ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। यह तो बच्चों को नहीं बताना है कि किसके प्रति। बच्चे जानते हैं -
शिवबाबा ज्ञान का सागर है। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। तो जरूर आत्माओं से बात करते
हैं। बच्चे जानते हैं शिवबाबा पढ़ा रहे हैं। बाबा अक्षर से समझते हैं परम आत्मा को
ही बाबा कहते हैं। सब मनुष्य मात्र उस परम आत्मा को ही फादर कहते हैं! बाबा परमधाम
में रहते हैं। पहले-पहले यह बातें पक्की करनी है। अपने को आत्मा समझना है और यह
पक्का निश्चय करना है। बाप जो सुनाते हैं, वह आत्मा ही धारण करती है। जो ज्ञान
परमात्मा में है वह आत्मा में भी आना चाहिए। जो फिर मुख से वर्णन करना होता है। जो
कुछ भी पढ़ाई पढ़ते हैं, वह आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा निकल जाये तो पढ़ाई आदि का
कुछ भी मालूम न पड़े। आत्मा संस्कार ले गई, जाकर दूसरे शरीर में बैठी। तो पहले अपने
को आत्मा पक्का-पक्का समझना पड़े। देह-अभिमान अब छोड़ना पड़े। आत्मा सुनती है, आत्मा
धारण करती है। आत्मा इसमें नहीं होती तो शरीर हिल भी न सके। अब तुम बच्चों को यह
पक्का-पक्का निश्चय करना है - परम आत्मा हम आत्माओं को ज्ञान दे रहे हैं। हम आत्मा
भी शरीर द्वारा सुनती हैं और परमात्मा शरीर द्वारा सुना रहे हैं - यही घड़ी-घड़ी
भूल जाते हैं। देह याद आती है। यह भी जानते हो अच्छे वा बुरे संस्कार आत्मा में ही
रहते हैं। शराब पीना, छी-छी बात करना....... यह भी आत्मा करती है आरगन्स द्वारा।
आत्मा ही इन आरगन्स द्वारा इतना पार्ट बजाती है। पहले-पहले आत्म-अभिमानी जरूर बनना
है। बाप आत्माओं को ही पढ़ाते हैं। आत्मा ही फिर यह नॉलेज साथ में ले जायेगी। जैसे
वहाँ परम आत्मा ज्ञान सहित रहते हैं, वैसे तुम आत्मायें फिर यह नॉलेज साथ में ले
जायेंगी। मैं तुम बच्चों को इस ज्ञान सहित ले जाता हूँ। फिर तुम आत्माओं को पार्ट
में आना है, तुम्हारा पार्ट है नई दुनिया में प्रालब्ध भोगना। ज्ञान भूल जाता है।
यह सब अच्छी रीति धारण करना है। पहले-पहले यह बहुत-बहुत पक्का करना है कि मैं आत्मा
हूँ, बहुत हैं जो यह भूल जाते हैं। अपने साथ बहुत-बहुत मेहनत करनी है। विश्व का
मालिक बनना है तो मेहनत बिगर थोड़ेही बनेंगे। घड़ी-घड़ी इस प्वाइंट को ही भूल जाते
हैं क्योंकि यह नई नॉलेज है। जब अपने को आत्मा भूल देह-अभिमान में आते हैं तो कुछ न
कुछ पाप होते हैं। देही-अभिमानी बनने से कभी पाप नहीं होंगे। पाप कट जायेंगे। फिर
आधा-कल्प कोई पाप नहीं होगा। तो यह निश्चय रखना चाहिए - हम आत्मा पढ़ती हैं, देह नहीं।
आगे जिस्मानी मनुष्य मत मिलती थी, अब बाप श्रीमत दे रहे हैं। यह नई दुनिया की
