28-09-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 15.02.2007 "बापदादा" मधुबन
अलबेलेपन, आलस्य और
बहानेबाजी की नींद से जागना ही शिवरात्रि का सच्चा जागरण है
आज बापदादा विशेष अपने
चारों ओर के अति लाडले, अति सिकीलधे, परमात्म प्यार के पात्र बच्चों से मिलने और
विचित्र बाप बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं। आप सभी भी आज विशेष विचित्र बर्थ डे
मनाने आये हो ना! यह बर्थ डे सारे कल्प में किसी का नहीं होता। कभी भी नहीं सुना
होगा कि बाप और बच्चे का एक ही दिन में बर्थ डे हो। तो आप सभी बाप का बर्थ डे मनाने
आये हो वा बच्चों का भी मनाने आये हो? क्योंकि सारे कल्प में परमात्म बाप और
परमात्म बच्चों का इतना अथाह प्यार है जो जन्म भी साथ-साथ है। बाप को अकेला विश्व
परिवर्तन का कार्य नहीं करना है, बच्चों के साथ-साथ करना है। यह अलौकिक साथ रहने का
प्यार, साथी बनने का प्यार इस संगम पर ही अनुभव करते हो। बाप और बच्चों का इतना गहरा
प्यार है, जन्म भी साथ है और रहते भी कहाँ हो? अकेले या साथ में? हर एक बच्चा
उमंग-उत्साह से कहते हैं कि हम बाप के साथ कम्बाइन्ड हैं। कम्बाइन्ड रहते हो ना!
अकेले तो नहीं रहते हो ना! साथ जन्म है, साथ रहते हैं और आगे भी क्या वायदा है? साथ
है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे अपने स्वीट होम में। इतना प्यार कोई और बाप बच्चों का
देखा है? कोई भी बच्चा हो, कहाँ भी है, कैसा भी है, लेकिन साथ है और साथ ही चलने
वाले हैं। तो ऐसा यह विचित्र और प्यारे ते प्यारा जन्म दिन मनाने आये हैं। चाहे
सम्मुख मना रहे हो, चाहे देश विदेश में चारों ओर एक ही समय साथ-साथ मना रहे हैं।
बापदादा चारों ओर देख
रहे हैं कि कैसे सभी बच्चे उमंग-उत्साह से दिल ही दिल में वाह बाबा! वाह बाबा! वाह
बर्थ डे! का गीत गा रहे हैं। अगर स्विच खोलते हैं तो चारों ओर के आवाज, दिल के आवाज,
उमंग-उत्साह के आवाज बापदादा के कानों में सुनाई दे रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों का
उत्साह देख बच्चों को भी अपने दिव्य जन्म की पदम-पदम-पदमगुणा बधाईयां दे रहे हैं।
वास्तव में उत्सव का अर्थ ही है उमंग-उत्साह में रहना। तो आप सभी उत्साह से यह
उत्सव मना रहे हैं। नाम भी भक्तों ने शिवरात्रि रखा है।
आज बापदादा उस भक्त
आत्मा को मुबारक दे रहे थे, जिसने आपके इस विचित्र जन्म दिन मनाने की कॉपी बहुत
अच्छी की है। आप ज्ञान और प्रेम रूप में मनाते और उस भगत आत्मा ने भावना, श्रद्धा
के रूप में आपके मनाने की कॉपी की है। तो आज उस बच्चे को मुबारक दे रहे थे कि कॉपी
करने में अच्छा पार्ट बजाया है। देखो हर बात को कॉपी की है। कॉपी करने का भी तो
अक्ल चाहिए ना! मुख्य बात तो इस दिन भक्त लोग भी व्रत रखते हैं, वह व्रत खाने पीने
का रखते हैं, भावना में वृत्ति को श्रेष्ठ बनाने के लिए व्रत रखते हैं, उन्हों को
हर वर्ष रखना पड़ता और आपने क्या व्रत लिया? एक ही बार व्रत लेते हो, वर्ष-वर्ष
व्रत नहीं लेते। एक ही बार व्रत लिया पवित्रता का। सभी ने पवित्रता का व्रत लिया
