25-07-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - बाजोली का खेल याद करो, इस खेल में सारे चक्र का, ब्रह्मा और ब्राह्मणों का राज़ समाया हुआ है''

प्रश्नः-
संगमयुग पर बाप से कौन-सा वर्सा सभी बच्चों को प्राप्त होता है?

उत्तर:-
ईश्वरीय बुद्धि का। ईश्वर में जो गुण हैं वह हमें वर्से में देते हैं। हमारी बुद्धि हीरे जैसी पारस बन रही है। अभी हम ब्राह्मण बन बाप से बहुत भारी खजाना ले रहे हैं, सर्व गुणों से अपनी झोली भर रहे हैं।

ओम् शान्ति। आज है सतगुरूवार, बृहस्पतिवार। दिनों में भी कोई उत्तम दिन होता है। बृहस्पति का दिन ऊंच कहते हैं ना। बृहस्पति अर्थात् वृक्षपति डे पर स्कूल वा कॉलेज में बैठते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो कि इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप है बाप और वह अकाल मूर्त्त है। अकाल मूर्त्त बाप के अकालमूर्त्त बच्चे। कितना सहज है। मुश्किलात सिर्फ है याद की। याद से ही विकर्म विनाश होते हैं। तुम पतित से पावन होते हो। बाप समझाते हैं तुम बच्चों पर अविनाशी बेहद की दशा है। एक होती है हद की दशा और दूसरी होती है बेहद की। बाप है वृक्षपति। वृक्ष से पहले-पहले ब्राह्मण निकले। बाप कहते हैं मैं वृक्षपति सत-चित-आनन्द स्वरूप हूँ। फिर महिमा गाते हैं ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर.......। तुम जानते हो सतयुग में देवी-देवतायें सब शान्ति के, पवित्रता के सागर हैं। भारत सुख-शान्ति-पवित्रता का सागर था, उसको कहा जाता है विश्व में शान्ति। तुम हो ब्राह्मण। वास्तव में तुम भी अकालमूर्त्त हो, हरेक आत्मा अपने तख्त पर विराजमान है। यह सब चैतन्य अकाल तख्त हैं। भ्रकुटी के बीच अकालमूर्त्त आत्मा विराजमान है, जिसको सितारा भी कहा जाता है। वृक्षपति बीजरूप को ज्ञान का सागर कहते हैं, तो जरूर उनको आना पड़े। पहले-पहले चाहिए ब्राह्मण, प्रजापिता ब्रह्मा के एडाप्टेड चिल्ड्रेन। तो जरूर मम्मा भी चाहिए। तुम बच्चों को बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। जैसे बाजोली खेलते हैं ना। उसका भी अर्थ समझाया है। बीजरूप शिवबाबा है फिर है ब्रह्मा। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे गये। इस समय तुम कहेंगे कि हम सो ब्राह्मण सो देवता.....। पहले हम शूद्र बुद्धि थे। अब फिर से बाप पुरूषोत्तम बुद्धि बनाते हैं। हीरे जैसी पारस बुद्धि बनाते हैं। यह बाजोली का राज़ भी समझाते हैं। शिवबाबा भी है, प्रजापिता ब्रह्मा और एडाप्टेड बच्चे सामने बैठे हैं। अभी तुम कितने विशालबुद्धि बने हो। ब्राह्मण सो फिर देवता बनेंगे। अभी तुम ईश्वरीय बुद्धि बनते हो जो ईश्वर में गुण हैं वह तुमको वर्से में मिलते हैं। समझाते समय यह भूलो मत। बाप ज्ञान का सागर है नम्बरवन। उनको ज्ञानेश्वर कहा जाता है। ज्ञान सुनाने वाला ईश्वर। ज्ञान से होती है सद्गति। पतितों को पावन बनाते हैं ज्ञान और योग से। भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है क्योंकि आइरन एज से गोल्डन एज बना था। यह तो समझाया है कि योग दो प्रकार का है - वह है हठयोग और यह है राजयोग। वह हद का, यह है बेहद का। वह हैं हद के संन्यासी, तुम हो बेहद के संन्यासी। वह घरबार छोड़ते हैं, तुम सारी दुनिया का संन्यास करते हो। अभी तुम हो प्रजा-पिता ब्रह्मा की सन्तान, यह छोटा-सा नया झाड़ है। तुम जानते हो पुराने से नये बन रहे हैं। सैपलिंग लग रहा है। बरोबर हम बाजोली खेलते हैं। हम सो ब्राह्मण फिर हम सो देवता। ‘सो' अक्षर जरूर लगाना है। सिर्फ हम नहीं। हम सो शूद्र थे, हम सो ब्राह्मण बनें..... यह बाजोली बिल्कुल भूलनी नहीं चाहिए। यह तो बिल्कुल सहज है। छोटे-छोटे बच्चे भी समझा सकते हैं, हम 84 जन्म कैसे लेते हैं, सीढ़ी कैसे उतरे हैं फिर ब्राह्मण बन चढ़ते हैं। ब्राह्मण से देवता बनते हैं।