बिल्कुल नई नॉलेज है। तुम सब नये बन जायेंगे, इसमें मूंझने की बात ही नहीं।
अनेकानेक बार तुम पुराने से नये, नये से पुराने बनते आये हो, इसलिए अच्छी रीति
पुरूषार्थ करना है।
हम आत्मा कर्मेन्द्रियों द्वारा यह काम करते हैं। ऑफिस आदि में भी अपने को आत्मा
समझकर कर्मेन्द्रियों से काम करते रहेंगे तो सिखलाने वाला बाप जरूर याद पड़ेगा।
आत्मा ही बाप को याद करती है। भल आगे भी कहते थे हम भगवान् को याद करता हूँ। परन्तु
अपने को साकार समझ निराकार को याद करते थे। अपने को निराकार समझ निराकार को याद कभी
नहीं करते थे। अभी तुमको अपने को निराकार आत्मा समझ निराकार बाप को याद करना है। यह
बड़ी विचार सागर मंथन करने की बात है। भल कोई-कोई लिखते हैं - हम 2 घण्टा याद में
रहते हैं। कोई कहते हैं हम सदैव शिवबाबा को याद करते हैं। परन्तु सदैव कोई याद कर न
सके। अगर याद करता हो तो पहले से ही कर्मातीत अवस्था हो जाये। कर्मातीत अवस्था तो
बड़ी जबरदस्त मेहनत से होती है। इसमें सब विकारी कर्मेन्द्रियां वश हो जाती हैं।
सतयुग में सब कर्मेन्द्रियां निर्विकारी बन जाती हैं। अंग-अंग सुगंधित हो जाता है।
अभी बांसी छी-छी अंग है। सतयुग की तो बहुत प्यारी महिमा है। उसको कहा जाता है हेविन
नई दुनिया, वैकुण्ठ। वहाँ के फीचर्स, ताज आदि यहाँ पर कोई बना न सकें। भल तुम देखकर
भी आते हो। परन्तु यहाँ वह बना न सके। वहाँ तो नैचुरल शोभा रहती है तो अब तुम बच्चों
को याद से ही पावन बनना है। याद की यात्रा बहुत-बहुत करनी है। इसमें बड़ी मेहनत है।
याद करते-करते कर्मातीत अवस्था को पा लें तो सब कर्मेन्द्रियां शीतल हो जायें।
अंग-अंग बहुत सुगन्धित हो जायें, बदबू नहीं रहेगी। अभी तो सभी कर्मेन्द्रियों में
बदबू है। यह शरीर कोई काम का नहीं है। तुम्हारी आत्मा अभी पवित्र बन रही है। शरीर
तो बन न सके। वह तब बनें जब तुमको नया शरीर मिले। अंग-अंग में सुगंध हो - यह महिमा
देवताओं की है। तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। बाप आया है तो खुशी का पारा चढ़
जाना चाहिए।
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। गीता के अक्षर कितने क्लीयर
हैं। बाबा ने कहा भी है - मेरे जो भक्त हैं, जो गीता-पाठी होंगे, वह श्रीकृष्ण के
पुजारी जरूर होंगे। तब बाबा कहते हैं देवताओं के पुजारियों को सुनाना। मनुष्य शिव
की पूजा करते हैं और फिर कह देते हैं सर्वव्यापी। ग्लानि करते हुए भी मन्दिरों में
रोज़ जाते हैं। शिव के मन्दिर में ढेर के ढेर जाते हैं। बहुत ऊंची सीढ़ी चढ़कर जाते
हैं ऊपर में, शिव का मन्दिर ऊपर बनाया जाता है। शिवबाबा भी आकर के सीढ़ी बताते हैं
ना। उनका ऊंचा नाम, ऊंचा ठाँव है। कितना ऊपर जाते हैं। बद्रीनाथ, अमरनाथ वहाँ शिव