है, पक्का लिया है? जिन्होंने पक्का लिया है वह हाथ उठाओ, पक्का, थोड़ा भी कच्चा नहीं।
पक्का? अच्छा। दूसरा भी प्रश्न है, अच्छा व्रत तो लिया मुबारक हो। लेकिन अपवित्रता
के मुख्य पांच साथी हैं, ठीक है ना! कांध हिलाओ। अच्छा पांचों का व्रत लिया है? या
दो तीन का लिया है? क्योंकि जहाँ पवित्रता है वहाँ अगर अंश मात्र भी अपवित्रता है
तो क्या सम्पूर्ण पवित्र आत्मा कहा जायेगा? और आप ब्राह्मण आत्माओं की तो पवित्रता
ब्राह्मण जन्म की प्रॉपर्टी है, पर्सनैलिटी है, रॉयल्टी है। तो चेक करो - कि मुख्य
पवित्रता के ऊपर तो अटेन्शन है लेकिन सम्पूर्ण पवित्रता के लिए और भी जो साथी हैं,
उसको हल्का तो नहीं छोड़ा है? छोटों से प्यार रखा है और बड़े को ठीक किया है। तो
क्या बाप की छुट्टी है कि और जो चार हैं उन्हें भल साथी बनाओ? पवित्रता सिर्फ
ब्रह्मचर्य को नहीं कहा जाता लेकिन ब्रह्मचर्य के साथ ब्रह्माचारी बनना अर्थात्
पवित्रता का व्रत पालन किया। कई बच्चे रूहरिहान में कहते हैं, रूहरिहान तो सभी करते
हैं ना। तो बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं। कहते हैं बाबा मुख्य तो अच्छा है ना,
बाकी छोटे-छोटे ऐसे कभी मन्सा संकल्प में आ जाते हैं। मन्सा में आते हैं, वाचा में
नहीं आते और मन्सा को तो कोई देखता नहीं है। और कोई फिर कहते हैं कि छोटे छोटे बाल
बच्चों से प्यार होता है ना। तो इन चारों से भी प्यार हो जाता है। क्रोध आ जाता है,
मोह आ जाता है, चाहते नहीं हैं आ जाता है। बापदादा कहते हैं कोई भी आता है तो आपने
दरवाजा खोला है तब आता है ना! तो दरवाजा खोला क्यों है? कमजोरी का दरवाजा खोला है,
तो कमजोरी का दरवाजा खोलना अर्थात् आह्वान करना।
तो आज के दिन बाप का
और अपना बर्थ डे तो मना रहे हो लेकिन जो जन्मते व्रत का वायदा किया है। पहला-पहला
वरदान बाप ने क्या दिया, याद है? बर्थ डे का वरदान याद है? क्या दिया? पवित्र भव,
योगी भव। सभी को वरदान याद है ना? याद है भूल तो नहीं गये? पवित्र भव का वरदान एक
का नहीं दिया, पांचों का दिया। तो आज बापदादा क्या चाहते हैं? बर्थ डे मनाने आये
हो, बाप का भी मनाने आये हो ना। शिवरात्रि मनाने आये हो, तो बर्थ डे की सौगात लाये
हो या खाली हाथ आये हैं? 70 वर्ष स्थापना के समाप्त हो रहे हैं। याद है ना! 70 वर्ष
सोचो, चाहे आप पीछे आये हो लेकिन स्थापना के तो 70 वर्ष हो गये ना! चाहे अभी आये
हो, लेकिन स्थापना के कर्तव्य में आप सभी साथी हो ना! साथी तो हो ना! चाहे आज पहले
बारी आये हैं। जो मधुबन में पहली बार मिलने आये हैं, वह लम्बा हाथ उठाओ। अच्छा। आप
सभी को चाहे अभी एक साल हुआ है, दो साल हुआ है लेकिन अपने को क्या कहलाते हो?
ब्रह्माकुमारी, ब्रह्माकुमार या पुरुषार्थी कुमार कुमारी? क्या कहलाते हो? कोई अपने
को पुरुषार्थी कुमार कहते हैं क्या! ब्रह्माकुमार का साइन लगाते हो ना! सभी बी.के.
लिखते हो या पी.के. लिखते हो? पुरुषार्थी कुमार। तो वायदा क्या है? साथी रहेंगे,
साथ चलेंगे, कम्बाइण्ड रहेंगे, तो कम्बाइण्ड में समानता तो चाहिए ना!
