24-01-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम एक बाप
के डायरेक्शन पर चलते चलो तो बाप तुम्हारा रेस्पॉन्सिबुल है, बाप का डायरेक्शन है
चलते-फिरते मुझे याद करो''
प्रश्नः-
जो अच्छे
गुणवान बच्चे हैं उनकी मुख्य निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:-
वह कांटों को
फूल बनाने की अच्छी सेवा करेंगे। किसी को भी कांटा नहीं लगायेंगे, कभी भी आपस में
लड़ेंगे नहीं। किसी को भी दु:ख नहीं देंगे। दु:ख देना भी कांटा लगाना है।
गीत:-
यह वक्त जा रहा
है.....
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों ने नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार इस गीत का अर्थ समझा।
नम्बरवार इसलिए कहते हैं क्योंकि कोई तो फर्स्ट ग्रेड में समझते हैं, कोई सेकण्ड
ग्रेड में, कोई-कोई थर्ड ग्रेड में। समझ भी हर एक की अपनी-अपनी है। निश्चयबुद्धि भी
हर एक की अपनी है। बाप तो समझाते रहते हैं, ऐसा ही हमेशा समझो कि शिवबाबा इन द्वारा
डायरेक्शन देते हैं। तुम आधाकल्प आसुरी डायेरक्शन पर चलते आये हो, अब ऐसे निश्चय करो
कि हम ईश्वरीय डायरेक्शन पर चलते हैं तो बेड़ा पार हो सकता है। अगर ईश्वरीय
डायरेक्शन न समझ मनुष्य का डायरेक्शन समझा तो मूंझ पड़ेंगे। बाप कहते हैं - मेरे
डायरेक्शन पर चलने से फिर मैं रेसपॉन्सिबुल हूँ ना। इन द्वारा जो कुछ होता है, उनकी
एक्टिविटी का मैं ही रेसपॉन्सिबुल हूँ, उसको हम राइट करेंगे। तुम सिर्फ हमारे
डायरेक्शन पर चलो। जो अच्छी रीति याद करेंगे वही डायरेक्शन पर चलेंगे। कदम-कदम
ईश्वरीय डायरेक्शन समझ चलेंगे तो कभी घाटा नहीं होगा। निश्चय में ही विजय है। बहुत
बच्चे इन बातों को समझते नहीं हैं। थोड़ा ज्ञान आने से देह-अभिमान आ जाता है। योग
बहुत ही कम है। ज्ञान तो है हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानना, यह तो सहज है। यहाँ भी
मनुष्य कितनी साइंस आदि पढ़ते हैं। यह पढ़ाई तो इज़ी है, बाकी मेहनत है योग की।
कोई कहे बाबा हम योग में बहुत मस्त रहते हैं, बाबा मानेगा नहीं। बाबा हर एक की
एक्ट को देखते हैं। बाप को याद करने वाला तो मोस्ट लवली होगा। याद नहीं करते इसलिए
ही उल्टा-सुल्टा काम होता है। बहुत रात-दिन का फ़र्क है। अभी तुम इस सीढ़ी के चित्र
पर भी अच्छी रीति समझा सकते हो। इस समय है कांटों का जंगल। यह बगीचा नहीं है। यह तो
क्लीयर समझाना चाहिए कि भारत फूलों का बगीचा था। बगीचे में कभी जंगली जानवर रहते
हैं क्या? वहाँ तो देवी-देवता रहते हैं। बाप तो है ही हाइएस्ट अथॉरिटी और फिर यह
प्रजापिता ब्रह्मा भी हाइएस्ट अथॉरिटी ठहरे। यह दादा है सबसे बड़ी अथॉरिटी। शिव और
प्रजापिता ब्रह्मा। आत्मायें हैं शिव बाबा के बच्चे और फिर साकार में हम भाई-बहन सब
हैं प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे। यह है सबका ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। ऐसे हाइएस्ट
अथॉरिटी के लिए हमको मकान चाहिए। ऐसे तुम लिखो फिर देखो बुद्धि में कुछ आता है।
शिवबाबा और प्रजापिता ब्रह्मा, आत्माओं का बाप और सब मनुष्य मात्र का बाप। यह
