24-07-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप से
होलसेल व्यापार करना सीखो, होलसेल व्यापार है मन्मनाभव, अल्फ को याद करना और कराना,
बाकी सब है रिटेल''
प्रश्नः-
बाप अपने घर
में किन बच्चों की वेलकम करेंगे?
उत्तर:-
जो बच्चे अच्छी
रीति बाप की मत पर चलते हैं और कोई को भी याद नहीं करते हैं, देह सहित देह के सभी
सम्बन्धों से बुद्धियोग तोड़ एक की याद में रहते हैं, ऐसे बच्चों को बाप अपने घर
में रिसीव करेंगे। बाप अभी बच्चों को गुल-गुल (फूल) बनाते, फिर फूल बच्चों की अपने
घर में वेलकम करते हैं।
ओम् शान्ति।
बच्चों को अपने बाप और शान्तिधाम, सुखधाम की याद में बैठना है। आत्मा को, बाप को ही
याद करना है, इस दु:खधाम को भूल जाना है। बाप और बच्चों का यह है मीठा सम्बन्ध। इतना
मीठा सम्बन्ध और कोई बाप का होता ही नहीं। सम्बन्ध एक होता है बाप से फिर टीचर और
गुरू से होता है। अभी यहाँ यह तीनों ही एक हैं। यह भी बुद्धि में याद रहे, खुशी की
बात है ना। एक ही बाप मिला हुआ है, जो बहुत सहज रास्ता बताते हैं। बाप को,
शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, इस दु:खधाम को भूल जाओ। घूमो-फिरो लेकिन बुद्धि
में यही याद रहे। यहाँ तो कोई गोरखधन्धा आदि नहीं है। घर में बैठे हैं। बाप सिर्फ 3
अक्षर याद करने को कहते हैं। वास्तव में है एक अक्षर - बाप को याद करो। बाप को याद
करने से सुखधाम और शान्तिधाम दोनों वर्से याद आ जाते हैं। देने वाला तो बाप ही है।
याद करने से खुशी का पारा चढ़ेगा। तुम बच्चों की खुशी तो नामीग्रामी है। बच्चों की
बुद्धि में है - बाबा हमको घर में फिर वेलकम करेंगे, रिसीव करेंगे, परन्तु उनको, जो
अच्छी रीति बाप की मत पर चलेंगे और कोई को याद नहीं करेंगे। देह सहित देह के सर्व
सम्बन्धों से बुद्धियोग तोड़ मामे-कम् याद करना है। भक्तिमार्ग में तो तुमने बहुत
सेवा की है परन्तु जाने का रास्ता मिलता ही नहीं। अभी बाप कितना सहज रास्ता बताते
हैं, सिर्फ यह याद करो - बाप, बाप भी है, शिक्षक भी है, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का
ज्ञान सुनाते हैं, जो और कोई समझा न सके। बाप कहते हैं अब घर चलना है। फिर पहले-पहले
सतयुग में आयेंगे। इस छी-छी दुनिया से अब जाना है। भल यहाँ बैठे हैं परन्तु यहाँ से
अब गये कि गये। बाप भी खुश होते हैं, तुम बच्चों ने बाप को इनवाइट किया है बहुत समय
से। अब फिर बाप को रिसीव किया है। बाप कहते हैं मैं तुमको गुल-गुल बनाकर फिर
शान्तिधाम में रिसीव करूँगा। फिर तुम नम्बरवार चले जायेंगे। कितना सहज है। ऐसे बाप
को भूलना नहीं है। बात तो बहुत मीठी और सीधी है। एक बात अल्फ़ को याद करो। भल डिटेल
में समझाते हैं फिर पिछाड़ी में कहते हैं अल्फ़ को याद करो, दूसरा न कोई। तुम
जन्म-जन्मान्तर के आशिक हो एक माशूक के। तुम गाते आये हो - बाबा आप आयेंगे तो हम
आपके ही बनेंगे। अब वह आये हैं तो एक का ही बनना चाहिए। निश्चयबुद्धि विजयन्ती।
विजय पायेंगे रावण पर। फिर आना है रामराज्य में। कल्प-कल्प तुम रावण पर विजय पाते
हो। ब्राह्मण बने और विजय पाई रावण पर। रामराज्य पर तुम्हारा हक है। बाप को पहचाना
