ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। इनका नाम तो शिव नहीं है ना। इनका नाम है ब्रह्मा और इन द्वारा बात
करते हैं शिव भगवानुवाच। यह तो बहुत बार समझाया है कोई मनुष्य को या देवता को अथवा
सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भगवान नहीं कहा जाता। जिनका कोई आकार वा
साकार चित्र है उनको भगवान नहीं कह सकते। भगवान कहा ही जाता है बेहद के बाप को।
भगवान कौन है, यह कोई को भी पता नहीं। नेती-नेती कहते हैं अर्थात् हम नहीं जानते।
तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो यथार्थ रीति जानते हैं। आत्मा कहती है - हे
भगवान। अब आत्मा तो है बिन्दी। तो बाप भी बिन्दी ही होगा। अब बाप बच्चों को बैठ
समझाते हैं। बाबा के पास कई ऐसे बच्चे हैं, जो यह भी नहीं समझते कि हम आत्मा कैसे
बिन्दी हैं! कोई तो अच्छी रीति समझते हैं, बाप को याद करते हैं। बेहद का बाप है
सच्चा हीरा। हीरे को बहुत अच्छी डिब्बी में डाला जाता है। कोई के पास अच्छे हीरे
होते हैं तो किसको दिखलाना हो तो सोने-चांदी की डिब्बी में डाल फिर दिखाते हैं। हीरे
को जौहरी ही जाने और कोई जान न सके। झूठा हीरा दिखायें तो भी किसको पता न पड़े। ऐसे
बहुत ठग जाते हैं। तो अब सच्चा बाप आया है, परन्तु झूठे भी ऐसे-ऐसे हैं जो मनुष्यों
को कुछ भी पता नहीं पड़ता। गाया भी जाता है सच की नांव हिले-डुले पर डूबे नहीं। झूठ
की नांव हिलती नहीं है, इनको कितना हिलाने की करते हैं। जो यहाँ इस नांव में बैठे
हुए हैं वह भी हिलाने की कोशिश करते हैं। ट्रेटर गाये जाते हैं ना। अब तुम बच्चे
जानते हो खिवैया बाप आया हुआ है। बागवान भी है। बाप ने समझाया है यह है कांटों का
जंगल। सभी पतित हैं ना। कितना झूठ है। सच्चे बाप को विरला कोई जानता है। यहाँ वाले
भी कई पूरा नहीं जानते, पूरी पहचान नहीं, क्योंकि गुप्त है ना। भगवान को याद तो सब
करते हैं, यह भी जानते हैं कि वह निराकार है। परमधाम में रहते हैं। हम भी निराकार
आत्मा हैं - यह नहीं जानते। साकार में बैठे-बैठे वह भूल गये हैं। साकार में
रहते-रहते साकार ही याद आ जाता है। तुम बच्चे अभी देही-अभिमानी बनते हो। भगवान को
कहा जाता है - परमपिता परमात्मा। यह समझना तो बिल्कुल सहज है। परमपिता अर्थात् परे
से परे रहने वाला परम आत्मा। तुमको कहा जाता है आत्मा। तुमको परम नहीं कहेंगे। तुम
तो पुनर्जन्म लेते हो ना। यह बातें कोई भी नहीं जानते। भगवान को भी सर्वव्यापी कह
देते हैं। भक्त भगवान को ढूँढते हैं, पहाड़ों पर, तीर्थो पर, नदियों पर भी जाते
हैं। समझते हैं नदी पतित-पावनी है, उसमें स्नान कर हम पावन बन जायेंगे। भक्ति मार्ग
में यह भी किसको पता नहीं पड़ता कि हमको चाहिए क्या! सिर्फ कह देते हैं मुक्ति
चाहिए, मोक्ष चाहिए क्योंकि यहाँ दु:खी होने के कारण तंग हैं। सतयुग में कोई मोक्ष
वा मुक्ति थोड़ेही मांगते हैं। वहाँ भगवान को कोई बुलाते नहीं, यहाँ दु:खी होने के
कारण बुलाते हैं। भक्ति से कोई का दु:ख हर नहीं सकते। भल कोई सारा दिन राम-राम बैठ