आज के 70 वर्ष का
उत्सव तो मनाते आते हो। बापदादा ने देखा है, जो भी ज़ोन सेवा का टर्न देते हैं वह
70 वर्ष का सम्मान समारोह मनाते हैं। सभी मनाते हैं ना! बस सिर्फ छोटी-छोटी गिफ्ट
दे देते हैं, बस। लेकिन आज एक तो बर्थ डे है, मनाने आये हो ना, पक्का है ना? और
दूसरा 70 वर्ष समाप्त हुए, तो सम्मान समारोह भी मना रहे हो, बर्थ डे भी मना रहे हो,
उसमें सौगात क्या देंगे? ट्रे दे देंगे, चादर दे देंगे? क्या सौगात लाये हो? चलो
चांदी का गिलास दे देंगे! लेकिन आज के दिन बापदादा की शुभ आशा है अपने आशाओं के
दीपक बच्चों प्रति। वह शुभ आशा कौन सी है, बतायें? बताना वा सुनना माना क्या? एक
कान से सुनना और दिल में समा देना, ऐसे? निकालेंगे तो नहीं, इतना तो नहीं है लेकिन
दिल में ही समा देते हैं। तो आज के दिन वह शुभ आशा बतायें, पहली लाइन वाले बोलो,
कांध हिलाओ, टीचर्स कांध हिलाओ। अच्छा झण्डा हिला रहे हैं। डबल फारेनर्स बतायें?
अपने को बांधना पड़ेगा, तभी कहो हाँ, ऐसे ही नहीं कहो, क्योंकि 70 वर्ष तो बापदादा
ने भी अलबेलेपन, आलस्य और बहाने बाजी के खेल देख लिये। चलो 70 नहीं तो 50, 40, 30,
20 वर्ष हुए, लेकिन इतना समय तो यह तीन खेल बच्चों के खूब देखे। तो आज के दिन भक्त
जागरण करते हैं, सोते नहीं हैं, तो आप बच्चों का जागरण कौन सा है? कौन सी नींद में
घड़ी-घड़ी सो जाते हो, अलबेलापन, आलस्य और बहाने बाजी की नींद में आराम से सो जाते
हैं। तो आज बापदादा इन तीन बातों का हर समय जागरण देखने चाहता है। कभी भी देखो
क्रोध आता है, अभिमान आता है, लोभ आता है, कारण क्या बताते हैं? बापदादा को एक
ट्रेड-मार्क दिखाई देती है, कोई भी बात होती है ना! तो क्या कहते हैं, यह तो चलता
है..., पता नहीं किसने चलाया है? लेकिन शब्द यही कहते हैं - यह तो होता ही है, यह
तो चलता ही है। यह कोई नई बात थोड़ेही है, यह होता ही है। यह क्या है? अलबेलापन नहीं
है? यह भी तो करता है, मैजॉरिटी क्रोध से बचने के लिए यह किया तब हुआ। मैंने रांग
किया, वह नहीं कहेंगे। इसने यह किया ना, यह हुआ ना, इसलिए हुआ। दूसरे पर दोष रखना
बहुत सहज है। यह ना करे तो नहीं होगा। और बाप ने जो कहा वह नहीं होगा। वह करे तो
होगा, बाप की श्रीमत पर क्या क्रोध को नहीं खत्म कर सकते? आजकल क्रोध का बच्चा रोब,
रोब भी भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। तो क्या आज चार का भी व्रत लेंगे? जैसे पहली बात
का विशेष दृढ़ संकल्प मैजॉरिटी ने किया है। क्या ऐसे ही चार का भी संकल्प करेंगे!