अभी ब्राह्मण बन बहुत भारी खजाना ले रहे हैं। झोली भर रहे हैं। ज्ञान सागर कोई शंकर को नहीं कहा जाता है। वह झोली नहीं भरते हैं। यह तो चित्रकारों ने बना दिया है। शंकर की बात है नहीं। यह विष्णु और ब्रह्मा यहाँ के हैं। लक्ष्मी-नारायण का युगल रूप ऊपर में दिखाया है। यह है इनका (ब्रह्मा का) अन्तिम जन्म। पहले-पहले यह विष्णु था, फिर 84 जन्मों के बाद यह (ब्रह्मा) बना है। इनका नाम मैंने ब्रह्मा रखा है। सबका नाम बदल दिया क्योंकि संन्यास किया ना। शूद्र से ब्राह्मण बने तो नाम बदल लिया। बाप ने बहुत रमणीक नाम रखे हैं। तो अब तुम समझते हो, देखते हो वृक्षपति इस रथ पर बैठा है। उनका यह अकालतख्त है, इनका भी है। इस तख्त का वह लोन लेते हैं। उनको अपना तख्त तो मिलता नहीं। कहते हैं मैं इस रथ में विराजमान होता हूँ, पहचान देता हूँ। मैं तुम्हारा बाप हूँ सिर्फ जन्म-मरण में नहीं आता हूँ, तुम आते हो। अगर मैं भी आऊं तो तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान कौन बनायेंगे? बनाने वाला तो चाहिए ना इसलिए ही मेरा ऐसा पार्ट है। मुझे बुलाते भी हो हे पतित-पावन आओ। निराकार शिवबाबा को आत्मायें पुकारती हैं क्योंकि आत्माओं को दु:ख है। भारतवासी आत्मायें खास बुलाती हैं कि आकर पतितों को पावन बनाओ। सतयुग में तुम बहुत पवित्र सुखी थे, कभी भी पुकारते नहीं थे। तो बाप खुद कहते हैं तुमको सुखी बनाकर मैं फिर वानप्रस्थ में बैठ जाता हूँ। वहाँ मेरी दरकार ही नहीं। भक्ति मार्ग में मेरा पार्ट है फिर मेरा पार्ट आधाकल्प नहीं। यह तो बिल्कुल सहज है। इसमें किसका प्रश्न उठ नहीं सकता। गायन भी है दु:ख में सिमरण सब करें.......। सतयुग-त्रेता में भक्ति मार्ग होता ही नहीं। ज्ञान मार्ग भी नहीं कहेंगे। ज्ञान तो मिलता ही है संगम पर, जिससे तुम 21 जन्म प्रालब्ध पाते हो। नम्बरवार पास होते हैं। फेल भी होते हैं। तुम्हारी यह युद्ध चल रही है। तुम देखते हो जिस रथ पर बाप विराजमान है, वह तो जीत लेते हैं। फिर अनन्य बच्चे भी जीत पा लेते हैं जैसे कुमारका है, फलानी है, जरूर जीत पायेंगी। बहुतों को आपसमान बनाती हैं। तो बच्चों को यह बुद्धि में रखना है - यह बाजोली है। छोटे बच्चे भी यह समझ सकते हैं इसलिए बाबा कहते हैं बच्चों को भी सिखलाओ। उनको भी बाप से वर्सा लेने का हक है। जास्ती बात तो है नहीं। थोड़ा भी इस ज्ञान को जानने से ज्ञान का विनाश नहीं होता। स्वर्ग में तो जरूर आ जायेंगे। जैसे क्राइस्ट का स्थापन किया हुआ क्रिश्चि-यन धर्म कितना बड़ा है। यह देवी-देवता तो सबसे पहले और बड़ा धर्म है। जो दो युग चलता है तो जरूर उनकी संख्या भी बड़ी होनी चाहिए। परन्तु हिन्दू कहला दिया है। कहते भी हैं 33 करोड़ देवतायें। फिर हिन्दू क्यों कहते हैं! माया ने बुद्धि को बिल्कुल ही मार डाला है तो यह हाल हो गया है। बाप कहते हैं माया को जीतना कोई कठिन बात नहीं है। तुम हर कल्प जीत पाते हो। सेना हो ना। बाप मिला है इन विकारों रूपी रावण पर जीत पहनाने लिए।