जपे, तो भी दु:ख हर नहीं सकते। यह है ही रावण राज्य। दु:ख तो गले से जैसे बांधा हुआ
है। गाते भी हैं दु:ख में सिमरण सब करें सुख में करे न कोई। इसका मतलब जरूर सुख था,
अब दु:ख है। सुख था सतयुग में, दु:ख है अभी कलियुग में इसलिए इसको कांटों का जंगल
कहा जाता है। पहला नम्बर है देह-अभिमान का कांटा। फिर है काम का कांटा।
अभी बाप समझाते हैं - तुम इन आंखों से जो कुछ देखते हो वह विनाश होने का है। अब
तुमको चलना है शान्तिधाम। अपने घर को और राजधानी को याद करो। घर की याद के साथ-साथ
बाप की याद भी जरूरी है क्योंकि घर कोई पतित-पावन नहीं है। तुम पतित-पावन बाप को
कहते हो। तो बाप को ही याद करना पड़े। वह कहते हैं मामेकम् याद करो। मुझे ही बुलाते
हो ना - बाबा, आकर पावन बनाओ। ज्ञान का सागर है तो जरूर मुख से आकर समझाना पड़े।
प्रेरणा तो नहीं करेंगे। एक तरफ शिव जयन्ती भी मनाते हैं, दूसरे तरफ फिर कहते
नाम-रूप से न्यारा है। नाम-रूप से न्यारी चीज़ तो कोई होती नहीं। फिर कह देते
ठिक्कर-भित्तर सबमें है। अनेक मत हैं ना। बाप समझाते हैं तुमको 5 विकारों रूपी रावण
ने तुच्छ बुद्धि बना दिया है इसलिए देवताओं के आगे जाकर नमस्ते करते हैं। कोई तो
नास्तिक होते हैं, किसको भी मानते नहीं। यहाँ बाप के पास तो आते ही हैं ब्राह्मण,
जिनको 5 हज़ार वर्ष पहले भी समझाया था। लिखा हुआ भी है परमपिता परमात्मा ब्रह्मा
द्वारा स्थापना करते हैं तो ब्रह्मा की सन्तान ठहरे। प्रजापिता ब्रह्मा तो मशहूर
है। जरूर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां भी होंगे। अभी तुम शूद्र धर्म से निकल ब्राह्मण
धर्म में आये हो। वास्तव में हिन्दू कहलाने वाले अपने असली धर्म को जानते नहीं हैं
इसलिए कभी किसको मानेंगे, कभी किसको मानेंगे। बहुतों के पास जाते रहेंगे।
क्रिश्चियन लोग कभी किसके पास जायेंगे नहीं। अभी तुम सिद्ध कर बतलाते हो - भगवान
बाप कहते हैं मुझे याद करो। एक दिन अखबारों में भी पड़ेगा कि भगवान कहते हैं - मुझे
याद करने से ही तुम पतित से पावन बन जायेंगे। जब विनाश नजदीक होगा तब अखबारों द्वारा
भी यह आवाज़ कानों पर पड़ेगा। अखबार में तो कहाँ-कहाँ से समाचार आते हैं ना। अभी भी
डाल सकते हो। भगवानुवाच - परमपिता परमात्मा शिव कहते हैं - मैं हूँ पतित-पावन, मुझे
याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। इस पतित दुनिया का विनाश सामने खड़ा है। विनाश
जरूर होना है, यह भी सबको निश्चय हो जायेगा। रिहर्सल भी होती रहेगी। तुम बच्चे जानते
हो जब तक राजधानी स्थापन नहीं हुई है तब तक विनाश नहीं होगा, अर्थ क्वेक आदि भी होनी
है ना। एक तरफ बॉम्ब्स फटेंगे दूसरे तरफ नैचुरल कैलमिटीज़ भी आयेंगी। अन्न आदि नहीं
मिलेगा, स्टीमर नहीं आयेंगे, फैमन पड़ जायेगा, भूख मरते-मरते खत्म हो जायेंगे। भूख
हड़ताल जो करते हैं वह फिर कुछ न कुछ जल वा माखी (शहद) आदि लेते रहते हैं। वजन में
हल्के हो जाते हैं। यह तो बैठे-बैठे अचानक अर्थ क्वेक होगी, मर जायेंगे। विनाश तो
