवश्यक है। फिर नहीं कहना कि मैंने तो बहुत सर्विस की, मैंने तो यह किया,
मैने तो यह किया, मैने तो यह किया, लेकिन नम्बर पीछे क्यों? इसलिए बापदादा पहले से
ही इशारा देते हैं कि वर्तमान समय यह पुण्य का खाता बहुत-बहुत जमा करो। ऐसे नहीं
सोचो - यह तो है ही ऐसा, यह तो बदलना नहीं है। जब प्रकृति को बदल सकते हो, एडजेस्ट
करेंगे ना प्रकृति को? तो क्या ब्राह्मण आत्मा को एडजेस्ट नहीं कर सकते हो?
अगेन्स्ट को एडजेस्ट करो - यह है निर्माण और निर्मान का बैलेन्स। सुना!
लास्ट में होमवर्क तो
देंगे ना! कुछ तो होमवर्क मिलेगा ना! तो बापदादा आने वाली सीज़न में आयेगा लेकिन...
कण्डीशन डालेगा। देखो साकार का पार्ट भी चला, अव्यक्त पार्ट भी चला, इतना समय
अव्यक्त पार्ट चलने का स्वप्न में भी नहीं था। तो दोनों पार्ट ड्रामानुसार चले। अब
कोई तो कण्डीशन डालनी पड़ेगी या नहीं! क्या राय है? क्या ऐसे ही चलता रहेगा? क्यों?
आज वतन में प्रोग्राम भी पूछा। तो बापदादा की रूहरिहान में यह भी चला कि यह ड्रामा
का पार्ट कब तक? क्या कोई डेट है? (देहरादून की प्रेम बहन से) जन्म-पत्री सुनाओ, कब
तक? अभी यह क्वेश्चन उठा है, कब तक? तो लेकिन... के लिए 6 मास तो हैं ही ना! 6 मास
के बाद ही दूसरी सीजन शुरू होती है। तो बापदादा रिजल्ट देखने चाहते हैं। दिल साफ,
कोई भी दिल में पुराने संस्कार का, अभिमान-अपमान की महसूसता का दाग नहीं हो।
बापदादा के पास भी
दिल का चित्र निकालने की मशीनरी है। यहाँ एक्सरे में यह स्थूल दिल दिखाई देता है
ना। तो वतन में दिल का चित्र बहुत स्पष्ट दिखाई देता है। कई प्रकार के छोटे-बड़े
दाग, ढीले स्पष्ट दिखाई देते हैं।
आज होली मनाने आये हो
ना! लास्ट टर्न होने के कारण पहले होमवर्क बता दिया लेकिन होली का अर्थ औरों को भी
सुनाते हो कि होली मनाना अर्थात् बीती सो बीती करना। होली मनाना अर्थात् दिल में
कोई भी छोटा बड़ा दाग नहीं रहना, बिल्कुल साफ दिल, सर्व प्राप्ति सम्पन्न। बापदादा
ने पहले भी सुनाया है कि बापदादा का बच्चों से प्यार होने के कारण एक बात अच्छी नहीं
लगती। वह है - मेहनत बहुत करते हैं। अगर दिल साफ हो जाए तो मेहनत नहीं, दिलाराम दिल
में समाया रहेगा और आप दिलाराम के दिल में समाये हुए रहेंगे। दिल में बाप समाया हुआ
है। किसी भी रूप की माया, चाहे सूक्ष्म रूप हो, चाहे रॉयल रूप हो, चाहे मोटा रूप
हो, किसी भी रूप से माया आ नहीं सकती। स्वप्न मात्र, संकल्प मात्र भी माया आ नहीं
सकती। तो मेहनत मुक्त हो जायेंगे ना! बापदादा मन्सा में भी मेहनत मुक्त देखने चाहते
हैं। मेहनत मुक्त ही जीवनमुक्त का अनुभव कर सकते हैं। होली मनाना माना मेहनत मुक्त,
जीवनमुक्त अनुभूति में रहना। अब बापदादा मन्सा शक्ति द्वारा सेवा को शक्तिशाली बनाने
चाहते हैं। वाणी द्वारा सेवा चलती रही है, चलती रहेगी, लेकिन इसमें समय लगता है।
समय कम है, सेवा अभी भी बहुत है। रिजल्ट आप सबने सुनाई। अभी तक 108 की माला भी
निकाल नहीं सकते। 16 हजार, 9 लाख - यह तो बहुत दूर हो गये। इसके लिए फास्ट विधि
चाहिए। पहले अपनी मन्सा को श्रेष्ठ, स्वच्छ बनाओ, एक सेकेण्ड भी व्यर्थ नहीं जाये।
अभी तक मैजारिटी के वेस्ट संकल्प की परसेन्टेज़ रही हुई है। अशुद्ध नहीं लेकिन
