ओम् शान्ति।
बच्चे दो तरफ से कमाई कर रहे हैं। एक तरफ है याद की यात्रा से कमाई और दूसरी तरफ है
84 के चक्र के ज्ञान का सिमरण करने से कमाई। इसको कहा जाता है डबल आमदनी और अज्ञान
काल में होती है अल्पकाल क्षण भंगुर सिंगल आमदनी। यह तुम्हारे याद की यात्रा की
आमदनी बहुत बड़ी है। आयु भी बड़ी हो जाती है, पवित्र भी बनते हो। सभी दु:खों से छूट
जाते हो। बहुत बड़ी आमदनी है। सतयुग में आयु भी बड़ी हो जाती है। दु:ख का नाम नहीं
क्योंकि वहाँ रावण राज्य ही नहीं। अज्ञान काल में पढ़ाई का अल्पकाल का सुख रहता है
और दूसरा पढ़ाई का सुख, शास्त्र पढ़ने वालों को मिलता है। उनसे फालोअर्स को कुछ
फायदा नहीं। फालोअर्स तो हैं भी नहीं क्योंकि वह तो न ड्रेस आदि बदलते, न घरबार
छोड़ते तो फालोअर्स कैसे कह सकते! वहाँ तो शान्ति, पवित्रता सब है। यहाँ अपवित्रता
के कारण घर-घर में कितनी अशान्ति होती है। तुमको मत मिलती है ईश्वर की। अभी तुम अपने
बाप को याद करो। अपने को ईश्वरीय गवर्मेन्ट समझो। परन्तु तुम हो गुप्त। दिल में
कितनी खुशी होनी चाहिए। अभी हम हैं श्रीमत पर। उनकी शक्ति से सतोप्रधान बन रहे हैं।
यहाँ तो कोई राज्य-भाग्य लेना नहीं है। हमारा राज्य-भाग्य होता ही है नई दुनिया
में। अभी उसका मालूम पड़ा है। इन लक्ष्मी-नारा-यण के 84 जन्मों की कहानी तुम बता
सकते हो। भल कोई भी मनुष्य मात्र हो, कैसा भी कोई पढ़ाने वाला हो परन्तु एक भी ऐसे
कह नहीं सकेंगे कि आओ तो हम इन्हों के 84 जन्म की कहानी बतायें। तुम्हारी बुद्धि
में अब स्मृति रहती है, विचार सागर मंथन भी करते हो।
अब तुम हो ज्ञान सूर्यवंशी। फिर सतयुग में कहा जायेगा विष्णु वंशी। ज्ञान सूर्य
प्रगटा.... इस समय तुम्हें ज्ञान मिल रहा है ना। ज्ञान से ही सद्गति होती है।
आधाकल्प ज्ञान चलता है फिर आधाकल्प अज्ञान हो जाता है। यह भी ड्रामा की नूँध है।
तुम अभी समझदार बने हो। जितना-जितना तुम समझदार बनते हो औरों को भी आपसमान बनाने का
पुरूषार्थ करते हो। तुम्हारा बाप रहमदिल, कल्याणकारी है तो बच्चों को भी बनना है।
बच्चे कल्याणकारी न बनें तो उनको क्या कहेंगे? गायन भी है ना - “हिम्मते बच्चे, मददे
बाप, यह भी जरूर चाहिए। नहीं तो वर्सा कैसे पायेंगे। सर्विस अनुसार तो वर्सा पाते
हो, ईश्वरीय मिशन हो ना। जैसे क्रिश्चियन मिशन, इस्लामी मिशन होती है, वह अपने धर्म
को बढ़ाते हैं। तुम अपने ब्राह्मण धर्म और दैवी धर्म को बढ़ाते हो। ड्रामा अनुसार
तुम बच्चे जरूर मददगार बनेंगे। कल्प पहले जो पार्ट बजाया था वह जरूर बजायेंगे। तुम
देख रहे हो हर एक अपना उत्तम, मध्यम, कनिष्ट पार्ट बजा रहे हैं। सबसे उत्तम पार्ट
वह बजाते हैं, जो उत्तम बनाने वाला है। तो सभी को बाप का परिचय देना है और आदि,
मध्य, अन्त का राज़ समझाना है। ऋषि-मुनि आदि भी नेती-नेती कहते गये। और फिर कह देते
सर्वव्यापी है, और कुछ नहीं जानते। ड्रामा-अनुसार आत्मा की बुद्धि भी तमोप्रधान बन