प्वाइंट बहुत अच्छी है समझाने की। परन्तु बच्चे पूरी रीति समझाते नहीं हैं, भूल जाते
हैं, ज्ञान की मगरूरी चढ़ जाती है। जैसेकि बापदादा पर भी जीत पा लेते हैं। यह दादा
कहते हैं, मेरी भल न सुनो। हमेशा समझो शिवबाबा समझाते हैं, उनकी मत पर चलो।
डायरेक्ट ईश्वर मत देते हैं कि यह-यह करो, रेसपॉन्सिबुल हम हैं। ईश्वरीय मत पर चलो।
यह ईश्वर थोड़ेही है, तुमको ईश्वर से पढ़ना है ना। हमेशा समझो यह डायरेक्शन ईश्वर
देते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण भी भारत के ही मनुष्य थे। यह भी सब मनुष्य हैं। परन्तु
यह शिवालय के रहने वाले हैं इसलिए सब नमस्ते करते हैं। परन्तु बच्चे पूरा समझाते नहीं
हैं, अपना नशा चढ़ जाता है। डिफेक्ट तो बहुतों में है ना। जब पूरा योग हो तब विकर्म
विनाश हों। विश्व का मालिक बनना कोई मासी का घर थोड़ेही है। बाबा देखते हैं, माया
एकदम नाक से पकड़कर गटर में गिरा देती है। बाप की याद में तो बड़ी खुशी में
प्रफुल्लित रहना चाहिए। सामने एम ऑब्जेक्ट खड़ी है, हम यह लक्ष्मी-नारायण बन रहे
हैं। भूल जाने से खुशी का पारा नहीं चढ़ता है। कहते हैं हमको नेष्ठा में बिठाओ,
बाहर में हम याद नहीं कर सकते हैं। याद में नहीं रहते हैं इसलिए कभी-कभी बाबा भी
प्रोगाम भेज देते हैं परन्तु याद में बैठते थोड़ेही हैं, बुद्धि इधर-उधर भटकती रहती
है। बाबा अपना मिसाल बताते हैं - नारायण का कितना पक्का भक्त था, जहाँ-तहाँ साथ में
नारायण का चित्र रहता था। फिर भी पूजा के समय बुद्धि इधर-उधर भागती थी। इसमें भी ऐसा
होता है। बाप कहते हैं चलते-फिरते बाप को याद करो परन्तु कई कहते हैं - बहन नेष्ठा
करावे। नेष्ठा का तो कोई अर्थ ही नहीं है। बाबा हमेशा कहते हैं याद में रहो, कई
बच्चे नेष्ठा में बैठे-बैठे ध्यान में चले जाते हैं। न ज्ञान, न याद रहती। या तो
फिर झुटके खाने लग पड़ते हैं, बहुतों को आदत पड़ गई है। यह तो अल्पकाल की शान्ति हो
गई। गोया बाकी सारा दिन अशान्ति रहती है। चलते-फिरते बाप को याद नहीं करेंगे तो पापों
का बोझा कैसे उतरेगा? आधाकल्प का बोझा है। इसमें ही बड़ी मेहनत है। अपने को आत्मा
समझो और बाप को याद करो। भल बाबा को बहुत बच्चे लिख भेजते हैं - इतना समय याद में
रहा परन्तु याद रहती नहीं है। चार्ट को समझते ही नहीं हैं। बाबा बेहद का बाप है।
पतित-पावन है तो खुशी में रहना चाहिए। ऐसे नहीं, हम तो शिवबाबा के हैं ना। ऐसे भी
बहुत हैं, समझते हैं हम तो बाबा के हैं लेकिन याद बिल्कुल करते नहीं। अगर याद करते
होते तो फिर पहले नम्बर में जाना चाहिए। किसको समझाने की भी बड़ी अच्छी बुद्धि
चाहिए। हम तो भारत की महिमा करते हैं। नई दुनिया में आदि सनातन देवी-देवताओं का
राज्य था। अभी है पुरानी दुनिया, आइरन एज। वह सुखधाम, यह दु:खधाम। भारत गोल्डन एज
था तो इन देवताओं का राज्य था। कहते हैं हम कैसे समझें कि इनका राज्य था? यह नॉलेज
बड़ी वन्डरफुल है। जिसकी तकदीर में जो है, जो जितना पुरूषार्थ करते हैं वह देखने