तुम पर अभी बृहस्पति की दशा है। भारत पर ही दशा आती है। अभी सभी पर राहू की दशा है। बाप वृक्षपति आते हैं तो जरूर भारत पर बृहस्पति की दशा बैठेगी। इसमें सब कुछ आ जाता है। तुम बच्चे जानते हो हमको निरोगी काया मिलती है, वहाँ मृत्यु का नाम नहीं होता। अमरलोक है ना। ऐसे नहीं कहेंगे कि फलाना मरा। मरने का नाम नहीं, एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं। शरीर लेने और छोड़ने पर खुशी ही रहती है। ग़म का नाम नहीं। तुम पर अभी बृहस्पति की दशा है। सब पर तो बृहस्पति की दशा हो न सके। स्कूल में भी कोई पास होते हैं कोई नापास होते हैं। यह भी पाठशाला है। तुम कहेंगे हम राज-योग सीखते हैं, सिखलाने वाला कौन है? बेहद का बाप। तो कितनी खुशी होनी चाहिए, इसमें कोई और बात नहीं। पवित्रता की है मुख्य बात। लिखा हुआ भी है - हे बच्चों! देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो। यह गीता के अक्षर हैं। यह गीता एपीसोड चल रहा है। उसमें भी मनुष्यों ने अगड़म-बगड़म कर दिया है। आटे में नमक कुछ है। बात कितनी सहज है, जो बच्चा भी समझ जाए। फिर भी भूलते क्यों हो? भक्ति मार्ग में भी कहते थे बाबा आप आयेंगे तो हम आपके ही बनेंगे। दूसरा न कोई। हम आपके बन आपसे पूरा वर्सा लेंगे। बाप का बनते ही हैं वर्सा लेने लिए। एडाप्ट होते हैं, जानते हैं बाप से हमको क्या मिलेगा। तुम भी एडाप्ट हुए हो। जानते हो हम बाप से विश्व की बादशाही, बेहद का वर्सा लेंगे। और कोई में ममत्व नहीं रखेंगे। समझो कोई का लौकिक बाप भी है, उनके पास क्या होगा। करके लाख डेढ़ होगा। यह बेहद का बाप तुमको बेहद का वर्सा देते हैं।