जाती है। शरीर की बुद्धि नहीं कहेंगे। आत्मा में ही मन-बुद्धि है। यह अच्छी रीति
समझकर और फिर बच्चों को चिन्तन करना है। फिर समझाना होता है। वो लोग शास्त्र आदि
सुनाने के लिए कितने दुकान निकाल बैठे हैं। तुम्हारी भी दुकान है। बड़े-बड़े शहरों
में बड़े दुकान चाहिए। बच्चे जो तीखे होते हैं, उनके पास खजाना बहुत रहता है। इतना
खजाना नहीं है तो कोई को दे भी नहीं सकते हैं! धारणा नम्बरवार होती है। बच्चों को
अच्छी रीति धारणा करनी है जो किसी को समझा सकें। बात कोई बड़ी नहीं है, सेकण्ड की
बात है - बाप से वर्सा लेना। तुम आत्मायें बाप को पहचान गये हो तो बेहद के मालिक हो
गये। मालिक भी नम्ब-रवार होते हैं। राजा भी मालिक तो प्रजा भी कहेगी हम भी मालिक
हैं। यहाँ भी सब कहते हैं ना हमारा भारत। तुम भी कहते हो श्रीमत पर हम अपना स्वर्ग
स्थापन कर रहे हैं, फिर स्वर्ग में भी राजधानी है। अनेक प्रकार के दर्जे हैं।
पुरूषार्थ करना चाहिए ऊंच पद पाने का। बाप कहते हैं जितना अभी पुरूषार्थ कर पद
पायेंगे, वही कल्प-कल्पान्तर के लिए होगा। इम्तहान में कोई की कम मार्क्स हो जाती
हैं तो फिर हार्टफेल भी हो जाते हैं। यह तो है बेहद की बात। पूरा पुरूषार्थ नहीं
किया तो फिर दिलशिकस्त भी होंगे, सजा भी खानी पड़ेगी। उस समय कर ही क्या सकेंगे।
कुछ भी नहीं। आत्मा क्या करेगी! वो लोग तो जीवघात करते, डूब मरते हैं। इसमें घात आदि
की बात नहीं। आत्मा का तो घात होता नहीं, वह तो अविनाशी है। बाकी शरीर का घात होता
है, जिससे तुम पार्ट बजाते हो। अभी तुम पुरूषार्थ करते हो, यह पुरानी जुत्ती उतार
हम नई दैवी जुत्ती ले लेवें। यह कौन कहते हैं? आत्मा। जैसे बच्चे कहते हैं ना - हमको
नया कपड़ा दो। हम आत्माओं को भी नया कपड़ा चाहिए। बाप कहते हैं तुम्हारी आत्मा नई
बने तो शरीर भी नया चाहिए तब शोभा है। आत्मा के पवित्र होने से 5 तत्व भी नये बन
जाते हैं। 5 तत्वों का ही शरीर बनता है। जब आत्मा सतोप्रधान है तो शरीर भी
सतोप्रधान मिलता है। आत्मा तमोप्रधान तो शरीर भी तमोप्रधान। अब सारी दुनिया के पुतले
तमोप्रधान हैं, दिन-प्रतिदिन दुनिया पुरानी होती जाती, गिरती जाती है। नये से पुरानी
तो हर एक चीज़ होती है। पुरानी हो फिर डिस्ट्रॉय होती है, यह तो सारी सृष्टि का
सवाल है। नई दुनिया को सतयुग, पुरानी को कलियुग कहा जाता है। बाकी इस संगमयुग का तो
किसको भी पता नहीं। तुम ही जानते हो यह पुरानी दुनिया बदलनी है।
अब बेहद का बाप जो बाप, टीचर, गुरू है, उनका फ़रमान है कि पावन बनो। काम जो महाशत्रु
है, उन पर जीत पहन जग-तजीत बनो। जगत जीत अर्थात् विष्णु वंशी बनो। बात एक ही है। इन
अक्षरों का अर्थ तुम जानते हो। बच्चे जानते हैं हमको पढ़ाने वाला है बाप। पहले तो
यह पक्का निश्चय चाहिए। बच्चा बड़ा होता है तो बाप को याद करना पड़े। फिर टीचर को
फिर गुरू को याद करना पड़े। भिन्न-भिन्न समय पर तीनों को याद करेंगे। यहाँ तो तुमको