जरूर होना है। साधू-सन्त आदि ऐसे नहीं कहेंगे कि विनाश होना है इसलिए राम-राम कहो।
मनुष्य तो भगवान को ही नहीं जानते हैं। भगवान तो खुद ही अपने को जाने, और न जाने
कोई। उनका टाइम है आने का। जो फिर इस बूढ़े तन में आकर सारे सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज सुनाते हैं। तुम बच्चे जानते हो अभी वापिस जाना है। इसमें
तो खुश होना चाहिए, हम शान्तिधाम जाते हैं। मनुष्य शान्ति ही चाहते हैं परन्तु
शान्ति कौन देवे? कहते हैं ना-शान्ति देवा. . . अब देवों का देव तो एक ही ऊंच ते
ऊंच बाप है। वह कहते हैं मैं तुम सबको पावन बनाकर ले जाऊंगा। एक को भी नहीं छोडूँगा।
ड्रामा अनुसार सबको जाना ही है। गाया हुआ है मच्छरों सदृश्य सब आत्मायें जाती हैं।
यह भी जानते हैं सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। अभी कलियुग अन्त में कितने
ढेर मनुष्य हैं फिर थोड़े कैसे होंगे? अभी है संगम। तुम सतयुग में जाने के लिए
पुरूषार्थ करते हो। जानते हो यह विनाश होगा। मच्छरों सदृश्य आत्मायें जायेंगी। सारा
झुण्ड चला जायेगा। सतयुग में बहुत थोड़े रहेंगे।
बाप कहते हैं कोई भी देहधारी को याद नहीं करो, देखते हुए हम नहीं देखते हैं। हम
आत्मा हैं, हम अपने घर जायेंगे। खुशी से पुराना शरीर छोड़ देना है। अपने शान्तिधाम
को याद करते रहेंगे तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। एक बाप को याद करना, इसमें ही
मेहनत है। मेहनत बिगर ऊंच पद थोड़ेही मिलेगा। बाप आते ही हैं तुमको नर से नारायण
बनाने के लिए। अब इस पुरानी दुनिया में कोई चैन नहीं है। चैन है ही शान्तिधाम और
सुखधाम में। यहाँ तो घर-घर में अशान्ति है, मार-पीट है। बाप कहते हैं अब इस छी-छी
दुनिया को भूलो। मीठे-मीठे बच्चों, मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग की स्थापना करने आया
हूँ, इस नर्क में तुम पतित बन पड़े हो। अब स्वर्ग में चलना है। अब बाप को और स्वर्ग
को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। शादी आदि में भल जाओ परन्तु याद बाप को
करो। नॉलेज सारी बुद्धि में रहनी चाहिए। भल घर में रहो, बच्चों आदि की सम्भाल करो
परन्तु बुद्धि में याद रखो - बाबा का फरमान है मुझे याद करो। घर छोड़ना नहीं है। नहीं
तो बच्चों की सम्भाल कौन करेगा? भक्त लोग घर में रहते हैं, गृहस्थ व्यवहार में रहते
हैं फिर भी भक्त कहा जाता है क्योंकि भक्ति करते हैं, घर-बार सम्भालते हैं। विकार
में जाते हैं तो भी गुरू लोग उनको कहते हैं श्रीकृष्ण को याद करो तो उन जैसा बच्चा
होगा। इन बातों में अब तुम बच्चों को नहीं जाना है क्योंकि तुमको अब सतयुग में जाने
की बातें सुनाई जाती हैं, जिसकी स्थापना हो रही है। वैकुण्ठ की स्थापना कोई
श्रीकृष्ण नहीं करते हैं, श्रीकृष्ण तो मालिक बना है। बाप से वर्सा लिया है। संगम
के समय ही गीता का भगवान आते हैं। गीता सुनाई बाप ने और बच्चे ने सुनी। भक्ति मार्ग