और रामराज्य पर हक हुआ। बाकी पुरूषार्थ करना है ऊंच पद पाने का। विजय माला में आना
है। बड़ी विजय माला है। राजा बनेंगे तो सब कुछ मिलेगा। दास-दासियाँ सब नम्बरवार बनते
हैं। सब एक जैसे नहीं होते। कोई तो बहुत नज़दीक रहते हैं, जो राजा-रानी खाते, जो
कुछ भण्डारे में बनता वह सब दास-दासियों को मिलता है, जिसको 36 प्रकार का भोजन कहा
जाता है। पद्मपति भी राजाओं को कहा जाता, प्रजा को पद्मपति नहीं कहेंगे। भल वहाँ धन
की परवाह नहीं रहती। परन्तु यह निशानी देवताओं की होती है। जितना याद करेंगे उतना
सूर्यवंशी में आयेंगे। नई दुनिया में आना है ना। महाराजा-महारानी बनना है। बाप
नॉलेज देते हैं नर से नारायण बनने की, जिसको राजयोग कहा जाता है। बाकी भक्ति मार्ग
के शास्त्र भी सबसे जास्ती तुमने पढ़े हैं। सबसे जास्ती भक्ति तुम बच्चों ने की है।
अब बाप से आकर मिले हो। बाप रास्ता तो बहुत सहज और सीधा बताते हैं कि बाप को याद करो।
बाबा बच्चे-बच्चे कह समझाते हैं। बाप बच्चों पर वारी जाते हैं। वारिस हैं तो वारी
जाना पड़े। तुमने भी कहा था बाबा आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे। तन-मन-धन सहित
कुर्बान जायेंगे। तुम एक बार कुर्बान जाते हो, बाबा 21 बार जायेंगे। बाप बच्चों को
याद भी दिलाते हैं। समझ सकते हैं, सब बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार अपना-अपना
भाग्य लेने आये हैं। बाप कहते हैं मीठे बच्चों, विश्व की बादशाही हमारी जागीर है।
अब जितना पुरूषार्थ तुम कर लो। जितना पुरू-षार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
नम्बरवन सो नम्बर लास्ट में है। नम्बरवन में फिर जरूर जायेंगे। सारा मदार पुरूषार्थ
पर है। बाप बच्चों को घर ले जाने आये हैं। अब अपने को आत्मा समझ बाप को याद करेंगे
तो पाप कटते जायेंगे। वह है काम अग्नि, यह है योग अग्नि। काम अग्नि में जलते-जलते
तुम काले हो गये हो। बिल्कुल खाक हो पड़े हो। अब मैं आकर तुमको जगाता हूँ।
तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की युक्ति बताता हूँ, बिल्कुल सिम्पुल। मैं आत्मा हूँ,
इतना समय देह-अभि-मान में रहने कारण तुम उल्टा लटक पड़े थे। अब देही-अभिमानी बन बाप
को याद करो। घर जाना है, बाप लेने के लिए आया है। तुमने निमंत्रण दिया और बाप आये
हैं। पतितों को पावन बनाकर पण्डा बन ले जायेंगे सब आत्माओं को। आत्मा को ही यात्रा
पर जाना है।
तुम हो पाण्डव सम्प्रदाय। पाण्डवों का राज्य नहीं था। कौरवों का राज्य था। यहाँ तो
अभी राजाई भी खत्म हो गई है। अभी भारत का कितना बुरा हाल हो गया है। तुम पूज्य
विश्व के मालिक थे अब पुजारी बने हो। तो विश्व का मालिक कोई भी नहीं। विश्व के
मालिक सिर्फ देवी-देवता ही बनते हैं। यह लोग कहते हैं विश्व में शान्ति हो। तुम पूछो
विश्व में शान्ति किसको कहते हो? विश्व में शान्ति कब हुई है? वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती रहती है। चक्र फिरता रहता है। बताओ विश्व में शान्ति
कब हुई थी? तुम कौन-सी शान्ति चाहते हो? कोई बता नहीं सकेंगे। बाप समझाते हैं विश्व
में शान्ति तो स्वर्ग में थी, जिसको पैराडाइज़ कहते हैं। क्रिश्चियन लोग कहते हैं
