ओम् शान्ति।
तुम बच्चे जानते हो, बच्चों की अगर तबियत ठीक नहीं होगी तो बाप कहेंगे भल यहाँ सो
जाओ। इसमें कोई हर्जा नहीं क्योंकि सिकीलधे बच्चे हैं अर्थात् 5 हज़ार वर्ष बाद फिर
से आकर मिले हैं। किसको मिले हैं? बेहद के बाप को। यह भी तुम बच्चे जानते हो, जिनको
निश्चय है बरोबर हम बेहद के बाप से मिले हैं क्योंकि बाप होता ही है एक हद का और
दूसरा बेहद का। दु:ख में सब बेहद के बाप को याद करते हैं। सतयुग में एक ही लौकिक
बाप को याद करते हैं क्योंकि वहाँ है ही सुखधाम। लौकिक बाप उसको कहा जाता है जो इस
लोक में जन्म देता है। पारलौकिक बाप तो एक ही बार आकर तुमको अपना बनाते हैं। तुम
रहने वाले भी बाप के साथ अमरलोक में हो - जिसको परलोक, परमधाम कहा जाता है। वह है
परे ते परे धाम। स्वर्ग को परे ते परे नहीं कहेंगे। स्वर्ग नर्क यहाँ ही होता है।
नई दुनिया को स्वर्ग, पुरानी दुनिया को नर्क कहा जाता है। अभी है पतित दुनिया,
पुकारते भी हैं - हे पतित-पावन आओ। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। जब से रावण राज्य
होता है तब पतित बनते हैं, उनको कहेंगे 5 विकारों का राज्य। सतयुग में है ही
निर्विकारी राज्य। भारत की कितनी जबरदस्त महिमा है। परन्तु विकारी होने के कारण
भारत की महिमा को जानते नहीं। भारत सम्पूर्ण निर्विकारी था, जब यह लक्ष्मी-नारायण
राज्य करते थे। अभी वह राज्य नहीं है। वह राज्य कहाँ गया - यह पत्थर बुद्धियों को
मालूम नहीं। और सभी अपने-अपने धर्म स्थापक को जानते हैं, एक ही भारतवासी हैं जो न
अपने धर्म को जानते, न धर्म स्थापक को जानते हैं। और धर्म वाले अपने धर्म को तो
जानते हैं परन्तु वह फिर कब स्थापन करने आयेंगे, यह नहीं जानते। सिक्ख लोगों को भी
यह पता नहीं है कि हमारा सिक्ख धर्म पहले था नहीं। गुरुनानक ने आकर स्थापन किया तो
जरूर फिर सुखधाम में नहीं रहेगा, तब ही गुरुनानक आकर फिर स्थापन करेंगे क्योंकि
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है ना। क्रिश्चियन धर्म भी नहीं था फिर
स्थापना हुई। पहले नई दुनिया थी, एक धर्म था। सिर्फ तुम भारतवासी ही थे, एक धर्म था
फिर तुम 84 जन्म लेते-लेते यह भी भूल गये हो कि हम ही देवता थे। फिर हम ही 84 जन्म
लेते हैं तब बाप कहते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं बतलाता हूँ।
आधाकल्प रामराज्य था फिर रावण राज्य हुआ है। पहले है सूर्यवंशी घराना फिर चन्द्रवंशी
घराना रामराज्य। सूर्य-वंशी लक्ष्मी-नारायण के घराने का राज्य था जो सूर्यवंशी
लक्ष्मी-नारायण के घराने के थे, सो 84 जन्म ले अभी रावण के घराने के बने हैं। आगे
पुण्य आत्माओं के घराने के थे, अभी पाप आत्माओं के घराने के बने हैं। 84 जन्म लिए
हैं, वे तो 84 लाख कह देते। अब 84 लाख का कौन बैठ विचार करेंगे इसलिए कोई का विचार
चलता ही नहीं। अभी तुमको बाप ने समझाया है, तुम बाप के आगे बैठे हो, निराकार बाप और
साकार बाप दोनों ही भारत में नामीग्रामी हैं। गाते भी हैं परन्तु बाप को जानते नहीं