वेस्ट हैं इसलिए मन्सा सेवा फास्ट गति से नहीं हो सकती। अभी होली मनाना अर्थात्
मन्सा को व्यर्थ से भी होली बनाना।
होली मनाई? मनाना
अर्थात् बनना। दुनिया वाले तो भिन्न-भिन्न रंगों से होली मनाते हैं लेकिन बापदादा
सब बच्चों के ऊपर दिव्य गुणों के, दिव्य शक्तियों के, ज्ञान गुलाब के रंग डाल रहे
हैं।
आज वतन में और भी
समाचार था। एक तो सुनाया - रूहरिहान का। दूसरा यह था कि जो भी आपके अच्छे-अच्छे सेवा
साथी एडवांस पार्टी में गये हैं, उन्हों का आज वतन में होली मनाने का दिन था। आप
सबको भी जब कोई मौका होता है तो याद तो आती है ना। अपनी दादियों की, सखियों की,
पाण्डवों की याद तो आती है ना! बहुत बड़ा ग्रुप हो गया है एडवान्स पार्टी का। अगर
नाम निकालो तो बहुत हैं। तो वतन में आज सब प्रकार की आत्मायें होली मनाने आई थी। सभी
अपने-अपने पुरुषार्थ की प्रालब्ध प्रमाण भिन्न-भिन्न पार्ट बजा रहे हैं। एडवांस
पार्टी का पार्ट अभी तक गुप्त है। आप सोचते हो ना - क्या कर रहे हैं? वह आप लोगों
का आह्वान कर रहे हैं कि सम्पूर्ण बन दिव्य जन्म द्वारा नई सृष्टि के निमित्त बनो।
सभी अपने पार्ट में खुश हैं। यह स्मृति नहीं है कि हम संगमयुग से आये हैं। दिव्यता
है, पवित्रता है, परमात्म लगन है, लेकिन ज्ञान क्लीयर इमर्ज नहीं है। न्यारापन है,
लेकिन अगर ज्ञान इमर्ज हो जाए तो सभी भाग करके मधुबन में तो आ जायें ना! लेकिन इन्हों
का पार्ट न्यारा है, ज्ञान की शक्ति है। शक्ति कम नहीं हुई है। निरन्तर मर्यादा
पूर्वक घर का वातावरण, माँ-बाप की सन्तुष्टता और स्थूल साधन भी सब प्राप्त हैं।
मर्यादा में बहुत पक्के हैं। नम्बरवार तो हैं लेकिन विशेष आत्मायें पक्के हैं।
महसूस करते हैं कि हमारा पूर्व जन्म और पुनर्जन्म महान रहा है और रहेगा। फीचर्स भी
सभी के मैजारिटी एक रॉयल फैमली की तृप्त आत्मायें, भरपूर आत्मायें, हर्षित आत्मायें
और दिव्य गुण सम्पन्न आत्मायें दिखाई देते हैं। यह तो हुई उन्हों की हिस्ट्री,
लेकिन वतन में क्या हुआ? होली कैसे मनाई? आप लोगों ने देखा होगा कि होली में
भिन्न-भिन्न रंगों के, सूखे रंग, थालियां भरकर रखते हैं। तो वतन में भी जैसे सूखा
रंग होता है ना - ऐसे बहुत महीन चमकते हुए हीरे थे लेकिन बोझ वाले नहीं थे, जैसे
रंग को हाथ में उठाओ तो हल्का होता है ना! ऐसे भिन्न-भिन्न रंग के हीरों की थालियां
भरी हुई थी। तो जब सब आ गये, तो वतन में स्वरूप कौन सा होता है, जानते हो? लाइट का
ही होता है ना! देखा है ना! तो लाइट की प्रकाशमय काया तो पहले ही चमकती रहती है। तो
बापदादा ने सभी को अपने संगमयुगी शरीर में इमर्ज किया। जब संगमयुगी शरीर में इमर्ज
हुए तो एक दो में बहुत मिलन मनाने लगे। एडवांस पार्टी के जन्म की बातें भूल गये और
संगम की बातें इमर्ज हो गई। तो आप समझते हो कि संगमयुग की बातें जब एक दो में करते
हैं तो कितनी खुशी में आ जाते हैं। बहुत खुशी में एक दो से लेन-देन कर रहे थे।
बापदादा ने भी देखा - यह बड़े मौज में आ गये हैं तो मिलने दो इन्हों को। आपस में
अपने जीवन की बहुत सी कहानियां एक दो को सुना रहे थे, बाबा ने ऐसा कहा, बाबा ने ऐसे
मेरे से प्यार किया, शिक्षा दी। बाबा ऐसे कहता है, बाबा-बाबा, बाबा-बाबा ही था। कुछ
समय के बाद क्या हुआ? सबके संस्कारों का तो आपको पता है। तो सबसे रमणीक कौन थी इस