बरोबर क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले पैराडाइज़ था। उन्हों की न पारस-बुद्धि बनती
है, न फिर पत्थरबुद्धि बनती है। भारतवासी ही पारसबुद्धि और पत्थरबुद्धि बनते हैं।
न्यु वर्ल्ड को हेविन कहा जाता, पुरानी को तो हेविन नहीं कहेंगे। बच्चों को बाप ने
हेल और हेविन का राज़ समझाया है। यह है रिटेल। होलसेल में तो सिर्फ एक अक्षर कहते
हैं - मामेकम् याद करो। बाप से ही बेहद का वर्सा मिलता है। यह भी पुरानी बात है,
पाँच हज़ार वर्ष पहले भारत में स्वर्ग था। बाप बच्चों को सच्ची-सच्ची कहानी बताते
हैं। सत्य नारायण की कथा, तीजरी की कथा, अमर-कथा मशहूर है। तुमको भी तीसरा नेत्र
ज्ञान का मिलता है। उसको तीजरी की कथा कहा जाता है। वह तो भक्ति की पुस्तक बना दी
है। अब तुम बच्चों को सब बातें अच्छी रीति समझाई जाती है। रिटेल और होलसेल होता है
ना! इतना ज्ञान सुनाते हैं जो सागर को स्याही बनाओ तो भी अन्त न आये - यह हुआ रिटेल।
होलसेल में सिर्फ कहते हैं मन्मनाभव। अक्षर ही एक है, उसका अर्थ भी तुम समझते हो और
कोई बता न सके। बाप ने कोई संस्कृत में ज्ञान नहीं दिया है। वह तो जैसा राजा है वह
अपनी भाषा चलाते हैं। अपनी भाषा तो एक हिन्दी ही होगी। फिर संस्कृत क्यों सीखनी
चाहिए। कितना पैसा खर्च करते हैं।
तुम्हारे पास कोई भी आये उनको बोलो बाप कहते हैं मुझे याद करो तो शान्तिधाम-सुखधाम
का वर्सा मिलेगा। यह समझना हो तो बैठकर समझो। बाकी हमारे पास और कोई बात नहीं है।
बाप अल्फ़ ही समझाते हैं। अल्फ से ही वर्सा मिलता है। बाप को याद करो तो पाप नाश
हों फिर पवित्र बन शान्तिधाम में चले जायेंगे। कहते भी हैं शान्ति देवा। बाप ही
शान्ति के सागर हैं तो उनको ही याद करते हैं। बाप जो स्वर्ग स्थापन करते हैं वह तो
यहाँ ही होता है। सूक्ष्मवतन में कुछ भी है नहीं। यह तो साक्षात्कार की बातें हैं।
ऐसा फ़रिश्ता बनना है। बनना यहाँ ही है। फरिश्ता बनकर फिर घर चले जायेंगे। राजधानी
का वर्सा बाप से मिलता है। शान्ति और सुख दोनों वर्से मिलते हैं। बाप के सिवाए और
कोई को सागर कह नहीं सकते हैं। बाप जो ज्ञान का सागर है वही सर्व की सद्गति कर सकते
हैं। बाप पूछते हैं, मैं तुम्हारा बाप, टीचर, गुरू हूँ, तुम्हारी सद्गति करता हूँ,
फिर तुम्हारी दुर्गति कौन करते हैं? रावण। दुर्गति और सद्गति का यह खेल है। कोई
मूँझते हैं तो पूछ सकते हैं। भक्ति मार्ग में प्रश्न ढेर उठते हैं, ज्ञान मार्ग में
प्रश्न की बात नहीं। शास्त्रों में तो शिवबाबा से लेकर देवताओं की भी कितनी ग्लानि
कर दी है, किसको भी छोड़ा नहीं है। यह भी ड्रामा बना हुआ है, फिर भी करेंगे। बाप
कहते हैं यह देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। फिर यह दु:ख नहीं रहेगा। बाप
तुम्हें कितना समझदार बनाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण समझदार हैं, तब तो विश्व के
मालिक हैं। बेसमझ तो विश्व के मालिक हो न सकें। पहले तो तुम काँटे थे, अब फूल बन रहे
हो इसलिए बाबा भी गुलाब का फूल ले आते हैं - ऐसा फूल बनना है। खुद आकर फूलों का
बगीचा बनाते हैं। फिर रावण आता है काँटों का जंगल बनाने। कितना क्लीयर है। यह सब