में तो आता है। तुम एक्टिविटी से जानते हो, हैं तो कलियुगी भी मनुष्य, तो सतयुगी भी
मनुष्य। फिर उन्हों के आगे माथा जाकर क्यों टेकते हो? इन्हों को स्वर्ग का मालिक
कहते हैं ना। कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ, यह भी नहीं समझते। इस
समय तो नर्कवासी सब हैं। जरूर पुनर्जन्म भी यहाँ ही लेंगे। बाबा हर एक की चलन से
देखते रहते हैं। बाबा को कितना साधारण रीति से किस-किस से बात करनी पड़ती है।
सम्भालना पड़ता है। बाप कितना क्लीयर कर समझाते हैं। समझते भी हैं तो बात बड़ी ठीक
है। फिर भी क्यों बड़े-बड़े काँटे बन जाते हैं। एक-दो को दु:ख देने से काँटे बन जाते
हैं। आदत छोड़ते ही नहीं। अभी बागवान बाप फूलों का बगीचा लगाते हैं। काँटों को फूल
बनाते रहते हैं। उनका धन्धा ही यह है। जो खुद ही काँटा होगा तो फूल कैसे बनायेगा?
प्रदर्शनी में भी बड़ी खबरदारी से किसको भेजना होता है।
अच्छे गुणवान बच्चे वह जो कांटों को फूल बनाने की अच्छी सेवा करते हैं। किसी को
भी कांटा नहीं लगाते हैं अर्थात् किसी को दु:ख नहीं देते हैं। कभी भी आपस में लड़ते
नहीं हैं। तुम बच्चे बहुत एक्यूरेट समझाते हो। इसमें किसी की इनसल्ट की तो बात ही
नहीं। अभी शिव जयन्ती भी आती है। तुम प्रदर्शनी जास्ती करते रहो। छोटी-छोटी
प्रदर्शनी पर भी समझा सकते हो। एक सेकेण्ड में स्वर्गवासी बनो अथवा पतित भ्रष्टाचारी
से पावन श्रेष्ठाचारी बनो। एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करो। जीवनमुक्ति का भी
अर्थ समझते नहीं हैं। तुम भी अभी समझते हो। बाप द्वारा सबको मुक्ति जीवनमुक्ति मिलती
है। परन्तु ड्रामा को भी जानना है। सब धर्म स्वर्ग में नहीं आयेंगे। वह फिर
अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। फिर अपने-अपने समय पर आकर स्थापना करेंगे। झाड़
में कितना क्लीयर है। एक सद्गुरू के सिवाए सद्गति दाता और कोई हो नहीं सकता। बाकी
भक्ति सिखलाने वाले तो ढेर गुरू हैं। सद्गति के लिए मनुष्य गुरू हो नहीं सकता।
परन्तु समझाने का भी अक्ल चाहिए, इसमें बुद्धि से काम लेना होता है। ड्रामा का कैसा
वन्डरफुल खेल है। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो इस नशे में रहते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास 18-3-68
तुमको वास्तव में शास्त्रों पर वाद-विवाद करने की कोई दरकार नहीं है। मूल बात है ही
याद की, और सृष्टि के आदि मध्य अन्त को समझना है। चक्रवर्ती राजा बनना है। इस चक्र
को ही सिर्फ समझना है, इनका ही गायन है सेकण्ड में जीवनमुक्ति। तुम बच्चों को वन्डर
लगता होगा आधाकल्प भक्ति चलती है। ज्ञान रिंचक नहीं। ज्ञान है ही बाप के पास। बाप
द्वारा ही जानना है। यह बाप कितना अनकामन है इसलिए कोटों में कोई निकलते हैं। वह
टीचर्स ऐसे थोड़ेही कहेंगे। यह तो कहते हैं मैं ही बाप टीचर गुरू हूँ। तो मनुष्य
सुनकर वन्डर खायेंगे। भारत को मदरकन्ट्री कहते हैं क्योंकि अम्बा का नाम बहुत बाला
है। अम्बा के मेले भी बहुत लगते हैं, अम्बा मीठा अक्षर है। छोटे बच्चे भी माँ को
प्यार करते हैं ना क्योंकि माँ खिलाती, पिलाती सम्भालती है। अब अम्बा का बाबा भी
