ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, रूहानी बाप को ही ज्ञान का सागर कहा
जाता है। यह तो बच्चों को समझाया है। बाम्बे में भी बहुत सोशल वर्कर्स हैं, उनकी
मीटिंग होती रहती है। बाम्बे में खास जहाँ मीटिंग करते हैं उसका नाम है भारतीय
विद्या भवन। अब विद्या होती है दो प्रकार की। एक है जिस्मानी विद्या, जो
स्कूलों-कॉलेजों में दी जाती है। अब उसको विद्या भवन कहते हैं। जरूर वहाँ कोई दूसरी
चीज़ है। अब विद्या किसको कहा जाता है, यह तो मनुष्य जानते ही नहीं। यह तो रूहानी
विद्या भवन होना चाहिए। विद्या ज्ञान को कहा जाता है। परमपिता परमात्मा ही ज्ञान
सागर है। श्रीकृष्ण को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे। शिवबाबा की महिमा अलग, श्रीकृष्ण
की महिमा अलग है। भारतवासी मूँझ पड़े हैं। गीता का भगवान् श्रीकृष्ण को समझ बैठे
हैं तो विद्या भवन आदि खोलते रहते हैं। समझते कुछ भी नहीं। विद्या है गीता का ज्ञान।
वह ज्ञान तो है ही एक बाप में। जिसको ज्ञान का सागर कहा जाता है, जिसे मनुष्यमात्र
जानते नहीं हैं। भारतवासियों का धर्म शास्त्र तो वास्तव में है ही एक - सर्व
शास्त्रमई शिरोमणी भगवत गीता। अब भगवान् किसको कहा जाए? वह भी इस समय भारत-वासी
समझते नहीं या तो श्रीकृष्ण को कह देते हैं या राम को या अपने को ही परमात्मा कह
देते। अब तो समय भी तमोप्रधान है, रावण राज्य है ना।
तुम बच्चे जब किसको समझाते हो तो बोलो शिव भगवानुवाच। पहले तो यह समझें कि ज्ञान
सागर एक ही परमपिता पर-मात्मा है, जिसका नाम है शिव। शिवरात्रि भी मनाते हैं, परन्तु
किसको भी समझ में नहीं आता है। जरूर शिव आया हुआ है तब तो रात्रि मनाते हैं। शिव
कौन है - यह भी नहीं जानते। बाप कहते हैं भगवान् तो सबका एक ही है। सब आत्मायें
भाई-भाई हैं। आत्माओं का बाप एक ही परमपिता परमात्मा है, उनको ही ज्ञान सागर कहेंगे।
देवताओं में यह ज्ञान है नहीं। कौन-सा ज्ञान? रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का
ज्ञान कोई मनुष्य मात्र में नहीं है। कहते भी हैं प्राचीन ऋषि-मुनि नहीं जानते थे।
प्राचीन का भी अर्थ नहीं जानते। सतयुग-त्रेता हुआ प्राचीन। सतयुग है नई दुनिया। वहाँ
तो ऋषि-मुनि थे ही नहीं। यह ऋषि-मुनि आदि सब बाद में आये हैं। वह भी इस ज्ञान को नहीं
जानते। नेती-नेती कह देते हैं। वही जानते नहीं तो भारत-वासी जो अभी तमोगुणी हो गये
हैं, वह कैसे जान सकते?