यह बहाना नहीं देना, इसने यह किया तब मेरा हुआ, और बाप जो बार-बार कहता है, वह याद
नहीं, उसने जो किया वह याद आ गया, तो यह बहानेबाजी हुई ना! तो आज बापदादा बर्थ डे
की गिफ्ट चाहते हैं यह तीन बातें, जो चार को हल्का कर देती हैं। संस्कार का सामना
तो करना ही है, संस्कार का सामना नहीं, यह पेपर है। एक जन्म की पढ़ाई और सारे कल्प
की प्राप्ति, आधाकल्प राज्य भाग्य, आधाकल्प पूज्य, सारे कल्प की एक जन्म में
प्राप्ति, वह भी छोटा जन्म, फुल जन्म नहीं है, छोटा जन्म है। तो क्या हिम्मत है? जो
समझते हैं, हिम्मत रखेंगे जरूर, ऐसे नहीं पुरुषार्थ करेंगे, अटेन्शन रखेंगे... गे
गे नहीं चाहिए। छोटे बच्चे नहीं हो, 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं। वह तो तीन चार मास के
बच्चे गे गे करते हैं। तो आप बाप के साथी हो ना! विश्व कल्याणकारी हो, उसको तो 70
वर्ष पूरे हो रहे हैं। बापदादा हाथ नहीं उठवाते क्योंकि बाप-दादा ने देखा है हाथ
उठाके भी कभी कभी अलबेले हो जाते हैं। तो क्या समझते हो कि कुछ भी हो जाए, पहाड़
जैसा पेपर भी आ जाए लेकिन पहाड़ को रूई बना देंगे, ऐसा दृढ़ संकल्प करने की हिम्मत
है! क्योंकि संकल्प बहुत अच्छे करते हो, बापदादा भी खुश हो जाते हैं, जिस समय
संकल्प करते हो। लेकिन है क्या, 70 वर्ष तो हल्का छोड़ा लेकिन बापदादा देख रहे हैं
कि समय का कोई भरोसा नहीं और इस ज्ञान के आधार पर हर पुरुषार्थ की बात में बहुतकाल
का हिसाब है। अच्छा अभी-अभी कर लेंगे, परन्तु बहुतकाल का हिसाब है क्योंकि प्राप्ति
हर एक क्या चाहता है? अभी हाथ उठवाते हैं, कोई राम सीता बनेगा? जो राम-सीता बनने
चाहते हैं वह हाथ उठाओ, राजाई मिलेगी। कोई हाथ उठा रहे हैं - राम सीता बनेंगे?
लक्ष्मी-नारायण नहीं बनेंगे? डबल फारेनर्स में कोई हाथ उठाता है? (कोई नहीं) जब
बहुतकाल का भाग्य प्राप्त करने चाहते हो, लक्ष्मी-नारायण बनना अर्थात् बहुतकाल का
राज्य भाग्य प्राप्त करना। तो बहुतकाल की प्राप्ति है। तो हर बात में बहुतकाल तो
चाहिए ना! अभी 63 जन्म के बहुतकाल का संस्कार है तो कहते हो ना, हमारा भाव नहीं है,
भावना नहीं है, संस्कार है 63 जन्म का। तो बहुतकाल का हिसाब है ना इसीलिए बापदादा
यही चाहते हैं कि संकल्प में दृढ़ता हो, दृढ़ता की ही कमी हो जाती है, हो जायेगा...
चलता है, चलने दो, कौन बना है, और एक तो बहुत अच्छी बात सबको आती है, बापदादा ने
बातें नोट किया है, अपनी हिम्मत नहीं होती है तो कहते हैं महारथी भी ऐसे करते हैं,
हमने किया तो क्या हुआ? लेकिन बापदादा पूछते हैं कि क्या जिस समय महारथी गलती करता
है, उस समय महारथी है? तो महारथी का नाम क्यों खराब करते हो? उस समय वह महारथी है
ही नहीं, तो महारथी कहके अपने को कमजोर करना यह अपने को धोखा देना है। दूसरे को
देखना सहज होता है, अपने को देखने में थोड़ी हिम्मत चाहिए। तो आज बापदादा हिसाब का
किताब खत्म कराने की गिफ्ट लेने आये हैं। कमजोरी और बहाने-बाजी का हिसाब-किताब का
बहुत बड़ा किताब है, उसको खत्म करना है। तो हर एक जो समझते हैं हम करके दिखायेंगे,
करना ही है, झुकना ही है, बदलना ही है, परिवर्तन सेरीमनी मनानी ही है, जो समझते हैं
संकल्प करेंगे वह हाथ उठाओ। दृढ़ या चालू? चालू संकल्प भी होता है और दृढ़ संकल्प
भी होता है। तो आप सबने दृढ़ उठाया है? दृढ़ उठाया है? मधुबन वाले बड़ा हाथ उठाओ।
यहाँ सामने मधुबन वाले बैठते हैं, बहुत नजदीक बैठने का चांस है। पहली सीट मधुबन वालों