तुम बच्चे आधाकल्प झूठी कथायें सुनते आये हो। अब सच्ची कथा बाप से सुनते हो। तो ऐसे बाप को याद करना चाहिए। ध्यान से सुनना चाहिए। हम सो का अर्थ भी समझाना है। वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा। यह 84 जन्मों की कहानी तो कोई बता न सके। बाप के लिए कहते हैं कुत्ते-बिल्ली सबमें हैं। बाप की ग्लानि करते हैं ना। यह भी ड्रामा में नूँध है। कोई पर दोष नहीं रखते हैं। ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। तुमको जो ज्ञान से देवता बनाते हैं तुम फिर उनको ही गालियां देने लग पड़ते हो। तुम ऐसे बाजोली खेलते हो। यह ड्रामा भी बना हुआ है। मैं फिर आकर तुम पर भी उपकार करता हूँ। जानता हूँ तुम्हारा भी दोष नहीं है, यह खेल है। कहानी तुमको समझाता हूँ, यह है सच्ची-सच्ची कथा जिससे तुम देवता बनते हो। भक्ति मार्ग में फिर ढेर कथायें बना दी हैं। एम आब्जेक्ट कुछ भी नहीं है। वह सब हैं गिरने के लिए। उस पाठशाला में विद्या पढ़ाते हैं फिर भी शरीर निर्वाह लिए एम है। पण्डित लोग अपने शरीर निर्वाह लिए बैठ कथा सुनाते हैं। लोग उनके आगे पैसे रखते जाते हैं, प्राप्ति कुछ भी नहीं। तुमको तो अभी ज्ञान रत्न मिलते हैं, जिससे तुम नई दुनिया के मालिक बनते हो। वहाँ हर चीज़ नई मिलेगी। नई दुनिया में सब कुछ नया होगा। हीरे जवाहर आदि सब नये होंगे। अब बाप कहते हैं और सब बातें तुम छोड़ बाजोली याद करो। फ़कीर लोग भी बाजोली खेलते तीर्थों पर जाते हैं। कोई पैदल भी जाते हैं। अभी तो मोटरें एरोप्लेन भी निकल पड़े हैं। गरीब तो उनमें जा न सकें। कोई बहुत श्रद्धा वाले होते हैं तो पैदल भी चले जाते हैं। दिन-प्रतिदिन साइंस से बहुत सुख मिलता जाता है। यह है अल्पकाल का सुख, गिरते हैं तो कितना नुकसान हो जाता है। इन चीज़ों में सुख है अल्प-काल के लिए। बाकी फाइनल मौत भरा हुआ है। वह है साइन्स। तुम्हारी है साइलेन्स। बाप को याद करने से सब रोग खत्म हो जाते हैं, निरोगी बन जाते हैं। अभी तुम समझते हो सतयुग में एवरहेल्दी थे। यह 84 का चक्र फिरता ही रहता है। बाप एक ही बार आकर समझाते हैं तुमने मेरी ग्लानि की है, अपने को चमाट मारी है। ग्लानि करते-करते तुम शूद्र बुद्धि बन पड़े हो। सिक्ख लोग भी कहते हैं जप साहेब तो सुख मिले अर्थात् मनमनाभव। अक्षर ही दो हैं, बाकी जास्ती माथा मारने की तो दर-कार ही नहीं है। यह भी बाप आकर समझाते हैं। अभी तुम समझते हो साहेब को याद करने से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता है। वह भी उसका रास्ता बताते हैं। परन्तु पूरा रास्ता तो जानते ही नहीं। सिमर-सिमर सुख पाओ। तुम बच्चे जानते हो बरोबर सतयुग में बीमारी आदि दु:ख की कोई बात भी नहीं होती। यह तो कॉमन बात है। उसको सतयुग गोल्डन एज कहा जाता है, इसको कलियुग आइरन एज कहा जाता है। सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। समझानी कितनी अच्छी है। बाजोली है, अभी तुम ब्राह्मण हो फिर देवता बनेंगे। यह बातें तुम भूल जाते हो। बाजोली याद हो तो यह ज्ञान सारा याद रहे। ऐसे बाप को याद कर रात को सो जाना चाहिए। फिर भी कहते हैं बाबा भूल जाते हैं। माया घड़ी-घड़ी भुला देती है। लड़ाई है तुम्हारी माया के साथ। फिर आधाकल्प तुम उन पर राज्य करते हो। बात तो सहज बताते हैं। नाम है ही सहज ज्ञान, सहज याद। बाप को सिर्फ याद करो, क्या तकल़ीफ देते हैं। भक्ति मार्ग में तो तुमने बहुत तकल़ीफ ली है। दीदार के लिए गला काटने को तैयार हो जाते हैं, काशी कलवट खाते हैं। हाँ, जो निश्चयबुद्धि होकर करते हैं उनके फिर विकर्म विनाश होते हैं। फिर नयेसिर शुरू होगा हिसाब-किताब। बाकी मेरे पास नहीं आते हैं। मेरी याद से विकर्म विनाश होते हैं, न कि जीवघात से। मेरे पास तो कोई आते नहीं। कितनी सहज बात है। यह बाजोली तो बुढ़ों को भी याद रहनी चाहिए, बच्चों को भी याद रहनी चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) वृक्षपति बाप से सुख-शान्ति-पवित्रता का वर्सा लेने के लिए अपने आपको अकालमूर्त्त आत्मा समझ बाप को याद करना है। ईश्वरीय बुद्धि बनानी है।

2) बाप से सच्ची कथा सुनकर दूसरों को सुनानी है। मायाजीत बनने के लिए आपसमान बनाने की सेवा करनी है, बुद्धि में रहे हम कल्प-कल्प के विजयी हैं, बाप हमारे साथ है।

वरदान:-
निर्बल से बलवान बन असम्भव को सम्भव करने वाली हिम्मतवान आत्मा भव

“हिम्मते बच्चे मददे बाप'' इस वरदान के आधार पर हिम्मत का पहला दृढ़ संकल्प किया कि हमें पवित्र बनना ही है और बाप ने पदमगुणा मदद दी कि आप आत्मायें अनादि-आदि पवित्र हो, अनेक बार पवित्र बनी हो और बनती रहेंगी। अनेक बार की स्मृति से समर्थ बन गये। निर्बल से इतने बलवान बन गये जो चैलेन्ज करते हो कि विश्व को भी पावन बनाकर ही दिखायेंगे, जिसको ऋषि मुनि महान आत्मायें समझती हैं कि प्रवृत्ति में रहते पवित्र रहना मुश्किल है, उसको आप अति सहज कहते हो।

स्लोगन:-
दृढ़ संकल्प करना ही व्रत लेना है, सच्चे भक्त कभी व्रत को तोड़ते नहीं है।