हैं, अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। ज्ञान से जागृति होती है। रोशनी में मनुष्य कभी
धक्का नहीं खाते। अन्धियारे में धक्के खाते रहते। भारतवासी पूज्य थे, अब पुजारी
हैं। लक्ष्मी-नारायण पूज्य थे ना, यह किसकी पूजा करेंगे। अपना चित्र बनाए अपनी पूजा
तो नहीं करेंगे। यह हो नहीं सकता। तुम बच्चे जानते हो - हम ही पूज्य, सो फिर कैसे
पुजारी बनते हैं। यह बातें और कोई समझ नहीं सकते। बाप ही समझाते हैं इसलिए कहते भी
हैं ईश्वर की गत मत न्यारी है।
अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा ने हमारी सारी दुनिया से गत मत न्यारी कर दी है।
सारी दुनिया में अनेक मत-मतान्तर हैं, यहाँ तुम ब्राह्मणों की है एक मत। ईश्वर की
मत और गत। गत अर्थात् सद्गति। सद्गति दाता एक ही बाप है। गाते भी हैं सर्व का सद्गति
दाता राम। परन्तु समझते नहीं कि राम किसको कहा जाता है। कहेंगे जिधर देखो राम ही
राम रहता है, इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा। अन्धियारे में है दु:ख, सोझरे में
है सुख। अन्धियारे में ही पुकारते हैं ना। बंदगी करना माना बाप को बुलाना, भीख
मांगते हैं ना। देवताओं के मन्दिर में जाकर भीख मांगना हुआ ना। सतयुग में भीख मांगने
की दरकार नहीं। भिखारी को इनसालवेन्ट कहा जाता है। सतयुग में तुम कितने सालवेन्ट
थे, उसको कहा जाता है सालवेन्ट। भारत अभी इनसालवेन्ट है। यह भी कोई समझते नहीं।
कल्प की आयु उल्टी-सुल्टी लिख देने से मनुष्यों का माथा ही फिर गया है। बाप बहुत
प्यार से बैठ समझाते हैं। कल्प पहले भी बच्चों को समझाया था, मुझ पतित-पावन बाप को
याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। पतित कैसे बने हो, विकारों की खाद पड़ी है। सब
मनुष्य जंक खाये हुए हैं। अब वह जंक कैसे निकले? मुझे याद करो। देह-अभिमान छोड़
देही-अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझो। पहले तुम हो आत्मा फिर शरीर लेते हो। आत्मा
तो अमर है, शरीर मृत्यु को पाता है। सतयुग को कहा जाता है अमरलोक। कलियुग को कहा
जाता है मृत्युलोक। दुनिया में यह कोई भी नहीं जानते कि अमरलोक था फिर मृत्युलोक
कैसे बना। अमरलोक अर्थात् अकाले मृत्यु नहीं होती। वहाँ आयु भी बड़ी रहती है। वह है
ही पवित्र दुनिया।
तुम राजऋषि हो। ऋषि पवित्र को कहा जाता है। तुमको पवित्र किसने बनाया? उनको बनाते
हैं शंकराचार्य, तुमको बना रहे हैं शिवाचार्य। यह कोई पढ़ा हुआ नहीं है। इन द्वारा
तुमको शिवबाबा आकर पढ़ाते हैं। शंकराचार्य ने तो गर्भ से जन्म लिया, कोई ऊपर से
अवतरित नहीं हुआ। बाप तो इनमें प्रवेश करते हैं, आते हैं, जाते हैं, मालिक हैं,
जिसमें चाहे उनमें जा सकते हैं। बाबा ने समझाया है कोई का कल्याण करने अर्थ मैं
प्रवेश कर लेता हूँ। आता तो पतित तन में ही हूँ ना। बहुतों का कल्याण करता हूँ।
बच्चों को समझाया है - माया भी कम नहीं है। कभी-कभी ध्यान में माया प्रवेश कर
