ओम् शान्ति।
बाप समझाते हैं बच्चों की बुद्धि में यह जरूर होगा कि बाबा बाप भी है, टीचर और
सुप्रीम गुरू भी है। इस याद में जरूर होंगे। यह याद कभी कोई सिखला न सके। कल्प-कल्प
बाप ही आकर सिखलाते हैं। वह ज्ञान सागर पतित-पावन है। यह अभी समझाया जाता है जबकि
ज्ञान का तीसरा नेत्र दिव्य बुद्धि मिली है। बच्चे भल समझते तो होंगे परन्तु बाप को
ही भूल जाते हैं तो टीचर-गुरू फिर कैसे याद आयेगा। माया बहुत ही प्रबल है जो बाप के
तीनों रूपों को ही भुला देती है। कहते हैं हम हार खा गये। यूँ तो कदम-कदम में पदम
हैं परन्तु हार खाने से पदम कैसे होंगे? देवताओं को ही पदम की निशानी देते हैं। यह
ईश्वर की पढ़ाई है। ऐसे मनुष्य की पढ़ाई कभी हो न सके। भल देवताओं की महिमा की जाती
है फिर भी ऊंच ते ऊंच है एक बाप। बाकी उनकी बड़ाई क्या है। आज गधाई, कल राजाई। अभी
तुम पुरूषार्थ कर यह बन रहे हो। जानते हो इस पुरूषार्थ में फेल बहुत होते हैं।
ज्ञान तो बहुत सहज है फिर भी इतने थोड़े पास होते हैं। क्यों? माया घड़ी-घड़ी भुला
देती है। बाप कहते हैं अपना चार्ट रखो परन्तु लिख नहीं पाते हैं। कहाँ तक बैठ लिखें।
अगर लिखते भी हैं तो कभी अप, कभी डाउन। हाइएस्ट चार्ट उन्हों का होता है जो कदम-कदम
श्रीमत पर चलते हैं। बाप तो समझेंगे इन बिचारों को लज्जा आती होगी। नहीं तो श्रीमत
अमल में लानी चाहिए। 1-2 परसेन्ट मुश्किल लिखते हैं। श्रीमत का इतना रिगार्ड नहीं
है। मुरली मिलती है तब भी नहीं पढ़ते हैं। उन्हों को दिल में लगता तो जरूर होगा -
बाबा कहते तो सच हैं, हम मुरली नहीं पढ़ते हैं तो औरों को क्या सिखलायेंगे।
बाप तो कहते हैं मुझे याद करो तो स्वर्ग के मालिक बनो, इसमें बाप भी आ गया,
पढ़ाने वाला भी आ गया। सद्गति दाता भी आ गया। थोड़े-थोड़े अक्षर में सारा ज्ञान आ
जाता है। यहाँ तुम आते ही हो इसको रिवाइज़ करने। भल बाप भी यही समझाते हैं क्योंकि
तुम खुद कहते हो हम भूल जाते हैं इसलिए यहाँ आते हैं रिवाइज करने। भल कोई करते भी
हैं तो भी रिवाइज नहीं होता। तकदीर में नहीं है तो तदबीर भी क्या करें। तदबीर कराने
वाला तो एक ही बाप है, इसमें कोई की पास-खातिरी भी नहीं हो सकती। उस पढ़ाई में तो
एकस्ट्रा पढ़ाने लिए टीचर को बुलाते हैं। यह तो तकदीर बनाने के लिए सबको एकरस पढ़ाते
हैं। एक-एक को अलग-अलग कहाँ तक पढ़ायेंगे - कितने ढेर बच्चे हैं! उस पढ़ाई में कोई
बड़े आदमी के बच्चे होते हैं, ऑफर करते हैं तो उनको एकस्ट्रा भी पढ़ाते हैं। टीचर
जानते हैं कि यह डल है, इसलिए पढ़ाकर उनको स्कॉलरशिप लायक बनाते हैं। यह टीचर ऐसा
नहीं करते हैं। यह तो सभी को एक जैसा पढ़ाते हैं। एकस्ट्रा पुरूषार्थ माना टीचर कुछ
कृपा करते हैं। भल ऐसे तो पैसे भी लेते हैं, खास टाइम दे पढ़ाते हैं, जिससे वह
जास्ती पढ़कर होशियार होते हैं। यह बाप तो सबको एक ही महामंत्र देते हैं मनमनाभव।