के मन्दिर हैं। ऊंच चढ़ाने वाला है, तो उनका मन्दिर भी बहुत ऊंच बनाते हैं। यहाँ
गुरु शिखर का मन्दिर भी ऊंची पहाड़ी पर बनाया हुआ है। ऊंच बाप बैठ तुमको पढ़ाते
हैं। दुनिया में और कोई नहीं जानते कि शिवबाबा आकर पढ़ाते हैं। वह तो सर्वव्यापी कह
देते हैं। अभी तुम्हारे सामने एम ऑबजेक्ट भी खड़ी है। सिवाए बाप के और कौन कहेगा -
यह तुम्हारी एम आबजेक्ट है। यह बाप ही तुम बच्चों को बतलाते हैं। तुम कथा भी सत्य
नारायण की सुनते हो। वह तो जो पास्ट हो जाता है, उनकी कथायें बताते हैं कि आगे
क्या-क्या हुआ। जिसको कहानी कहा जाता है। यह ऊंच ते ऊंच बाप बड़े ते बड़ी कहानी
सुनाते हैं। यह कहानी तुमको बहुत ऊंच बनाने वाली है। यह सदैव याद रखनी चाहिए और
बहुतों को सुनानी है। कहानी सुनाने के लिए ही तुम प्रदर्शनी वा म्युज़ियम बनाते हो।
5 हज़ार वर्ष पहले भारत ही था, जिसमें देवतायें राज्य करते थे। यह है सच्ची-सच्ची
कहानी, जो दूसरा कोई बता न सके। यह रीयल कहानी है जो चैतन्य वृक्षपति बाप बैठ समझाते
हैं, जिससे तुम देवता बनते हो। इसमें पवित्रता मुख्य है। पवित्र नहीं बनेंगे तो
धारणा नहीं होगी। शेरनी के दूध के लिए सोने का बर्तन चाहिए, तब ही धारणा हो सकेगी।
यह कान बर्तन मिसल हैं ना। यह सोने का बर्तन होना चाहिए। अभी पत्थर का है। सोने का
बने तब ही धारणा हो सके। बड़ा अटेन्शन से सुनना और धारण करना है। कहानी तो इज़ी है,
जो गीता में लिखी है। वह कहानियां सुनाकर कमाई करते हैं। सुनने वालों से उन्हों की
कमाई हो जाती है। यहाँ तुम्हारी भी कमाई है। दोनों कमाई चलती रहती हैं। दोनों
व्यापार हैं। पढ़ाते भी हैं। कहते हैं मनमनाभव, पवित्र बनो। ऐसे और कोई नहीं कहते,
न मनमनाभव रहते हैं। कोई भी मनुष्य यहाँ पवित्र हो नहीं सकते क्योंकि भ्रष्टाचार की
पैदाइस है। रावण राज्य कलियुग अन्त तक चलना है, उसमें पावन होना है। पावन कहा जाता
है देवताओं को, न कि मनुष्यों को। संन्यासी भी मनुष्य हैं, उन्हों का है निवृत्ति
मार्ग का धर्म। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पवित्र बन जायेंगे। भारत में
प्रवृत्ति मार्ग का ही राज्य चला है। निवृत्ति मार्ग वालों से तुम्हारा कोई कनेक्शन
नहीं है। यहाँ तो स्त्री-पुरूष दोनों को पवित्र बनना है। दोनों पहिये चलते हैं तो
ठीक है, नहीं तो झगड़ा हो पड़ता है। पवित्रता पर ही झगड़ा चलता है। और कोई सतसंग
में पवित्रता पर झगड़ा हो, ऐसा कभी सुना नहीं होगा। यह एक ही बार जब बाप आते हैं तब
झगड़ा होता है। साधू सन्त आदि कभी कहते हैं क्या कि अबलाओं पर अत्याचार होंगे! यहाँ
बच्चियां पुकारती हैं बाबा हमको बचाओ। बाप भी पूछते हैं नंगन तो नहीं होते हो?