उल्टा-सुल्टा बुलवाती रहती है इसलिए बच्चों को बहुत सम्भाल करनी है। कइयों में जब
माया प्रवेश कर लेती है तो कहते हैं मैं शिव हूँ, फलाना हूँ। माया बड़ी शैतान है।
समझदार बच्चे अच्छी रीति समझ जायेंगे कि यह किसका प्रवेश है। शरीर तो उनका मुकरर यह
है ना। फिर दूसरे का हम सुनें ही क्यों! अगर सुनते हो तो बाबा से पूछो यह बात राइट
है वा नहीं? बाप झट समझा देंगे। कई ब्राह्मणियां भी इन बातों को समझ नहीं सकती कि
यह क्या है। कोई में तो ऐसी प्रवेशता होती है जो चमाट भी मार देते, गालियां भी देने
लग पड़ते। अब बाप थोड़ेही गाली देंगे। इन बातों को भी कई बच्चे समझ नहीं सकते।
फर्स्टक्लास बच्चे भी कहाँ-कहाँ भूल जाते हैं। सब बातें पूछनी चाहिए क्योंकि बहुतों
में माया प्रवेश कर लेती है। फिर ध्यान में जाकर क्या-क्या बोलते रहते हैं। इसमें
भी बड़ा सम्भालना चाहिए। बाप को पूरा समाचार देना चाहिए। फलाने में मम्मा आती है,
फलाने में बाबा आते हैं - इन सब बातों को छोड़ बाप का एक ही फ़रमान है कि मामेकम्
याद करो। बाप को और सृष्टि चक्र को याद करो। रचयिता और रचना का सिमरण करने वाले की
शक्ल सदैव हर्षित रहेगी। बहुत हैं जिनका सिमरण होता नहीं है। कर्म-बन्धन बड़ा भारी
है। विवेक कहता है - जबकि बेहद का बाप मिला है, कहते हैं मुझे याद करो तो फिर क्यों
न हम याद करें। कुछ भी होता है तो बाप से पूछो। बाप समझायेंगे कर्मभोग तो अभी रहा
हुआ है ना। कर्मातीत अवस्था हो जायेगी तो फिर तुम सदैव हर्षित रहेंगे। तब तक कुछ न
कुछ होता है। यह भी जानते हो मिरूआ मौत मलूका शिकार। विनाश होना है। तुम फरिश्ते
बनते हो। बाकी थोड़े दिन इस दुनिया में हो फिर तुम बच्चों को यह स्थूलवतन भासेगा नहीं।
सूक्ष्मवतन और मूलवतन भासेगा। सूक्ष्मवतनवासियों को कहा जाता है फरिश्ते। वह बहुत
थोड़ा समय बनते हो जबकि तुम कर्मातीत अवस्था को पाते हो। सूक्ष्मवतन में हड्डी मांस
होता नहीं। हड्डी मांस नहीं तो बाकी क्या रहा? सिर्फ सूक्ष्म शरीर होता है! ऐसे नहीं
कि निराकार बन जाते हैं। नहीं, सूक्ष्म आकार रहता है। वहाँ की भाषा मूवी चलती है।
आत्मा आवाज़ से परे है। उसको कहा जाता है सटिल वर्ल्ड। सूक्ष्म आवाज़ होता है। यहाँ
है टाकी। फिर मूवी फिर है साइलेन्स। यहाँ टॉक चलती है। यह ड्रामा का बना बनाया
पार्ट है। वहाँ है साइलेन्स। वह मूवी और यह है टाकी। इन तीन लोकों को भी याद करने
वाले कोई विरले होंगे। बाप समझाते हैं - बच्चे, सजाओं से छूटने के लिए कम से कम 8
घण्टा कर्मयोगी बन कर्म करो, 8 घण्टा आराम करो और 8 घण्टा बाप को याद करो। इसी
प्रैक्टिस से तुम पावन बन जायेंगे। नींद करते हो, वह कोई बाप की याद नहीं है। ऐसे
भी कोई न समझे कि बाबा के तो हम बच्चे हैं ना फिर याद क्या करें। नहीं, बाप तो कहते
हैं मुझे वहाँ याद करो। अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। जब तक योगबल से तुम पवित्र
न बनो तब तक घर में भी तुम जा नहीं सकते। नहीं तो फिर सजायें खाकर जाना होगा।