बस। बाप ही एक पतित-पावन है, उनकी ही याद से हम पावन बनेंगे। वह तुम बच्चों के हाथ
में है, जितना याद करेंगे उतना पावन बनेंगे। सारा मदार हर एक के पुरूषार्थ पर है।
वह तो तीर्थों पर यात्रायें करने जाते हैं। एक-दो को देखकर भी जाते हैं। तुम बच्चों
ने भी बहुत यात्रायें की हैं फिर क्या हुआ। नीचे ही गिरते आये हो। यात्रा किसलिए
है, इससे क्या मिलेगा! कुछ भी पता नहीं था। अभी तुम्हारी है याद की यात्रा। अक्षर
ही एक है - मनमनाभव। यह यात्रा तुम्हारी अनादि है। वह भी कहते हैं हम यह यात्रा
अनादि काल से करते आये हैं। अभी तुम ज्ञान सहित कहते हो कि हम कल्प-कल्प यह यात्रा
करते हैं। यह यात्रा खुद बाप आकर सिखलाते हैं। उन यात्राओं में कितने धक्के खाते
हैं। कितना शोर होता है। यह यात्रा है डेड साइलेन्स की। एक बाप को ही याद करना है,
इससे ही पावन बनना है। तुम्हें बाप ने यह सच्ची-सच्ची रूहानी यात्रा सिखलाई है। वह
यात्रायें तो तुम जन्म-जन्मान्तर करते ही रहे, फिर भी गाते हैं - चारों तरफ लगाये
फेरे...... भगवान से तो दूर ही रहे। यात्रा से आकर फिर विकारों में गिरते हैं तो
क्या फायदा। अभी तुम बच्चे जानते हो यह है पुरूषोत्तम संगमयुग, जबकि बाप आये हैं।
एक दिन सभी जान जायेंगे कि बाप आया हुआ है। भगवान आखरीन मिलेगा कैसे? यह तो कोई भी
नहीं जानते। कोई तो समझते हैं कुत्ते बिल्ली में मिलेगा। क्या इन सबमें भगवान मिलेगा?
कितना झूठ है। झूठ ही खाना, झूठ ही पीना, झूठ ही रात बिताना इसलिए यह है ही झूठ
खण्ड। सच खण्ड स्वर्ग को कहा जाता है। भारत ही स्वर्ग था। स्वर्ग में सब भारतवासी
थे, आज वही भारतवासी नर्क में हैं। यह तो तुम मीठे-मीठे बच्चे जानते हो हम बाप से
श्रीमत लेकर भारत को फिर से स्वर्ग बना रहे हैं। उस समय भारत में और कोई होता ही नहीं।
सारा विश्व पवित्र बन जाता है। अभी तो कितने ढेर के ढेर धर्म हैं। बाप सारे झाड़ की
नॉलेज सुनाते हैं। तुम्हें फिर से स्मृति दिलाते हैं। तुम सो देवता थे फिर वैश्य,
शूद्र बने। अभी तुम ब्राह्मण बने हो। यह अक्षर कभी कोई संन्यासी उदासी, विद्वान
द्वारा सुने हैं? यह हम सो का अर्थ बाप कितना सहज करके सुनाते हैं। हम सो माना मैं
आत्मा, हम आत्मा ऐसे-ऐसे चक्र लगाते हैं। वह तो कह देते हम आत्मा सो परमात्मा,
परमात्मा सो हम आत्मा। एक भी नहीं जिसको हम सो के अर्थ का पता हो। बाप कहते हैं यह
जो हम सो का मंत्र है, सदा बुद्धि में याद रहना चाहिए। नहीं तो चक्रवर्ती राजा कैसे
बनेंगे। वह तो 84 का अर्थ भी नहीं समझते हैं। भारत का ही उत्थान और पतन गाया हुआ
है। सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी.......।
अभी तुम बच्चों को सब कुछ मालूम पड़ गया है। एक बाप बीजरूप को ही ज्ञान का सागर
कहा जाता है। वह इस सृष्टि चक्र में नहीं आते हैं। ऐसे नहीं कि हम आत्मा सो परमात्मा
बन जाते हैं। नहीं, बाप आपसमान नॉलेजफुल बनाते हैं। आप समान गॉड नहीं बनाते, इन बातों