क्योंकि काम महाशत्रु है ना। एकदम गिर पड़ते हैं। इस काम विकार ने सबको वर्थ नाट ए
पेनी बनाया है। बाप कहते हैं 63 जन्म तुम वेश्यालय में रहते हो, अभी पावन बन शिवालय
में चलना है। यह एक जन्म पवित्र बनो। शिवबाबा को याद करो तो शिवालय स्वर्ग में
चलेंगे। फिर भी काम विकार कितना जबरदस्त है। कितना हैरान करते हैं, कशिश होती है।
कशिश को निकालना चाहिए। जबकि वापिस जाना है तो पवित्र जरूर बनना है। टीचर कोई बैठा
थोड़ेही रहेगा। पढ़ाई थोड़ा समय चलेगी। बाबा बता देते हैं। हमारा यह रथ है ना। रथ
की आयु कहेंगे। बाप कहते हम तो सदैव अमर हैं, हमारा नाम ही है अमरनाथ। पुनर्जन्म नहीं
लेते इसलिए अमरनाथ कहा जाता है। तुमको आधा कल्प के लिए अमर बनाते हैं। फिर भी तुम
पुनर्जन्म लेते हो। तो अब तुम बच्चों को जाना है ऊपर। मुंह उस तरफ, टांगे इस तरफ
करनी हैं। फिर इस तरफ मुंह क्यों फिराना चाहिए। कहते हैं बाबा भूल हो गई, मुंह इस
तरफ हो गया। तो गोया उल्टे बन जाते हैं।
तुम बाप को भूल देह-अभिमानी बनते हो तो उल्टा बन जाते हो। बाप सब कुछ बतलाते
हैं। बाप से कुछ भी मांगना नहीं है कि ताकत दो, शक्ति दो। बाप तो रास्ता बतलाते हैं
- योग बल से ऐसा बनना है। तुम योगबल से इतने साहूकार बनते हो जो 21 जन्म कभी कोई से
मांगने की दरकार नहीं। इतना तुम बाप से लेते हो। समझते हो बाबा तो अथाह कमाई कराते
हैं, कहते हैं जो चाहो सो ले लो। यह लक्ष्मी-नारायण हैं हाइएस्ट। फिर जो चाहे सो
लो। पूरा पढ़ेंगे नहीं तो प्रजा में चले जायेंगे। प्रजा भी जरूर बनानी है। तुम्हारे
म्युज़ियम आगे चलकर ढेर हो जायेंगे और तुमको बड़ेबड़े हाल मिलेंगे, कॉलेज मिलेंगे,
जिसमें तुम सर्विस करेंगे। यह जो शादियों के लिए हाल बनाते हैं, यह भी तुमको जरूर
मिलेंगे। तुम समझायेंगे - शिव भगवा-नुवाच, मैं तुमको ऐसा पवित्र बनाता हूँ, तो
ट्रस्टी हाल दे देंगे। बोलो भगवानुवाच - काम महाशत्रु है, जिससे दु:ख पाया है। अब
पावन बन पावन दुनिया में चलना है। तुमको हाल मिलते रहेंगे। फिर कहेंगे टू लेट। बाप
कहते हैं मैं ऐसे मुफ्त में थोड़ेही लूंगा जो फिर भरकर देना पड़े। बच्चों के
पाई-पाई से तलाव बनता है। बाकी तो सबका मिट्टी में मिल जाना है। बाप सबसे बड़ा
सर्राफ भी है। सोनार, धोबी, कारीगर भी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप जो सच्ची-सच्ची कहानी सुनाते हैं, वह अटेन्शन से सुननी और धारण
करनी है, बाप से कुछ भी मांगना नहीं है। 21 जन्मों के लिए अपनी कमाई जमा करनी है।
2) वापस घर चलना है, इसलिए योगबल से शरीर की कशिश समाप्त करनी है। कर्मेन्द्रियों
को शीतल बनाना है। इस देह का भान छोड़ने का पुरूषार्थ करना है।