इस समय साइन्स का घमण्ड भी कितना है। इस साइन्स द्वारा समझते हैं भारत स्वर्ग बन गया
है। इसको माया का पाम्प कहा जाता है। फॉल ऑफ पाम्प का एक नाटक भी है। कहते भी हैं
कि इस समय भारत का पतन है। सतयुग में उत्थान है, अब पतन है। यह कोई स्वर्ग थोड़ेही
है। यह तो माया का पाम्प है, इनको खत्म होना ही है। मनुष्य समझते हैं - विमान हैं,
बड़े-बड़े महल, बिजलियां हैं - यही स्वर्ग है। कोई मरता है तो भी कहते स्वर्गवासी
हुआ। इससे भी समझते नहीं कि स्वर्ग गया तो जरूर स्वर्ग कोई और है ना। यह तो रावण का
पाम्प है, बेहद का बाप स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। इस समय है चटाबेटी माया और
ईश्वर की, आसुरी दुनिया और ईश्वरीय दुनिया की। यह भी भारतवासियों को समझाना पड़े।
दु:ख तो अजुन बहुत आने वाले हैं। अथाह दु:ख आना है। स्वर्ग तो होता ही सतयुग में
है। कलियुग में हो न सके। यह भी किसको पता नहीं पुरूषोत्तम संगमयुग किसको कहा जाता
है। यह भी बाप समझाते हैं ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। अन्धियारे में धक्के खाते
रहते हैं। भग-वान् से मिलने के लिए कितने वेद-शास्त्र आदि पढ़ते हैं। ब्रह्मा का
दिन और रात सो ब्राह्मणों का दिन और रात। सच्चे मुख वंशावली ब्राह्मण तुम हो। वह तो
हैं कलियुगी कुख वंशावली ब्राहमण। तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण। यह बातें
और कोई नहीं जानते। यह बातें जब समझें तब बुद्धि में आये कि हम यह क्या कर रहे हैं।
भारत सतोप्रधान था, जिसको ही स्वर्ग कहा जाता है। तो जरूर यह नर्क है, तब तो नर्क
से स्वर्ग में जाते हैं। वहाँ शान्ति भी है, सुख भी है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य है
ना। तुम समझा सकते हो - मनुष्यों की वृद्धि कैसे कम हो सकती है? अशान्ति कैसे कम हो
सकती है? अशान्ति है ही पुरानी दुनिया कलियुग में। नई दुनिया में ही शान्ति होती
है। स्वर्ग में शान्ति है ना। उनको ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहा जाता है।
हिन्दू धर्म तो अभी का है, इनको आदि सनातन धर्म नहीं कह सकते। यह तो हिन्दुस्तान के
नाम पर हिन्दू कह देते हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। वहाँ कम्पलीट पवित्रता,
सुख, शान्ति, हेल्थ, वेल्थ आदि सब था। अभी पुकारते हैं हम पतित हैं, हे पतित-पावन
आओ। अब प्रश्न है पतित-पावन कौन? श्रीकृष्ण को तो नहीं कहेंगे। पतित-पावन परमपिता
परमात्मा ही ज्ञान का सागर है। वही आकर पढ़ाते हैं। ज्ञान को पढ़ाई कहा जाता है।
सारा मदार है गीता पर। अभी तुम प्रद-र्शनी, म्युजियम आदि बनाते हो लेकिन अभी तक
बी.के. का अर्थ नहीं समझते। समझते हैं यह कोई नया धर्म है। सुनते हैं, समझते कुछ नहीं।
बाप ने कहा है बिल्कुल ही तमोप्रधान पत्थरबुद्धि हैं। इस समय साइंस घमण्डी भी बहुत
बन गये हैं, साइन्स से ही अपना विनाश कर लेते हैं तो पत्थरबुद्धि कहेंगे ना।
पारसबुद्धि थोड़ेही कहेंगे। बाम्ब्स आदि बनाते हैं अपने विनाश के लिये। ऐसे नहीं,
शंकर कोई विनाश करता है। नहीं, इन्होंने अपने विनाश के लिये सब बनाया है। परन्तु
तमोप्रधान पत्थरबुद्धि समझते नहीं हैं। जो कुछ बनाते हैं इस पुरानी सृष्टि के विनाश
के लिये। विनाश हो तब फिर नई दुनिया की जयजयकार हो। वह तो समझते हैं स्त्रियों का
दु:ख कैसे दूर करें? परन्तु मनुष्य थोड़ेही किसका दु:ख दूर कर सकते हैं। दु:ख हर्ता,
सुख कर्ता तो एक ही बाप है। देवताओं को भी नहीं कहेंगे। श्रीकृष्ण भी देवता हो गया।
भगवान् नहीं कह सकते। यह भी समझते नहीं। जो समझते हैं वह ब्राह्मण बन औरों को भी
समझाते रहते हैं। जो राज्य पद के अथवा आदि सनातन देवता धर्म के हैं वह निकल आते
हैं। लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक कैसे बनें, क्या कर्म किया जो विश्व के मालिक
बनें? इस समय कलियुग अन्त में तो अनेकानेक धर्म हैं तो अशान्ति है। नई दुनिया में
ऐसे थोड़ेही होता है। अभी यह है संगमयुग, जबकि बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। बाप ही
कर्म-अकर्म-विकर्म की नॉलेज सुनाते हैं। आत्मा शरीर लेकर कर्म करने आती है। सतयुग