सिमरण करना है। एक को याद करने से उसमें सब आ जाता है। बाप से वर्सा मिलता है। यह
बहुत भारी दौलत है, शान्ति का भी वर्सा मिलता है क्योंकि शान्ति का सागर वही है।
लौकिक बाप की ऐसी महिमा कभी नहीं करेंगे। श्रीकृष्ण है सबसे प्यारा। पहले-पहले जन्म
ही उनका होता है इसलिए उनको सबसे जास्ती प्यार करते हैं। बाप बच्चों को ही सारे घर
का समाचार देते हैं। बाप भी पक्का व्यापारी है, कोई विरला ऐसा व्यापार करे। होलसेल
व्यापारी कोई मुश्किल बनता है। तुम होलसेल व्यापारी हो ना! बाप को याद करते ही रहते
हो। कई रिटेल में सौदा कर फिर भूल जाते हैं। बाप कहते हैं निरन्तर याद करते रहो।
वर्सा मिल गया फिर याद करने की दरकार नहीं रहेगी। लौकिक सम्बन्ध में बाप बूढ़ा हो
जाता है तो कोई-कोई बच्चे पिछाड़ी तक भी सहायक बनते हैं। कोई तो मिलकियत मिली और
उड़ाकर खलास कर देते हैं। बाबा सब बातों का अनुभवी है। तब तो बाप ने भी इनको अपना
रथ बनाया है। गरीबी का, साहूकारी का सबमें अनुभवी है। ड्रामा अनुसार यह एक ही रथ
है। यह कभी बदल नहीं सकता। ड्रामा बना हुआ है, इसमें कभी चेन्ज हो नहीं सकती है। सब
बातें होलसेल और रिटेल में समझाकर फिर अन्त में कह देते हैं मन्मनाभव, मध्याजी भव।
मन्मनाभव में सब आ जाता है। यह बहुत भारी खजाना है, उनसे झोली भरते हैं। अविनाशी
ज्ञान रत्न एक-एक लाख रूपये के हैं। तुम पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हो। बाप तो खुशी,
ना खुशी दोनों से न्यारा है। साक्षी हो ड्रामा देख रहे हैं। तुम पार्ट बजाते हो।
मैं पार्ट बजाते भी साक्षी हूँ। जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। और तो कोई इनसे छूट नहीं
सकता, मोक्ष मिल न सके। यह अनादि बना-बनाया ड्रामा है। यह भी वण्डरफुल है। छोटी-सी
आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है। यह अविनाशी ड्रामा कभी विनाश को नहीं पाता। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से,
सर्विसएबुल बच्चों को नम्बरवार पुरू-षार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जैसे बाप बच्चों पर वारी जाते हैं, ऐसे तन-मन-धन सहित एक बार बाप पर
पूरा कुर्बान जाकर 21 जन्मों का वर्सा लेना है।
2) बाप जो अविनाशी अनमोल खजाना देते हैं उससे अपनी झोली सदा भरपूर रखनी है। सदा
इसी खुशी व नशे में रहना है कि हम पद्मापद्म भाग्यशाली हैं।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन
की प्रापर्टी और पर्सनालिटी का अनुभव करने और कराने वाली विशेष आत्मा भव
बापदादा सभी ब्राह्मण बच्चों
को स्मृति दिलाते हैं कि ब्राह्मण बने - अहो भाग्य! लेकिन ब्राह्मण जीवन का वर्सा,
प्रापर्टी सन्तुष्टता है और ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी प्रसन्नता है। इस अनुभव से
कभी वंचित नहीं रहना। अधिकारी हो। जब दाता, वरदाता खुली दिल से प्राप्तियों का खजाना
दे रहे हैं तो उसे अनुभव में लाओ और औरों को भी अनुभवी बनाओ तब कहेंगे विशेष आत्मा।
स्लोगन:-
लास्ट
समय का सोचने के बजाए लास्ट स्थिति का सोचो।
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