तीनों ही इकट्ठे एक ही टाइम मिले हैं। बाप, टीचर, गुरू एक ही है। वो लोग तो
वानप्रस्थ का भी अर्थ नहीं समझते। वानप्रस्थ में जाना है इसलिए समझते हैं गुरू करना
चाहिए। 60 वर्ष के बाद गुरू करते हैं। यह कायदा अभी ही निकला है। बाप कहते हैं -
इनके बहुत जन्मों के अन्त में वानप्रस्थ अवस्था में मैं इनका सतगुरू बनता हूँ। बाबा
भी कहते हैं 60 वर्ष बाद सतगुरू किया है जबकि निर्वाणधाम जाने का समय है। बाप आते
ही हैं सबको निर्वाणधाम में ले जाने। मुक्तिधाम जाकर फिर पार्ट बजाने लिए आना है।
वानप्रस्थ अवस्था तो बहुतों की होती है, फिर गुरू करते हैं। आजकल तो छोटा बच्चा हुआ,
उनको भी गुरू करा देते हैं फिर गुरू को दक्षिणा मिल जायेगी। क्रिश्चियन लोग
क्रिश्चिनाइज़ कराने गोद में जाकर देते हैं। परन्तु वह कोई निर्वाणधाम में जाते नहीं।
यह सब राज़ बाप समझाते हैं, ईश्वर का अन्त तो ईश्वर ही बतायेंगे। शुरू से लेकर
बतलाते आये हैं। अपना अन्त भी देते हैं और सृष्टि का ज्ञान भी देते हैं। ईश्वर खुद
आकर आदि सनातन देवी-देवता अर्थात् स्वर्ग की स्थापना करते हैं, इनका नाम भारत ही चला
आता है। गीता में सिर्फ श्रीकृष्ण का नाम डाल कितना रोला कर दिया है। यह भी ड्रामा
है, हार और जीत का खेल है। इसमें हार-जीत कैसे होती है, यह बाप बिगर तो कोई बता न
सके। यह लक्ष्मी-नारायण भी नहीं जानते कि हमको फिर हार खानी है। यह तो सिर्फ तुम
ब्राह्मण ही जानते हो। शूद्र भी नहीं जानते। बाप ही आकर तुमको ब्राह्मण से देवता
बनाते हैं। हम सो का अर्थ बिल्कुल अलग है। ओम् का अर्थ अलग है। मनुष्य तो बिगर अर्थ
जो आया वह कह देते हैं। अभी तुम जानते हो कि कैसे नीचे गिरते हैं फिर चढ़ते हैं। यह
ज्ञान अभी तुम बच्चों को मिलता है। ड्रामा अनुसार फिर कल्प बाद बाप ही आकर बतायेंगे।
जो भी धर्म स्थापक हैं, वह आकर फिर अपना धर्म अपने समय पर स्थापन करेंगे। नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार नहीं कहेंगे। नम्बरवार समय अनुसार आकर अपना-अपना धर्म स्थापन करते
हैं। यह एक बाप ही समझाते हैं, मैं कैसे ब्राह्मण फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी
डिनायस्टी स्थापन करता हूँ? अभी तुम हो ज्ञान सूर्यवंशी जो फिर विष्णुवंशी बनते हो।
अक्षर बड़ी खबर-दारी से लिखने होते हैं, जो कोई भूल न निकाले।
तुम जानते हो यह ज्ञान का एक-एक महावाक्य रत्न, हीरे हैं। बच्चों में समझाने की
बहुत रिफाइननेस चाहिए। कोई अक्षर भूल से निकल जाए तो फट से राइट कर समझाना चाहिए।
सबसे कड़ी भूल है बाप को भूलना। बाप फ़रमान करते हैं मामेकम् याद करो। यह भूलना नहीं
चाहिए। बाप कहते हैं तुम बहुत पुराने आशिक हो। तुम सब आशिकों का एक माशूक है। वह तो
एक-दो की शक्ल पर आशिक-माशूक होते हैं। यहाँ तो माशूक है एक। वह एक कितने आशिकों को
याद करेंगे। अनेकों को एक को याद करना तो सहज है, एक कैसे अनेकों को याद करेंगे!