में जो कर्म करते वह अकर्म हो जाते हैं, वहाँ विकर्म होता नहीं। दु:ख होता ही नहीं।
कर्म, अकर्म, विकर्म की गति बाप ही आकर अन्त में सुनाते हैं। मैं इनके बहुत जन्मों
के अन्त के भी अन्त में आता हूँ। इस रथ में प्रवेश करता हूँ। अकाल मूर्त आत्मा का
यह रथ है। सिर्फ एक अमृतसर में नहीं, सभी मनुष्यों का अकालतख्त है। आत्मा अकाल
मूर्त है। यह शरीर बोलता चलता है। अकाल आत्मा का यह चैतन्य तख्त है। अकाल मूर्त तो
सभी हैं बाकी शरीर को काल खा जाता है। आत्मा तो अकाल है। तख्त तो खलास कर देते हैं।
सतयुग में तख्त कोई बहुत थोड़ेही होते हैं। इस समय करोड़ों आत्माओं के तख्त हैं।
अकाल आत्मा को कहा जाता है। आत्मा ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनती है। मैं तो एवर
सतोप्रधान पवित्र हूँ। भल कहते हैं प्राचीन भारत का योग, परन्तु वह भी समझते हैं
श्रीकृष्ण ने सिखाया था। गीता को ही खण्डन कर दिया है। जीवन कहानी में नाम बदल दिया
है। बाप के बदले बच्चे का नाम डाल दिया है। शिवरात्रि मनाते हैं परन्तु वह कैसे आते
हैं, यह जानते नहीं हैं। शिव है ही परम आत्मा। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है, आत्माओं
की महिमा अलग है। बच्चों को यह पता है राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण हैं।
लक्ष्मी-नारायण के दो रूप को ही विष्णु कहा जाता है। फ़र्क तो है नहीं। बाकी 4 भुजा
वाला, 8 भुजा वाला कोई मनुष्य होता नहीं है। देवियों आदि को कितनी भुजायें दे दी
है। समझाने में समय लगता है।
बाप कहते हैं मैं हूँ ही गरीब निवाज़। मैं आता भी तब हूँ जब भारत गरीब बन जाता है।
राहू का ग्रहण बैठ जाता है। बृहस्पति की दशा थी, अब राहू का ग्रहण भारत में तो क्या
सारे वर्ल्ड पर है इसलिये बाप फिर भारत में आते हैं, आकर नई दुनिया स्थापन करते
हैं, जिसको स्वर्ग कहा जाता है। भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा, डबल सिरताज
स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। पांच हज़ार वर्ष हुआ जबकि आदि सनातन देवी-देवता धर्म
था। अभी वह है नहीं। तमोप्रधान हो गये हैं। बाप खुद ही अपना अर्थात् रचयिता और रचना
का परिचय देते हैं। तुम्हारे पास प्रदर्शनी, म्युज़ियम में इतने आते हैं, समझते
थोड़ेही हैं। कोई बिरले समझकर कोर्स करते हैं। रचयिता और रचना को जानते हैं। रचता
है बेहद का बाप। उनसे बेहद का वर्सा मिलता है। यह नॉलेज बाप ही देते हैं। फिर राजाई
मिल जाती है तो वहाँ नॉलेज की दरकार नहीं। सद्गति कहा जाता है नई दुनिया स्वर्ग को,
दुर्गति कहा जाता है पुरानी दुनिया नर्क को। बाप समझाते तो बहुत अच्छी तरह से हैं।
बच्चों को भी ऐसे समझाना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र दिखाना है। यह विश्व में
शान्ति स्थापन हो रही है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं जो बाप
स्थापन कर रहे हैं। देवताओं का पवित्र धर्म, पवित्र कर्म था। अभी यह है ही विशश
वर्ल्ड। नई दुनिया को कहा जाता है वाइसलेस वर्ल्ड, शिवालय। अब समझाना पड़े तो बिचारों
का कुछ कल्याण हो। बाप को ही कल्याणकारी कहा जाता है। वह आते ही हैं पुरूषोत्तम
संगमयुग पर। कल्याणकारी युग में कल्याणकारी बाप आकर सबका कल्याण करते हैं। पुरानी
दुनिया को बदल नई दुनिया स्थापन कर देते हैं। ज्ञान से सद्गति होती है। इस पर रोज़
टाइम लेकर समझा सकते हो। बोलो, रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को हम ही जानते हैं।
यह गीता का एपीसोड चल रहा है जिसमें भगवान् ने आकर राजयोग सिखाया है। डबल सिरताज
बनाया है। यह लक्ष्मी-नारायण भी राजयोग से यह बने हैं। इस पुरूषोत्तम संगम-युग पर
बाप से राजयोग सीखते हैं। बाबा हर बात कितना सहज समझाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) राजयोग की पढ़ाई सोर्स ऑफ इनकम है क्योंकि इससे ही हम राजाओं का राजा
बनते हैं। यह रूहानी पढ़ाई रोज़ पढ़नी और पढ़ानी है।
2) सदा नशा रहे कि हम ब्राह्मण सच्चे मुख वंशावली हैं, हम कलियुगी रात से निकल
दिन में आये हैं, यह है कल्याणकारी पुरूषोत्तम युग, इसमें अपना और सर्व का कल्याण
करना है।