ग्रुप में? (दीदी और चन्द्रमणी दादी) तो दीदी पहले उठी। चन्द्रमणी दादी का हाथ पकड़ा
और रास शुरू कर दी। और दीदी जैसे यहाँ नशे में चली जाती थी ना, वैसे नशे में खूब
रास किया। मम्मा को बीच में ठहराया और सर्किल लगाया, एक दो को आंख मिचौनी की, बहुत
खेला और बापदादा भी देख-देख बहुत मुस्करा रहे थे। होली मनाने आये तो खेलें भी। कुछ
समय के बाद सभी बापदादा की बांहों में समा गये और सब एकदम लवलीन हो गये और उसके बाद
फिर बापदादा ने सबके ऊपर भिन्न-भिन्न रंगों के जो हीरे थे, बहुत महीन थे, जैसे किसी
चीज़ का चूरा होता है ना, ऐसे थे। लेकिन चमक बहुत थी तो बापदादा ने सबके ऊपर डाला।
तो चमकती हुई बॉडी थी ना तो उसके ऊपर वह भिन्न-भिन्न रंग के हीरे पड़ने से बहुत सभी
जैसे सज गये। लाल, पीला, हरा... जो सात रंग कहते हैं ना। तो सात ही रंग थे। तो बहुत
सभी ऐसे चमक गये जो सतयुग में भी ऐसी ड्रेस नहीं होगी। सब मौज में तो थे ही। फिर एक
दो को भी डालने लगे। रमणीक बहनें भी तो बहुत थी ना। बहुत-बहुत मौज मनाई। मौज के बाद
क्या होता है? बापदादा ने इनएडवान्स सबको भोग खिलाया, आप तो कल भोग लगायेंगे ना
लेकिन बापदादा ने मधुबन का, संगमयुग का भिन्न-भिन्न भोग सबको खिलाया और उसमें विशेष
होली का भोग कौन सा है? (गेवर-जलेबी) आप लोग गुलाब का फूल भी तलते हैं ना। तो
वैरायटी संगमयुग के ही भोग खिलाये। आपसे पहले भोग उन्होंने ले लिया है, आपको कल
मिलेगा। अच्छा। मतलब तो बहुत मनाया, नाचा, गाया। सभी ने मिलके वाह बाबा, मेरा बाबा,
मीठा बाबा के गीत गाया। तो नाचा, गाया, खाया और लास्ट क्या होता है? बधाई और विदाई।
तो आपने भी मनाया कि सिर्फ सुना? लेकिन पहले अभी फरिश्ता बन प्रकाशमय काया वाले बन
जाओ। बन सकते हो या नहीं? मोटा शरीर है? नहीं। सेकेण्ड में चमकता हुआ डबल लाइट का
स्वरूप बन जाओ। बन सकते हो? बिल्कुल फरिश्ता।
(बापदादा ने सभी को
ड्रिल कराई)
अभी अपने ऊपर
भिन्न-भिन्न रंगों के चमकते हुए हीरे सूक्ष्म शरीर पर डालो और सदा ऐसे दिव्य गुणों
के रंग, शक्तियों के रंग, ज्ञान के रंग से स्वयं को रंगते रहो। और सबसे बड़ा रंग
बापदादा के संग के रंग में सदा रंगे रहो। ऐसे अमर भव। अच्छा।
ऐसे देश-विदेश के
फरिश्ते स्वरूप बच्चों को, सदा साफ दिल, प्राप्ति सम्पन्न बच्चों को, सच्ची होली
मनाना अर्थात् अर्थ सहित चित्र प्रत्यक्ष रूप में लाने वाले बच्चों को, सदा निर्माण
और निर्मान का बैलेन्स रखने वाले बच्चों को, सदा दुआओं के पुण्य का खाता जमा करने
वाले बच्चों को बहुत-बहुत पदमगुणा यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
मधुरता द्वारा
बाप की समीपता का साक्षात्कार कराने वाले महान आत्मा भव
जिन बच्चों के संकल्प
में भी मधुरता, बोल में भी मधुरता और कर्म में भी मधुरता है वही बाप के समीप हैं।
इसलिए बाप भी उन्हें रोज़ कहते हैं मीठे-मीठे बच्चे और बच्चे भी रेसपान्ड देते हैं
- मीठे-मीठे बाबा। तो यह रोज़ का मधुर बोल मधुरता सम्पन्न बना देता है। ऐसे मधुरता
को प्रत्यक्ष करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें ही महान हैं। मधुरता ही महानता है। मधुरता
नहीं तो महानता का अनुभव नहीं होता।
स्लोगन:-
कोई भी कार्य डबल लाइट बनकर करो तो मनोरंजन का अनुभव करेंगे।