को अच्छी रीति समझना चाहिए तब ही बुद्धि में चक्र चल सकता है। तुम बुद्धि से समझ
सकते हो कि हम कैसे 84 के चक्र में आते हैं। इसमें समय, वर्ण, वंशावली सब आ जाते
हैं। इस नॉलेज से ही ऊंच ते ऊंच बनते हैं। नॉलेज होगी तो औरों को भी देंगे। उन
स्कूलों में जब इम्तहान होता है तो पेपर आदि भराते हैं। पेपर विलायत से आते हैं। जो
विलायत में पढ़ते होंगे, उनमें भी कोई बड़ा एज्यूकेशन मिनिस्टर होगा तो जांच करते
होंगे। यहाँ तुम्हारे पेपर्स की कौन जांच करेगा? तुम खुद ही करेंगे। खुद जो चाहिए
सो बनो। पढ़कर जो पद बाप से चाहो वह ले लो। जितना बाप को याद करेंगे, दूसरों की
सर्विस करेंगे, उतना ही फल मिलेगा। उन्हें सर्विस करने की फिक्र रहेगी कि राजधानी
स्थापन हो रही है तो प्रजा भी तो चाहिए ना। वहाँ वज़ीर आदि की दरकार नहीं रहती। यहाँ
तो जब अक्ल कम होता है तब वज़ीर की दरकार होती है। यहाँ बाप के पास भी राय लेने आते
हैं - बाबा पैसा है क्या करें? धन्धा कैसे करें? बाप कहते हैं यह दुनिया के धन्धे
आदि की बात यहाँ नहीं लाओ। हाँ, कोई दिलशिकस्त हो जाए तो थोड़ा बहुत आथत देने के
लिए बता देते हैं। लेकिन यह मेरा कोई धन्धा नहीं है। मेरा धन्धा है तुम्हें पतित से
पावन बनाकर विश्व का मालिक बनाने का। तुमको बाप से श्रीमत सदा लेते रहना है। अभी तो
सभी की है आसुरी मत। वहाँ तो सुखधाम है। वहाँ कभी ऐसे नहीं पूछेंगे कि राज़ी खुशी
हो? तबियत ठीक है? यह अक्षर यहाँ ही पूछा जाता है। वहाँ यह अक्षर होता ही नहीं।
दु:खधाम के कोई अक्षर ही नहीं। परन्तु बाप जानते हैं बच्चों में माया की प्रवेशता
होने के कारण बाप पूछ सकते हैं कि ठीक-ठाक राज़ी खुशी हो? मनुष्य यहाँ के अक्षर को
तो समझ न सकें। कोई मनुष्य पूछे तो कह सकते हो कि हम ईश्वर के बच्चे हैं, हमसे क्या
खुश खैराफत पूछते हो? परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की, अब वह मिल गया, अब
क्या परवाह। यह हमेशा याद रहना चाहिए। हम किसके बच्चे हैं - यह भी बुद्धि में ज्ञान
है। जब हम पावन बन जायेंगे फिर लड़ाई शुरू होगी। तुमसे पूछेंगे जरूर। तुम कहेंगे हम
तो सदैव राज़ी हैं। बीमार भी हो तो भी राज़ी हो। बाबा की याद में हो तो स्वर्ग से
भी यहाँ जास्ती राज़ी हो। जबकि स्वर्ग की बादशाही देने वाला बाप मिला है। हमको कितना
लायक बनाते हैं, फिर हमको क्या परवाह है! ईश्वर के बच्चों को किस चीज़ की परवाह। वहाँ
देवताओं को भी परवाह नहीं। देवताओं के ऊपर है ईश्वर। तो ईश्वर के बच्चों को क्या
परवाह हो सकती है। बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। बाबा हमारा टीचर, सतगुरू है। बाबा हमारे
ऊपर ताज रखते हैं। इसको इंगलिश में कहते हैं क्राउन प्रिन्स। बाप का ताज बच्चा
पहनेगा। तुम समझ सकते हो सतयुग में सुख ही सुख है। प्रैक्टिकल में वह सुख तब पायेंगे
जब वहाँ जायेंगे। वह तो तुम ही जानो। सतयुग में क्या होगा, यह शरीर छोड़ हम कहाँ