सूक्ष्मवतन मूलवतन में भी जाना है फिर आना है स्वर्ग में। बाबा ने समझाया है आगे चल
अखबारों में भी पड़ेगा, अभी तो बहुत टाइम है। इतनी सारी राजधानी स्थापन होती है।
साउथ, नार्थ, इस्ट, वेस्ट भारत का कितना है। अब अखबारों द्वारा ही आवाज़ निकलेगा।
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। बुलाते भी हैं - हे
पतित-पावन, लिबरेटर हमको दु:ख से छुड़ाओ। बच्चे जानते हैं ड्रामा प्लैन अनुसार
विनाश भी होना है। इस लड़ाई के बाद फिर शान्ति ही शान्ति होगी, सुखधाम हो जायेगा।
सारी उथल पाथल हो जायेगी। सतयुग में होता ही है एक धर्म। कलियुग में हैं अनेक धर्म।
यह तो कोई भी समझ सकते हैं। सबसे पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, जब सूर्यवंशी
थे तो चन्द्रवंशी नहीं थे फिर चन्द्रवंशी होते हैं। पीछे यह देवी-देवता धर्म
प्राय:लोप हो जाता है। पीछे फिर और धर्म वाले आते हैं। वह भी जब तक उन्हों की संस्था
वृद्धि को पाये तब तक मालूम थोड़ेही पड़ता है। अभी तुम बच्चे सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुमसे पूछेंगे सीढ़ी में सिर्फ भारतवासियों को क्यों
दिखाया है? बोलो, यह खेल है भारत पर। आधाकल्प है उन्हों का पार्ट, बाकी द्वापर,
कलियुग में अन्य सब धर्म आते हैं। गोले में यह सारी नॉलेज है। गोला तो बड़ा
फर्स्टक्लास है। सतयुग-त्रेता में है श्रेष्ठाचारी दुनिया। द्वापर-कलियुग है
भ्रष्टाचारी दुनिया। अभी तुम संगम पर हो। यह ज्ञान की बातें हैं। यह 4 युगों का
चक्र कैसे फिरता है - यह किसको पता नहीं है। सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य
होता है। इन्हों को भी यह थोड़ेही पता रहता कि सतयुग के बाद फिर त्रेता होना है,
त्रेता के बाद फिर द्वापर कलियुग आना है। यहाँ भी मनुष्यों को बिल्कुल पता नहीं। भल
कहते हैं परन्तु कैसे चक्र फिरता है, यह कोई नहीं जानते इसलिए बाबा ने समझाया है -
सारा गीता पर जोर रखो। सच्ची गीता सुनने से स्वर्गवासी बनते हैं। यहाँ शिवबाबा खुद
सुनाते हैं, वहाँ मनुष्य पढ़ते हैं। गीता भी सबसे पहले तुम पढ़ते हो। भक्ति में भी
पहले-पहले तो तुम जाते हो ना। शिव के पुजारी पहले तुम बनते हो। तुमको पहले-पहले पूजा
करनी होती है अव्यभिचारी, एक शिवबाबा की। सोमनाथ मन्दिर और किसकी ताकत थोड़ेही है
बनाने की। बोर्ड पर कितने प्रकार की बातें लिख सकते हैं। यह भी लिख सकते हैं
भारतवासी सच्ची गीता सुनने से सचखण्ड के मालिक बनते हैं।
अभी तुम बच्चे जानते हो हम सच्ची गीता सुनकर स्वर्गवासी बन रहे हैं। जिस समय तुम
समझाते हो तो कहते हैं - हाँ, बरोबर ठीक है, बाहर गये खलास। वहाँ की वहाँ रही। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है। याद की यात्रा
से अपने पुराने सब कर्मबन्धन काट कर्मातीत अवस्था बनानी है।
2) ध्यान दीदार में माया की बहुत प्रवेशता होती है, इसलिए सम्भाल करनी है, बाप
को समाचार दे राय लेनी है, कोई भी भूल नहीं करनी है।