चाहिए ना। यह तो बच्ची है एडाप्टेड। पति तो है नहीं। यह नई बात है ना। प्रजापिता
ब्रह्मा तो जरूर एडाप्ट करते होंगे। यह सभी बातें बाप ही आकर तुम बच्चों को समझाते
हैं। अम्बा का कितना मेला लगता है, पूजा होती है, क्योंकि बच्ची ने बहुत सर्विस की
है। मम्मा ने जितने को पढ़ाया होगा उतना और कोई पढ़ा न सके। मम्मा का नामाचार बहुत
है, मेला भी बहुत बड़ा लगता है। अभी तुम बच्चे जानते हो बाप ने ही आकर रचना के
आदि-मध्य-अन्त का सारा राज़ तुम बच्चों को समझाया है। तुमको बाप के घर का भी मालूम
पड़ा है। बाप से भी लव है तो घर से भी लव है। यह ज्ञान तुमको अभी मिलता है। इस
पढ़ाई से कितनी कमाई होती है। तो खुशी होनी चाहिए ना। और तुम हो बिल्कुल साधारण।
दुनिया को पता नहीं है, बाप आकर यह नॉलेज सुनाते हैं। बाप ही आकर सभी नई नई बातें
बच्चों को सुनाते हैं। नई दुनिया बनती है बेहद की पढ़ाई से। पुरानी दुनिया से
वैराग्य आ जाता है। तुम बच्चों के अन्दर में ज्ञान की खुशी रहती है। बाप को और घर
को याद करना है। घर तो सभी को जाना ही है। बाप तो सभी को कहेंगे ना बच्चों, हम तुमको
मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा देने आया हूँ। फिर भूल क्यों जाते हो। मैं तुम्हारा
बेहद का बाप हूँ। राजयोग सिखलाने आया हूँ। तो क्या तुम श्रीमत पर नहीं चलेंगे! फिर
तो बहुत घाटा पड़ जायेगा। यह है बेहद का घाटा। बाप का हाथ छोड़ा तो कमाई में घाटा
पड़ जायेगा। अच्छा गुडनाईट। ओम् शान्ति।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप की याद से मोस्ट लवली बनना है। चलते फिरते कर्म करते याद में
रहने की प्रैक्टिस करनी है। बाप की याद और खुशी में प्रफुल्लित रहना है।
2) कदम-कदम ईश्वरीय डायरेक्शन पर चल हर कार्य करना है। अपनी मगरूरी (देह-अभिमान
का नशा) नहीं दिखाना है। कोई भी उल्टा-सुल्टा काम नहीं करना है। मूंझना नहीं है।
वरदान:-
साधारण कर्म
करते भी ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाले सदा डबल लाइट भव
जैसे बाप साधारण तन लेते
हैं, जैसे आप बोलते हो वैसे ही बोलते हैं, वैसे ही चलते हैं तो कर्म भल साधारण है,
लेकिन स्थिति ऊंची रहती है। ऐसे आप बच्चों की भी स्थिति सदा ऊंची हो। डबल लाइट बन
ऊंची स्थिति में स्थित हो कोई भी साधारण कर्म करो। सदैव यही स्मृति में रहे कि
अवतरित होकर अवतार बन करके श्रेष्ठ कर्म करने के लिए आये हैं। तो साधारण कर्म
अलौकिक कर्म में बदल जायेंगे।
स्लोगन:-
आत्मिक
दृष्टि-वृत्ति का अभ्यास करने वाले पवित्रता को सहज धारण कर सकते हैं।
अपनी शक्तिशाली
मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो
जितना स्वयं को
मन्सा सेवा में बिज़ी रखेंगे उतना सहज मायाजीत बन जायेंगे। सिर्फ स्वयं के प्रति
भावुक नहीं बनो लेकिन औरों को भी शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा परिवर्तित करने की
सेवा करो। भावना और ज्ञान, स्नेह और योग दोनों का बैलेन्स हो। कल्याणकारी तो बने हो
अब बेहद विश्व कल्याणकारी बनो।