को मिलती है, बापदादा खुश है। पहले बैठे हो, पहले ही रहना।
तो आज की गिफ्ट तो
बढ़िया हुई ना। बापदादा को भी खुशी है क्योंकि आप एक नहीं हो। आपके पीछे अपनी
राजधानी में आपकी रॉयल फैमिली, आपकी रॉयल प्रजा, फिर द्वापर से आपके भक्त, सतो रजो
तमोगुणी, तीन प्रकार के भक्त, आपके पीछे लम्बी लाइन है। जो आप करेंगे वह आपके पीछे
वाले करते हैं। आप बहानेबाजी देते हो तो आपके भक्त भी बहुत बहानेबाजी करते हैं। अभी
ब्राह्मण परिवार भी आपको देख, उल्टी कॉपी करने में तो होशियार होते हैं ना। तो अभी
दृढ़ संकल्प करो, संस्कार का टक्कर हो, स्वभाव का मतभेद हो, तीसरी बात कमजोरों की
होती है, कोई ने किसी के ऊपर झूठी बात कह दी, तो कई बच्चे कहते हैं हमको ज्यादा
क्रोध आता है झूठ पर। लेकिन सच्चे बाप से वेरीफाय कराया, सच्चा बाप आपके साथ है, तो
सारी झूठी दुनिया एक तरफ हो और एक बाप आपके साथ है, विजय आपकी निश्चित हुई पड़ी है।
कोई आपको हिला नहीं सकता, क्योंकि बाप आपके साथ है। कह रहे हैं झूठ है। तो झूठ को
झूठा ही कर दो ना, बढ़ाते क्यों हो! तो बाप को बहानेबाजी अच्छी नहीं लगती, यह हुआ,
यह हुआ, यह हुआ... यह यह का गीत अब समाप्त होना चाहिए। अच्छा हुआ, अच्छा होगा, अच्छा
रहेंगे, अच्छा सबको बनायेंगे। अच्छा-अच्छा-अच्छा का गीत गाओ। तो पसन्द है? पसन्द
है? बहानेबाजी को खत्म करेंगे? करेंगे? दोनों हाथ उठाओ। हाँ, अच्छी तरह से हिलाओ।
अच्छा, देखने वाले भी हाथ हिला रहे हैं। कहाँ भी देख रहे हैं, हाथ हिलाओ। आप तो हिला
रहे हो। अच्छा अभी नीचे करो, अभी अपने परिवर्तन की ताली बजाओ। (सभी ने जोरदार तालियां
बजाई) अच्छा।
अच्छा- अभी हरेक एक
मिनट के लिए दृढ़ संकल्प स्वरूप में बैठो कि बहानेबाजी, आलस्य, अलबेलापन को हर समय
दृढ़ संकल्प द्वारा समाप्त कर बहुतकाल का हिसाब जमा करना ही है। कुछ भी हो, कुछ नहीं
देखना है लेकिन बाप के दिलतख्त-नशीन बनना ही है, विश्व के तख्तनशीन बनना ही है। इस
दृढ़ संकल्प स्वरूप में सभी बैठो। अच्छा।
चारों ओर के सदा
उमंग-उत्साह के अनुभव में रहने वाले, सदा दृढ़ता सफलता की चाबी को कार्य में लगाने
वाले, सदा बाप के साथ और हर कार्य में साथी बन रहने वाले, सदा एक-नामी और एकॉनामी,
एकाग्रता स्वरूप में आगे से आगे उड़ते रहने वाले, बापदादा के अति लाडले, सिकीलधे,
विशेष बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
हद की सर्व
इच्छाओं का त्याग करने वाले सच्चे तपस्वी मूर्त भव
हद की इच्छाओं का
त्याग कर सच्चे-सच्चे तपस्वी मूर्त बनो। तपस्वी मूर्त अर्थात हद के इच्छा मात्रम्
अविद्या रूप। जो लेने का संकल्प करता है वह अल्पकाल के लिए लेता है लेकिन सदाकाल के
लिए गंवाता है। तपस्वी बनने में विशेष विघ्न रूप यही अल्पकाल की इच्छायें हैं इसलिए
अब तपस्वी मूर्त बनने का सबूत दो अर्थात् हद के मान शान के लेवता पन का त्याग कर
विधाता बनो। जब विधाता पन के संस्कार इमर्ज होंगे तब अन्य सब संस्कार स्वत:दब
जायेंगे।
स्लोगन:-
कर्म के फल की सूक्ष्म कामना रखना भी फल को पकने से पहले ही खा लेना है।
अव्यक्त इशारे - अब
लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ
पाप कटेश्वर वा पाप
हरनी तब बन सकते हो जब याद ज्वाला स्वरूप होगी। इसी याद द्वारा अनेक आत्माओं की
निर्बलता दूर होगी, इसके लिए हर सेकण्ड, हर श्वांस बाप और आप कम्बाइन्ड होकर रहो।
कोई भी समय साधारण याद न हो। स्नेह और शक्ति दोनों रूप कम्बाइन्ड हो।