जायेंगे। अभी तुमको प्रैक्टिकल में बाप पढ़ा रहे हैं। तुम जानते हो सच-सच हम स्वर्ग
में जाते हैं। वह जो कहते हैं फलाना स्वर्ग में गया परन्तु उन्हें पता नहीं स्वर्ग
और नर्क किसको कहा जाता है। कल्प की आयु ही लाखों वर्ष लिख दी है। जन्म-जन्मान्तर
यह ज्ञान सुनते-सुनते गिरते आये। अभी तुम्हारी बुद्धि में है कि हम कहाँ से कहाँ
आकर गिरे हैं। सतयुग से गिरते ही आये हैं। अभी हम इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर पहुँचे
हैं। कल्प-कल्प बाप आते हैं पढ़ाने। बाप के पास तुम रहते हो ना। यही हमारा
सच्चा-सच्चा सतगुरू है, जो मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं। जैसे यह बाबा भी
सीखते हैं, ऐसे इनको देख तुम बच्चे भी सीखते हो। कदम-कदम पर सावधानी रखनी होती है।
मन्सा-वाचा-कर्मणा बहुत शुद्ध रहना है। अन्दर कोई भी गन्दगी नहीं होनी चाहिए। बाप
को घड़ी-घड़ी बच्चे भूल जाते हैं। बाप को भूलने से बाप की शिक्षा भी भूल जाते हैं।
हम स्टूडेन्ट हैं, यह भी भूल जाते हैं। है बहुत सहज। बाप की याद में ही करामात है।
ऐसी करामात और कोई भी बाप सिखला न सके। इस करामात से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते
हैं।
तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की
स्थापना की है, जो धर्म सतयुग और त्रेता, आधा-कल्प चलता है। फिर दूसरे धर्म वाले
बाद में वृद्धि को पाते हैं। जैसे क्राइस्ट आया, पहले तो बहुत थोड़े थे। जब बहुत हो
जाएं तब राजाई कर सकें। क्रिश्चियन धर्म अभी तक है। वृद्धि होती रहती है। वे जानते
हैं कि क्राइस्ट द्वारा हम क्रिश्चियन बने हैं। आज से 2 हजार वर्ष पहले क्राइस्ट आया
था। अब वृद्धि हो रही है। क्रिश्चियन कहेंगे हम क्राइस्ट के हैं। पहले एक क्राइस्ट
आया, फिर उनका धर्म स्थापन होता है, वृद्धि होती जाती है। एक से दो, दो से चार.....
फिर ऐसे वृद्धि होती जाती है। अभी देखो क्रिश्चियन का झाड़ कितना हो गया है।
फाउण्डेशन है देवी-देवता घराना, इसलिए ब्रह्मा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर कहा जाता
है। परन्तु भारतवासियों को यह भूल गया है कि हम परमपिता परमात्मा शिव के डायरेक्ट
बच्चे हैं।
क्रिश्चियन भी समझते हैं आदि देव होकर गये हैं, जिसके यह मनुष्य वंशावली हैं।
बाकी वह मानेंगे तो अपने क्राइस्ट को ही, क्राइस्ट को, बुद्ध को फादर समझते हैं।
सिजरा है ना। जैसे क्राइस्ट का यादगार क्रिश्चियन देश में है। वैसे तुम बच्चों ने
यहाँ तपस्या की है तब तुम्हारा भी यादगार यहाँ (आबू में) है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) डेड साइलेन्स की सच्ची-सच्ची रूहानी यात्रा करनी है। हम सो का मंत्र
सदा याद रखना है, तब चक्रवर्ती राजा बनेंगे।
2) मन्सा-वाचा-कर्मणा बहुत शुद्ध रहना है। अन्दर कोई भी गन्दगी न हो। कदम-कदम पर
सावधानी रखनी है। श्रीमत का रिगार्ड रखना है।