बाबा को कहते हैं बाबा हम आपको याद करते हैं। आप हमको याद करते हैं? अरे, याद तुमको
करना है, पतित से पावन होने के लिए। मै थोड़ेही पतित हूँ, जो याद करूँ। तुम्हारा
काम है याद करना क्योंकि पावन बनना है। जो जितना याद करते हैं और अच्छी रीति सर्विस
भी करते हैं, उनको धारणा होती है। याद की यात्रा बहुत डिफीकल्ट है, इसमें ही युद्ध
चलती है। बाकी ऐसे नहीं कि 84 का चक्र तुम भूल जायेंगे। यह कान सोने का बर्तन चाहिए।
जितना तुम याद करेंगे उतनी धारणा अच्छी होगी, इसमें ताकत रहेगी इसलिए कहते हैं याद
का जौहर चाहिए। ज्ञान से कमाई है। याद से सर्व शक्तियां मिलती हैं नम्बरवार। तलवारों
में भी नम्बरवार जौहर का फ़र्क होता है। वह तो हैं स्थूल बातें। मूल बात बाप एक ही
कहते हैं - अल्फ को याद करो। दुनिया के विनाश के लिए यह एक एटॉमिक बॉम जाकर रहेगा
और कुछ नहीं, उसमें न सेना चाहिए न कैप्टन। आजकल तो ऐसा बनाया है, जो वहाँ बैठे-बैठे
बॉम छोड़ेंगे। तुम यहाँ बैठे-बैठे राज्य लेते हो, वह वहाँ बैठे सबका विनाश करा देंगे।
तुम्हारा ज्ञान और योग, उनका मौत का सामान इक्वल हो जाता है। यह भी खेल है। एक्टर्स
तो सब हैं ना। भक्ति मार्ग पूरा हुआ है, बाप ही आकर अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त
का परिचय देते हैं। अब बाप कहते हैं व्यर्थ की बातें तुम नहीं सुनो इसलिए हियर नो
ईविल.......इसका चित्र बनाया है। आगे बन्दर का बनाते थे, अब मनुष्य का बनाते हैं
क्योंकि सूरत मनुष्य की है परन्तु सीरत बन्दर जैसी है, इसलिए भेंट करते हैं। अभी
तुम किसकी सेना हो? शिवबाबा की। बन्दर से तुमको मन्दिर लायक बना रहे हैं। कहाँ की
बात कहाँ ले गये हैं। बन्दर कोई पुल आदि बांध सकता है क्या? यह सब हैं दन्त कथायें।
कभी भी कोई पूछे शास्त्रों को तुम मानते हो? बोलो वाह! ऐसा कौन होगा जो शास्त्रों
को नहीं मानेगा। हम सबसे जास्ती मानते हैं। तुम भी इतना नहीं पढ़ते हो जितना हम
पढ़ते हैं। आधाकल्प हमने पढ़े हैं। स्वर्ग में शास्त्र, भक्ति की कोई चीज़ नहीं होती।
कितना सहज बाप समझाते हैं। फिर भी आप समान बना नहीं सकते। बच्चों आदि के बन्धन के
कारण कहाँ निकल नहीं सकते। यह भी ड्रामा ही कहेंगे। बाप कहते हैं हफ्ता 15 दिन
कोर्स ले फिर आपसमान बनाने लग जाना चाहिए। जो बड़े-बड़े शहर हैं, कैपीटल में घेराव
डालना चाहिए तो फिर उनका आवाज़ निकलेगा। बड़े आदमी बिगर कोई का आवाज़ निकल न सके।
जोर से घेराव डालो तो फिर बहुत आयेंगे। बाप के डायरेक्शन मिलते हैं ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान और योग से अपनी बुद्धि को रिफाइन बनाना है। बाप को भूलने की
भूल कभी नहीं करनी है। आशिक बन माशूक को याद करना है।
2) बन्धनमुक्त बन आप समान बनाने की सेवा करनी है। ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ करना
है। पुरूषार्थ में कभी दिलशिकस्त नहीं बनना है।