में फिर बाप के बदले बच्चे का नाम डाल दिया है। बाप को भूल गये हैं तो गीता भी
खण्डन हो गई। वह खण्डन की हुई गीता पढ़ने से क्या होगा। बाप तो राजयोग सिखलाकर गये,
इनसे श्रीकृष्ण सतयुग का मालिक बना। भक्ति मार्ग में सत्य नारायण की कथा सुनने से
कोई स्वर्ग का मालिक बनेगा क्या? न कोई इस ख्यालात से सुनते हैं, उससे फायदा कुछ नहीं
मिलता। साधू-सन्त आदि अपने-अपने मंत्र देते हैं, फोटो देते हैं। यहाँ वह कोई बात नहीं।
दूसरे सतसंगों में जायेंगे तो कहेंगे फलाने स्वामी की कथा है। किसकी कथा? वेदान्त
की कथा, गीता की कथा, भागवत की कथा। अभी तुम बच्चे जानते हो हमको पढ़ाने वाला कोई
देहधारी नहीं है, न कोई शास्त्र आदि कुछ पढ़ा हुआ है। शिवबाबा कोई शास्त्र पढ़ा है
क्या! पढ़ते हैं मनुष्य। शिवबाबा कहते हैं - मैं गीता आदि कुछ पढ़ा हुआ नहीं हूँ।
यह रथ जिसमें बैठा हूँ, यह पढ़ा हुआ है, मैं नहीं पढ़ा हुआ हूँ। मेरे में तो सारे
सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। यह रोज़ गीता पढ़ता था। तोते मुआफिक
कण्ठ कर लेते थे, जब बाप ने प्रवेश किया तो झट गीता छोड़ दी क्योंकि बुद्धि में आ
गया यह तो शिवबाबा सुनाते हैं।
बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग की बादशाही देता हूँ तो अब पुरानी दुनिया से
ममत्व मिटा दो। सिर्फ मामेकम् याद करो। यह मेहनत करनी है। सच्चे आशिक को घड़ी-घड़ी
माशूक की याद ही आती रहती है। तो अब बाप की याद भी ऐसी पक्की रहनी चाहिए। पारलौकिक
बाप कहते हैं - बच्चे, मुझे याद करो और स्वर्ग के वर्से को याद करो। इसमें और कुछ
भी आवाज़ करने, झांझ आदि बजाने की कोई दरकार नहीं। गीत भी कोई अच्छे-अच्छे आते हैं
तो बजाये जाते हैं, जिनका अर्थ भी तुमको समझाते हैं। गीत बनाने वाले खुद कुछ भी नहीं
जानते। मीरा भक्तिन थी, तुम तो अभी ज्ञानी हो। बच्चों से जब कोई काम ठीक नहीं होता
है तो बाबा कहते तुम तो जैसे भक्त हो। तो वह समझ जाते हैं कि बाबा ने हमको ऐसा क्यों
कहा? बाप समझाते हैं - बच्चे, अब बाप को याद करो, पैगम्बर बनो, मैसेन्जर बनो, सबको
यही पैगाम दो कि बाप और वर्से को याद करो तो जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे।
अब वापिस घर जाने का समय है। भगवान एक ही निराकार है, उनको अपनी देह है नहीं। बाप
ही अपना परिचय बैठ देते हैं। मनमनाभव का मंत्र देते हैं। साधू संन्यासी आदि ऐसा कभी
नहीं कहेंगे कि अब विनाश होना है, बाप को याद करो। बाप ही ब्राह्मण बच्चों को याद
दिलाते हैं। याद से हेल्थ, पढ़ाई से वेल्थ मिलेगी। तुम काल पर जीत पाते हो। वहाँ कभी
अकाले मृत्यु नहीं होता। देवताओं ने काल पर विजय पाई हुई है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो बाप द्वारा भक्त का टाइटिल मिले।
पैगम्बर बन सबको बाप और वर्से को याद करने का पैगाम देना है।
2) इस पुरानी दुनिया में कोई चैन नहीं है, यह छी-छी दुनिया है इसे भूलते जाना
है। घर की याद के साथ-साथ पावन बनने के लिए बाप को भी जरूर याद करना है।